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असमंजस
कविता

असमंजस

राम राज सिंह उन्नाव (उत्तर प्रदेश) ******************** मौन  मुखर हो जाता है साहस जब भर जाता है बस वही विजय को पाता है प्रण पावक जो बन जाता है असमंजस के अंधकार में दीप नया जलने दो ... जीवन को पलने दो ... बाधाओं के उद्यानों में अपमानों की अमर बेल से घोर घृणा के तूफानों में अरमानों के मरण मेल से अटक भटक से पृथक, सरपट पग चलने दो, जीवन को पलने दो ... जीवन को पलने दो ... असफलता के भय से व्याकुल प्राण द्वंद में क्यों जीते? क्षमता को परिमार्जित कर फिर लक्ष्य नए क्यों न सीते? स्वजनों के जो स्वप्न सरल न गरल में ढलने दो, जीवन को पलने दो ... जीवन को पलने दो ... तमतमाते क्षितिज से मिलने चिंगारी जुगनू की होड़ अंग झुलसते विकल बिलखते किंतु नहीं पथ लेते मोड़ सरिता सम तुम दिशा बदल दशा बदलने दो, जीवन को पलने दो ... जीवन को पलने दो ... संघर्ष प्रकृति है जीवन ...
वृक्ष
कविता

वृक्ष

 राम राज सिंह उन्नाव (उत्तर प्रदेश) ******************** कभी-कभी यह देख मुझे, बस यूँ ही हिल जाता है। प्रेम-सुधा पूरित हँसकर, नेह अमित बरसाता है।। स्वागत की अद्भुत सुविधा बस झुक जाने की एक विधा दानी दधीचि सा पुण्य प्राण उद्देश्य एक जगती का त्राण मान-भान से प्रथक सजग जग-जीवन को सर्साता है। ताप, शीत या वृष्टि सघन न कभी हारता उसका मन ज़रा, जन्म या अन्तकाम सेवा जीवन का एक नाम पीड़ा पाकर भी पावन पर-सुख पर मुसकाता है। विकट धैर्य से प्रकट सरल विनयशील वैभव का बल पीता प्रतिदिन काल-कूट क्षिति का प्रिय अवधूत-पूत जीवाश्म नहीं जीवन रस जीवन-हित जल जाता है। परिचय :  राम राज सिंह निवासी : उन्नाव (उत्तर प्रदेश) सम्प्रति : शाखा प्रबंधक (पंजाब नैशनल बैंक) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि मेरी यह रचना स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपन...