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Tag: हितेश्वर बर्मन ‘चैतन्य’

निशाचर
कविता

निशाचर

हितेश्वर बर्मन 'चैतन्य' डंगनिया, सारंगढ़ (छत्तीसगढ़) ******************** देखो तो आज इस जमाने में, बिना अखबार के समाचार आया है। दिन के उजियारे को मिटाने, निशाचर के रूप में अंधकार आया है।। जो दिन में डरा-डरा सा रहता है, वो शाम ढलते ही भौंकने आया है। रात के अंधेरी सुनसान - गली में, राहगीरों का रास्ता रोकने आया है।। जिसको खुद दिशा का पता नहीं, वो मेरी दशा बिगाड़ने आया है। मुझसे जबरन झगड़ा करके, शराब का नशा निकालने आया है।। इंसान कुत्ता बनकर भौंक रहा है, शाम होते ही गली - चौराहों में। मुझे जान मारने की धमकी देने आया है, बहुत नफरत भरी है उसकी निगाहों में।। उसके पैर राह में डगमगा रहा है, फिर भी न जाने क्यों चिल्ला रहा है। मेरा उससे कोई दुश्मनी ही नहीं, फिर भी वो मुझ पर तिलमिला रहा है।। परिचय :-  हितेश्वर बर्मन 'चैतन्य' निवासी : डंगनिया, जिला : सारंगढ़ - बिलाईगढ़ (...
कविता

भ्रास

हितेश्वर बर्मन 'चैतन्य' डंगनिया, सारंगढ़ (छत्तीसगढ़) ******************** जरुरी नहीं है कि सिर्फ काँटा ही तकलीफ दे काँटे का क्या है ? वो तो कभी न कभी निकल ही जाएगा। पर मैं मन में छुपे हुए, भ्रास को कैसे बाहर निकालूं ? जो यदि बाहर निकल गया, तो दूसरों को तीर की भांति चुभेगा। और यदि बाहर न निकला, तो मुझे भीतर ही भीतर सीना भेदकर गहरी ज़ख्म पहुँचायेगा। न किसी से कुछ कह सकूंगा न तो ज्यादा दिन गले अंदर रख सकूंगा ! ये भ्रास मुझे दीमक की तरह खायेगा। मैं मन ही मन जलकर खाक हो जाऊंगा ज़ुबान होते हुए भी बोल न पाऊंगा क्रोधाग्नि मे मेरा कलेजा जल जाएगा फिर भी बाहर से कुछ नज़र नहीं आयेगा। ये भ्रास मुझ पर ही वार करेगा गले से उतरकर सीने में, तीर की भांति जा चुभेगा मैं कुछ नहीं कर पाऊंगा ये मेरे ही जिस्म को ढाल बनायेगा। सोचता हूँ मन की भ्रास निकाल दूँ गले में अटके हुए को...
कानून की चक्की
कविता

कानून की चक्की

हितेश्वर बर्मन 'चैतन्य' डंगनिया, सारंगढ़ (छत्तीसगढ़) ******************** कानून की चक्की में रिश्ते - नाते, सगे - संबंधी सब पीस जाते हैं। अदालत की चक्कर काटते-काटते, जूता - जूती सब घिस जाते हैं।। मौका देख सुनसान गली - चौराहों में, शातिर जुर्म करते हैं रात के अंधेरे में। जोर है पक्ष - विपक्ष के दलीलों में, अदालत को सबूत चाहिए सवेरे में।। कभी - कभी कानून की चक्की, चलते - चलते जाम हो जाती है। लोगों को इंसाफ मांगते - मांगते, सुबह से लेकर शाम हो जाती है।। अच्छा वकील ढूंढने के लिए, खुद को वकील बनना पड़ता है। काले - कोट वालों की भीड़ से, एक को ही चुनना पड़ता है।। वकीलों को भगवान समझकर, नोटों का चढ़ावा देना पड़ता है। अपने दिल पे पत्थर रखकर, रिश्वतखोरी को बढ़ावा देना पड़ता है।। परिचय :-  हितेश्वर बर्मन 'चैतन्य' निवासी : डंगनिया, जिला : सारंगढ़ - बिलाईगढ़ (छत्तीसगढ़) ...
कुछ लोग
कविता

कुछ लोग

हितेश्वर बर्मन 'चैतन्य' डंगनिया, सारंगढ़ (छत्तीसगढ़) ******************** कुछ लोग ऐसे होते हैं, जो मरकर भी जिंदा रहते हैं। तो कुछ ऐसे भी होते हैं, जो जीवनभर निंदा करते हैं।। कुछ लोग ऐसे होते हैं, जो जीवन में आदरणीय होते हैं। तो कुछ ऐसे भी होते हैं, जो महत्वहीन निंदनीय होते हैं।। कुछ लोग ऐसे होते हैं, जो हमेशा आंखों में बसते हैं। तो कुछ ऐसे भी होते हैं, जो आंखों में खटकते हैं।। कुछ लोग ऐसे होते हैं, जो मरकर भी आभास होते हैं। तो कुछ ऐसे भी होते हैं, जो जिंदा होकर भी लाश होते हैं।। कुछ लोग ऐसे होते हैं, जो अपने सपने पूरा कर दिखाते हैं। तो कुछ ऐसे भी होते हैं, जो सपने ही नहीं देख पाते हैं।। कुछ लोग ऐसे होते हैं, जो किसी को अपने वश में करते हैं। तो कुछ ऐसे भी होते हैं, जो खुद दूसरों के वश में रहते हैं।। कुछ लोग ऐसे होते हैं, जो भाग्य बदलकर सपने साकार करते...
ऐ वक्त जरा ठहर जा
कविता

ऐ वक्त जरा ठहर जा

हितेश्वर बर्मन 'चैतन्य' डंगनिया, सारंगढ़ (छत्तीसगढ़) ******************** ऐ वक्त जरा ठहर जा, मेरी भी सुन जरा रुक जा। तेरे जाने से मैं छुट जाऊंगा, तू चला गया तो मैं मंजिल को कैसे पाऊंगा।। ऐ वक्त जरा थम जा, आ मेरे साथ जरा विश्राम तो कर ले। मुझे अपनी मंजिल का बेसब्री से इंतजार है, जरा रूक जा अपने साथ मुझे भी ले जा।। ऐ वक्त जरा पीछे मुड़कर भी देख ले, तेरा पीछा करते-करते मैं भी आ रहा हूँ। मेरा हाथ पकड़ कर मुझे खींच ले, समय का दो बूंद मेरे ऊपर भी सींच दे।। ऐ वक्त जरा मेरी बातें भी सुन ले, न बढ़ इतनी तेजी से जरा ठहर जा। तू इतनी जल्दी में कहां जा रहा है, बिना मंजिल के बस चलता ही जा रहा है।। ऐ वक्त जरा ठहर जा, एक पल मेरे ऊपर भी नजर तो उठा। कर न मुझे यूं अनदेखा, जरा थम जा मुझसे एक पल नज़र तो मिला।। तूझे रोकना मेरे सामर्थ्य में नहीं है, ऐ जाते हुए लम्हें मुझे अलविदा...
महानायक बाबा साहब
कविता

महानायक बाबा साहब

हितेश्वर बर्मन 'चैतन्य' डंगनिया, सारंगढ़ (छत्तीसगढ़) ******************** बाबा साहब ने लिखा विश्व का सबसे बड़ा संविधान मानवता का अधिकार दिया सबको एक समान। अपनी कलम से सदियों तक अमिट इतिहास लिखा संविधान बनाते वक्त दूरदर्शिता का भी ध्यान रखा। क्या होती है कलम की ताकत दुनिया को दिखाया जाति-भेदभाव, छुआछूत को पलभर में मिटाया। जब बाबा साहब ने हक-अधिकार का कानून बनाया तब जाकर देश के गरीबों व मजदूरों को सूकुन आया। सदियों से दलितों को पढ़ने-लिखने का अधिकार न था आरक्षण दिया बाबा साहब ने इसके बिना उद्धार न था। मानवता की रक्षा के लिए धार्मिक राष्ट्र बनने न दिया बाबा साहब ने धर्म-निरपेक्ष राष्ट्र का प्रस्ताव दिया। भारत को विश्व में सबसे ऊंचा, सबसे प्यारा महान बनाया विविधता से भरी देश में सबके हित के लिए विधान बनाया। किसानों को जंमीदारो के शोषण, अत्याचार से मुक्ति दिलाया ...