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Tag: शशि चन्दन “निर्झर”

कृष्ण-कर्ण संवाद
कविता

कृष्ण-कर्ण संवाद

शशि चन्दन "निर्झर" इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** चाहे तुम, केशव कवच कुण्डल उतार लो। कर्ण को मंजूर नहीं, कि प्राण उधार दो।। देकर वचन विचलित नहीं होते सुरमा... चलो कुरुक्षेत्र में, और सुन मेरी हुंकार लो। मित्रता निभाना सीखा है तुमसे माधव। अश्रु से पग धो तीन लोक वारे तुमने माधव।। धर्म क्या?? अधर्म क्या?? नर्क ही भला.... जाओ नहीं मानता कर्ण तुम्हारी सलाह।। रहेंगें माँ कुन्ती के, पुत्र पांच ही जीवित। कि शीश उसका रहेगा, सदा ही गर्वित।। पाषाण हुआ हृदय, उपहार में मिले आघातों से, प्रेम है अस्त्र-शस्त्रों से, रहा मोह नहीं श्वासों से।। तुम रचयिता जग के बड़े ही छलिया हो। देखो, जन्म से छला है अब न छलो....। जाओ पार्थ, तुम अर्जुन का रथ हांको, और निश्चिंत रहो, मुझ शुद्र पुत्र से न डरो।। कि हाहाकार तो होगा रण भूमि में। भस्म होगा इक निरपराध धुनि में।। वीर बलिदान...
हिंदी
कविता

हिंदी

शशि चन्दन "निर्झर" इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** भारत मां के माथे की बिंदिया है हिंदी। कलकल करती पावन सरिता है हिंदी। सूर की अमृत वाणी, कबीर की साखी है हिंदी, तुलसी की माला मीरा के पदों की झांकी है हिंदी।। उर्दू की प्रिय बहना, संस्कृत की बिटिया है हिंदी, वेद पुराणों में वर्णित गंगाजल की लुटिया है हिंदी।। हम सबका अभिमान, खुसरो ने गढ़ी है हिन्दी, काली ने मढ़ा जिससे वो, कौस्तुभ मणि है हिंदी।। सरल,सहज,सुरमयी, धवल वीणावादनि शारदा है हिंदी, मनका मनका रची अक्षय, ज्ञान की वर्णमाला है हिंदी।। धरा से नीलाभ तक, स्वच्छंद विचरती पवन है हिंदी , मधुकर सा सुशोभित, पुष्पित हराभरा उपवन है हिंदी।। चंदन सी महकती अमिट, राजभाषा, राष्ट्रभाषा है हिंदी, कि "शशि" सभी भाषाओं की एकमात्र परिभाषा है हिंदी।। परिचय :- इंदौर (मध्य प्रदेश) की निवासी अपने शब्दों की निर्झर बरखा...
मैं अक्सर भूल जाती हूँ
कविता

मैं अक्सर भूल जाती हूँ

शशि चन्दन "निर्झर" इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** हां मैं भूल जाती हूँ सच कहा तुमने, मैं अक्सर भूल जाती हूँ, अपमान के घूंट हर रोज़ पी जाती हूँ। पर याद रखती हूँ मिटाना सलवटें, और उधड़ने लगे जो कमीज़ … चुपचाप सी जाती हूँ।। हां मैं अक्सर भूल जाती हूँ अपनी पसन्द न पसन्द, उलझे से केश .... साज शृंगार और मुस्कान, पर याद रखती हूँ कहीं बिगड़े न तुम्हारा कोई भी जोड़ीदार जुराब । मैं अक्सर भूल जाती हूँ, सरल सी .... एक से दस तक की गिनती, पर बखूबी याद रहता, वो सत्रह का पहाड़ा ... जो बचपन में कभी याद न था। हां .... मैं ..... हां मैं अक्सर भूल जाती हूँ, व्याकरण के नियम ... मेरे लिए उपयोग हुए पशुवत संबोधन। पर याद रखती हूँ, अपने से छोटों के लिए भी, सम्मानजनक उद्वोधन।। हां मैं अक्सर भूल जाती हूँ इतिहास की बातें .... भूगोल की बातें पर याद रखती हूँ ...
एक वक्त के बाद
कविता

एक वक्त के बाद

शशि चन्दन "निर्झर" इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** किस्से-कहानी बदल जातें हैं एक वक्त के बाद। नन्हें-नन्हें पौधे वृक्ष हो जातें हैं एक वक्त के बाद। तमाम अरमान गुजरते तो हैं आंखों की गलियों से.. फिर मोती से कौरों पे ठहर जाते हैं, एक वक्त के बाद।। सुनो नया-नया सा एहसास पाकर, गैर भी क़रीब आ जाते, तासीर मुताबिक़ अपने पराए हो जाते हैं एक वक्त के बाद।। रहमत खुदा की, अमानत अपने वतन की सहेजे तो सही... पर जानें कैसे अहम के डंके बजने लगते, एक वक्त के बाद।। पंक में खिलते पंकजराज, रंग बिरंगे हाथों में जचती हिना लाल, कि राजा रंक फकीर सबकी, होती एक ही गति, एक वक्त बाद।। सुन "शशि" धरती अम्बर नाप ले जितना नाप सके, कि ये माटी की काया माटी हो जाती एक वक्त के बाद।। परिचय :- इंदौर (मध्य प्रदेश) की निवासी अपने शब्दों की निर्झर बरखा करने वाली शशि ...