शब्द
श्रीमती क्षिप्रा चतुर्वेदी
लखनऊ (उत्तर प्रदेश)
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१८ दिनों के संग्राम ने
द्रौपदी को ८० वर्ष का कर दिया !
द्रौपदी कृष्ण से
लिपट कर रो पड़ती हैं,
कृष्ण उनको ढाढस
नहीं बंधाते रोने देते हैं,
द्रौपदी का दिल डूब रहा है,
उसके दिल की व्यथा
आंसुओ में बह रही है।
बोल पड़ती हैं,
मैंने ये कदापि नहीं सोचा था,
केशव समझा रहे हैं,
नियति क्रूर भी होती है,
वो हमारे सोचने से नहीं चलती
हमारे शब्द भी
उसका निर्धारण करते हैं।
तुम्हारा प्रतिशोध तो पूर्ण हुआ
कौरवों का विध्वंस हुआ।।
द्रौपदी पूछ पड़ती है केशव से
क्या विनाश का कारण बनी मैं??
या विनाश लीला की उत्तर दाई हूँ??
नही हो इतनी महत्वपूर्ण तुम,
क्रूर बनी परिस्थितियां,
होती दूरदर्शी तुम जो
बदली होती स्थितियाँ,
नहीं पाती घोर कष्ट,
यातना और अपमान!!
क्यों मौन रही जब कुंती ने
तुम्हें पांच पतियों ...