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Tag: संजय वर्मा “दॄष्टि”

भ्रूण हत्या रोकें
कविता

भ्रूण हत्या रोकें

********** संजय वर्मा "दॄष्टि" मनावर (धार) होता था बिटियाँ से घर आँगन उजियारा मौत पंख लगा के आई कर गई सब जग अंधियारा मन ही मन बातें करते मन ढाँढस बंधाता ढूंढे कहाँ यादें उसकी कोई नही याद दिलाता लोग लिंग अनुपात बिगाड़ने मे लगे लड़की ढूंढने में वो दुनिया के चक्कर लगाने लगे क्रूर इंसान भ्रूण हत्या करने जब लगा रोकने हेतु कानून भी अब कुछ सोचने लगा बेटियों के न होने की बातें क्यों नही समझ पाते इसलिए तो भाइयो को हम हर घर में उदास पाते हक बेटी का भी होता क्यों करते भ्रूण हत्याए रोकेंगे मिलकर जब इसे तभी रोशन होगी रिश्तों की बगियाएं . परिचय :- नाम :- संजय वर्मा "दॄष्टि" पिता :- श्री शांतीलालजी वर्मा जन्म तिथि :- २ - मई -१९६२ (उज्जैन ) शिक्षा :- आय टी आय व्यवसाय :- ड़ी एम (जल संसाधन विभाग ) प्रकाशन :- देश - विदेश की विभिन्न पत्र - पत्रिकाओं में रचनाएँ व समाचार पत्रों में निरंतर पत्र और रचना...
रोटी
कविता

रोटी

********** संजय वर्मा "दॄष्टि" मनावर (धार) भूख में स्वाद जाने क्यों बढ़ जाता रोटी का झोली/कटोरदान से झांक रही रख रही रोटी भूखे खाली पेट में समाहित होने की त्वरित अभिलाषा ताकि प्रसाद के रूप में रोटी से तृप्त हो ऊपर वाले को कह सके धरा पर रहने वाला तेरा लख -लख शुक्रिया रोटी कैसी भी हो धर्मनिर्पेक्षता का प्रतिनिधित्व करती भाग -दौड़ भी रोटी के लिए करते फिर भी कटोरदान धरा पर रहने वालों को नेक  समझाइश देता कटोर दान में ऊपर-नीचे रखी रोटी मूक प्राणियों के लिए होती सदैव सुरक्षित दान के पक्ष के लिए रखी एक रोटी की हकदारी से भला उनका पेट कहाँ से भरता ? रोटी की चाहत रोटी को न मालूम रोटी न मिले तो भूखे इंसान की आँखें रोती यदि  रोटी मिल जाए ख़ुशी  के आंसू से वो गीली हो जाती बस इंसान को और क्या चाहिए ऊपर वाले से किन्तु रोटी की तलाश है अमर . परिचय :- नाम :- संजय वर्मा "दॄष्टि" पिता :- श्री शांतीलालजी वर्मा...
कहाँ खो गई गोधूलि
कविता

कहाँ खो गई गोधूलि

********** संजय वर्मा "दॄष्टि" शाम को उड़ती धूल में देखता आकाश की लालिमा सूरज की धुँधली छवि सूरज लेता शाम को सबसे अलविदा गाय के गले में बंधी घंटिया सूरज की करती हो शाम की आरती गोधूलि की धूल बन जाती गुलाल धरा से आकाश को कर देती गुलाबी नित्य ये पूजन चला करता वर्षा ऋतु  धूल और सूरज छिप जाते देव कर जाते शयन ये गाँव की कहानी शहरों में धूल कहाँ औऱ सूरज भी कहाँ सीमेंट की ऊंची बिल्डिंग सड़के डामर की कहाँ गाय के गले मे आरती की घँटी गोधूलि का महत्व गाँव मे होता शहरों में तो काऊ महज पढ़ाया जाता गाँव प्रकृति से सजा इसलिए तो सुंदर है सोचता हूँ गॉव जाकर प्रकृती को पुनःपहचानू। परिचय :- नाम :- संजय वर्मा "दॄष्टि" पिता :- श्री शांतीलालजी वर्मा जन्म तिथि :- २ - मई -१९६२ (उज्जैन ) शिक्षा :- आय टी आय व्यवसाय :- ड़ी एम (जल संसाधन विभाग ) प्रकाशन :- देश - विदेश की विभिन्न पत्र - पत्रिकाओं मे...
रिश्तों की राह
कविता

रिश्तों की राह

********** संजय वर्मा "दॄष्टि" जिंदगी की राह कुछ ऐसी ही होती जब बेटी का विवाह हो नजदीक पिता की आँखे डबडबाई  रहती मानों आसुंओं का बाँध टूट रहा हो बचपन से पाला पोसा वो अब घर छोड़ कर जाना होता है ये नियम तो है ही किंतु त्यौहार और घर का सूनापन भर जाता आँसू बेटी के न होने पर परिवार का भूख उड़ जाती बहुत कठिन रिश्ता होता है मध्यांतर का पिता ही इस बात को समझता है फिक्र अपनी जगह सही मगर बिछोह उसकी नींद उडाता ख्वाब तो रास्ता ही भूल जाते दिल का टुकडा उस समय जिसकी कीमत नहीं वो बिछड़ जाता है ये विरहता कुछ सालों तक ही अपना अभिनय निभाती फिर भी बेटी तो बेटी है पिता की याद उसे और पिता को बिटियाँ की फिक्र सताती पिता के बीमार होने पर बेटी ही संदेशा देकर हाल पूछती फिर झूटी आवाज दोहराती मै ठीक हूँ तुम अपना ख्याल रखना ये संवेदना बूढ़े होने तक चलती है मायका मायका होता स्वतंत्र तितल...
बरसों बाद  बरसी खुशियाँ
कविता

बरसों बाद बरसी खुशियाँ

संजय वर्मा "दॄष्टि" मनावर जिला धार (मध्य प्रदेश) ******************** बरसों बाद  बरसी खुशियाँ कश्मीर के आँगन में केशर की क्यारियों में मधुप मधुर राग सुनाए कश्मीर के आँगन में ह्रदय में चुभते थे कभी भय के शूल वीरान पथ पे रोती थी बर्फीली वादियां कश्मीर के आँगन में सत्तर वर्षो से झांकते मासूम चेहरे सूनी पड़ी झीलों में कश्मीर के आँगन में अविरल बहते आँसू पलायन की गाथा सुनाते थे कभी कश्मीर के आँगन में नई इबारत लिखी सुनहरे सपने हुए साकार खिलखिलाने लगी दूब अब कश्मीर के आँगन में जन्नत महकी केशर सी स्वप्न हुए साकार कश्मीर के आँगन में संजय वर्मा "दृष्टि"   परिचय :- नाम :- संजय वर्मा "दॄष्टि" पिता :- श्री शांतीलालजी वर्मा जन्म तिथि :- २ - मई -१९६२ (उज्जैन ) शिक्षा :- आय टी आय व्यवसाय :- ड़ी एम (जल संसाधन विभाग ) प्रकाशन :- देश - विदेश की विभिन्न पत्र - ...
हिंदी भाषा पर गर्व है
आलेख

हिंदी भाषा पर गर्व है

============================= रचयिता : संजय वर्मा "दॄष्टि" हिंदी में वैज्ञानिक भाषा समाहित है। अंग्रेजी भाषा ये खूबी देखने को नही मिलती। कंठ से निकलने वाले शब्द, तालू से, जीभ से जब जीभ तालू से लगती, जीभ के मूर्धा से, जीभ के दांतों से लगने पर, होठों के मिलने पर निकलने वाले शब्द। इन निकलने वाले शब्द इसी प्रक्रिया से निकलते है। इसी कारण हमें अपनी भाषा पर गर्व है। वर्तमान में अंग्रेजी शब्दों को हिंदी में से निकालना यानि बड़ा ही दुष्कर कार्य है। सुधार का पक्ष देखे तो हिंदी व्याकरण और वर्तनी का भी बुरा हाल है। कोई कैसे भी लिखे , कौन सुधार करना चाहता है ? भाग दौड़ की दुनिया में शायद बहुत कम लोग ही होंगे जो इस और ध्यान देते होंगे। जाग्रति लाने की आवश्यकता है। जैसे कोई लिखता है कि "लड़की ससुराल में "सूखी "है। सही तो ये है की लड़की ससुराल में "सुखी "है। ऐसे बहुत से उदाहरण मिल जाएंगे। बच्चों को अपनी सृ...
चीखें
कविता

चीखें

============================= रचयिता : संजय वर्मा "दॄष्टि" सड़कों पर पड़े गड्डों को देखकर लगता मानों धरा की त्वचा पर  रिस रहा हो घावों से खून गड्डों में गिर जाते है कई इंसान फिर सन जाती सड़कें खून से और बन जाती ख़बरें हमेशा की तरह सुर्ख़ियों में सड़क अपने घाव ठीक करने का किस्से कहे ? वो इसलिए इंसानों को गिराती है गड्डों में ताकि इंसान अपने घाव को ठीक करने के साथ दिल से निकली बददुवाएं जो होती नहीं सड़कों के लिए होती है जिनका नाम होता है अनाम जो बेसुध पड़ा है कानों में रुई ठोंसें ताकि गिरते पड़ते लोगों की चीखें उन्हें सुनाई न दे   परिचय :- नाम :- संजय वर्मा "दॄष्टि" पिता :- श्री शांतीलालजी वर्मा जन्म तिथि :- २ - मई -१९६२ (उज्जैन ) शिक्षा :- आय टी आय व्यवसाय :- ड़ी एम (जल संसाधन विभाग ) प्रकाशन :- देश - विदेश की विभिन्न पत्र - पत्रिकाओं में रचनाएँ व समाचार पत्रों में निरंतर पत्र और रचनाओं क...
बिटियाएँ ओझल
कविता

बिटियाएँ ओझल

============================= रचयिता : संजय वर्मा "दॄष्टि" एक तारा टुटा आँसमा से धरती पर आते ही हो गया ओझल ये वेसा ही लगा जैसे गर्भ से संसार में आने के पहले हो जाती है बिटियाँ ओझल । तारा स्वत:टूटता इसमे किसी का दोष नहीं मगर गर्भ में कन्या भ्रूण तोड़ने पर इन्सान होता ही है दोषी । चाँद -तारों का कहना है कि भ्रूण हत्या होगी जब बंद तो बिटियाएँ भी धरती पर से हमें निहार पायेगी चाँद -तारों सा नाम पाकर संग जग को भी रोशन कर पायेगी । आकाश से टुटाता आया  तारा लाया था एक संदेशा - भ्रूण हत्या रोकने का उससे नहीं देखी गई ऊपर से ये क्रूरता । वो अपने साथी तारों को भी ये कह कर आया- तुम भी टूट कर  एक -एक करके मेरी तरह भ्रूण हत्या रोकने का संदेशा लेते आओ । कब तक नहीं रोकेगें क्रूर इन्सान भ्रूण हत्याए संदेशा पहुँचे या न पहुँचे पर रोकने हेतु ये हमारा आत्मदाह है ...
रूहें भटकती
कविता

रूहें भटकती

=============================================== रचयिता : संजय वर्मा "दॄष्टि" प्यार के हंसीं पल समय के साथ खिसक जाते जैसे रेत  मुठ्ठी से खिसकती निशा विस्मित नजरों  से देखते वो स्थान जो अब अपनी पहचान खो चुके दरख़्त उग आए इमारते  ऊँची हो गई खिड़कियां चिड़ा रही सड़कें हो गई  भूल भुलैया प्रेम- पत्र के कबूतर मर चुके आँखों से ख्वाब का पर्दा उम्र के मध्यांतर पर गिर गया कुछ गीत बचे वो जब भी  बजे दिलों के तार छेड़ गए प्यार के हंसी पल वापस रेत मुठ्ठी में भर गए दिल से ख्वाब हटते नहीं शायद रूहें भटकती इसलिए क्योंकि उन्होंने कभी प्यार का खुमार लिपटा  हो परिचय :- नाम :- संजय वर्मा "दॄष्टि" पिता :- श्री शांतीलालजी वर्मा जन्म तिथि :- २ - मई -१९६२ (उज्जैन ) शिक्षा :- आय टी आय व्यवसाय :- ड़ी एम (जल संसाधन विभाग ) प्रकाशन :- देश - विदेश की विभिन्न पत्र - पत्रिकाओं में रचनाएँ व समाचा...
मददगार
कविता

मददगार

=============================================== रचयिता : संजय वर्मा "दॄष्टि" अस्वस्थता में पहचान होती ईश्वर और इंसान की कौन था मददगार श्मशान के क्षणिक वैराग्य ज्ञान की तरह भूल जाता इंसान मदद के अहसान को फर्ज के धुएँ में सांसे थमी आँखे पथराई रतजगा से आँखों में सूजन अपनों की राह निहारती आँखे झपक पड़ती हुई निढाल सी आवश्यकता का भान मन  बेभान भरोसे का  वजन करने की चाह में ईश्वर और इंसान बन जाते तराजू के पलवे गुहार का कांटा झुकता है किस और किसी को पता नहीं किंतु एक विश्वास थमी सांसों के लिए जो मांग रहा  दुआएँ पीड़ित  की सांसे चलने अपनों की आबो हवा में फिर से साथ जीने का नए  जीवन का अहसास एक आस के साथ खोजता मददगारों को वो ईश्वर हो या इंसान परिचय :- नाम :- संजय वर्मा "दॄष्टि" पिता :- श्री शांतीलालजी वर्मा जन्म तिथि :- २ - मई -१९६२ (उज्जैन ) शिक्षा :- आय टी आय व्य...
अमर
कविता

अमर

रचयिता : संजय वर्मा "दॄष्टि" वृक्ष के तले  चौपाल जहाँ बैठकर पायल की रुनझुन बहक जाता था दिल दिल जवां हो जाता था इश्क आज उसी वृक्ष तले चौपाल पर इश्क खोजते विकास के नए आयाम में खुद चुकी चौपाल वृक्ष नदारद धुंधलाई आँखों से घूम हुए का पता पूछते लोग कहते क्या पता? समय बदला घूम हुई पायल की रुनझुन इश्क हुआ घूम पास की टाल में लकड़ी का ढेर कटे  पेड़ की लकड़ी गूंगी हुई लकड़ी निहार रही लकड़ी के टाल से मौत आई उसी इश्क की लकड़ी से जलाया मुझे रूह तृप्त हुई हुआ स्वर्ग नसीब इश्क ऐसे हुआ अमर परिचय :- नाम :- संजय वर्मा "दॄष्टि" पिता :- श्री शांतीलालजी वर्मा जन्म तिथि :- २ - मई -१९६२ (उज्जैन ) शिक्षा :- आय टी आय व्यवसाय :- ड़ी एम (जल संसाधन विभाग ) प्रकाशन :- देश - विदेश की विभिन्न पत्र - पत्रिकाओं में रचनाएँ व समाचार पत्रों में निरंतर पत्र और रचनाओं का प्रकाशन, प्रकाशित काव्य कृति...
गरज तो है
कविता

गरज तो है

रचयिता : संजय वर्मा "दॄष्टि"   गरज तो है  वृक्षो के आसरे की  सौतन गर्मी धरती माँगे  बादलों से उधार  अमृत पानी नदी के पत्थर  तन ढाँकते जल पड़ा हो सूखा बहाती नदी  प्रदूषण को जब  पड़ा हो झोली क्रोधित नदी  ना सहन करती दूषित जल वेग के शस्त्र  बाढ़ के आगोश में  लाशों के ढ़ेर   परिचय :- नाम :- संजय वर्मा "दॄष्टि" पिता :- श्री शांतीलालजी वर्मा जन्म तिथि :- २ - मई -१९६२ (उज्जैन ) शिक्षा :- आय टी आय व्यवसाय :- ड़ी एम (जल संसाधन विभाग ) प्रकाशन :- देश - विदेश की विभिन्न पत्र - पत्रिकाओं में रचनाएँ व समाचार पत्रों में निरंतर पत्र और रचनाओं का प्रकाशन, प्रकाशित काव्य कृति "दरवाजे पर दस्तक ", खट्टे मीठे रिश्ते उपन्यास कनाडा -अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर विश्व के ६५ रचनाकारों में लेखनीयता में सहभागिता भारत की और से सम्मान - २०१५ , अनेक साहित्यिक संस्थाओं से सम्...
बाबुल का घर
कविता

बाबुल का घर

रचयिता : संजय वर्मा "दॄष्टि" ======================== निहारती रहती हूँ बाबुल का घर कितना प्यारा है मेरा बाबुल का घर आँगन ,सखी,गलियों के सहारे बाबुल का घर लोरी, गीत ,कहानियों से भरा बाबुल का घर | बज रही शहनाई रो रहा था बाबुल का घर रिश्तों के आंसू बता रहे ये था बाबुल का घर छूटा जा रहा था जेसे मुझसे बाबुल का घर लगने लगा जेसे मध्यांतर था बाबुल का घर | बाबुल से जिद्दी फरमाइशे करती थी बाबुल के घर हिचकियों का संकेत अब याद दिलाता बाबुल का घर सब आशियानों से कितना प्यारा मेरा बाबुल का घर रित की तरह तो जाना है एक दिन, छोड़ बाबुल का घर | परिचय :- नाम :- संजय वर्मा "दॄष्टि" पिता :- श्री शांतीलालजी वर्मा जन्म तिथि :- २ मई १९६२ (उज्जैन ) शिक्षा :- आय टी आय व्यवसाय :- ड़ी एम (जल संसाधन विभाग ) प्रकाशन :- देश - विदेश की विभिन्न पत्र - पत्रिकाओं में रचनाएँ व समाचार...
गीतों चलन होता अमर 
आलेख

गीतों चलन होता अमर 

रचयिता : संजय वर्मा "दॄष्टि" ===================== गीत  की कल्पना, राग, संगीत के साथ गायन  की मधुरता  कानो  में मिश्री घोलती साथ ही साथ मन को प्रभावित भी करती है। गीतों का इतिहास भी काफी पुराना है। रागों के जरिए दीप का जलना, मेघ का बरसना आदि किवदंतियां प्रचलित रही है, वही गीतों  की राग, संगीत  जरिए  घराने भी बने है। गीतों का चलन तो आज भी बरक़रार है जिसके बिना फिल्में अधूरी सी लगती है। टी वी, रेडियों, सीडी, मोबाइल आइपॉड आदि अधूरे ही है। पहले गावं की चौपाल पर कंधे पर रेडियो टांगे लोग घूमते थे। घरों में महत्वपूर्ण स्थान होता का दर्जा प्राप्त था। कुछ घरों में टेबल पर या घर के आलीए में कपड़ा बिछाकर उस पर रेडियों फिर रेडियों के ऊपर भी कपड़ा ढकते थे जिस पर कशीदाकारी भी रहती थी। बिनाका -सिबाका गीत माला के श्रोता लोग दीवाने थे। रेडियों पर फरमाइश गीतों की दीवानगी होती जिससे कई प्रेमी - प्रे...
दबी आवाजे
कविता

दबी आवाजे

रचयिता : संजय वर्मा "दॄष्टि" कौन उठाए आवाज समस्याओं के दलदल  भरे हर जगह रोटी कपडा मकान का पुराना रोना रोने के गीत वर्षो से गा रहे गुहार की राग में भूखे रहकर उपवास की उपमा ऊपर वाला भी देखता तमाशे दुनिया की जध्धो जहद जो उलझी मकड़ी के जाले में फंसी ऐसे जीव की हालत जिसे निचे वाला भले ही पद बड़ा हो सुलझा न सका वो ऊपर वाले से वेदना के स्वर की अर्जी प्रार्थना के रूप में देता आया अपने आराध्य को धरा पर कौन सुने गुहार जैसे श्मशान में मुर्दे को ले जाकर उसकी गाथाएं भी श्मशान के दायरे में हो जाती सिमित भूल जाते इंसानी काया की तरह हर समस्या का निदान करना परिचय :- नाम :- संजय वर्मा "दॄष्टि" पिता :- श्री शांतीलालजी वर्मा जन्म तिथि :- 2-5-1962 (उज्जैन ) शिक्षा :- आय टी आय व्यवसाय :- ड़ी एम (जल संसाधन विभाग ) प्रकाशन :- देश - विदेश की विभिन्न पत्र - पत्रिकाओं में रचनाएँ व ...