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Tag: शत्रुहन सिंह कंवर

बरखा का रानी
कविता

बरखा का रानी

शत्रुहन सिंह कंवर चिसदा (जोंधरा) मस्तुरी ******************** आषाढ़ का महीना बारिश का बसेरा चमक उठी है बिजली की ताड़ बरस पड़ी है पानी की बुंदे खिल उठा है हरियाली सा आँगन महक उठी है मिट्टी का कटेरा मन मयूर नाच रहा है सुंदर सा पकेरा चहक रहा है भोर का चकेरा टपक पड़ी छाजन, छत घीरैना खिल गई है किसानों का चेहरा करने को लास भूमि भी मचलती आषाढ़ का महीना बारिश का बसेरा। परिचय :-  शत्रुहन सिंह कंवर निवासी :  चिसदा (जोंधरा) मस्तुरी घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं छायाचित्र के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि प्रकाशित करवाने हेतु अप...
खुला बोरबेल
आंचलिक बोली

खुला बोरबेल

शत्रुहन सिंह कंवर चिसदा (जोंधरा) मस्तुरी ******************** (छत्तीसगढ़ी) पिये बर पानी खोदे हन गढ़्ढा पानी तो नई मिलीच छोड़ देहेन गढ्डा काबर भूलगें बंद करे ला वो गढ्डा कतको जीव ह मर जाथे गिरके ओ गढ्डा म काबर तै नई जानेच रे मानुष ना समझें काकरो दुःख दर्द ला जीहा हे साँप,मेचका आऊं राहुल कस सिरदर्द बंगे कतको माई बाप बर कतको के होगे घर द्वार सुना छोड़ो ना कभी ऐसन गढ्डा काकरो जीवन हा तमाशा बन जाथे फस के ये गढ्डा म बुलाए ला पड़ जाथे सेना रक्षक ल जेहा बन जाथे मीडिया बर ताजा खबर पढ़ले सुनले देखले वहीच खबर नेता मन राजनीतिक खेलत हे बैठ के घर म मोबाइल ले बोलत हे करत हे आम इंसान बचाए ला कोशिश नेता मन वाह वाही कमावत हे करेला पढ़ते प्रार्थना प्रभु ले जीवन बर सुनथे दर्द प्रभु हर जीवन के खातिर। परिचय :-  शत्रुहन सिंह कंवर निवासी :  चिसदा (जोंधरा) मस्तुरी घोष...
एक मिसाल
कविता

एक मिसाल

शत्रुहन सिंह कंवर चिसदा (जोंधरा) मस्तुरी ******************** तपती है ये बदन धुप में कोयला की आस है मिली सोन की खान कर कर्म तु यूं ही सदा बढ़कर ना कर तु ये लचार मन, तन को करता चल यूं ही पल पल मंजिल मिलती है मेहनत से थके ना कभी ये हैसला आपकी होगी फिर ओ आहट कल की कांटे बिछे पड़े हैं राहों में बना तू इसे मखमली गुलाब सा बनो तुम भी एक मिशाल देखकर हंसते ये दुनिया तुम पर हंसकर रह जाएं ये वो पल ऐसी कर तु नित्यनया सवेरा जो हो सभी के लिए दया की सागर सागर सा अथाह है जीवन में यूं ही तुम करो साहिल सा पकेरा तपती है ये बदन धुप में यूं ही सदा पल पल। परिचय :-  शत्रुहन सिंह कंवर निवासी :  चिसदा (जोंधरा) मस्तुरी घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष...
नहीं कुछ कहता मैं भी
कविता

नहीं कुछ कहता मैं भी

शत्रुहन सिंह कंवर चिसदा (जोंधरा) मस्तुरी ******************** नहीं कुछ कहता मैं भी लिए हो हाथ में जो तुम कुल्हाड़ करों जो तुम चाहो अपनी मनमानी मैंने दिया है तुझको क्या क्या लेकिन दिया है तुमने मुझे ये क्या कर दिया जो तुमने मुझे बलिदान स्वार्थ के जो तुमने बीज अपनाया प्रेमभाव जलसिंचित जो किया किया तो अपनी स्वार्थ मनोरथ के लिए निर्जीव गूंगा जो जानकर कर दिया अपनी क्रोध का भांडाभाड़ हो ना सका मातृभूमि का नव श्रृंगार कर दिया जो तुमने मुझे बलिदान। परिचय :-  शत्रुहन सिंह कंवर निवासी :  चिसदा (जोंधरा) मस्तुरी घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं छायाचित्र के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, राष्ट्रीय हिन्दी रक...
मन में उठे एक तरंग
कविता

मन में उठे एक तरंग

शत्रुहन सिंह कंवर चिसदा (जोंधरा) मस्तुरी ******************** मन में उठे एक तरंग सोच-सोच के हुई मन में उलझन क्या चले मन में विचार कोई ना जाने मन का सवाल कभी इधर तो कभी उधर दौड़ता ही रहता हर पल ना थके कभी, कभी ना हारे होता है फिर भी मन में बात मन की बाते कोई ना जाने होता है मन में क्या क्या व्यथा मैं बताऊं मन की बात सृष्टि को छानकर बैठा है जहां जा ना सके हम वह गया है मन का विस्तार रुकता नहीं मैं कभी करता हूं निश्चर एक सवाल अच्छे बुरे का है समझ मुझे फिर भी है एक उलझन ख्याल मन में है कितना संसार ये बाते मन ही जाने क्या से क्या किया मन में लगे एक सच्चा यह संसार मन की व्यथा अब मैं क्या बताऊं मन में उठे हर बार एक सवाल। परिचय :-  शत्रुहन सिंह कंवर निवासी :  चिसदा (जोंधरा) मस्तुरी घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह र...
आया बसंत बहार
कविता

आया बसंत बहार

शत्रुहन सिंह कंवर चिसदा (जोंधरा) मस्तुरी ******************** आया बसंत बहार लेकर खुशियां अपार चारों ओर महकें फूलों की बैछार रंगो से सजे यह नवयौवन सा राग कोयल कुहके मधुर तान देखकर मन में उठे उमंग, उल्लास रंगो में पिरोए है भाईचारा एकता का मिशाल हरियाली छाई है नई विश्वास चारों ओर महकें एक ताजगी का एहसास देखकर मन भवर नाचने को है बेताब ऐसा है मेरा ऋतुराज बसंत बहार। परिचय :-  शत्रुहन सिंह कंवर निवासी :  चिसदा (जोंधरा) मस्तुरी घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं छायाचित्र के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि प्रकाशित करवाने हेतु अपनी कविताएं, कहानिय...
धरती का श्रृंगार
कविता

धरती का श्रृंगार

शत्रुहन सिंह कंवर चिसदा (जोंधरा) मस्तुरी ******************** पेड़ पौधा है जिन्दगी का आधार जल वायु से मानव जगत उजियार वनों में है अपना जहान जिसमे है लाख, तेंदू, महुआ, चार होता है इससे अपना गुजार हम भी करे इस धरती का श्रृंगार लगाके वृक्ष एक वरदान हो एक नए भारत का उत्थान जो हो जग में विस्तार वृक्ष लगाओ जिंदगी बचाओ। परिचय :-  शत्रुहन सिंह कंवर निवासी :  चिसदा (जोंधरा) मस्तुरी घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं छायाचित्र के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि प्रकाशित करवाने हेतु अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, हिंदी में टाईप करके हमें hindirakshak17...
ये जिंदगी भी ना
कविता

ये जिंदगी भी ना

शत्रुहन सिंह कंवर चिसदा (जोंधरा) मस्तुरी ******************** ये जिंदगी भी ना क्या से क्या कराती है मुश्किल वक्त पर इशारे पर नाच नचाती है करवाएं बदल-बदल कर फिर खून की आंसू सुलगाती है सोच-सोच के ये मन घबराए चैन कहा अब बेचैनी जो छाए रामरहीम अब सब तेरे वास्ते जिंदगी की बागड़ोर अब तू ही संभाले। परिचय :-  शत्रुहन सिंह कंवर निवासी :  चिसदा (जोंधरा) मस्तुरी घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं छायाचित्र के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि प्रकाशित करवाने हेतु अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, हिंदी में टाईप करके हमें hindirakshak17@gmail.com पर अणु डाक (...
जिन्दगी आपसे
कविता

जिन्दगी आपसे

शत्रुहन सिंह कंवर चिसदा (जोंधरा) मस्तुरी ******************** ये संसार हमारे बिन ना है अधूरी ना हम है संसार बिन अधूरी तन्हाई का आलम है बरक़रार सिवा उसका इंतजार का आलम हैं ख़ामोश ये जिंदगी की डोरी जो तोड़े से भी ना टूटे ये डोरी करवाए भी बदलती है जिंदगी की आरजू भी है बदलती जिन्दगी की ना कोई शिकवा है आपसे है शिकवा जिन्दगी आपसे। परिचय :-  शत्रुहन सिंह कंवर निवासी :  चिसदा (जोंधरा) मस्तुरी घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं छायाचित्र के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि प्रकाशित करवाने हेतु अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, हिंदी में टाईप करके हमें hi...
आया न्यू नूतन
कविता

आया न्यू नूतन

शत्रुहन सिंह कंवर चिसदा (जोंधरा) मस्तुरी ******************** आया न्यू नूतन लेकर अपने संग उमंग करें अच्छे कर्मों का आरंभ ना करें बुरे काम लेकर अपने संग विश्वास बनाए भाईचारा एकता का मिशाल लेकर अपने जीवन में बसाए खुशियों का महल ना करें चारी द्वेष कपट शांति प्रेम का समाज में हो नित्य नूतन सवेरो का आगाज आया न्यू नूतन लेकर अपने संग उमंग अपनो में हो सद्विचार हो नाश पाप हिंसा क्रोध का खिले प्रेम प्यार का फूल नित्य नूतन पले बढ़े सत्कर्मों का पुजारी हो नाश पाप पुजारो का आया न्यू नूतन लेकर अपने संग उमंग। परिचय :-  शत्रुहन सिंह कंवर निवासी :  चिसदा (जोंधरा) मस्तुरी घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय ए...
जीवन का रहस्य
कविता

जीवन का रहस्य

शत्रुहन सिंह कंवर चिसदा (जोंधरा) मस्तुरी ******************** अंध से है अंधकार जग से है प्यार फूलों से है खुशबू गुंजन से है संगीत तितिलियो से है रंग बिरंगे संसार हरितिमा से है उजियार शांति से है भाईचारा एकता बादलों से है दान पुण्य खगों से है निश्चल भाव कर्तव्य नदियों से है सदा आगे बढ़ाना तरु से है दें के बदले कुछ ना लेना यही जीवन का रहस्य है कर कर्म ना कर फल की भोग हो जो जग अंधियार लाओ तुम पुण्य प्रभा किरण फैले पल पल जन जन में हो एक नए समाज का उदय खिले हर्षोउलाष उमंग बने शांति प्रेम का प्रतीक सुधारस बहे जन जन में बस यही आशा है भारतभूमि में। परिचय :-  शत्रुहन सिंह कंवर निवासी :  चिसदा (जोंधरा) मस्तुरी घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख,...
मेहनत
कविता

मेहनत

शत्रुहन सिंह कंवर चिसदा (जोंधरा) मस्तुरी ******************** चल चलें करने को मेहनत खुन पसीना बहाकर करें मेहनत न करें भेदभाव न करें जलन द्वेष करें अपने दम पर मेहनत न झुकें किसी के आगे रोटी के लिए करें ज़मीर में तबाड़ तोड़ मेहनत पाए हीरा मोती सा अन्न ज़मीर पर तृप्त होकर करें मेहनत अपनें ज़मीर ही आय विआय हम हैं इस जहान का भगवान जो करें मिट्टी का दोहन और पाये हीरा मोती दुःख के पल गए मेहनत से सुख के पल आए मेहनत से गरीब से अमीर बने मेहनत से चल चलें करने को मेहनत खुन पसीना बहाकर करें मेहनत। परिचय :-  शत्रुहन सिंह कंवर निवासी :  चिसदा (जोंधरा) मस्तुरी घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं छायाचित्र क...