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Tag: रीमा ठाकुर

अनूठा प्रेम
कहानी

अनूठा प्रेम

रीमा ठाकुर झाबुआ (मध्यप्रदेश) ******************** वो सून्दर सी पालकी "गुलाब के फूलो से सजी हुई थी। उन फूलो की खूश्बू से पूरा वातावरण सुगान्धित था। हवा के झोके अपने होने का अहसास दिला रहे थे। रुपमती का यौवन उसकी स्वरलहरियो" जैसा परिपूर्ण था। उसकी लटे उसकी खूबसूरती को और भी ज्यादा निखार रही थी। पालकी को कहारो ने महल के प्रागंण मे उतारा "बहुत सारी दासियो ने पालकी को घेर लिया" पालकी के बाहर पैर रखते ही नूपुर की छुनछुन की आवाज चूडियो की खनक उस प्रागंण मे अपने मीठी अनुराग पैदा करने लगी। रूपमती पालकी से बाहर आ गई "सारी दासिया उसे अवाक सी देखती रही" उसकी खूबसूरती को नजर न लगे दासी रजला ने" रूपमती के चेहरे को घूघट से ढक दिया। और रूपमती का हाथ पकड महल की ओर बढ गई" बाजबहादुर की धडकने बेताहास धडकने लगी "उसकी कुछ मर्यादा थी। वो राजा था।वो अपनी प्रेयसी को गले नही लगा सकता था। पर उसका ...
मुझे भी जीना है!
कहानी

मुझे भी जीना है!

रीमा ठाकुर झाबुआ (मध्यप्रदेश) ******************** कार दरवाजे पर आकर खडी हो गयी थी, कला का मन बार बार उधर ही जा रहा था! नयी बहू आयी थी पर वो खुद को रोके हुए थी! वजह उसका विधवा होना, अंश उसका इकलौता बेटा था! नीचे बहू परछन की तैयारी हो रही थी! बड़ी ननद ने सारा जिम्मा लिया था और निभा भी रही थी! कही कुछ कमी नहीं अरे कला नीचे चल अब तो बहू का मुहं देख ले, इतनी प्रतीक्षा की कुछ देर और सही, चल ठीक है, तेरी इच्छा, पडोसन सविता बोली " कुछ ही घंटो में सारे रीति रिवाज समाप्त हो गये, पर कला के कान उधर ही लगे थे! कला भाभी, बडी ननद की आवाज थी, जो दरवाजे पर अंश और नयी बहू के साथ खडी थी! अंश बहू के साथ कला के समीप आ गया, माँ "कला ने बाहे फैला दी" पर अंश उसके पैरों में झुक गया "जुग-जुग जिऐ" उसने अंश को गले लगा लिया कोमल हाथों ने उसके पैरों को धीरे से छुआ, कला अंश को हटा झट से नीचे झुक गयी...
मकर संक्रति
कविता

मकर संक्रति

रीमा ठाकुर झाबुआ (मध्यप्रदेश) ******************** भोर सुहानी, नदियाँ निर्मल, फूलों को मकरंद छुऐ! ढूंढ रहे पराग फूलों में, कितने, सुन्दर रूप लिए!! उदय, आदित्य, नील गगन में, ललिमा नभ पर छायी! स्वर्णिम किरणें "मतवाली बन" धरा स्पर्श करने आयी !! सुन्दर पुष्प खिले बगिया मे, महकी यौवन तरुणायी! गूंजे शंख, मांदल ध्वनि, सब" ऐसी मधुरता है छायी!! पुष्प सजा चरणों में, प्रभु के, सुन्दर सा फिर रूप सजा! मानव मन, मुखरित "हो बोला" भक्ति का, संयोग जगा!! कांटे चुनकर, फूल बिछाओ, मंगल बेला फिर आयी!, मकर संक्रांति की बेला है, पिता पुत्र मिलन की तिथि आयी!! परिचय :- रीमा महेंद्र सिंह ठाकुर निवासी : झाबुआ (मध्यप्रदेश) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहान...
कृष्ण
कविता

कृष्ण

रीमा ठाकुर झाबुआ (मध्यप्रदेश) ******************** बुला रही हूँ कबसे तुमको अब तो कान्हा आ जाओ! पंथ हार आखियां अब तरसी, अब तो दरश दिखा जाओ!! जन्म से कारागार चुना, क्यू इतनी लीला रच डाली! माता पिता से दूर हुए "यशोदा की गोदी भर डाली!! शिशु रुप में ही कितने ही पापियों को, तार दिया! तारनहार बने प्रभु मेरे, पापों से उद्धार  किया!! प्रेम मूक था, राधा के प्रति, प्रेम क्या होता समझाया! ये काया है, भ्रमित हमारी, दुनिया को है बतलाया!! प्रेम अमर  है, न है बंधन, मुक्त  भाव जी पाएगा! तेरा होगा मुक्त रहेगा, फिर भी कही न जाऐगा!! मीरा ने प्रेम किया, वैराग्य में विष को पी डाला! समा गयी हृदय प्रभु के, प्रेम इतिहास ही लिख डाला!! रूक्मिणी के प्रेम को समझा, राधा को भी न भूले! साथ निभाया, जन्मों जनम का, विरह को भी जो जीले!! गीता का उपदेश दिया, कर्मो की प्...
मुक्त
कविता

मुक्त

रीमा ठाकुर झाबुआ (मध्यप्रदेश) ******************** मुक्त हूँ उन्मुक्त हूँ, मुक्तता पहचान है! लाज से परिपूर्ण हूँ, जो धैर्य का प्रतिमान हूँ!! धानी रंग मे अवतरित हूँ, जो श्रमिक का अस्तित्व है! सबके तन की भूख हूँ, वेदना से विषक्त हूँ!! न समझो मै निरीह हूँ, मेरा मनोबल शिखर पर है! ममत्व मे मै,अबला सी हूँ, मै सबला से धैर्यवान हूँ!! मै कोमलता अपनो मे हूँ, सृष्टि के लिए जो सृजन है! मै पुरुष की भोग्या हूँ, मै सृष्टि का अभिमान हूँ!! परिचय :- रीमा महेंद्र सिंह ठाकुर निवासी : झाबुआ (मध्यप्रदेश) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं छायाचित्र के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, राष्ट्रीय हिन्दी रक्...
बरिश की बूदें
कविता

बरिश की बूदें

रीमा ठाकुर झाबुआ (मध्यप्रदेश) ******************** अबकी ये सावन भीगे रात सुहानी हो जाये! तेरे मेरे अश्रु मिलन की एक कहानी हो जाये!! बादल हो फिर मूक यहाँ पर, हृदय वेदना ऐसी हो! क्षितिज जहाँ पर मिल कर, मिले न, एक जवानी ऐसी हो!! न कोई विकल्प बचा हो, न क्षणभंगुर परिभाषा,! लिपटी हो आलिंगन मे, एक रवानी ऐसी हो!! टूट सके न बंधन अपना, न ही कोई वादा हो! बूदें फिर से नदियाँ बन, सागर में समायी ऐसी हो!! मिलकर जो मिल न सके, जीवंत कहानी ऐसी हो!!! परिचय :- रीमा महेंद्र सिंह ठाकुर निवासी : झाबुआ (मध्यप्रदेश) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं छायाचित्र के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, राष्ट्र...
महाभोज
कविता

महाभोज

रीमा ठाकुर झाबुआ (मध्यप्रदेश) ******************** संगम के तट सूने है अब! कितनी माँऐ रोती!! भूख से बच्चे बिलख रहे अब! क्यो प्रकृति मां सोती!! लाशें सडती है रेतो मे ! श्वनो का महाभोज चलता है!! आह नही मिलती अग्नि अब! भू अम्बर रोता है!! इस धरती को पावन करने! गंगा माँ आयी थी! पापियों का पाप मिटाने! निर्मल जल लायी थी!! जिनके तट पर ऋषी मुनियों ने! खुद को पावन कर डाला!! आज उसी गंगा माँ के तट का! नजारा है, विभत्स करने वाला!! भूखे बच्चे रास्ता देखें! एक निवाला रोटी का!! महामारी ने जीवन छीना! कितने ही परिवारों का!! न घर मे आग बची है! न तावे पर रोटी है!! कितनी लाशें दबी हुई! वसुंधरा अब रोती है!! ये कैसा दुर्भाग्य हुआ है! ये कैसी महामारी है! ! जिसके जबडे मे फंसकर! सारी दुनिया हारी है!! समय बडा दुर्भाग्य पूर्ण है! प्रकृति भी क्यूँ निष्ठुर है!!...
शब्दों की परिभाषा
कविता

शब्दों की परिभाषा

रीमा ठाकुर झाबुआ (मध्यप्रदेश) ******************** आज शब्द मौन क्यू हैं, चुप सभी विकल्प क्यू है! चुप क्यु सारी है "प्रकृति ये, अब हवा'विपरीत क्यू है! ये प्रलय आगाज कैसा हर तरफ, वियोग कैसा! हर तरफ अंधकार फैला, डस रहा है, दंश कैसा! शेर के जबडे मे फंसकर, मौत तांडव 'कर रही है! दीपशिखा की लौ है मध्यम' क्यू उदासी छल रही है! सब तरफ है, डर समाहित, अब भरोसा उठ रहा है! धरा है विहीन होती, संसार सूना हो रहा है! अब हुआ, कमजोर मानव, दंभ से अदृश्य मानव! कल तक पिंजरे था बनाता, अब फंसा अफसोस मानव! फिर से ताल ठोक ले तू' अपने डर को रोक ले तू! मानव तू है उर्जा शक्ति, अपने बल से रोक ले तू! न होगी विहीन प्रकृति, तुझमें ही है, सारी शक्ति! उठ अभी मत हार मानव, तू है एक ब्रह्माण्ड मानव! परिचय :- रीमा महेंद्र सिंह ठाकुर निवासी : झाबुआ (मध्यप्रदे...
आज तुम याद आयी बहुत
कविता

आज तुम याद आयी बहुत

रीमा ठाकुर झाबुआ (मध्यप्रदेश) ******************** माँ आज तुम याद आयी बहुत बताती नही मै जताती नही मै कई साल पहले जो बोला था हँसके पराया मै धन हूँ सभी बोलते है अभी भी है, मन मे वही  गाँठ भारी यही बात अभी तक भूलाई नही है हूँ प्रतिबिम्ब तेरी, मै हूँ तेरे जैसी सभी बोलते है हमशक्ल तेरी जैसी मगर मौन तू है "मै हूँ वाचल" तटस्था, जीवन मे लायी नही मै सभी माँ को कहते है, कमजोर हूँ मै मगर मै कभी जताती नही हूँ कभी मन होता तेरे पास आऊँ छोटी से तेरी माँ गुडिया बन जाऊँ छिपा ले मुझे, फिर से गोदी मे अपने व्यथित है ह्रदय माँ, बताती नही  मै परिचय :- रीमा महेंद्र सिंह ठाकुर निवासी : झाबुआ (मध्यप्रदेश) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फ...
हाँ मै मजदूर हूँ…
कविता

हाँ मै मजदूर हूँ…

रीमा ठाकुर झाबुआ (मध्यप्रदेश) ******************** मै मजदूर हूँ, हाँ मै मजदूर हूँ' लडता हूँ खुद से डटां रहता हूँ, भरी दुपहरी मे, कोई भी मौसम हो, सह लेता हूँ खुद पर, क्योंकि मै मजदूर हूँ! तोड देती है, मुझे सत्ता की लड़ाई, टूट जाता हूँ, जब इस्तेमाल होता हूँ, मै बेबस, मजबूर हूँ, जी हाँ मै मजदूर हूँ! झेल लेता हूँ सिकन, पसीने की बूदें, सिर पर भारी जबाबदारी की गठरी. बदलती है, सत्ता की शर्तें, पर मै बदलता नहीं, मै मजदूर हूँ हां मै मजदूर हूँ! खुश होता हूँ, जब कमाता हूँ चंद सिक्के, रोटियाँ नजर आती है उन सिक्को मे, बच्चे तकते है रास्ता मेरा, उनके लिए भरपूर हूँ, जी हाँ मै मजदूर हूँ! हाथ कंगन को अरसी क्या, खूबियो मे बेमिसाल हूँ, मै. बोझ ढोता हूँ जमाने के, पर खुद के लिए लाचार हूँ मै, रोज बनाता हूँ सपनो के पूल 'जिस पर गुजरता हूँ हर शाम हूँ मै, कैसे बताऊँ अबिराम हूँ बस खुद का जी लेता हूँ, खुद म...
प्रहार
कविता

प्रहार

रीमा ठाकुर झाबुआ (मध्यप्रदेश) ******************** कब थमेगा सिलसिला' मौत के प्रहार का! हे प्रभु तिनेत्र धारी' काल के संहार का! जो यहाँ निर्दोष है' वो भी है 'डरे हुए! धैर्य अब बचा नही' दर्द है 'प्रलाप का! दूर कही हंस रहा' काल मुंह फाडे हुए! बिषम परिस्थिति बनी, जल रहा दवनाल सा! मौत ताण्डव करे, धरा भी अब शून्य है! अब क्रोध चहुँ ओर है' कुछ कही थमा नहीं! गरल विष फैला हुआ, हर तरफ बस 'धुध है! रक्त पानी बन चला, कैसा ये संताप है! लडे तो किससे लडे" जिसका न अस्तित्व है! कुछ तो अब रास्ता दिखा' मेरे प्रभु तू है कहाँ! कोई शक्ति ढाल दे, अस्तित्व को आकार दे! अब तो अधेरा दूर कर, प्रकाश ही प्रकाश दे! परिचय :- रीमा महेंद्र सिंह ठाकुर निवासी : झाबुआ (मध्यप्रदेश) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानि...
एक पल
लघुकथा

एक पल

रीमा ठाकुर झाबुआ (मध्यप्रदेश) ******************** कुछ पल की चहलकदमी के बाद एक जगह ठहर गई 'पिया' उसका पोर पोर दर्द की वेदना से भरा था! कितने हाथ पैर मारे थे! पर उसकी कौन सुनता 'जब भौकाल चरम पर होता है तो सबकी मानसिकता ही बदल जाती है! पर अब क्या 'निपट अकेली रह गईं थी! पिया' निरीह वो सारे वादे बिना निभाये जा चुका था! खुद को ठगा महसूस कर रही थी! पर वो न भूली थी 'उसकी भरी आंखें' चंद बूँदे अश्रु की जो उसने भरसक छुपाने की कोशिश की थी! नही वो भटकाव न था! वो उसका प्रेम ही तो था! जिसे पाने की खतिर खैर उसनें एक लम्बी सांस ली उसे पता था! अब वो कभी वापस नहीं आऐगा' बुखार से तन तप रहा था उसका 'कुछ तो समझ न आ रहा था! उसे'तो 'सच मे चला गया हमेशा के लिऐ वेदांत'.... एक सिसकी और एक और लुढक गई पिया की गरदन 'उसकी निस्तेज आंखों मे लिपटा काली तिरपाल मे वेदांत का शरीर और अब न रही: 'एक पल की प्रतिक्षा..... ...
युगपुरुष
कविता

युगपुरुष

रीमा ठाकुर झाबुआ (मध्यप्रदेश) ******************** युग पुरुष किसे हम माने, जो कर्म पथ पर डटा रहा। जो टूटा नही, सलाखों मे, रणभेदी, डंका बजा रहा।। नभ पर खुशियाँ छायी, बाल के घर मे लाल हुआ। जब पैर पालने मे खोले, युगपुरुष का जन्म हुआ।। जब युवा अवस्था मे पहुँचे, तब जन्मभूमि चीत्कार उठी। तब कूद, पडे अंदोलन मे, मन मे स्वाधीनता जाग उठी।। काॅलेज मे अव्वल आये पत्रकारिता से जयघोष किया। जन-जन मे पैदल भटके स्वाधीनता का सम्मान दिया।। अपने पथ से विचलित न हुऐ न उन्हे सलाखें, डिगा सकी। बनकर जन जन के कर्णधार, स्वाधीनता, अधिकार दिला दिया।। वो जीवट थे, 'लौहपुरुष, भारत माँ, के बेटे थे। दुश्मन के दाँत किऐ खट्टे, है,नमन उन्हे, वो सच्चे थे।। परिचय :- रीमा महेंद्र सिंह ठाकुर निवासी : झाबुआ (मध्यप्रदेश) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक ह...
ये कैसा तूफान
कविता

ये कैसा तूफान

रीमा ठाकुर झाबुआ (मध्यप्रदेश) ******************** ये कैसी विवशता है, ये कैसा तूफान है, कैसे दाँव पर लगा रहा, इन्साँ को इँसान है। सोचो जरा समझो जरा, संयम से कुछ काम लो, सब धरा रह जायेगा, वो मान हो अपमान है। कर्मपथ जटिल सही, उसको अंगीकार कर, भुजायें बलिष्ट है, बेकसूर पर न वार कर! लक्ष्मीबाई बनो मगर, उनसा कार्य भी करों. उनको नमन मै करू, उन्है नमन तुम भी करो। ऐसी कोई न जिद करो, अहंकार को बढने न दो" जैसी हटेगी धुँध वो, शायद न नजर उठा सको! क्षमा से बढकर, सृष्टि मे कुछ भी बडा है न होगा कभी" कुछ पल के बदले के लिऐं, खुद लिऐ दुआ करो.!!! परिचय :- रीमा महेंद्र सिंह ठाकुर निवासी : झाबुआ (मध्यप्रदेश) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय ...
कहानी नही बदली
कविता

कहानी नही बदली

रीमा ठाकुर झाबुआ (मध्यप्रदेश) ******************** सिदूंर का रिश्ता है, निभा रही हूँ हर जनम,! तुम्हारा मेरा रिश्ता है, जो टूटता नही भरम!! ये एक पल का बंधन नही, न कमजोर है, डोरी! दिलो मे जो, मजबूती से, पनपी है मजबूत है कोरी!! न डर किसी का, अब है, कितनी मिली शिकस्त! बदनाम खूब किया मगर, बदली न, मुहब्बत।। बुत के यहाँ सब है, बुत परस्त लोग! बदला है, बस जमाना, नियत नही बदली!! इल्जाम लगाते रहे, बैगरत, से लोग! कितने, मिले सफर मे , मेरी चाहत नही बदली!! सैर पर निकले थे, तलाशने, जिन्दगी! जिदंगी तो रुठी रही कहानी नही बदली!! परिचय :- रीमा महेंद्र सिंह ठाकुर निवासी : झाबुआ (मध्यप्रदेश) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोटो के साथ प...