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Tag: राम बहादुर शर्मा “राम”

“स्त्री : नर की जीवनधारा”
कविता

“स्त्री : नर की जीवनधारा”

राम बहादुर शर्मा "राम" बारा दीक्षित, जिला देवरिया (उत्तर प्रदेश) ******************** महिला अबला का पर्याय पर शक्तिरूप अभिव्यक्ति है म मनुष्य का प्रथमाक्षर म से ही मनुज उतपत्ति है हि मे हिमालय सा हिय विराट ममता वात्सल्य और भक्ति है ला है लाखो स्वरूप का द्योतक यह एक रूप में स्त्री है यह जननी है, यह भगिनी है. पत्नी, पुत्री, और प्रेयसी है। है नमन आज शत बार उसे जो हर मानव की शक्ति है जब मैं एक पिंड अजन्मा था नव मास कोख में ढोया था जब जन्म लिया तब प्रथमबार जिस पावन कुक्षि में रोया था वह पीड़ा में भी मुसकायी ममता परिपूर्ण आहलादित थी वह जननी भी एक महिला थी वात्सल्य पूर्ण आच्छादित थी बचपन में खेला जिसके संग जिसने लाड़-दूलार दिया अपने से बढकर जिसने मुझको चाहा, पुचकारा, प्यार किया । वह भगिनी थी जिसके हिस्से का भी प्यार मुझे भरपूर मिला वह भी तो एक महिला थी छोड़ा अधिका...
हिंदी का उत्थान करोगे …
कविता

हिंदी का उत्थान करोगे …

राम बहादुर शर्मा "राम" बारा दीक्षित, जिला देवरिया (उत्तर प्रदेश) ******************** हिंदी है इस देश की भाषा, सर्वाधिक है बोली जाती, किंतु विडंबना यह आज भी, क्षेत्रीयता में तोली जाती। पूछता हूँ, देश के कर्णधारों से, क्या राष्ट्रभाषा का ऐसा ही सम्मान करोगे? कैसे हिंदी का उत्थान करोगे? पिचहत्तर साल व्यतीत हो गए, पाये अपनी आजादी को, किंतु कभी क्या सोचा तुमने, गौरव देना है हिंदी को। अपनी अंग्रेजी सोच का तुम, जो नहीं कभी बलिदान करोगे, कैसे हिंदी का उत्थान करोगे? माँ को मम्मी डैड पिता को, चाचा ताऊ अंकल हैं, चाची बन कर आंट घूमतीं, देसी के ऊपर डंकल हैं। गैरों पर अपनों से बढ़कर, जब ऐसा अभिमान करोगे, कैसे हिंदी का उत्थान करोगे? भारतेंदु को भूल गए तुम, भूले तुम मीरा दिनकर को, सूर कबीर तुलसी को भूले, बस याद रखा तो मिल्टन को। हिंदी के गौरव को भुला, क्या इनका...
वसंत ऋतु आगमन
कविता

वसंत ऋतु आगमन

राम बहादुर शर्मा "राम" बारा दीक्षित, जिला देवरिया (उत्तर प्रदेश) ******************** आया वसंत, आया वसंत, कर शरद शिशिर का पूर्ण अंत। आया वसंत, आया वसंत।। जाड़े से आई जड़ता जो, जीवन संवेग को थाम लिया, जमता कर्तापन इससे पहले, किस ऋतु ने उसे विराम दिया, है महक उठी प्रकृति सारी, संग महका सारा दिग दिगंत। आया वसंत, आया वसंत।। स्वागत करने को सज संग, पछुआ लेकर आया पतझड़, जीर्ण शीर्ण पत्रक उतार, तरु लता कुंज बनकर निर्मल, नूतन स्वरूप हर शाखा पर, अनुपम सौंदर्य लेकर हेमंत। आया वसंत, आया वसंत।। पाटल मंदार के पुष्प गुच्छ, गेंदा कनेर के पीत पुष्प, खेतों में लहराती सरसों, उन पर भी पीले खिले पुष्प, भू पीत वर्ण श्रृंगार किए, बिखरा सर्वत्र बसंती रंग। आया वसंत, आया वसंत।। नस नस में जगाता नया जोश, जड़ चेतन सब हुए मदहोश, कलियों में हवन अंगड़ाई भरता, हर भ्रमर देख खो ...