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Tag: रिंकी कनोड़िया

नहीं शर्म मुझे कहने में
कविता

नहीं शर्म मुझे कहने में

रिंकी कनोड़िया सदर बाजार दिल्ली ******************** नहीं शर्म मुझे कहने में, यह मेरी भाषा है! जिससे मेरा आधार बना, मेरी संस्कृति से जिसका नाता है! खूब सीखा है मैने इसके अस्तित्व से, यह सबसे प्यारी है! सोचू जिस भाषा में, तो बोलने में क्यों हिचक जारी है? बना था जिससे और हूँ जिससे, वो मेरी हिंदी न्यारी है! इतिहास और साहित्य की जुड़ी कड़ी इससे भारी है, आज हिंदी दिवस पर इसके सम्मान की बारी है! गर्व से कहता हूँ, यह हिंदी हमारी है! यह हिंदी हमारी है!. परिचय :- रिंकी कनोड़िया निवासी : सदर बाजार दिल्ली घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, राष्ट्रीय हिन्दी रक्ष...
कितना खोखला हो जाता है इंसान
कविता

कितना खोखला हो जाता है इंसान

रिंकी कनोड़िया सदर बाजार दिल्ली ******************** कितना खोखला हो जाता है इंसान मुँह पर कुछ पीठ पीछे कुछ हो जाता है इंसान, कभी नफरत भरी याद तो कभी सुहाना पल हो जाता है इंसान, उम्मीदों से जुड़ा खिलौना बन जाता है तो कभी हार कर किस्मत से, रो कर सो जाता है इंसान कभी किसी शख्सियत को अपना वजूद बना लेता है... तो कभी सबका साथ छोड़ अकेला रह लेता है इंसान आखिर कितना बदलता रहता है इंसान? कभी संतुष्ट है निज सुख में कभी टटोलता रहता है हर सुख, दिल को भारी कर लेता है छोटी-छोटी बातों से सोच को बना लेता है निरंतर एक तूफान तो कभी भगा कौन है, क्या है और सब उलझा लेता है इंसान, आखिर कितना खोखला होता है इंसान? कभी इंसान ही इंसान का दुश्मन बन जाता है तो कभी दोस्ती में जान भी गवा देता है इंसान, हर पल बदलते भावों से लड़ता है तो कभी यादों को संजो चलता है इंसान, कभी सुख की चा...