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Tag: सोनल सिंह “सोनू”

संघर्ष से सफलता पाएगा
कविता

संघर्ष से सफलता पाएगा

सोनल सिंह "सोनू" कोलिहापुरी दुर्ग (छतीसगढ़) ******************** मंजिल का क्यों नहीं ध्यान तुझे, कैसे हो जाती है, थकान तुझे, खुद की नहीं है, पहचान तुझे, समय का क्यों नहीं, भान तुझे? पथ से कैसे, भटक गया है तू? बाधाओं में कैसे, अटक गया है तू? झूठी तकरारों में लटक गया है तू, अगर-मगर में सिमट गया है तू। तोड़ दीवारें आगे बढ़ने की ठान, अपनी ऊर्जा को पहचान, ग्रहण कर,हो सके जितना ज्ञान, सबको हो तुझ पर अभिमान, बड़ी सोच का जादू चला, दुनिया मुट्ठी में कर दिखा। काम में अपने जुटा रह , प्रगति के पथ पर डटा रह। संघर्षों से मंजिल पाएगा, दुनिया में नाम कमाएगा। औरों को राह दिखाएगा, जीवन सफल हो जाएगा। परिचय - सोनल सिंह "सोनू" निवासी : कोलिहापुरी दुर्ग (छतीसगढ़) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप ...
वसन्त जब आये
कविता

वसन्त जब आये

सोनल सिंह "सोनू" कोलिहापुरी दुर्ग (छतीसगढ़) ******************** आम्र वृक्ष पर बौर आए, पलास खिलकर मुस्कुराए, कोयल मीठे तराने गाये, वसन्त आये, वसन्त आये। अमलताश मन को है भाये, पतझड़ से क्यों घबराए, परिवर्तन का उत्सव मनाये, वसन्त आये, वसन्त आये। शीत ऋतु लौट के जाये, खुशनुमा मौसम हो जाये, झरबेरी के बेर ललचाये, वसन्त आये, वसन्त आये। विविधरंगी पुष्प खिले, पीतवर्णी सरसों फूले, सुरभित सी पवन बहे, वसन्त आये ये कहे । वसन्त ऋतुराज कहाये, शोभा इसकी बरनी न जाये, उर में है आनंद समाये, वसन्त आये, वसन्त आये। परिचय - सोनल सिंह "सोनू" निवासी : कोलिहापुरी दुर्ग (छतीसगढ़) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं छायाचित्र...
अधूरी ख्वाहिशें
कविता

अधूरी ख्वाहिशें

सोनल सिंह "सोनू" कोलिहापुरी दुर्ग (छतीसगढ़) ******************** हर दिल में पलें ख्वाहिशें कई, कुछ कही, कुछ अनकही सी, कुछ उजागर, कुछ राज़ सी, कुछ पूरी, कुछ अधूरी सी। कुछ बन पाती है हकीकत, कुछ दबी रह जाती है मन में, कुछ को मिल पाती है मंजिल, कुछ भटक जाती है सफर में। अधूरी ख्वाहिशें तोड़ देती है, जीवन का रुख मोड़ देती है, शांत मन को झकझोर देती है, अनजानों से नाते जोड़ देती है। हर ख्वाहिश पूरी हो, जरुरी तो नहीं, तेरे रुक जाने से, थमती दुनिया नहीं, टूटे इक सपना गर, नया सपना बुन, इक रही अधूरी तो क्या, नई ख़्वाहिश चुन। पूरा करने ख़्वाहिश, जी जान लगा दे, कर प्रयास, पूरा ध्यान लगा दे, फिर भी रहे यदि, ख़्वाहिश अधूरी, समझ प्रयासों में रह गई कुछ कमी। परिचय - सोनल सिंह "सोनू" निवासी : कोलिहापुरी दुर्ग (छतीसगढ़) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्ष...
मेरा गाँव
कविता

मेरा गाँव

सोनल सिंह "सोनू" कोलिहापुरी दुर्ग (छतीसगढ़) ******************** बड़ा प्यारा था मेरा गाँव, आँगन में थी पीपल छाँव। जहाँ चलते हम पाँव -पाँव, रुकने के थे अनेको ठाँव। संगी, संगवारी बचपन के साथी, खेल-खिलौने, कबरी गाय। इन संग खेले बड़े हुए हम, पीते कुएँ का मीठा पानी। दादी-नानी की कहानी, याद हमें रहती थी जुबानी। दादा जी की मीठी बानी, आसान बनाती थी जिंदगानी। भोर की सुनहरी लाली, हरी चादर ओढ़े धरती मतवाली। फसलों का खेतों में लहराना, धूम-धाम से हर त्यौहार मनाना। पंछी को दाने खिलाना, मीलों पैदल चलते जाना। साथियों संग धूम मचाना, बफिक्री में वक्त बीताना। एक दूजे का हाथ बँटाना, संग-संग रोना मुस्कुराना। हर किसी से रिश्ता जुड़ जाना, मिलकर गीत खुशी के गाना। रोजी रोटी के चक्कर में, छूट गया अब गाँव हमारा। शेष रहा अब यही फसाना, होगा मेरा कब लौट के जाना। परिचय - सोनल ...
आओ हिन्दी अपनाए
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आओ हिन्दी अपनाए

सोनल सिंह "सोनू" कोलिहापुरी दुर्ग (छतीसगढ़) ******************** माँ भारती के माथे की बिन्दी, ऐसी भाषा हमारी हिन्दी। सरस, सरल और प्राचीन, प्रमुख भाषाओं में नामचीन। संस्कृति संस्कारों को देती मान, हिन्दी भाषा हमारा अभिमान। परिपूर्णता की परिभाषा है, उज्जवल भविष्य की आशा है। हिन्दी सचमुच खास है, विदेशियों को भी इसका एहसास है। हिन्दी को मिली नई पहचान है, "नमस्ते भारत "कहना हमारी शान है। इससे झलकता है अपनापन, सहज बनाती है ये जीवन । काम काज में इसे अपनाए, हिन्दी का हम मान बढ़ाए। परिचय - सोनल सिंह "सोनू" निवासी : कोलिहापुरी दुर्ग (छतीसगढ़) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं छायाचित्र के साथ प्रकाशित करवा सकते ...
बुरा क्या है …?
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बुरा क्या है …?

सोनल सिंह "सोनू" कोलिहापुरी दुर्ग (छतीसगढ़) ******************** बंदिशों का पिंजरा तोड़, उड़ जाने को जी चाहे। तो बुरा क्या है? अपने लिए कुछ वक्त, चुराने को जी चाहे, तो बुरा क्या है? समझदारियों की बातें छोड़, नादानियाँ करने को जी चाहे, तो बुरा क्या है? छोड़ बनावटी हँसी, रूठ जाने को जी चाहे, तो बुरा क्या है? न सुन जमाने की, मनमानी कर जाने को जी चाहे, तो बुरा क्या है? सपनों को सच करने, जी जान लगाने को जी चाहे, तो बुरा क्या है? जी हुजूरी छोड़, करने को बगावत जी चाहे, तो बुरा क्या है? अन्याय होता देख, आवाज उठाने को जी चाहे, तो बुरा क्या है? भीड़ से अलग, पहचान बनाने को जी चाहे, तो बुरा क्या है? हक के लिए, लड़ भिड़ जाने को जी चाहे, तो बुरा क्या है? दिखावे को छोड़, असलियत अपनाने को जी चाहे, तो बुरा क्या है? परिचय - सोनल सिंह "सोनू" निवासी : ...
हँसते जख्म
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हँसते जख्म

सोनल सिंह "सोनू" कोलिहापुरी दुर्ग (छतीसगढ़) ******************** मन के जख्मों पे मरहम कौन लगाए, हर शख्स जख्मों को बस कुरेदना चाहे। जख्मों की नुमाइशें बेकार हैं, छल कपट का फैला कारोबार है। अपनों ने जो दिए वो जख्म गहरे हैं, ख्वाहिशों पर लगाये सबने पहरे हैं। दर्द के पीछे छिपे बेनकाब चहरे हैं, दर्द मिला बेहिसाब, घाव गहरे हैं। अपनों की बेरूखी बड़ा दुख पहुँचाती है, पर इससे ज़िंदगी थम तो नहीं जाती है। दूना उत्साह बटोरना होता है, कुछ भी हो काम पर लौटना होता है। हमदर्द मिले न मिले, खुद को समझाना होगा, हर जख्म सहकर, मुस्कुराना होगा। आज मिली हो मात कल जीतकर दिखलाना होगा। कोई साथ दे न दे, हमें चलते जाना होगा। परिचय - सोनल सिंह "सोनू" निवासी : कोलिहापुरी दुर्ग (छतीसगढ़) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलि...
पतझड़ मानवता का
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पतझड़ मानवता का

सोनल सिंह "सोनू" कोलिहापुरी दुर्ग (छतीसगढ़) ******************** पेड़ों से छूटा पत्तों का साथ, दिल में बाकी रहे न जज्बात। कोई नहीं बढ़ाता मदद का हाथ, लोग बदल जाते हैं अकस्मात्। ये है नैतिकता के पतझड़ की शुरुआत। कोई समझता नहीं किसी की बात, आपस में टकराने लगे ख्यालात। उजालों को निगलने लगी स्याह रात, बद् से बद्तर हो रहे हालात्। ये है मानवता के पतझड़ की शुरुआत। तरक्की पर अपनों की हृदय में साँप लोट जाता है, ईर्ष्या द्वेष के गर्त में मानव डूब जाता है। अपना कहकर लोगों को छला जाता है, शराफत का लबादा ओढ़े हैवान नजर आता है। अपनत्व का ये पतझड़ थम नहीं पाता है। प्रकृति का पतझड़, मधुमास में बदल जाता है। नई कोपलें आती हैं, पलास भी मुस्काता है। गुलमोहर भी खिलने को आतुर हो जाता है। किन्तु इंसान इंसानियत से दूर ही रह जाता है। मानवीय मूल्यों का ये पतझड़ थम नहीं पाता है। परिचय -...
वादियाँ बुला रही है
कविता

वादियाँ बुला रही है

सोनल सिंह "सोनू" कोलिहापुरी दुर्ग (छतीसगढ़) ******************** शहरी चकाचौंध से दूर, कोलाहल से इतर, सुकूं से गुजारने दो पल, ये वादियाँ बुला रही हैं। पक्षियों का कलरव, नदियों की कल-कल, प्रकृति का संगीत सुनाने, ये वादियाँ बुला रही हैं। फूलों से सजी ये घाटियाँ, बर्फीली ये चोटियाँ, इन्हें जी भर निहारने, ये वादियाँ बुला रही हैं। पर्वतों की सर्पिल डगर, झरनों की ये झर-झर, नजारों को मन में बसाने, ये वादियाँ बुला रही हैं। चारों ओर बिखरी हरियाली, उगते सूरज की लाली, उर में भरने आनंद समंदर, ये वादियाँ बुला रही हैं। परिचय - सोनल सिंह "सोनू" निवासी : कोलिहापुरी दुर्ग (छतीसगढ़) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय एव...
काश! मैं भी स्कूल जा पाती…
कविता

काश! मैं भी स्कूल जा पाती…

सोनल सिंह "सोनू" कोलिहापुरी दुर्ग (छतीसगढ़) ******************** स्कूल जाते हम उम्र बच्चों को, अपलक निहारती बर्तन माँजती मुनिया, मन ही मन ये सोचे, काश! मैं भी स्कूल जा पाती ... होते जो मेरे अम्मा-बाबा, न होती आज ये लाचारी। मैं भी जा पाती स्कूल, लिए किताबें पहने ड्रेस प्यारी। रोज नया कुछ सीख जाती, सखियों से भी मिल पाती। मन लगाकर मैं पढ़ती, आगे-आगे मैं बढ़ती। पढ़-लिखकर कुछ बन जाती, जीवन बेहतर कर पाती। मिलता जो मुझको मौका, अंबर को भी छू जाती। काश! मैं भी स्कूल जा पाती... परिचय - सोनल सिंह "सोनू" निवासी : कोलिहापुरी दुर्ग (छतीसगढ़) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं छायाचित्र के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं,...
बस इतनी सी चाह
कविता

बस इतनी सी चाह

सोनल सिंह "सोनू" कोलिहापुरी दुर्ग (छतीसगढ़) ******************** बस इतनी सी चाह, चल सकूं नेकी की राह। ईमानदारी से हो जीवन निर्वाह, लूं न किसी बेबस की आह। अच्छाइयों को लूं मैं अपना, बुराइयों का करूं मैं दाह। प्रेम का हो मन में प्रवाह, घृणा को दूं मैं जला। ईश्वर की बनी रहे कृपा, सत्य की राह चलूं सदा। जीवन में बना रहे उत्साह, परपीड़ा में उठूं मैं कराह। बेईमानी की पड़े न मुझ पर छाँह, काबिलियत पर कर सकूं मैं वाह। गुणों को सभी के सकूं मैं सराह, अपनों की कर सकूं मैं परवाह। मिलती रहे सज्जनों की सलाह, दुर्जनों से मैं दूर ही भला। बस इतनी सी चाह। परिचय - सोनल सिंह "सोनू" निवासी : कोलिहापुरी दुर्ग (छतीसगढ़) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्...
बचपन सुहाना
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बचपन सुहाना

सोनल सिंह "सोनू" कोलिहापुरी दुर्ग (छतीसगढ़) ******************** बीता हुआ वो गुजरा जमाना, दिल चाहे वहाँ लौटकर जाना। होता था जहाँ नित नया फसाना, याद आता है वो बचपन सुहाना। बगीचे से अमरूद चुराना, कागज की कश्ती तैराना। दोस्ती के लिए हद से गुजर जाना, याद आता है वो बचपन सुहाना। बेफिक्री का वो अफसाना, गूंजता हुआ खूबसूरत तराना। नासमझी में कुछ भी कर जाना, याद आता है वो बचपन सुहाना। माँ का लाड लडाना, पापा की डाँट से बचाना। दोस्तों संग मौज मनाना, याद आता है बचपन सुहाना। परिचय - सोनल सिंह "सोनू" निवासी : कोलिहापुरी दुर्ग (छतीसगढ़) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं छायाचित्र के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, राष्ट्री...
अमर रहेंगे सरदार पटेल
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अमर रहेंगे सरदार पटेल

सोनल सिंह "सोनू" कोलिहापुरी दुर्ग (छतीसगढ़) ******************** धन्य हुई धरा गर्वित हुआ नभ, ३१ अक्टूबर पटेल अवतरित हुए जब। माँ भारती के लाल ने किया वो कमाल, आजादी का आंदोलन, बढ़कर लिया सम्हाल। खेड़ा सत्याग्रह या असहयोग आंदोलन, सरदार उपाधि पायी, बारदोली अगुवा बन। फौलादों से मजबूत इरादे, लौहपुरूष कहाये, बापू जी का साथ दिया, देश आजाद कराये। स्वतंत्र भारत में गृहमंत्री का पद पाया, सारी जिम्मेदारियों को बखूबी निभाया। बांधा देश को एकता की डोर से, अमर रहेंगे पटेल आवाज आती है चहुँओर से। सबसे ऊँची मूरत आपकी देश का मान बढ़ाती है, हर भारतवासी का आपके प्रति सम्मान दर्शाती है। जन्मदिन आपका, एकता दिवस के रूप में मनाएँ, हम कृतज्ञ देशवासी आपको श्रद्धा सुमन चढ़ाएँ। परिचय - सोनल सिंह "सोनू" निवासी : कोलिहापुरी दुर्ग (छतीसगढ़) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित क...
माँ तुम ही मेरा आधार
कविता

माँ तुम ही मेरा आधार

सोनल सिंह "सोनू" कोलिहापुरी दुर्ग (छतीसगढ़) ******************** माँ जगदम्बे के चरणों में, शीश झुकाये ये जग सारा। आदिशक्ति माता भवानी, भक्त लगाये जय जयकारा। तुम हो बड़ी कृपालु माता, याचक की सुनती हो पुकार। झोली सबकी तुम भर देती, आता है जो तुम्हरे द्वार। तेरा रूप है जग से निराला, नयनों को लगता है प्यारा। तुम मेरा एकमात्र सहारा, तुम बिन मेरा कौन आधारा। संकट से माँ तू ही उबारे, जीवन नैया तेरे हवाले। शरणागत हम आये माता, हे! जगजननी भाग्य विधाता। परिचय - सोनल सिंह "सोनू" निवासी : कोलिहापुरी दुर्ग (छतीसगढ़) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं छायाचित्र के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच प...
हम तुमको न भूल पायेंगे
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हम तुमको न भूल पायेंगे

सोनल सिंह "सोनू" कोलिहापुरी दुर्ग (छतीसगढ़) ******************** राजू जी, आपने हमें हँसाया, आपकी बातों ने गुदगुदाया। हमारे मन को भी बहलाया, काॅमेडी किंग का तमगा पाया। समाज को नया रास्ता दिखाया, कॉमेडी में भी कैरियर है ये समझाया। युवाओं ने आपको मिशाल बनाया, बन काॅमेडियन जग को हँसाया। विधाता ने ये कहर क्यों बरपाया? हँसाने वाले ने है आज रुलाया। अब ये कैसा मौन है छाया, सब ईश्वर की है माया। अब यादें ही आपकी शेष रह जायेंगी, दुनिया आपको कभी भूल नहीं पाएगी। आपके किरदार आपको अमर बनायेंगे, बनके सितारा आप सदा झिलमिलायेंगे। परिचय - सोनल सिंह "सोनू" निवासी : कोलिहापुरी दुर्ग (छतीसगढ़) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय ...
सब पढ़े, सब बढ़े
कविता

सब पढ़े, सब बढ़े

सोनल सिंह "सोनू" कोलिहापुरी दुर्ग (छतीसगढ़) ******************** अज्ञानता के तिमिर में, ज्ञान का प्रकाश हो। दूर हो निरक्षरता, साक्षरता का आभास हो। साक्षरता हमें जगाती है, शोषण से भी बचाती है। देश को आगे बढा़ती है, जीवन सफल बनाती है। जन जन तक पहुँचे शिक्षा, आज ये संकल्प करें। शिक्षा का कोई विकल्प नहीं, इसे पाने का प्रण करें। सब पढ़े सब बढ़े, स्वप्न ये साकार हो। साक्षर बने सारा समाज, आओ इसका करें आगाज। परिचय - सोनल सिंह "सोनू" निवासी : कोलिहापुरी दुर्ग (छतीसगढ़) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं छायाचित्र के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि प्रकाश...
शिक्षक
कविता

शिक्षक

सोनल सिंह "सोनू" कोलिहापुरी दुर्ग (छतीसगढ़) ******************** शिक्षक, जो हौसला बढ़ाये, शिक्षक, जो सही राह दिखाये, शिक्षक, जो हिम्मत न हारे, शिक्षक, जो धैर्यवान हो, शिक्षक, जो ऊर्जावान हो, शिक्षक, जो क्षमाशील हो, शिक्षक, जो रचनात्मक सोच रखे, शिक्षक, जो निरंतर सीखता जाये, शिक्षक, जो बच्चों को समझे, शिक्षक, जो बच्चों की सुने, शिक्षक, जो प्रोत्साहित करे, शिक्षक, जो खुशियाँ बाँटे, शिक्षक, जो सपने देखना सिखाये, शिक्षक, जो सपने पूरा करना सिखाये, शिक्षक, जो जीवन जीने की कला सिखाये, शिक्षक, जो बच्चों के साथ बच्चा हो जाए, शिक्षक, जो बच्चों के मन में उतर जाये, शिक्षक, जिसे हर बच्चा चाहे। परिचय - सोनल सिंह "सोनू" निवासी : कोलिहापुरी दुर्ग (छतीसगढ़) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कवित...
गणपति वंदना
कविता

गणपति वंदना

सोनल सिंह "सोनू" कोलिहापुरी दुर्ग (छतीसगढ़) ******************** भादो मास तिथि चतुर्थी, प्रभु विराजते पृथ्वी पर। भक्तजन उनकी सेवा करें, विनायक सबके कष्ट हरें। बुद्धि ज्ञान के तुम हो दाता, प्रथम पूज्य देवेश्वरा। मेरी तुमसे याचना, विघ्न हरो विघ्नेश्वरा। महादेव के तुम हो नंदन, कार्तिकेय के भ्राता। रिद्धी-सिद्धी के तुम हो स्वामी, लाभ शुभ प्रदाता। मूसक को वाहन बनाया, हे! वक्रतुण्ड महाकाय। मोदक का तुम्हें भोग लगे, हे! अष्टसिद्धी के दाता। मैं बालक नादान हूँ स्वामी, निशदिन करूँ आराधना। सबके विघ्नों का नाश करो, स्वीकार करो मेरी प्रार्थना। परिचय - सोनल सिंह "सोनू" निवासी : कोलिहापुरी दुर्ग (छतीसगढ़) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी ...
परिवार का महत्व
कविता

परिवार का महत्व

सोनल सिंह "सोनू" कोलिहापुरी दुर्ग (छतीसगढ़) ******************** परिवार देता हमें पहचान है इसका जरूरतमंद हर इंसान है। परिवार में जब पलता है बच्चा दिन ब दिन निखरता है बच्चा। बच्चों में आते संस्कार है मिलता उसे अपनों का प्यार है। मिलजुल सब रहते हैं जहाँ मुश्किलें कहाँ टिक पाती वहाँ। बड़ी-बड़ी समस्या हो जाती धराशायी जब मिलकर रहते हैं भाई-भाई। बुजुर्गों का अनुभव और आशीर्वाद रखता है परिवार को आबाद। त्यौहारों में मजा आता है खूब होली दिवाली राखी या भाईदूज। टूटते हुए परिवार चिंता का विषय है संयुक्त परिवार में रिश्तों की खूबसूरती, आज भी मौजूद है। परिवार का महत्व हमें समझना होगा मतभेद भूल साथ-साथ चलना होगा। ईश्वर से गुज़ारिश सबको परिवार मिले माता-पिता व अपनों का प्यार मिले। परिचय - सोनल सिंह "सोनू" निवासी : कोलिहापुरी दुर्ग (छतीसगढ़) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमा...
तिरंगा
कविता

तिरंगा

सोनल सिंह "सोनू" कोलिहापुरी दुर्ग (छतीसगढ़) ******************** तीन रंगो से सजा तिरंगा, देश की शान बढ़ाता है। रंग केसरिया, श्वेत, हरा संदेश हमें दे जाता है। रंग केसरिया त्याग सिखाये, श्वेत रंग शांति गुण गाये। हरा रंग समृद्धि लाये, सब मिल देश का मान बढ़ाये। जब भी तिरंगा लहराये, हर भारतवासी हर्षाये। मन गर्व से भर जाये, आँखों में चमक आ जाये। तिरंगे का सम्मान करें, नहीं कभी अपमान करें। देश की आन बचाने को, अपना सर्वस्व कुर्बान करें। परिचय - सोनल सिंह "सोनू" निवासी : कोलिहापुरी दुर्ग (छतीसगढ़) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं छायाचित्र के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपनी कविता...
कौमी एकता
कविता

कौमी एकता

सोनल सिंह "सोनू" कोलिहापुरी दुर्ग (छतीसगढ़) ******************** ईश्वर की सुंदरतम कृति है मानव क्या मानव मेंशेष रहा है मानव? जाति-पाति मजहब में बंटा है मानव मजहब की बात पर डटा है मानव। जाने किसने ये कौमें बनाई चहुँ ओर वैमनस्यता फैलाई। मानव को मानव से लड़ाया देश को दावानल सा दहकाया। अधिकाधिक पाने की चाहत मानव को दानव सा बनाया। मजहब के नाम पर बहलाया फूट पड़ी तो तीसरे ने लाभ उठाया। कौमी एकता तो बनी जुमलेबाजी है आज कौन इसमें राजी है ? सभी तैयार खड़े पलटने को बाजी है आपस में ये कैसी नाराजी है? कौमी एकता तो दिवा स्वप्न सी लगती है। वास्तव में हर किसी को ये चुभती है। भाई को यहाँ चारा बनाते देर नहीं लगती। मानवता यहाँ दूर खड़ी तड़पती है। काश कोई ऐसी पाठशाला हो जो इंसान को इंसान बनाये। इंसानियत का पाठ पढ़ाये जाति धर्म के बंधन तोड़ जाये। सम्पूर्ण मानव जाति एक हो सबके ...