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Tag: माधुरी व्यास “नवपमा”

माँ पर अटल भरोसा
लघुकथा

माँ पर अटल भरोसा

माधुरी व्यास "नवपमा" इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** पांडाल से नौ कन्याएँ सज-धजकर गरबा मंडल के आयोजक महिला और पुरुषों के छोटे से समूह के साथ मूर्तिकार के यहॉं पहुँची। उसमें से पहुँचते ही अंशी बेटी बोल पड़ी- "अरे अंकल ये क्या कर रहे हो? माँ के तिलक को आँख जैसा क्यों बनाया?" उन्हीं में से मिशी बोली- "और ये आँख से आग क्यों निकल दी आपने?" शक्ति संचय करता तीसरा नेत्र प्रज्वलित कर मूर्तिकार ने पलटकर देखा। उसका मन प्रसन्न हो गया शक्ति स्वरूपा माँ के नौ बाल रूप देख बरबस ही हाथ जोड़कर मस्तक झुका दिया। भावविभोर हो मन ही मन कहने लगा माँ तुम्हारे दर्शन से साधना सफल हुई। अंशी अपने नेत्र फैलाकर जवाब की प्रतीक्षा में देखने लगी मूर्तिकार कुछ कहता उसके पहले ही उसकी माँ ने जवाब दिया- "अरे अंशी बेटू माँ के नेत्र से आग नहीं निकल रही। यह तो शक्ति नेत्र है।" ओ! तो....इससे पॉवर मिलेगा मम्मा...
रंगत बरखा की
कविता

रंगत बरखा की

माधुरी व्यास "नवपमा" इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** बदले मौसम की रंगत से, बदल गया है सारा समा। सावन बरसे, झूम-झूम के, गगन-धरा को चूँम-चूँम के। देखो तो कितना मतवाला, हो गया है अब ये जहाँ। बदले मौसम की रंगत से, बदल गया है सारा समा। झरने छनक-छनक बहते, नदियाँ उफ़न-उफ़न कहती। सारा इतना स्नेह तुम्हारा, मुझमें समा गया है कहाँ। बदले मौसम की रंगत से, बदल गया है सारा समा। ठंडी-ठंडी हवा है चलती, रोम-रोम खुशी है भरती। सारा आलम है मस्ताना, पुलक उठा है रवा-रवा। बदले मौसम की रंगत से, बदल गया है सारा समा। उमड़-उमड़कर गरजे बदली, तड़प-तड़पकर चमके बिजली। देखो मौसम हुआ दीवाना, सूरज-चन्दा छुपे है कहाँ। बदले मौसम की रंगत से, बदल गया है सारा समा। चहक-चहक वर्षा की बदली, चुपके-चुपके सबसे कहती। अपना जीवन भले मिटाना, देना जग को दुआ सदा। बदले मौसम की रंगत से, ...
आओ बच्चों नया सिखाए
कविता

आओ बच्चों नया सिखाए

माधुरी व्यास "नवपमा" इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** आओ बच्चों नया सिखाए, जीवन की नई नीत रे। अनदेखी इस महाबला की कैसी है तासीर रे। कोरोना के संग जीवन को जीने की तरकीब रे। आओ बच्चों नया सिखाए, जीवन की नई नीत रे। दूर-दूर रहकर भी सीखो, रहना तुम नजदीक रे। एक-दूजे को देते रहना, मन से मन की प्रीत रे। आओ बच्चों नया सिखाए, जीवन की नई नीत रे। साथ-साथ पढ़ते-बढ़ते, देना सदा तदबीर रे। महामारी को मात देते, लिखना तुम तकदीर रे। आओ बच्चों नया सिखाए, जीवन की नई नीत रे। हौसले की लकीरों से, बनाना नई तस्वीर रे। मुस्तेदी से करते जाना, सबको तुम ताकीद रे। आओ बच्चों नया सिखाए, जीवन की नई नीत रे। धीरे से अब लेते जाना, तालीम की ये रीत रे। महफ़ूज रहकर लेना तुम मुसीबतों को जीत रे। आओ बच्चों नया सिखाए, जीवन की नई नीत रे। परिचय :- माधुरी व्यास "नवपमा" निवासी - इंदौर मध्य ...
योग गीत
कविता

योग गीत

माधुरी व्यास "नवपमा" इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** योगासन अपने जीवन में लाएँगे, जीवन अब सबका सुखमय बनाएँगे। योग करो, नित्य योग करो, जीवन सबका खुशियों से भरो। पतंजलि के योग से हो रोग की मुक्ति, सूर्य नमस्कार से हो चित्त की शुद्धि। सर्वेभवन्तु सुखिनः का गीत गाएँगे, धरती को देखने गगन के देव आएँगे। योग करो, नित्य योग करो, जीवन सबका खुशियों से भरो। कपल भाँति, भ्रामरी, अनुलोम और विलोम, बहिर-अंग योग आसन के ये यम नियम। प्रत्याहार-ध्यान से आरोग्य पाएँगे, स्वस्थ तन-मन पुष्ट काया पाएँगे। योग करो, नित्य योग करो, जीवन सबका खुशियों से भरो। मुनियों ने भारत में योग सिखाया, योग से प्रथम सुख निरोगी काया। स्वस्थ योगी शांति-दूत जग जगाएँगे। कल्याणकारी विश्व धरोहर बनाएँगे। योग करो, नित्य योग करो, जीवन सबका खुशियों से भरो। परिचय :- माधुरी व्यास "नवपमा" निवास...
मौन संवाद
कविता

मौन संवाद

माधुरी व्यास "नवपमा" इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** चाँदनी ने चाँद से, यूँ पूछ ही लिया आज। बुझे-बुझे से तुम, क्यों रहने लगे हो उदास। चाँद ने चाँदनी को, दिया न कोई जवाब। नजरों को झुकाकर, और हो गया उदास। देख चाँदनी ने फिर, प्रश्न किया दूजी बार। मेरी धूमिल होती छटा, तुम्हे पसंद है मेहताब? चाँद ने हो सजल, चाँदनी को देखा इस बार। खिन्नता का लिए आभास, वो चिंतित, उदास। फिर बोली चाँदनी, मुस्कुराओ ना एक बार। कोई तो कारण होगा, जो इतने हो उदास। गम्भीर होकर चाँद ने, कही मन की बात। धरा बहन के दर्द से, मुझे होता रोज विषाद। जिंदा रहने के लिए वहॉं होते रोज फसाद। प्रतिदिन चीत्कारों से, हृदयविदारक निनाद। मुस्कुराकर बोली चाँदनी, ऐसा हुआ है कई बार। ये समय भी कभी, न रुका था, न रुकेगा इस बार। जो वक्त बुरा बीत रहा है, जल्द बीत ही जायेगा। सृष...
जबान
कविता

जबान

माधुरी व्यास "नवपमा" इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** https://www.youtube.com/watch?v=m1FM9mfW0UY परिचय :- माधुरी व्यास "नवपमा" निवासी - इंदौर मध्य प्रदेश सम्प्रति - शिक्षिका (हा.से. स्कूल में कार्यरत) शैक्षणिक योग्यता - डी.एड, बी.एड, एम.फील (इतिहास), एम.ए. (हिंदी साहित्य) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि प्रकाशित करवाने हेतु अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, हिंदी में टाईप करके हमें hindirakshak17@gmail.com पर अणु डाक (मेल) कीजिये, अणु डाक करने के बाद हमे हमारे नंबर ९८२७३ ६०३६० पर सूचित अवश्य करें …🙏🏻 आपको यह रचना अच्छी लगे तो स...
पलाश और अमलतास
कविता

पलाश और अमलतास

माधुरी व्यास "नवपमा" इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** प्रकृति का लिए श्रृंगार दोनों आते साथ-साथ। एक मित्र है पलाश और दूसरा है अमलतास। जब सुन्दर रक्तिम आभा से झिलमिलाता पलाश। स्वर्ण कली से पुष्पित होकर इठलाता अमलतास। जो प्रेम से मदमस्त होकर, नाच उठता है पलाश। होले-होले लहराता फिर, झूम उठता अमलतास। तपती दोपहरी में लगे युद्धभूमि-सा क्रुद्ध पलाश। शीतलता को सरसाता, शान्त पवन-सा अमलतास। सुर्ख लाल-लाल प्यार का रंग, दे जाता जब पलाश। पीत पावड़े होने तक संग, दोस्ती निभाता अमलतास। सूद-बुद खोकर जब अपना सर्वस्व लुटाता पलाश। नित न्यौछावर हो, कोमल पुष्प बरसाता अमलतास। प्रेम में लूट जाने की अनोखी रीत निभाता पलाश। मित्रता की जग में अद्भुत मिसाल बनाता अमलतास। विपत्ति में भी जीने की राह दिखलाता है पलाश। हो विषमपथ धीरज धरना, सिखलाता अमलतास। परिचय :- माधुरी व्यास "नवपमा" निवासी - इंदौर मध्य...
सूक्ष्म दानव
कविता

सूक्ष्म दानव

माधुरी व्यास "नवपमा" इंदौर (म.प्र.) ******************** एक सूक्ष्म से दानव ने, फिर से है- हाहाकार मचाया! काल के विकराल गाल में, बन कोरोना ग्रास आया। प्रचंड रूप से उसने फिर, मौत का ताण्डव दिखाया। एक सूक्ष्म से दानव ने, फिर से है- हाहाकार मचाया! भय व्याप्त चहुँ दिशा में, करुण रुदन मन ने छुपाया। इसके विभत्स रूप ने फिर, मानव शक्ति को लाचार बनाया। एक सूक्ष्म से दानव ने, फिर से है- हाहाकार मचाया! चाँद आग उगलता गगन में, तारों ने हो अंगार बरसाया। हरेक के मन का कोना-कोना, झुलस उठा बेचैन सिसकाया। एक सूक्ष्म से दानव ने, फिर से है- हाहाकार मचाया! मृतबन्धु,वत्स, माता-बहनों से चिर- विरह का दुख दिखाया, करुण- चीत्कारों से इसने फिर, हाय! प्रभु कैसा दिल दहलाया। प्रवेश किया जब इसने तन में, निकट को विकट बनाया। सबसे पास था उसको फिर, खुद से दूर बहुत दूर हटाया। एक सूक्ष्म से दानव ने, फिर से है- हाहाका...
निर्गुण सृजन
कविता

निर्गुण सृजन

माधुरी व्यास "नवपमा" इंदौर (म.प्र.) ******************** पीत पल्लव की बारी है, नव कोपल प्रस्फुटन जारी है। सृष्टि का सृजन करके फिर, ये प्रकृति कब हारी है। जीवन की जीवन से देखो, जंग निराली है....... माटी का जो घट खाली है, मनोराग-संचयन भारी है। कर्मो का अर्जन करके फिर, माटी से सतत मिलन जारी है। जीवन की देखो जीवन से, जंग निराली है....... वसन तो इसका तन बना है, प्राण जब दीपक की बाती है। नौ द्वार के राजमहल में फिर, प्रियतम-प्रभु आत्मा से यारी है। जीवन से जीवन की देखो, जंग निराली है........ जब तक ये घट तेल भरा है, तब तक दीपशिखा जली है। कर्म प्रारब्ध पूरन हुए फिर, प्राण बिना ये घट खाली है। जीवन से जीवन की देखो, जंग निराली है........ काया को तो आत्मा ही प्यारी है, हरि-मिलन अंतिम तैयारी है। जब भान हो इस बात का फिर, वही अनुभूति तो चमत्कारी है। जीवन से जीवन की देखो, जंग निराली है......... पर...
प्रीत की पाती
कविता

प्रीत की पाती

माधुरी व्यास "नवपमा" इंदौर (म.प्र.) ******************** कैसे लिखूँ मैं प्रीत की पाती याद करूँ तुझको दिन राती किसी और को ना कह पाती, विरह वेदना सही न जाती। जबसे गए हो तुम जहान से, पलभर को भी भूल न पाती। संग तुम्हारे ना आ पाती, लिख रही हूँ तुमको पाती। प्रभु चरणों मे तुम हो बैठे, कह दो उनसे सारी बाती। रुग्ण हुई यह मानव जाति, पीड़ा के ही गीत है गाती। प्रियतम मेरे यह भी कहना, अपने हाथों जग को गहना। सोचके अब मैं हूँ घबराती, कैसे पहुँचे तुझ तक पाती। पढ़कर तेरी आँख भर आती, पहुँच जो जाती मेरी पाती. मन से मन की बात हो जाती, अब पहुंची मेरी प्रीत की पाति। परिचय :- माधुरी व्यास "नवपमा" निवासी - इंदौर म.प्र. सम्प्रति - शिक्षिका (हा.से. स्कूल में कार्यरत) शैक्षणिक योग्यता - डी.एड, बी.एड, एम.फील (इतिहास), एम.ए. (हिंदी साहित्य) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह र...
बोलती खिड़कियाँ
कविता

बोलती खिड़कियाँ

माधुरी व्यास "नवपमा" इंदौर (म.प्र.) ******************** एक वो भी वक़्त था जब, खिड़कियाँ भी बोलती थी। खुशबू खाने की,पकवानों की, अपनापन जब घोलती थी, दौड़े आते थे पडौसी बच्चे, काकी जब चौका खोलती थी। रिश्ते खून के ना होते थे पर, मन से मन को जो जोड़ती थी। एक वो भी वक़्त था जब, खिड़कियाँ भी बोलती थी। आवाजें हँसने की, रोने की, होले- से सब कह देती थी। उमड़ पड़ते थे सब रिश्ते जब, बेटियाँ पीहर में डोलती थी। आस-पास के दो घरों को, जज्बातों से वो जोड़ती थी। एक वो भी वक़्त था जब, खिड़कियाँ भी बोलती थी। रौनक तीज की, त्यौहार की, जब गलियों-चौबारों में होती। घर-घर बतियाने लगते जब, मुस्कान हर चेहरे पर बोलती। फुहारें हँसी के वो छोड़ती थी, दिलों में खुशियाँ घोलती थी। एक वो भी वक़्त था जब, खिड़कियाँ भी बोलती थी। अब वो दिन कहाँ रहे जो, दो घरों को फिर जोड़ पाए। कीकर उगे है मनके भीतर, खिड़की कैसे खोली जाएँ। परायों में भ...
मोक्ष का मार्ग
लघुकथा

मोक्ष का मार्ग

माधुरी व्यास "नवपमा" इंदौर (म.प्र.) ******************** आज मोक्षदा एकादशी और गीता जयंती के साथ आदरणीय अटलबिहारी बाजपेई जी की जयंती की हार्दिक शुभकामनाएं। मेरी क्रिसमस कहने पर बहुत से लोग तपाक से ये रिप्लाई सोशल मीडिया पर कर रहे थे। ये बात २५ वर्ष के पोते ने दादा को बड़ी बेचैनी से बताई। बोला दादू ये तीन पर्व तो हर साल ही तिथि से मनाए जाते है ना! हाँ बेटा पर कभी इस प्रकार मनाते नहीं देखा। अटलजी जब तक जीवित थे तो उनके जन्मोत्सव की शुभकामना का आदान प्रदान नहीं हुआ। पोता बोला- ये वही लोग हैं जो साम्प्रदायिक वैमनस्य से ऐसा करते हैं। हाँ बेटा पहले तो गुड़ी पडवां पर नया साल मनाते थे। ये क्रिसमस और न्यू ईयर ज्यादा लोगों को नहीं मालूम था। इन पर्वों को धर्मनिरपेक्षता के नाम पर सब मनाने लगे ऐसे बहुत से पर्वो की शुभकामना का आदान प्रदान सालभर होता है पर आज एकादशी और गीताजयन्ती सौभाग्य से अटलजी की जन...
कौड़ियों में बिकता श्रम किसान का
कविता

कौड़ियों में बिकता श्रम किसान का

माधुरी व्यास "नवपमा" इंदौर (म.प्र.) ******************** क्यों श्रम मेरा, कौड़ियों में बिकता, मेरे हस्तांतरित भोजन से, हर एक जीव का पोषण होता, शाक, पात, आहार में फिर क्यों मेरा अर्पित समर्पण नहीं दिखता। क्यों श्रम मेरा, कौड़ियों में ही बिकता! मैं अन्न के हर एक कण को, सींचकर जीवित न सदा रखता, माटी से माटी के पुतलों का फिर कैसे जगत में जीवन अनवरत चलता। क्यों श्रम मेरा, कौड़ियों में ही बिकता! अन्न से है दौड़ता खून नसों में, जीव की देह को जो ऊर्जा से भरता, धरा का प्रथम पुत्र बनकर फिर क्यों फल में लाल रंग मेरा रुधिर नहीं दिखता। क्यों श्रम मेरा, कौड़ियों में ही बिकता! लेह, चौष्य, भक्ष्य हो या भोज्य, हर पदार्थ मेरे उद्यम से ही बनता, साधुओं-सा जीवन जीता फिर क्यों सबमें आहुति-सा तुम्हे नहीं दिखता। क्यों श्रम मेरा, कौड़ियों में ही बिकता! चाहता हूँ, बस अब इतना ही, चाहे अन्नदाता तू मुझे ना कहता, नि...
कयामत की रात
कविता

कयामत की रात

माधुरी व्यास "नवपमा" इंदौर (म.प्र.) ******************** कयामत तक न भूलेगी, वो क़यामत की रात। दिल को कँपाती, डराती हुई वो तूफानी सी रात। कैसे गिर पड़ा था, आंधी से वो बूढ़ा पीपल, बिजली के तारों में, उलझा हुआ था बेतल। दिल की धड़कन को बढ़ाती हुई डराती सी वो रात। कयामत तक नहीं भूलेगी, वो क़यामत की रात, दिल को कँपाती, डराती हुई, वो तूफानी सी रात। देखा गुस्से से गरजता, पानी में सुलगता वो बादल हर इक शे से टकराता हो कोई भटकता पागल एक अनजान डर को डराती , घबराती सी वो रात कयामत तक नहीं भूलेगी, वो क़यामत की रात। दिल को कँपाती, डराती हुई, वो तूफानी सी रात। हाय वो धोखे से जाना, अचानक यूँ उसका, लौटकर वापस फिर कभी ना आना उसका, लूटकर जैसे मुझ को जाती हुई फरेबी सी वो रात कयामत तक नहीं भूलेगी, वो क़यामत की रात। दिल को कँपाती, डराती हुई, वो तूफ़ानी सी रात। परिचय :- माधुरी व्यास "नवपमा" निवासी - इंदौर म.प्र. ...
सुरूर और गुरुर
कविता

सुरूर और गुरुर

माधुरी व्यास "नवपमा" इंदौर (म.प्र.) ******************** चाँद से चाँदनी जब चैन से सरसती है, निगाह ए चकोर तब चाँद को तरसती है। गरजते है बदल तो बिजली कड़कती है. हो घोर अंधेरा, तो रोशनी चमकती है। रोता है जब बदल, तो बूंदे बिछड़ती है, स्वाति की बूंद को तब सीप तरसती है। प्रचंड शीत जब धूप से पिघलती है, बुझी राख में भी चिंगारी चटकती है। दिन के उजाले पर काली चादर तनती है, जलती रहती है शमा रोशनी बिखरती है काली बदली मतवाली होकर उमड़ती है, मयूर की आँखें पाँव देखकर बरसती है। किनारे के नम्र पेड़ तो झुक जाते हैं, जब नदी सागर की तरफ उफनती है। उखड़ते है वो मगरूर दरख़्त, ऐ "नवपमा"! जिनकी गर्दने गुरुर से सदा ही तनती है। परिचय :- माधुरी व्यास "नवपमा" निवासी - इंदौर म.प्र. सम्प्रति - शिक्षिका (हा.से. स्कूल में कार्यरत) शैक्षणिक योग्यता - डी.एड, बी.एड, एम.फील (इतिहास), एम.ए. (हिंदी साहित्य) घोषणा पत्र : ...
स्वीकार करो
कविता

स्वीकार करो

माधुरी व्यास "नवपमा" इंदौर (म.प्र.) ******************** जो होना है वो होता है, तो फिर काहे को रोता है....। नागफनी से भरा हो मरुस्थल, या गुलाब से खिला हो उपवन। काँटो को तो जब सहना है। तो फिर कहे का रोना है। जो होना है वो होता है, तो फिर कहे को रोता है....। फ़ुहारों से भीगा हो मरुस्थल, या बरखा से महके उपवन। ना भीगा मन का वो कोना है, तो फिर कहे का रोना है। जो होना है वो होता है, तो फिर काहे को रोता है....। उष्ण बयार से तपे मरुस्थल, या पवन से हो शीतल उपवन। मधु से भी जख्मों को सीना है, तो फिर काहे का रोना है। जो होना है वो होता है, तो फिर कहे को रोता है....। शुष्क रेत से जमा हो मरुस्थल, या कीचड़ से सना हो उपवन। हँस-हँस कर जब जीना है, तो फिर काहे का रोना है। जो होना है वो होता है, तो फिर काहे को रोता है....। परिचय :- माधुरी व्यास "नवपमा" निवासी - इंदौर म.प्र. सम्प्रति - शिक्षिका (हा...
बेटी
कविता

बेटी

माधुरी व्यास "नवपमा" इंदौर (म.प्र.) ******************** रिश्तों की हरियाली बेटी, जग में सबसे न्यारी बेटी। उन्मुक्त गगन में पंछी जैसी, निच्छल, अविरल नदियाँ सी लाखों स्वप्न हिय में भरकर परी लोक की परियों जैसी। सुंदर मन, कोमल तन से जो लगे गुलों में फूल सी बेटी। रिश्तों की हरियाली बेटी, जग में सबसे न्यारी बेटी। घोर तम में दीपशिखा जैसी जीवन समर ने अमृत वर्षा सी प्राणों में स्पंदन को भरकर कानन में टेसू के जैसी नाजुक है कमजोर नही जो लगे नूर में मेरी हूर सी बेटी। रिश्तों की हरियाली बेटी, जग में सबसे न्यारी बेटी। प्रचंड शीत में सूर्योदय जैसी, उष्ण बयार में शीत फुहार सी। दो कुलों की मर्यादा सहेजकर परिवारों की मनुहार जैसी उदासी में मुस्कान भरे जो लगे ईश्वर का उपहार सी बेटी। रिश्तों की हरियाली बेटी, जग में सबसे न्यारी बेटी। परिचय :- माधुरी व्यास "नवपमा" निवासी - इंदौर म.प्र. सम्प्रति - शिक्षि...
मैं हूँ अपनी हिन्दी भाषा
कविता

मैं हूँ अपनी हिन्दी भाषा

माधुरी व्यास "नवपमा" इंदौर (म.प्र.) ******************** अपने मन के उद्गारों को, भावों और अभावों को, पावन कर अपने विचारों को, देकर मेरी अविरल धारा। पूरी कर लो अभिलाषा, मैं हूँ सरल सबल परिभाषा, मैं हूँ अपनी हिंदी भाषा। अपने बौद्धिक विकास में, मेरे आदान-प्रदान से, अज्ञान-अंधकार को मेटो, मेरा प्रकाश पुंज है सारा। मिटा लो पूरी ज्ञान पिपासा, मैं हूँ सरल सबल परिभाषा, मैं हूँ अपनी हिंदी भाषा। जब करोगे मेरा सम्म्मन, जितना दोगे मुझको मान। अम्बर सा प्रसारित होगा, जग में अपने देश का ज्ञान। पूरण करूँ सारी आकांक्षा, मैं हूँ सरल सबल परिभाषा, मैं हूँ अपनी हिंदी भाषा। बंगाली,पंजाबी हो या सिंधी, सबके भाल की मैं हूँ बिंदी। संस्कृत सब बोलियों की माता, मैं बनी सबकी भाग्य विधाता। अब ना करो मेरी उपेक्षा, मैं हूँ सरल सबल परिभाषा, मैं हूँ अपनी हिंदी भाषा। परिचय :- माधुरी व्यास "नवपमा" निवासी - इंदौर म.प्...
ऐ दर्द तेरा शुक्रिया
कविता

ऐ दर्द तेरा शुक्रिया

माधुरी व्यास "नवपमा" इंदौर (म.प्र.) ******************** ना किसी को थी खबर, ना किसी को था पता। एक थी मैं और एक बस तू ही था, मेरे इस राज़ को, छुपाने का शुक्रिया। ऐ दर्द तेरा शुक्रिया, ऐ दर्द तेरा शुक्रिया......... किसीने साथ छोड़कर, साथ देकर भी तुझे दिया । मिलन का पल हो या जुदाई, दगा बस तूने ना दिया, एक तू ही तो बस था, मेरा हमसफ़र सदा। ऐ दर्द तेरा शुक्रिया, ऐ दर्द तेरा शुक्रिया........ मेरे सब्र का सबूत तू, हरदम सबसे करीब रहा। ऐ मेरे सच्चे रफ़ीक़, सबक तेरी तासीर में था, एक बस तू ही मेरा, हरपल हमदम रहा। ऐ दर्द तेरा शुक्रिया, ऐ दर्द तेरा शुक्रिया...... अश्क़ मेरे चश्म-ए-तर का, दिल की हूक में तरंग रहा। गहरी साँस की राहत पर, होठों की मुस्कान से छुपा, एक तू ही बस रहा, सच्चा हमनशी जहाँ। ऐ दर्द तेरा शुक्रिया, ऐ दर्द तेरा शुक्रिया...... वक़्त की हर मार पर, मरहम जब तूने रखा। जिंदा होने का यकीन मेर...
हृदयतंत्र से
कविता

हृदयतंत्र से

माधुरी व्यास "नवपमा" इंदौर (म.प्र.) ******************** तेरे इस भवसागर में, खेले तूने कितने कितने खेल। मेरी नन्ही डूबती नैया, जब टकराती थी पर्वत शैल। जल तरंग से मेरी नैया, डगमग जब हिलौरे खाती। सन्नाटे में कभी-कभी, मैं बेचैनी से घबराती। कभी भँवर में घिर जाती, कभी लहरों से वो टकराती। तेरे होते बेफ़िक्री से, कैसी थी मैं इतराती। जब अचानक उमड़ घुमड़ कर, घनघोर घटाएँ छा जाती। नज़र घुमाकर देखूँ तो, तब कहीं नहीं तुझको पाती। तेरी उस अदृश्य छवि में, महफ़ूज कहीं मैं हो जाती। फिर चैन की सांसे लेकर , तुझको अपने मन में पाती। अब तू ही बता हे! प्रभु, कब तक ये जंजाल चलेगा। तेरे इस भवसागर में, मेरा कब प्रारब्ध कटेगा। तेरे अंतर में "मैं" पूरी हूँ, मेरे अंतर में "तेरा" कण। दया बस अब इतनी करना, रहे स्मरण तेरा हर क्षण। परिचय :- माधुरी व्यास "नवपमा" निवासी - इंदौर म.प्र. सम्प्रति - शिक्षिका (हा.से. स्कूल ...
राखी का त्यौहार
कविता

राखी का त्यौहार

माधुरी व्यास "नवपमा" इंदौर (म.प्र.) ******************** घिर आये बदरा है, झूम उठा ये मनवा हैं, रिमझिम बरसी फुहार है, आया राखी का त्यौहार है। बीरा ने खुशियों की बारिश की है, भावज की पायलिया छनक उठी है, उमंगों से भरा आया घर और द्वार है। आया राखी का त्यौहार है। भाई-बहनों के न्यारे रिश्ते है, माता के आँचल में आज सिमटे है, प्रेम बंधन में बंधे सब आज है। आया राखी का त्यौहार है। बहना ने भैया से अरज ये की है, प्रेम से अखियाँ की डिबिया भरी है, खूब लुटाया, बाबा ने लाड़ है। आया राखी का त्यौहार है। छोटी सी रेशम की ये डोरी है, इसमे ही रिश्तों कि आस बंधी है, अनोखा ये बंधन, न्यारा ये प्यार है। आया राखी का त्यौहार है। कोरोना ने कैसी ये पीड़ा दी है, मन में यादों की झड़ियाँ लगी हैं, यादों की लड़ियों में बीता दिन आज है। आया राखी का त्यौहार है। घिर आये बदरा है, झूम उठा ये मनवा है, रिमझिम बरसी फुहार ह...
टीस के टेसू
कविता

टीस के टेसू

माधुरी व्यास "नवपमा" इंदौर (म.प्र.) ******************** आज शाला में रखा जब पहला कदम, दिल मे उठी एक हूंक, आँखे हो गई नम। मन मे उठने लगी ये कैसी अजीब तरंग, जाने कहाँ थी खो गई मन की सब उमंग। पसरा था भवन में चुभता सा सन्नाटा दुखद, स्मृति पटल पर थे, विगत के वो दिवस सुखद। प्यारी बगिया में होती थी गुंजित किलकारियाँ, हर पल हँसती थी खिलखिलाती फुलवारियाँ। हाज़िर है आज यहाँ प्रकृति के सब उपमगार, नही उपस्थित बस यहाँ बच्चों की वो झनकार। जाने कब गूंजेगी यहाँ ठहाकों की वो मीठी धुन, लहराते सपनों पर दौड़ लगते बच्चों के वो झुंड। होने लगी महसूस बगिया के फूलों की चिंता, चिंतन से करेंगे महफ़ूज फुलवारी की फ़िजा। ख़ौफ़ का ये मंजर गुजर रहा है गुजर जाएगा, अमा की कालिमा पर सुबह तो उजाला आएगा। है हम सबका विश्वास मलय पवन फिर बहेगी, करती फिर वह हर एक प्राणों में स्पंदन चलेगी। प्रखरित नवोदित सूरज सा जब ज्ञान ...
भूली बिसरी यादें
कविता

भूली बिसरी यादें

माधुरी व्यास "नवपमा" इंदौर (म.प्र.) ******************** जब हम सब शाला जाते थे, तब पानी बाबा भी आते थे। वो जुलाई की पहली तारीख, तब झूम-झूम होती बारिश। पानी बाबा आया रे और ककड़ी भुट्टा फिर लाया रे। छप-छप चलते जाते थे, हम जोर-जोर से गाते थे। तब पानी बाबा आते थे। जब हम सब शाला जाते थे। वो नई-नई कॉपी किताब, वो नया-नया होता लिबाज़। वो प्रार्थना सभा की पंक्ति में, वंदेमातरम का छिड़ता राग। फिर निश्चिन्त हो जाते थे, हम गा-गाकर इतराते थे। तब पानी बाबा आते थे। जब हम सब शाला जाते थे। रोशनी शिक्षा की आ जाती, वह गाँव-गाँव मे छा जाती। खुली दीवारों सी पुस्तक पर फिर सुंदर चित्र सजाते थे। जब कागज की नाव बनकर, पोखर में चला कर आते थे। तब पानी बाबा आते थे। जब हम सब शाला जाते थे। ना वो सावन के झूले न्यारे, न कजरी-तान, न अमिया-डारे। बदल गए परिवेश, पढ़ाई से, अब बदल गई सब शालाएँ। खेल-खेल में गुरुजी पढ़ते थे, ह...
अमर शहादत
कविता

अमर शहादत

माधुरी व्यास "नवपमा" इंदौर (म.प्र.) ******************** ना थी उनकी कोई रियासत, ना की उनने कोई सियासत, माँ के आँचल के शहजादों में, सर देने की थी लियाकत। मन मयूरा उनका होगा नाचा, जब रंगीन बहारे जीवन में आई, माँ का आँचल देख निशाने पे, खुद सीने पर उसने गोली खाई चैन से जी सके अपना ये वतन, अर्पित कर दिया तन, मन, बदन। चीनी-सी मिठास देने के खातिर, चीनियों की उसने मिट्टी चटकाई। नापाक इरादे ने नजर उठाई, दुश्मन ने जब भी घात लगाई, रणबाँकुरे सच्चे सपूत ने तब, हर हुँकार पर उसे धूल चटाई। ना तो थे वो कोई बाजीगर, ना कि भावों की तिजारत, माँ के मुकुट के सितारों में, अमर वीरों की जड़ी शहादत। . परिचय :- माधुरी व्यास "नवपमा" निवासी - इंदौर म.प्र. सम्प्रति - शिक्षिका (हा.से. स्कूल में कार्यरत) शैक्षणिक योग्यता - डी.एड ,बी.एड, एम.फील (इतिहास), एम.ए. (हिंदी साहित्य) आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, ल...
मन की बात
लघुकथा

मन की बात

माधुरी व्यास "नवपमा" इंदौर (म.प्र.) ******************** एक बार दाँतों और जबान में फालतू की बहस छिड़ गई। जबान बोली- "कितने दिनों से बाहर का खाना नहीं टेस्ट किया।" दाँत ने होशियारी दिखाई बोला क्या बेवकूफ की तरह बात करती हो? सरकार ने लॉक डॉउन यूँ ही लगाया है क्या? मूर्ख कहीं की! दाढ़ बोली- "तुम बहुत ज्यादा पटर-पटर करने लगी हो, इतनी हलचल अच्छी नहीं। मालूम है ना तुम एक हो और हम बत्तीस हैं। "जबान तुनककर बोली- "मुझ पर रौब जमाने की जरूरत नहीं अपने काम से काम रखों समझे!" सामने के दाँत ने गुस्से से कहा- "बाहर मत आना नहीं तो सामने से कट जाओगी तुम समझी! अब जबान से रहा नहीं गया वो भी गुस्से में बोली- "एक बार गलत चल गई ना तो ऐसा घूँसा पड़ेगा कि सब बाहर आ जाओगे। "इस बहस को बढ़ते देख मन चिंतित हो उठा।उसने होंठ को प्रेरणा दी। होंठ बोल पड़े- "अरे भाई सब शांत हो जाओ, कुछ भी करोगे तो नुकसान सबका एक समान ही ह...