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Tag: विमल राव

महावीर चन्द्रबरदाई
कविता

महावीर चन्द्रबरदाई

विमल राव भोपाल मध्य प्रदेश ******************** महावीर बलिदानी था वो निडर गया था गज़नी में। पृथ्वीराज का मान बचाने शौर्य दिखाया गज़नी में॥ समकालीन बहुत थे शासक क्षत्रित्व नही था उनमे भी। पृथ्वीराज को बचा सके जो वह शौर्य नही था उनमे भी॥ बाल सखा सामंत चन्द्र नें तब अपना शौर्य जगाया था। जा गज़नी की धरती पर उस गौरी को मरवाया था॥ नैत्रहीन उस पृथ्वीराज को सखा चन्द्र नें समझाया। शब्द भेदी विधा से उसनें गौरी को था मरवाया॥ ऐसे वीर बलिदानी को देश भूल ना पायेगा। हैं कवि चन्द्रबरदाई तुमको जन मानस शीश नवायेगा॥ परिचय :- विमल राव "भोपाल" पिता - श्री प्रेमनारायण राव लेखक, एवं संगीतकार हैं इन्ही से प्रेरणा लेकर लिखना प्रारम्भ किया। निवास - भोजपाल की नगरी (भोपाल म.प्र) विशेष : कवि, लेखक, सामाजिक कार्यकर्ता एवं प्रदेश सचिव - अ.भा.वंशावली संरक्षण एवं संवर्द्धन संस्थान ...
सामाजिक अवधारणा
कविता

सामाजिक अवधारणा

विमल राव भोपाल मध्य प्रदेश ******************** जात बदलकर अपनी माँ पर लांछन लोग लगाते हैं। रक्त पिता का किया कलंकित ख़ुद को श्रेष्ठ बताते हैं॥ जन्म लिया जिस जाति में तुमने उसका अपमान किया। स्वयं बदलकर प्यारे तुमने जग में ऐसा, क्या काम किया॥ अपनी हीं नजरों में तुमने अपना मान गिराया हैं। कौन करें सम्मान तुम्हारा ख़ुद को हीं झुठलाया हैं॥ अभी समय हैं परिवर्तन का मन में अलख जगालो। जागो प्यारे स्वाभिमानी ख़ुद की लाज बचालो॥ अनुनय विनय "विमल" करता हैं पतन नही होने देना। सामाजिक अधिकारो का तुम हनन नही होने देना॥ शीश कटा लेना, पर अपनी जात नही खोने देना। परिवर्तन की आँधी हैं ये अस्तित्व नही खोने देना॥ परिचय :- विमल राव "भोपाल" पिता - श्री प्रेमनारायण राव लेखक, एवं संगीतकार हैं इन्ही से प्रेरणा लेकर लिखना प्रारम्भ किया। निवास - भोजपाल की नगरी (भोपाल म...
प्रीत साजन की
कविता

प्रीत साजन की

विमल राव भोपाल मध्य प्रदेश ******************** साजन तुम संग प्रीत लगाई मन हीं मन शरमाई मैं। तुम से कुछ दिन दूर रहीं पर तुमकों भूल ना पाई मैं॥ एक एक लम्हा तुमको चाहा एक पल भी ना भूल सकी। जब जब तुमको याद किया तब मन हीं मन मुसकाई मैं॥ सांझ सवेरे इंद्र धनुष सा रंग दिखाई देता हैं। तुम से रोज़ मिलन हों ऐसा स्वप्न दिखाई देता हैं॥ मैं एक कुसुम कली बगिया की तुम भंवर दिखाई देते हों। सच कहती हूँ साजन जी मैं तुम इस दिल में रहते हों॥ पहले मुझमे ना समझी थी अब मैं तुमको समझ रहीं हूँ। जेसा तुम मुझमें चाहते हों वैसा ख़ुद कों बदल रहीं हूँ॥ थोड़ी सी कड़वी हूँ सचमें पर मिश्री सी महक रहीं हूँ। प्रिये तुम्हारे घर आँगन में मैं चिड़िया सी चहक रहीं हूँ॥ प्यार तुम्हारा पाकर सचमुच खुदको परी समझती हूँ। सच कहती हूँ प्रिये कसम से मैं बस तुम पर मरती हूँ॥ तुम बस मुझकों ...
प्रीत की पाती लिखे, सीता प्रिये प्रभु राम को
कविता

प्रीत की पाती लिखे, सीता प्रिये प्रभु राम को

विमल राव भोपाल मध्य प्रदेश ******************** प्रीत की पाती लिखे, सीता प्रिये प्रभु राम को। प्रीत की पाती लिखे, राधा दिवानी श्याम को॥ प्रीत के श्रृंगार से, मीरा भजे घनश्याम को। प्रीत पाती पत्रिका, तुलसी लिखे श्री राम को॥ प्रीत की पाती बरसती, इस धरा पर मैघ से। प्रीत करती हैं दिशाऐं, दिव्य वायु वेग से॥ प्रीत पाती लिख रहीं हैं, उर्वरा ऋतुराज को। हैं प्रतिक्षारत धरा यह, हरित क्रांति ताज़ को॥ प्रीत पाती लिख रहीं माँ, भारती भू - पुत्र को। छीन लो स्वराज अपना, प्राप्त हों स्वातंत्र को॥ धैर्य बुद्धि और बल से, तुम विवेकानंद हों। विश्व में गूंजे पताका, तुम वो परमानंद हो॥ प्रीत पाती लिख रहा हूँ, मैं विमल इस देश को। तुम संभल जाओ युवाओ, त्याग दो आवेश को॥ वक़्त हैं बदलाव का, तुमभी स्वयं कों ढाल लो। विश्व में लहराए परचम, राष्ट्र कों सम्भाल लो॥ परिचय :- विमल राव...
प्रीत कान्हा से
कविता

प्रीत कान्हा से

विमल राव भोपाल मध्य प्रदेश ******************** कान्हा तुम संग प्रीत लगाई मन हीं मन पछताई मैं। विरह अगनी में ऐसी उलझी आपही रास रचाई मैं॥ भूल गई मैं सांझ सवेरा द्वार द्वार फिर आई मैं। कहाँ गयो चितचौर कन्हैया नैयनन ढूंढ ना पाई मैं॥ गोपियन संग जो रास रचायों मोहे कन्हैया नाच नचायों। घैर लयी पनघट कान्हा नें प्रेम रंग कों राग बजायों॥ मैं आगे कान्हा पीछे बृज की गलियन, दौड़ाई मैं। हिय में ऐसो, बसो नंदलला याहे एक क्षण भूल ना पाई मैं॥ सखी श्याम सलोनों कितै गयो याकि बंशी चुरा ल्ये आई मैं। काऊ देखो हैं कुँज गलिन कान्हा यासों प्रीत भुला ना पाई मैं॥ परिचय :- विमल राव "भोपाल" पिता - श्री प्रेमनारायण राव लेखक, एवं संगीतकार हैं इन्ही से प्रेरणा लेकर लिखना प्रारम्भ किया। निवास - भोजपाल की नगरी (भोपाल म.प्र) विशेष : कवि, लेखक, सामाजिक कार्यकर्ता एवं प्रदेश सचिव - अ.भा.वंशावली संरक्षण एवं संवर्द्धन स...
वंदे मातरम
कविता

वंदे मातरम

विमल राव भोपाल म.प्र ******************** वंदे मातरम वेद मंत्र हैं नित इसका उच्चार करें। आओ भारत वासी मिलकर भारत का जयकार करें॥ सूरज की पहली किरणे जब वंदे मातरम गाती हैं। मंदिर में घंटी बजती हैं चिड़िये दाना खाती हैं॥ खुलते हैं विधा के मंदिर पुस्तक पूजी जाती हैं। मिलता हैं निस ज्ञान हमें यहाँ मानव एक हीं जाति हैं॥ गुरु शिष्य की, परंपरा की शिक्षा मिली, पुराणों से। अडिग रहो, निशदिन पथ पर कुछ सीखों, पेड़ पहाड़ो से॥ अनुशासित मय, हों जीवन यह चलना सदपुरुषों, के पथ पर। ले राष्ट्रभक्ति का, गौरव रथ बढ़ना निस्वार्थ विजय पथ पर॥ परिचय :- विमल राव "भोपाल" पिता - श्री प्रेमनारायण राव लेखक, एवं संगीतकार हैं इन्ही से प्रेरणा लेकर लिखना प्रारम्भ किया। निवास - भोजपाल की नगरी (भोपाल म.प्र) विशेष : कवि, लेखक, सामाजिक कार्यकर्ता एवं प्रदेश सचिव - अ.भा.वंशावली संरक्षण एवं संवर्द्धन संस्थान म.प्र, रच...
श्री कृष्ण वंदना
कविता

श्री कृष्ण वंदना

विमल राव भोपाल म.प्र ******************** जय नटवर नंद किशोर सांवरा जय यदुवंशी त्रिपुरारी श्री चरण कमल वंदन करूँ जय गोविंद कृष्ण मुरारी जय राधावल्लभ सखा सुदामा जय गौपियन रास मदारी जय कंस पूतना मुक्ति दादा जय मीरा के गिरधारी जय कुंज गलिन के रास रसईया जय ग्वाल सखा मझधारी जय मुरली मनोहर भक्त प्रिये जय चक्र सुदर्शन धारी जय सत्य सनातन के रक्षक जय त्रिभुवन नाथ बिहारी जय विमल नाथ रक्षक श्यामा जय बंदीजन हितकारी परिचय :- विमल राव "भोपाल" पिता - श्री प्रेमनारायण राव लेखक, एवं संगीतकार हैं इन्ही से प्रेरणा लेकर लिखना प्रारम्भ किया। निवास - भोजपाल की नगरी (भोपाल म.प्र) विशेष : कवि, लेखक, सामाजिक कार्यकर्ता एवं प्रदेश सचिव - अ.भा.वंशावली संरक्षण एवं संवर्द्धन संस्थान म.प्र, रचनाएँ : हम हिन्दुस्तानी, नई दुनिया, पत्रिका, नवभारत देवभूमि, दिन प्रतिदिन, विजय दर्पण टाईम, मयूर सम्वाद, दैनिक सत्ता सुधा...
आराध्य राम
कविता

आराध्य राम

विमल राव भोपाल म.प्र ******************** वर्ष पाँच सो बाद सफलता मिली अयोध्या धाम कों मिले हमें आराध्य हमारें नमन प्रभु श्री राम कों आज अयोध्या नगरी सारी सजी दुल्हन सी लगती हैं वर्षो का संघर्ष झेलना प्रभु राम की भक्ति हैं धेर्य और विश्वास लिऐ हम आस लगाए बेठे थे कार सेवकों की सेवा का उपवास लिऐ हम बेठे थे आज पुनः वह अवसर आया घर घर दीप जलाएंगे राम लला की अगुवाई में फिर भगवा लहराएंगे परिचय :- विमल राव "भोपाल" पिता - श्री प्रेमनारायण राव लेखक, एवं संगीतकार हैं इन्ही से प्रेरणा लेकर लिखना प्रारम्भ किया। निवास - भोजपाल की नगरी (भोपाल म.प्र) विशेष : कवि, लेखक, सामाजिक कार्यकर्ता एवं प्रदेश सचिव - अ.भा.वंशावली संरक्षण एवं संवर्द्धन संस्थान म.प्र, रचनाएँ : हम हिन्दुस्तानी, नई दुनिया, पत्रिका, नवभारत देवभूमि, दिन प्रतिदिन, विजय दर्पण टाईम, मयूर सम्वाद, दैनिक सत्ता सुधार में आए दिन लेख एवं रच...
हरियाली तीज
कविता

हरियाली तीज

विमल राव भोपाल म.प्र ******************** गिरिराज किशोरी पुत्री नें शिवनाथ सो ब्याह रचावन कों हरियाली सो श्रृंगार रच्यों हरियाली तीज मनावन कों सब सखियन संग श्रृंगार कियो श्रावण कों मास सज्यो झूला हरियाली तीज करों री सखी शिव पार्वती कों मिल्यो दूल्हा हिल मिल सखियन संग गाऊँगी श्रद्धा सो तीज मनाऊँगी बन पार्वती मैं भोले की भस्मी मैं आज रमाऊँगी परिचय :- विमल राव "भोपाल" पिता - श्री प्रेमनारायण राव लेखक, एवं संगीतकार हैं इन्ही से प्रेरणा लेकर लिखना प्रारम्भ किया। निवास - भोजपाल की नगरी (भोपाल म.प्र) विशेष : कवि, लेखक, सामाजिक कार्यकर्ता एवं प्रदेश सचिव - अ.भा.वंशावली संरक्षण एवं संवर्द्धन संस्थान म.प्र, रचनाएँ : हम हिन्दुस्तानी, नई दुनिया, पत्रिका, नवभारत देवभूमि, दिन प्रतिदिन, विजय दर्पण टाईम, मयूर सम्वाद, दैनिक सत्ता सुधार में आए दिन लेख एवं रचनाएँ प्रकाशित होती रहती हैं। घोषणा पत्...
तर्क वितर्क
कविता

तर्क वितर्क

विमल राव भोपाल म.प्र ******************** सूचनाओं के अभावो का प्रभाव देखिए। मूर्खता के तर्क का स्वर्णिम सुझाव देखिए॥ ना कोई प्रत्यक्ष हैं और ना कोई प्रमाण हैं। पर अड़ीग हैं आत्म मत पर, हौसले तों देखिए॥ वेद अध्यन और शिक्षा का अभाव हैं जहाँ। बांटते हैं ज्ञान सबकों, दुर्दशाएँ देखिए॥ पद प्रतिष्ठा के लिये, परिवार कों ले संग में। धेर्य खोते निर्बलों की, मंद बुद्धि देखिए॥ देखिए उनका समन्वय, तोड़ता हैं कांरवा। और अपना ध्येय खोता, लक्ष्य भी तों देखिए॥ रुष्ट होते बाल हट से, ये बड़ी विडम्बना हैं। उम्र का अनुभव नही हैं, याचनाये देखिए॥ स्वप्न हैं सम्मान का, तों योग्यता भी चाहिये। पर विषय भटका रहें हैं, संगती तों देखिए॥ . परिचय :- विमल राव "भोपाल" पिता - श्री प्रेमनारायण राव लेखक, एवं संगीतकार हैं इन्ही से प्रेरणा लेकर लिखना प्रारम्भ किया। निवास - भोजपाल की नगरी (भोपाल म.प्र) कवि, लेखक, सामाजिक ...
संघर्ष
कविता

संघर्ष

विमल राव भोपाल म.प्र ******************** यूँ ही नही गुज़रता सफर जिंदगी का संघर्ष करना पढ़ता हैं। कामयाबी की राहों में मील का पत्थर बनकर मुश्किलो से अकड़ना पढ़ता हैं॥ वो मांझी खुद कों कमज़ोर समझ लेता तों पहाड़ो से रास्ता कौन बनाता। ठान लेनें से हीं काम नही चलता यारों हौसलों से डटकर लड़ना पढ़ता हैं॥ बागों की हरीयाली पर रीझनें वालों एक माली से पूछो। चंद फूलों की रखवाली की खातिर कितनों से झगड़ना पढ़ता हैं॥ क्या सोचते हों दिन रात इस जद्दोज़हद की दुनियाँ में। फ़कीर बनकर यहाँ दरबदर भटकना पढ़ता हैं॥ यूँ तों कठिनाइयों से सभी घबरा जाते हैं साहब। मंजिल तक पहुँचनें वालों कों निरंतर बढ़ना पढ़ता हैं॥ परिचय :- विमल राव "भोपाल" पिता - श्री प्रेमनारायण राव लेखक, एवं संगीतकार हैं इन्ही से प्रेरणा लेकर लिखना प्रारम्भ किया। निवास - भोजपाल की नगरी (भोपाल म.प्र) कवि, लेखक, सामाजिक कार्यकर्ता एवं प्रदेश सचिव - अ.भा.व...
माँ
कविता

माँ

विमल राव भोपाल म.प्र ******************** सीने का खून पिलाती माँ रूठो कों रोज़ मनाती माँ कितने भी गम में होगी माँ पर देख मुझे मुस्काती माँ माँ कों देख मेरा दुःख भागे मैं सोउ मेरी माँ जागे मुझको नेक बनाने में मेरी माँ हैं सबसे आगे खुद भूखी सो जाती हैं पर मुझको दूध पिलाती हैं मैं पढ़-लिख कर बड़ा बनूँ वो मझदूरी पर जाती हैं उस माँ पर में मरता हूँ बिन माँ के मैं डरता हूँ मेरी माँ केसी भी हो मैं माँ से मोहोब्बत करता हूँ। किस्मत उसकी बड़ी नेक हैं जिसके हिस्से माँ आई हैं धन्य हुआ हैं (विमल) जो उसनें माँ (मेहताब) सी पाई हैं परिचय :- विमल राव "भोपाल" पिता - श्री प्रेमनारायण राव लेखक, एवं संगीतकार हैं इन्ही से प्रेरणा लेकर लिखना प्रारम्भ किया। निवास - भोजपाल की नगरी (भोपाल म.प्र) कवि, लेखक, सामाजिक कार्यकर्ता एवं प्रदेश सचिव - अ.भा.वंशावली संरक्षण एवं संवर्द्धन संस्थान म.प्र, रचनाएँ : हम हिन्दुस्ता...
नज़रिया
कविता

नज़रिया

विमल राव भोपाल म.प्र ******************** शहर में नया मकान किसका हैं पुराना तों गिरा दिया था ये नया बसेरा किसका हैं। रोशनी कों बंद दरवाजो से रोकने वालों क्या भूल गए ये नया सवेरा किसका हैं। सुना हैं घर बसानें से पहले हीं उजाड़ दिये जाते हैं तों संवरता हुआ ये परिवार किसका हैं। वो आग लगाने कि फिराक में घूमा करते हैं अकसर उन्हें पता नही बगल में तालाब किसका हैं। पौधो में कांटे कों देखकर कोसने वालों ये महकता हुआ गुलाब किसका हैं। . परिचय :- विमल राव "भोपाल" पिता - श्री प्रेमनारायण राव लेखक, एवं संगीतकार हैं इन्ही से प्रेरणा लेकर लिखना प्रारम्भ किया। निवास - भोजपाल की नगरी (भोपाल म.प्र) कवि, लेखक, सामाजिक कार्यकर्ता एवं प्रदेश सचिव - अ.भा.वंशावली संरक्षण एवं संवर्द्धन संस्थान म.प्र, रचनाएँ : हम हिन्दुस्तानी, नई दुनिया, पत्रिका, नवभारत देवभूमि, दिन प्रतिदिन, विजय दर्पण टाईम, म...
नारी जीवन
कविता

नारी जीवन

विमल राव भोपाल म.प्र ******************** नारी जीवन संघर्षो की, उपमा नही उदाहरण हैं। इस श्रृष्टि की भाग्य विधाता, वह जन मानस की तारण हैं॥ उसनें हीं नींव रखी घर की घर कों परिवार बनाया हैं। भूली बिसरी उस अबला नें हर संकट कों अपनाया हैं॥ त्याग दिया घर उसनें अपना पति का संसार बसाने कों। वो सर्वस्व लुटा बैठी हैं अपना घर बार चलाने कों॥ उसके हीं बलिदानों से हमनें इतिहास सजाया हैं। माँ, बहन, बहु, बेटी, बनकर हम पर स्नेह लुटाया हैं॥ उसका बलिदान अतुलनीय हैं अनुपम स्वरूप हैं ममता का वह क्षमा रूप का सागर हैं कोई मोल नही उस क्षमता का॥ . परिचय :- विमल राव "भोपाल" पिता - श्री प्रेमनारायण राव लेखक, एवं संगीतकार हैं इन्ही से प्रेरणा लेकर लिखना प्रारम्भ किया। निवास - भोजपाल की नगरी (भोपाल म.प्र) कवि, लेखक, सामाजिक कार्यकर्ता एवं प्रदेश सचिव - अ.भा.वंशावली संरक्षण एवं संवर्द्धन संस्थान ...
आज़ादी की कीमत
कविता

आज़ादी की कीमत

विमल राव भोपाल म.प्र ******************** आजादी की कीमत कों क्या खूब चुकाया वीरों नें। सीने पर गोली खाई थी भारत माँ के रणधीरो नें॥ क्रांति दूत ऊन फ़ौलादो नें ऐसी आग लगाई थी। भारत के कोने-कोने से निकल स्वतंत्रता आई थी॥ कतरा-कतरा रक्त बहा कर भारत माँ के चरणों में। उनकों देकर सीख गए वो जो बंटें हुए थे वर्णों में॥ झूल गए फाँसी पर किन्तु कभी कदम ना डोले थे। मरते-मरते बाँके प्यारे वो वन्दे मातरम बोले थे॥ नत मस्तक होकर हम उनकों नित - नित शीश झुकाते हैं। आजादी की कीमत पर जो अपनें शीश चढ़ाते हैं॥ . परिचय :- विमल राव "भोपाल" पिता - श्री प्रेमनारायण राव लेखक, एवं संगीतकार हैं इन्ही से प्रेरणा लेकर लिखना प्रारम्भ किया। निवास - भोजपाल की नगरी (भोपाल म.प्र) कवि, लेखक, सामाजिक कार्यकर्ता एवं प्रदेश सचिव - अ.भा.वंशावली संरक्षण एवं संवर्द्धन संस्थान म.प्र, रचनाएँ : हम हिन्दुस्तानी, नई...
प्रीत की पाती: चतुर्थ स्थान प्राप्त रचना
कविता

प्रीत की पाती: चतुर्थ स्थान प्राप्त रचना

विमल राव भोपाल म.प्र ********************   प्रीत की पाती लिखे, सीता प्रिये प्रभु राम कों। प्रीत की पाती लिखे, राधा दिवानी श्याम कों॥ प्रीत के श्रृंगार से, मीरा भजे घनश्याम कों। प्रीत पाती पत्रिका, तुलसी लिखे श्री राम कों॥ प्रीत की पाती बरसती, इस धरा पर मैघ से। प्रीत करती हैं दिशाऐं, दिव्य वायु वेग से॥ प्रीत पाती लिख रहीं हैं, उर्वरा ऋतुराज कों। हैं प्रतिक्षारत धरा यह, हरित क्रांति ताज़ कों॥ प्रीत पाती लिख रहीं माँ, भारती भू - पुत्र कों। छीन लो स्वराज अपना, प्राप्त हों स्वातंत्र कों॥ धैर्य बुद्धि और बल से, तुम विवेकानंद हों। विश्व में गूंजे पताका, तुम वो परमानंद हों॥ प्रीत पाती लिख रहा हूँ, मैं विमल इस देश कों। तुम संभल जाओ युवाओ, त्याग दो आवेश कों॥ वक़्त हैं बदलाव का, तुमभी स्वयं कों ढाल लो। विश्व में लहराए परचम, राष्ट्र कों सम्भाल लो॥ . परिचय :- विमल राव "भो...
शौर्य गाथा
कविता

शौर्य गाथा

विमल राव भोपाल म.प्र ******************** वीर रस भगवा रक्त बहे इस तन में माँ ऐसा वरदान दो। दुष्टों का संहार कर सकुं ऐसा तीर कमान दो।। वीर शिवाजी सा रणकौशल राणा सा वो भाल दो। चेतक सा बल शौर्य मुझे दो गुरु गोविंद सिंह: कृपाण दो श्री रामकृष्ण जी परमहँस सा मुझको हृदय विशाल दो। रौद्र रुप धर सँकु युद्ध में वह देह मुझे विक्राल दो।। मंगल पाण्डे सा बल दो माँ डटा रहूँ रणभूमी में। भगत सिह: सा साहस दो माँ हँस कर झूलुं सूली में।। दो शक्ति आज़ाद सी मुझको मात्र भूमी पर मिट जाऊँ। संत विवेकानंद बनु तन भूमि माथ लिपट जाऊँ।। मर - कर फ़िर जनमु भारत में माँ ऐसा वरदान दो। दुष्टों का संहार कर सकुं ऐसा तीर कमान दो।। . परिचय :- विमल राव "भोपाल" पिता - श्री प्रेमनारायण राव लेखक, एवं संगीतकार हैं इन्ही से प्रेरणा लेकर लिखना प्रारम्भ किया। निवास - भोजपाल की नगरी (भोपाल म.प्र) कवि, लेखक, सामाजि...
प्रियेतमा
कविता

प्रियेतमा

विमल राव भोपाल म.प्र ******************** मन की निर्मल पावन उज्जवल विमल प्रेम रस पाती कों प्रियेतमा तुम भूल ना जाना अपनें जीवन सांथी कों जेसे नभ चर गगन बिना मृत जलचर अमृत नीर बिना तेसे तुम बिन मन तड़फत हैं प्रांण जाए नही पीर बिना तुम रूठी तों सबकुछ रूठा कलम सुहाय ना पाती कों प्रियेतमा तुम भूल ना जाना अपनें जीवन सांथी कों जान सका ना मैं भी तुमको तुम भी मुझको समझ ना पाई ना जाने क्यों प्रेम विवश हों मैने तुम संग प्रीत लगाई अपनें मन की विरह आग में झोंक रहा हूँ बाती कों प्रियेतमा तुम भूल ना जाना अपनें जीवन सांथी कों मन के घौर अंधेरों में तुम दिव्य रोशनी लायी थी जो कुटिया थी टूटी फूटी तुमने महल बनाई थी अब तुम मुझसे क्यों रूठी हों प्रति उत्तर दो पाती कों प्रियेतमा तुम भूल ना जाना अपनें जीवन सांथी कों . परिचय :- विमल राव सामाजिक कार्यकर्ता एवं प्रदेश सचिव अ.भा.वंशावली संरक्...
ये पब्लिक हैं, सब जानती है…
हास्य

ये पब्लिक हैं, सब जानती है…

विमल राव भोपाल म.प्र ******************** विशेष :- पुरानी कहावतों व गीतों का व्यंग में समावेश एक छोटे बच्चे से हमनें पूछा ? बेटा कविता आती हैं क्या ? प्रति उत्तर में इस बच्चे की प्रतिक्रिया देखे - बच्चा बोला श्रीमान जी - कविता आती नही, सविता जाती नही, सुषमा बुलाती नही। नीतू आंटी नें पापा कों बुलाया हैं, बस इतनी सी बात पर मम्मी नें मुँह फुलाया हैं, मेरे समझ में नही आता माँ मान क्यों नही जाती कुछ दिन शर्मा जी के सांथ क्यों नही बिताती इस तरहा बार बार रूठने से अच्छा हैं माँ एक बार रुठे ! साँप भी मर जायें, और लाठी भी ना टूटे... आज कल में इनकी समस्याओ का समाधान कर रहा हूँ, दिन रात इन्हें एक करने की कोशिश कर रहा हूँ मेरे लाख समझानें पर भी, इन्हें कुछ समझ नही आयें, पिताजी का तों अब भी, यही कहना हैं ! दुल्हन वहीं जो, पिया मन भाए... इनकी हर रोज़ लड़ने की आदतों से, मैं पक चुका हूँ ! समझ...
तड़प
कविता

तड़प

विमल राव भोपाल म.प्र ******************** हर रात गुजरती हैं तनहा शायद तुजको एहसास नहीं। एक कसक बसी हैं इस दिल में पर मिलने की कोई आस नहीं।। कहते हैं सब लोग यहाँ तू पागल हैं दीवाना हैं। शायद उसकी नज़रों में अब तेरी कुछ भी औकात नहीं ।। क्या खता करी थी हमने जो उसने ऐसा एहसान किया। एक प्यारे से मंदिर को फिर उसने सूना शमशान किया।। ताउम्र तेरा दीदार रहें इस दिल में हमेशा प्यार रहें। बददुआ तुझे में देता हूँ जा सुखी तेरा संसार रहें।। प्यारा सा पिया मिले तुझको हों खुशियाँ तेरे दामन में। अपनी तो इल्तजा हैं इतनी दम निकले तेरे आँगन में।। जेसे मझधार चढ़ी नैय्या हों बीच भँवर में खिला कमल। क्या सोच रहा हैं तु पल पल वो कभी ना तेरी हुई "विमल"।। . परिचय :- विमल राव सामाजिक कार्यकर्ता एवं प्रदेश सचिव अ.भा.वंशावली संरक्षण एवं संवर्द्धन संस्थान म.प्र. निवासी : भोपाल म.प्र आप भी अपनी क...
प्रेम चरित्र
कविता

प्रेम चरित्र

विमल राव भोपाल म.प्र ******************** भूल गई तुम मुझको सच में पर में तुमको भूल ना पाया शायद तुमने ठोकर मारी में तुमको ठुकरा ना पाया ख्वाब सजाया था दिल में तुमने उसको भी तोड़ दिया दोस्त मेंरे सब ऎसे निकले सांथ मेरा हीं छोड़ दिया जाने दो वो, बीता कल था अब क्या उसको याद करूँ कोई नहीं हैं अब भी दिल में में किससे फरियाद करूँ पर उम्मीद अभी थी बांकी मन में भी विश्वास रहा उसनें हीं ठुकराया मुझको उसको भी मैं याद रहा शायद सच था प्यार मेरा जो उसनें फिरसे याद किया मिलकर उसनें फिर से मुझको जी ते जी आबाद किया फिर से अलख जगा इस दिल में फिर में ख्वाब सजा बेठा वो फिर भी मेरी नहीं हुई में फिरसे उसका हो बेठा हर बार वो मुझसे मिलती हैं हर बार बिछड़ भी जाति हैं वो जेसी भी हैं अच्छी हैं बस मुझको बहुत रूलाती हैं फिर भी ये विश्वास हैं उस पर वो वापस गले लगायेगी भूल नहीं पायेगी मुझको मन हीं मन पछत...
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ का महत्व
कविता

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ का महत्व

विमल राव भोपाल म.प्र ******************** जीवन में अनुशासन का नित, पाठ सिखाती हैं शाखा। शील विनय आदर्श श्रेष्ठता, धेर्य सिखाती हैं शाखा।। काम क्रोध मद मोह देह से, शीघ्र मिटाती हैं शाखा। कर्म साधना राष्ट्र भक्ति का, मार्ग दिखाती हैं शाखा।। त्याग समर्पण ध्येय भाव की, अलख जगाती हैं शाखा। नव तरंग चैतन शक्ति का, दीप जलाती हैं शाखा।। संघर्षों से डटकर लड़ना, अभय सिखाती हैं शाखा। जाति पंथ का भैद मिटाकर, समरसता लाती हैं शाखा।। राग द्वेश अभिमान मिटाती, भाव जगाती हैं शाखा। संस्कृती का सम्मान ना भूलें, यही सिखाती हैं शाखा।। . परिचय :- विमल राव सामाजिक कार्यकर्ता एवं प्रदेश सचिव अ.भा.वंशावली संरक्षण एवं संवर्द्धन संस्थान म.प्र. निवासी : भोपाल म.प्र आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि हिंदी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, हिंदी रक्षक मंच पर अप...
दहेज प्रताड़ना का दंश
कविता

दहेज प्रताड़ना का दंश

विमल राव भोपाल म.प्र ******************** एक नई नवेली दुल्हन को कुछ लोगों ने क्या सिला दिया बाबुल के अंगना से लाकर पीहर में उसको "ज़ला" दिया क्या होते हैं रिश्तें नाते उन गददारो ने भुला दिया कितनी तड़फी होगी बेहना जब उसको जिन्दा ज़ला दिया चीखी-चिल्लाई होगी वो क्या पूरी बस्ती बेहरी थी जब धुआँ उठा होगा घर में दिन में भी, रात अँधेरी थी कोई आ जाता, पानी लेकर दरवाजा तोड़, बचा लेता घरमें भी सब मौजूद रहे कोई तो, आग भुजा देता जिस पति पर विश्वास किया उसने (अंजु ) को जला दिया बेहना की बातो में आकर पत्नी को क्या सिला दिया उसकी हर एक चीख पिता के मन को बहुत सताती हैं जिस माँ ने उसको जनम दिया उसकी छाती भर आती हैं कितनी मेहनत से, पाला था उस माँ ने अपनी, बेटी को एक पल में उसने जला दिया पापा की प्यारी बेटी को ये काम कमीनो वाला हैं कोई कुत्ता ही कर सकता हैं द्रोपति का चीर हरण जग में कोई दुस्...