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लो आ गई होली
कविता

लो आ गई होली

प्रभात कुमार "प्रभात" हापुड़ (उत्तर प्रदेश) ******************** लो आ गई होली मन में है उल्लास दिलों मे भरा उत्साह आओ हम सब खेलें होली। लो आ गई होली हर घर-आँगन गाँव-मढैया होली गावें हर गाँव गवैया वृंदावन की कुंज गलिन में प्रेम रंग में रंगकर होली खेलें रास रचैया भक्ति रस में डूब-डूबकर आओ हम सब खेलें होली। लो आ गई होली गाँव-नगर चौपाल-क्लब आ गए बालम और कुमार भांग खुमार, रंग, गुलाल बोला सबके सर चढ़कर होली के रंगों में रंग कर आओ हम सब खेलें होली। लो आ गई होली क्या हिन्दू क्या मुस्लिम क्या सिख-इसाई मनमुटाव द्वेष बुराई भुला कर दुनिया को भाईचारे की राह दिखा कर मानवता के रंग में रंगकर आओ हम सब खेलें होली। लो आ गई होली बच्चों की पिचकारी रंगों से भरे गुब्बारे जीवन में भर रहे रंग बारम्बार विविध रंगों से विद्यमान आओ हम सब खेलें होली। लो आ गई होली एक अनोखा...
होली पर हुड़दंग
कविता, हास्य

होली पर हुड़दंग

अनुराधा प्रियदर्शिनी प्रयागराज (उत्तर प्रदेश) ******************** मोदी चाचा आए हैं सतरंगी रंगों को लाए हैं योगी भैया देखो आए हैं केशरिया चटख रंग लाए हैं अखिलेश भैया ने बैंड बजाया मायावती जी चली हैं घर को सबने होली पर हुड़दंग मचाया एक दुजे को रंग लगाया मोदी चाचा आए हैं सतरंगी रंगों को लाए हैं होली के रंग बिरंगे रंग हैं भैया बुरा न मानो होली है आओ मिलकर हम सब होली खेलें जश्न मनाने का पल सुनहरा है स्नेह प्रेम का रंग लगाकर सबको गले लगाना है देखो होली की हुड़दंग मची है रंग बिरंगी होली है हंसी खुशी से होली मना लो एक दूजे को रंग लगा लो प्रेम से गले लगाकर भेदभाव को मिटा दो परिचय :- अनुराधा प्रियदर्शिनी निवासी : प्रयागराज (उत्तर प्रदेश) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानिय...
दर्द से रिश्ता पुराना
कविता

दर्द से रिश्ता पुराना

डॉ. भगवान सहाय मीना जयपुर, (राजस्थान) ******************** दर्द से रिश्ता पुराना, हर किसी का रोना है। दुःख में सुख तराना, घोड़े बेचकर सोना है। अरे! दुःख से कह दो अपनी हद में रहे, दुनिया में क्यों फ़िक्र करूं, मुझे क्या खोना है। खाली हाथ आए है खाली हाथ जायेंगे, आज को छोड़कर, कल में जीना बेगाना है। ना साथ है किसी का, ना हमसफ़र है कोई, झूठे संसार में क्यों मतलबी रिश्ते निभाना है। दर्द से कह दो सितम कर तेरी हद तक, मुझे भी अपने हौसले का सब्र दिखाना है। क्यों बनाते हो चिंता को चिता का रास्ता, जिसे मिली है चोंच उसे चुग्गा खिलाना है। उषा की लाली सूर्यास्त को मत सौंफिए, पंख देने वाले ने, बख्शा आसमां सुहाना है। जी भर कर जिओ जब तक जिंदगी है, आपको कम खुशी में, अधिक मुस्कुराना है। ख्वाबों को रोकना महलों तक जाने से, नज़र में उन्हें रख, झोंपड़ी जिनका ठिकाना है। ...
मधुमास बसंत
कविता

मधुमास बसंत

डॉ. भगवान सहाय मीना जयपुर, (राजस्थान) ******************** धरा मांग सिंदूर सजाकर, झिलमिल करती आई भोर। खग कलरव भ्रमर गुंजन, चहुं दिस नाच रहे वन मोर। सुगंध शीतल मन्द समीर, बहती मलयाचल की ओर। पहने प्रकृति पट पीत पराग, पुष्पित पल्लवित मही छौर। रवि आहट से छिपी यामिनी, चारूं चंचल चंद्रिका घोर। मुस्काती उषा गज गामिनी, कंचन किरण केसर कुसुम पोर। महकें मेघ मल्लिका रूपसी, मकरंद रवि रश्मियां चहुंओर। मदहोश मचलती मतवाली, किरणें नभ भाल पर करती शोर। सुरभित गुलशन बाग बगीचे, कोयल कूके कुसुमाकर का जोर। नवयौवना सरसों अलौकिक, गैंहू बाली खड़ी विवाह मंडप पोर। मनमोहित वासंतिक मधुमास, नीलाभ मनभावन प्रकृति में शोर। कृषकहिय प्रफुल्लित आनन्द मय, अभिसारित तरु रसाल पर भौंर। शुभ मधुमास बसंत की लावण्यता नीलाभ अलौकिक प्रकृति में जोर। वसुधाधर मुस्कान सजीली अरुण, सुरभित दिग्दि...
नियति ही प्रारब्ध है
कविता

नियति ही प्रारब्ध है

प्रभात कुमार "प्रभात" हापुड़ (उत्तर प्रदेश) ******************** मत गुमान कर ऐ चाँद अपनी खूबसूरती पर। मत भूल कुछ दाग तो हैं, तेरे भी चेहरे पर। माना कि तेरी चांदनी की बराबरी किसी से नहीं, तेरे मुखमण्डल की आभा किसी से छिपी नहीं, पूर्णिमा की रात- चाँद की शीतलता किसी से सिमटी नहीं। कैसा विधि का विधान है महाकाल के ललाट पर गंगा की भांति मिला सम्मान है। किंतु यह भी सत्य है, प्रति-पल मानो अस्तित्व तेरा घटने लगता है, खूबसूरती का खुमार (रंग) प्रति क्षण उतरने लगता है। तिमिर अमावस्या की रात का, चंद्र की चांदनी को आगोश में ले लेता है, देखकर व्यथा तेरी हृदय सिहर उठता है। यह नियति ही है शून्य की गोद में समाने तक निरंतर घटना, किंतु हार न मानना, फिर प्रति पल संपूर्णता (यौवन) की ओर निरंतर आगे बढना। सुख-दुख, उतार-चढ़ाव यश-अपयश मानो जीवन चक्र है, सुर, जीव, मनुज सब नियति ...
स्वर की पुजारन
कविता

स्वर की पुजारन

अनुराधा प्रियदर्शिनी प्रयागराज (उत्तर प्रदेश) ******************** स्वर की पुजारन चली स्वर की देवी से मिलने बहुत ही कठिन पल हमारे लिए यह बहुत है ममतामई मां को हम सबने ही अब खो दिया है स्वरों की मल्लिका के गीत से हम वंचित हुए हैं स्वर कोकिला भारत रत्न लता दीदी चली हैं माता सरस्वती के धाम वो उनके संग ही गयी हैं बसंत पंचमी का उत्सव एक ओर मनाया जा रहा दूसरी ओर लता जी अनंत यात्रा को जाने लगी है जन्म मृत्यु का चक्र बहुत ही अनोखा यहां हैं जन्म जिसने लिया उसकी मृत्यु निश्चित ही होती शीश झुका बस इतना ही कहना मैं चाहूं यात्रा तुम्हारी मां अपनी पूर्णता को पाए आत्मा का मिलन आज परमात्मा से होने चला है स्वं ब्रम्ह से आज उनका मिलन हैं परिचय :- अनुराधा प्रियदर्शिनी निवासी : प्रयागराज (उत्तर प्रदेश) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह...
आ गया ऋतुराज बसंत
कविता

आ गया ऋतुराज बसंत

प्रभात कुमार "प्रभात" हापुड़ (उत्तर प्रदेश) ******************** आ गया ऋतुराज बसंत, मन हो रहा मगन। मनोहर छटा बिखेरता मदमस्त गगन, खिल रहा सूर्यरश्मियों से धरा का मुखमंडल समस्त भूमण्डल बन रहा उत्तम उपवन। पुहुप रस पी-पीकर मधुकर कर रहे गुंजन, बन रहा प्रकृति में सहज संतुलन। आ गया ऋतुराज बसंत मन हो रहा मगन। धारण किया धरा ने पीत वसन, प्रकृति ने किया श्रंगार सहज। आज सज रही ऋतुराज की दुल्हन, मानो कामदेव-रति का हो रहा मंगल-मिलन। आ गया ऋतुराज बसंत, मन हो रहा मगन। परिचय :-  प्रभात कुमार "प्रभात" निवासी : हापुड़, (उत्तर प्रदेश) भारत शिक्षा : एम.काम., एम.ए. राजनीति शास्त्र बी.एड. सम्प्रति : वाणिज्य प्रवक्ता टैगोर शिक्षा सदन इंटर कालेज हापुड़ विशेष रुचि : कविता, गीत व लघुकथा (सृजन) लेखन, समय-समय पर समाचारपत्र एवं पत्रिकाओं में रचनाओं का निरंतर प्रकाशन। घोषणा पत्र : मैं यह प्...
अपनी-अपनी बगिया
कविता

अपनी-अपनी बगिया

अनुराधा प्रियदर्शिनी प्रयागराज (उत्तर प्रदेश) ******************** सबकी अपनी-अपनी बगिया मेरी भी बगिया है सुरभित कलियाँ चटकीं महकी बगिया रौनक से भर आई बगिया। रंग-बिरंगे पुष्प खिले हैं पुलकित मन से हिले-मिले हैं इन फूलों के रंगों से मिल चेहरे पर छाई है लाली। सूरज-चाँद-सितारे झाँकें यहाँ प्रेम की खुशबू छाई दिवस-रात तुम्हीं से होता सुबह-शाम दोनों सुखदाई। पूजा-अर्चन तुमसे होता सभी तीर्थ हैं तुमसे होते सारा उपवन तुमसे महके जीवन का हर कोना बिहँसे। मन मंदिर में पूजा तुमसे हरि पद में हिय दीपक चमके साथ तुम्हारा जबसे पाया जीवन का हर पल हर्षाया। परिचय :- अनुराधा प्रियदर्शिनी निवासी : प्रयागराज (उत्तर प्रदेश) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्...
ॠतुराज बसंत
कविता

ॠतुराज बसंत

दीप्ता नीमा इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** मौसम ने यूँ ली अंगड़ाई संग में इसके प्रकृति मुस्कायी खेतों पर हरियाली छाई डाल डाल पर नई कोपल आई सारी ॠतुओं को छोड़कर पीछे बारी ॠतुराज बसंत की आई। नवकुसुमों से सुसज्जित होकर नवपल्लवों से शोभित होकर कोयल की मधुर तान में खोकर सुगन्धित मस्त बयार को लेकर सारी ॠतुओं को छोड़कर पीछे बारी ॠतुराज बसंत की आई। भीनी सी आम की बौर महके सरसों के फूल और चिड़ियाँ चहके मदमस्त प्रकृति के यौवन में वसुंधरा प्रेमरस में बहके सारी ॠतुओं को छोड़कर पीछे बारी ॠतुराज बसंत की आई। परिचय :- दीप्ता नीमा निवासी : इंदौर (मध्य प्रदेश) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं छायाचित्र के साथ प्रकाशित ...
मस्तक की बिंदी है हिंदी
कविता

मस्तक की बिंदी है हिंदी

प्रभात कुमार "प्रभात" हापुड़ (उत्तर प्रदेश) ******************** भारत मां के मस्तक की बिंदी है हिंदी। भारत मां का अलंकार है हिंदी, भारत मां का शीश सुशोभित करती है हिंदी, देव-भाषा की अनमोल कृति है हिंदी, जन गण मन की शक्ति है हिंदी, भावनाओं की सुंदर अभिव्यक्ति है हिंदी, नन्हे मुन्नो की तुतलाई बोली है हिंदी विद्वानों की विद्वता को परिभाषित करती है हिंदी जब-जब इस पर संकट की परछाईं भी दिखती, कलमकारों की कलम से निकली हर हुंकार हिंदी रक्षण में आंदोलन करती, भारत मां के मस्तक की बिंदी है हिंदी। भाषाओं में सर्वोपरि राष्ट्रभाषा है हिंदी हर जन मानस में रची बसी है हिंदी हर भारतवासी को एक सूत्र में बांधती है हिंदी, भारत मां के मस्तक की बिंदी है हिंदी। परिचय :-  प्रभात कुमार "प्रभात" निवासी : हापुड़, (उत्तर प्रदेश) भारत शिक्षा : एम.काम., एम.ए. राजनीति शास्त्र बी.एड. सम्प्रति :...
कुसुम केसर चंदन से
कविता

कुसुम केसर चंदन से

डॉ. भगवान सहाय मीना जयपुर, (राजस्थान) ******************** कुसुम केसर चंदन से, अभिनंदन नव वर्ष। शुभ यश जीवन में मिलें, मंगलमय अति हर्ष। अक्षत रोली हाथ में, सजा लिया है थाल। तिलक करूं मैं हर्ष से, नई साल के भाल। नूतन वर्ष शोभित हो, सदा सदी के भाल। नई सुबह की नव किरणें, चमक रही है लाल। अभिनंदन नववर्ष का, नव उमंग के साथ। लेता नव संकल्प मैं, आज उठाकर हाथ। नव किरण नव उजास में, पोषित हो नव भोर। नव वर्ष में दूर रहें, यह संकट अति घोर। कागज़ कलम दवात से, सपने लिखता रोज़। नये साल से आरज़ू, मेरे करदे काज। सदा सुखी इंसान हो, मिटे विषाणु रोग। मंगल गायन यूं करें, नये साल में लोग। जीव जगत में खुशी मिलें, हर्षित हो चहुॅं ओर। पग पग नृत्य लोग करें, मस्त रहें हर छौर। परिचय :- डॉ. भगवान सहाय मीना (वरिष्ठ अध्यापक राजस्थान सरकार) निवासी : बाड़ा पदम पुरा, जयपुर, राजस्थान ...
जिंदगी धोखा है और मौत सच्चाई
कविता

जिंदगी धोखा है और मौत सच्चाई

दीप्ता नीमा इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** ऐसा नहीं है कि मुझे कोई दर्द नहीं होता मुस्कुराती हूँ हरदम पर साथ हमदर्द नहीं होता जिंदगी के हर मोड़ पर लोगों ने कदम रोका है, काम निकल जाने पर छोड़ा और दिया धोखा है। हमने भी अब समझ ली है दुनिया की ये रस्म अपने अफसानों की ये बना ली नज्म वफ़ा के बदले हमको मिलती है बेवफाई। जिंदगी हसीन धोखा है और मौत है सच्चाई ।। परिचय :- दीप्ता नीमा निवासी : इंदौर (मध्य प्रदेश) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं छायाचित्र के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि प्रकाशित करवाने हेतु अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, हिंदी में टाईप करके...
२१वाँ साल
कविता

२१वाँ साल

दीप्ता नीमा इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** जाओ जाओ २१वाँ साल अब मत याद आना २१वाँ साल बहुत लोगों का जीवन लिया तुमने छीन कई को किया तुमने मातृ-पितृ विहीन कर दिया सभी को तुमने छिन्न-भिन्न हो गये बहुत लोग दीन-हीन ऐसी महामारी तुम थे लाये एक दूजे को कोई न भाये हर रिश्ता हो गया दूर-दूर सारे सपने हो गये चूर-चूर जाओ जाओ २१वाँ साल अब मत याद आना २१वाँ साल आओ आओ २२वाँ साल खुशियों से भरा हो ये साल नये जोश नई उमंग से सराबोर नये सपने नई आशा से भरपूर बहुत खास हो ये नया साल अठखेलियां करता रहे नया साल दुगुनी ऊर्जा से भरा हो नया साल फिर नई आशा नये सपने सजांएगे फिर वही नया ऊँचा मुकाम पाएंगे हवा में प्यार की खुशबू बिखरांएगे बेजान रिश्ते में जान लाएँगे रोते हुए लबों पे हम हंसी लाएंगे।। आओ आओ २२वाँ साल खुशियों से भरा हो ये साल।। परिचय :- दीप्ता नीमा निवासी : ...
तू दिन को रात कर देगा …
कविता

तू दिन को रात कर देगा …

महेश बड़सरे राजपूत इंद्र इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** तू दिन को रात कर देगा, शबों को आग कर देगा। जहाँ बरसें हों अंगारें, वहाँ तू बाग कर देगा।। भरी तुझमे वो मस्ती है, छुपी तुझमें वो शक्ति है। हुए वीराँ नगर हैं जो, उन्हे आबाद कर देगा।। इरादों में तड़प देखी, ज़िगर तेरे धड़क देखी। बुझे कोई जो चिंगारी, तू उनमे ख़्वाब भर देगा।। तेरि इन सुर्ख आँखों में, हिन्दोस्ताँ ही बसता है। अपना बन ठगा जिसने , उन्हें क्या माफ़ कर देगा।। अर्जुन बन तू माधव का, हनुमत बन तू राघव का। थमे जो ना दुराचारी, तू उनका नाश कर देगा ? जननी है जन्मभूमि, तारणी है कर्मभूमि। चुकाने को कर्ज़ इसका, 'इंद्र' अपना सर देगा।। ऐसा तू है परवाना, शमा को जो करे रोशन। नहीं मरने का भय रखना, तू मरकर भी अमर होगा।। परिचय :- महेश बड़सरे राजपूत इंद्र आयु : ४१ बसंत निवासी :  इन्दौर (मध्य प्रदे...
पंथी पंथ निहार लें
कविता

पंथी पंथ निहार लें

डॉ. भगवान सहाय मीना जयपुर, (राजस्थान) ******************** पंथी पंथ निहार लें, कर ईश्वर का ध्यान। नश्वर है संसार तो, सच को ले पहचान। शब्दों से होता नहीं, भावों का अनुवाद। भाव बसे हैं हृदय में, शब्द करें संवाद। हरित चूनरी ओढ़कर, धरा करें श्रृंगार। मेघ मल्लिका रूपसी, सजती सौ सौ बार। विडम्बना है देश की, न्याय हो रहा जीर्ण। अदालत लाचार हुई, रहें कैसे अजीर्ण। हाड़ कॅंपाती ठंड है, पाला पड़ा तुषार। फसलें सारी जल गई, शीतलहर संचार। भूखे पापी पेट का, करतें रोज जुगाड़। रोजगार के नाम से, तिल का बनता ताड़। मानव तेरी जाति का, कैसे हो उत्थान। काम क्रोध मद लोभ में, लुप्त हुई पहचान। धीरे- धीरे चली वधु, वरमाला कर थाम। दुल्हा तोरणद्वार में, जोडी सीता राम। भाव- भावना से भजो, हो जाओ भव पार। योग भोग सब छोड़ के, हृदय बसाए राम। कोरोना के कहर से, बेबस हुआं इंसान। आज प्...
अंधकार को चीरता सूरज
कविता

अंधकार को चीरता सूरज

प्रभात कुमार "प्रभात" हापुड़ (उत्तर प्रदेश) ******************** देखो अंधकार को चीरता सूरज आया। अंधी रातें, काली रातें सर्दी के यौवन में जमती जीवन की राहें। अंधकार ने जब अपने यौवन का जाल बिछाया ठिठुरती सर्दी ने अंधकार को दीनों-दुखियों बच्चों-बूढ़ों का कठिन काल बताया, देखो अंधकार को चीरता सूरज आया। मत घबराओ, मत घबराओ पप्पू-गप्पू,चीनू-लक्की, अम्मा-बाबा, नाना-नानी, नहीं रहा सदा समय एक सा अंधकार अब हुआ है बूढ़ा, यौवन भी इसका हुआ ढला ढला सा। देखो अंधकार को चीरता सूरज आया। काली रातें, बीती रातें भोर हुआ अब नभ जग थल में व्योमनाथ आए लिये रश्मियां संग में मानो प्राणी मात्र को जीवन दान मिला रश्मियों से। सात घोड़ों के रथ में होकर सवार देखो अंधकार को चीरता सूरज आया। नई आशाओं का अंकुर जन्मा, समय भी फिर से अंगड़ाई लेकर नए कलेवर में आया तुमको, मुझको, हमको,...
शहादत
कविता

शहादत

डॉ. भगवान सहाय मीना जयपुर, (राजस्थान) ******************** भारत मां की आंखों से गंगा-जमुना बह निकली। महावीरों की सांसें जब काल विमान ने निगली। मातृभूमि के रखवालों को कैसे भारत भूलेगा, फटती है छाती धरती की बर्फ हिमालय पिघली। वीर क़फ़न तिरंगा ओढ़कर मां के आंचल सो गये, पाकर वीरों का सान्निध्य पुण्य हुईं धरती जंगली। शून्य हुईं पिता की आंखें बिलख रहे इनके बच्चे, मातृभूमि के सच्चे रक्षक छोड़ गए मां की अंगुली। हे बलिदानी वीरों व्यथित रहेगा ऋणी देश हमारा, हृदय से स्वीकार करें मेरे श्रद्धा सुमन भर अंजलि। जनरल बिपिन महान का दिया मधुलिका ने साथ, बरसों याद रहेगी शहादत यह केसरिया रंगीली। परिचय :- डॉ. भगवान सहाय मीना (वरिष्ठ अध्यापक राजस्थान सरकार) निवासी : बाड़ा पदम पुरा, जयपुर, राजस्थान घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौ...
महिमा
कविता

महिमा

महेश बड़सरे राजपूत इंद्र इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** सच है तेरी लज्जा - मर्यादा भी, नारी तेरा हथियार है । उद्देश्य निकलने का घर से, प्रथम देहली से तू बोलना।। जब भी अवसर आये, अवगुण या आसुरी वृत्ति हो। प्रकट होता शक्ति अवतार, भीतर अपने टटोलना ।। नहीं अरी कोई तेरा, तू सबको देती प्रेम है। हृदय के विशाल महलों से, घृणा के ताले खोलना।। घर के संस्कारों का, सच्चा दर्शन होता वाणी से । स्फुटीत होने वाले शब्दों को, पहले काँटे पर तोलना ।। समर्पण संतोष भाव, दिया प्रभु ने तुझको सहज । थोड़ा मिला ज्यादा मिला, सीखा तुने स्वीकारना।। असीम गुणों का और भी, तुझमे अमित भंडार माँ। निज संतती को देना, और, कहना इसे संभालना ।। परिचय :- महेश बड़सरे राजपूत इंद्र आयु : ४१ बसंत निवासी :  इन्दौर (मध्य प्रदेश) विधा : वीररस, देशप्रेम, आध्यात्म, प्रेरक, २५ वर्षों से ले...
शरद सुहावन
कविता

शरद सुहावन

अनुराधा प्रियदर्शिनी प्रयागराज (उत्तर प्रदेश) ******************** देखो आया शरद सुहावन मन को भाए सुन्दर मौसम ठंडी हवा के झोंके बहते मंद समीर सुहानी चलती रंग बिरंगे फूल खिले हैं धरती दुल्हन सी सजी है ऋतुओं का राजा शरद सबके मन हर्षाने आया गुनगुनी धूप सुहानी लगती कहीं बारिश की फुहार ठंडक का एहसास कराती चाय की चुस्की अच्छी लगती रिश्तों में गर्माहट लाती थोड़ी सावधानी जो बरतता बीमारियों को दूर भगाए शरद ऋतु का आनंद वो लेता खेतों में लहलहाती फसलें धरती का श्रृंगार हैं करती शरद है ऋतुराज सुहाना नाचो गाओ धूम मचाओ परिचय :- अनुराधा प्रियदर्शिनी निवासी : प्रयागराज (उत्तर प्रदेश) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं छायाचित्र के स...
आओ मिलकर दीप जलाएँ
कविता

आओ मिलकर दीप जलाएँ

प्रभात कुमार "प्रभात" हापुड़ (उत्तर प्रदेश) ******************** आओ प्रदूषण रहित दिवाली मनाएं, सबके जीवन में खुशियॉं लाएँ आओ मिलकर दीप जलाएँ। हर घर आँगन चौवारों पे, मन मन्दिर और शिवालयों में, यह रात अमावस्या की धोखा खा जाए, आओ मिलकर दीप जलाएं। किसी झोपड़ी, किसी गली और चौराहे पे, कहीं अंधेरा रह न जाए आओ प्रदूषण रहित दिवाली मनाएँ, सबके जीवन में खुशियाँ लाएँ, आओ मिलकर दीप जलाएँ। नहीं जलाएँगे आतिशबाजी, नहीं जलाएँगे बम धमाके, प्रण ऐसा जन-जन में कर जाएँ, जीवन को न नरक बनाएँ, वातावरण शुद्ध बनाएंँ आओ प्रदूषण रहित दिवाली मनाएँ, सबके जीवन में खुशियाँ लाएँ, आओ मिलकर दीप जलाएँ। अध्यात्म, विज्ञान का लाभ उठाकर, घर आँगन लक्ष्मी बुलाकर, पर्यावरण का दीप जलाकर, राष्ट्र प्रेम का दीप जलाकर, आओ प्रदूषण राहित दिवाली मनाएँ , सबके जीवन में खुशियाँ लाएँ, आओमिलकर दीप ज...
कुछ तो बोलो न
कविता

कुछ तो बोलो न

अनुराधा प्रियदर्शिनी प्रयागराज (उत्तर प्रदेश) ******************** कब तक मन ही मन घुटते रहोगे तन्हाइयों में यूं ही जीते रहोगे देखा नहीं जाता तुम्हारी खामोशी को ग़म हो या खुशी अपनों से बांटा करते हैं कुछ तो बोलो न दिल के राज खोलो ना अगर किसी ने दिल तोड़ा है तुम्हारा खता तुम्हारी भी तो कहीं रही होगी वो तुम्हारे लिए नहीं जो पास नहीं समझो न लेकिन यूं खुद से खुद की दूरी बनाओ न कुछ तो बोलो न दिल के राज खोलो न ग़म बांटकर तो देखो अश्कों में बहा दो न बुरा ख्वाब समझ जीवन में बढ़ चलो न कब तक खुद से खुद को सजा दोगे मन ही मन घुटते रहोगे थोड़ा बाहर निकलो न कुछ तो बोलो न दिल के राज खोलो न जिंदगी खूबसूरत है बहती नदिया सी उसको बहने दो जिन्दगी को यूं ठहराओ न होंठों पर मुस्कान बिखेरते आगे को बढ़ जाओ न एक पड़ाव पार कर अब आगे बढ़ मंजिल पा लो कुछ तो बोलो न दिल के राज खोलो न परिचय ...
कर्मयोगी बनो
कविता

कर्मयोगी बनो

प्रभात कुमार "प्रभात" हापुड़ (उत्तर प्रदेश) ******************** शब्द सारगर्भित हों अंदाज में तुम्हारे स्वाभिमान हो। जिंदगी जीने की कसक हृदय में हो, तो मृत्यु से भयभीत न हो। शांतमन के आकाश में सप्तर्षियों का ज्ञान भरो। कभी भौतिक भटकाव से ग्रसित हो तो आध्यात्म (हृदय) की आकाशगंगा में स्वयं पवित्र हो। राजमहलों में प्रेम न खोजो, जहाँ कुटिलताओंं का जाल बिछा हो, इंद्रधनुषीय रंगों सी छटा बिखेरता निश्छल प्रेम पाना हो तो झोपड़ियों की ओर चलो। तुम निष्काम निस्वार्थ रचनाकार हो गुदड़ी के सपूतों का मर्म रचो। सम्मान में उनके स्वतंत्र कलम तुम्हारी सदैव तत्पर हो। जीवन के महायज्ञ में कर्म को प्रधान जान कर्मयोगी बनो। परिचय :-  प्रभात कुमार "प्रभात" निवासी : हापुड़, (उत्तर प्रदेश) भारत शिक्षा : एम.काम., एम.ए. राजनीति शास्त्र बी.एड. सम्प्रति : वाणिज्य प्रवक्ता टैगोर शिक्षा सदन इ...
सात जन्मों का बंधन
कविता

सात जन्मों का बंधन

अनुराधा प्रियदर्शिनी प्रयागराज (उत्तर प्रदेश) ******************** जन्म-जन्म नाता हमारा साथ जन्मों का बंधन प्रेम और विश्वास से इसको सिंचित करना है। सुख-दुख के हम साथी बने मिला देव आशीष कल किसने देखा है वादा हर पल निभाना है तुम मेरे सांसों में कुछ ऐसे समाए हो साजन जैसे सरगम का संगीत तुमसे है गहरी प्रीत सारा श्रृंगार तुम्हारे लिए करूं सोलह श्रृंगार तुम्हारा प्रेम जो मिला सुगंध फैली चहुं ओर तुमको पाकर जैसे पूरी हुई है सारी ही आस रहो सलामत सदा तभी मेरे होंठों पर मुस्कान सारी दुनिया से मैं लड़ जाऊं जो तुम मेरे साथ जो तुमको हो पसंद सदा वही मैं करना चाहूं बंधन है प्यार का इसमें बंधकर सुख पाती हूं प्रेम और विश्वास से रिश्ता अनोखा निभाती हूं। परिचय :- अनुराधा प्रियदर्शिनी निवासी : प्रयागराज (उत्तर प्रदेश) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित ...
विजय दशमी
कविता

विजय दशमी

डॉ. भगवान सहाय मीना जयपुर, (राजस्थान) ******************** मेरे लंका रूपी मन के, विषय विकारी रावण को। आप जीतने आना प्रभु, आश्विन शुक्ल दशमी को। अंधकार में दीप जलाने,सत्य विजय भव कहने को। शुद्ध चरित्र करने मेरा, मैं आहूत कर दशहरे को। लंका विजय की भांति, हरलो काम क्रोध मद लोभ को। मन है पापी कपटी वंचक, हे प्रभु दूर करों इस रोग को। धर्म पथ पर गमन करूं, नमन सीता के सम्मान को। मैं कलयुग का केवट करता, नित वंदन श्रीराम को। असत्य पर सत्य की जीत, प्रभु दोहरा दो इतिहास को। कलयुग कर दो त्रेता, अवध बना दो मेरे हिंदुस्तान को। घर-घर दीप जला दो, रावण भूल गए भगवान को। भारत को बधाई, वंदन अभिनंदन पावन त्योहार को। परिचय :- डॉ. भगवान सहाय मीना (वरिष्ठ अध्यापक राजस्थान सरकार) निवासी : बाड़ा पदम पुरा, जयपुर, राजस्थान घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षि...
मैं क्या हूँ …?
कविता

मैं क्या हूँ …?

प्रभात कुमार "प्रभात" हापुड़ (उत्तर प्रदेश) ******************** मैं क्या हूँ ? स्वयं का अहम हूँ, कौन हूँ? पानी का एक बुलबुला हूँ, फिर भी इठला रहा हूँ । क्योंकि मैं "मैं" हूँ।। अपने जीवन और अस्तित्व से भली भांति परिभाषित हूँ , किंतु अहम के आवरण से ढका हूँ। क्योंकि मैं "मैं" हूँ।। अस्तित्व में आने के लिए सदैव कसमसाता हूँ, किंतु काल के गाल में कब समा जाऊं ! यह जानने के लिए, नियति को प्रतिपल मनाता हूँ। क्योंकि मैं "मैं" हूँ।। सहसा क्या देखता हूं ! काल के सम्मुख स्वयं को पाता हूँ संभलना चाहता हूँ, नादानियों का प्रायश्चित करना चाहता हूँ, किंतु संभल ही नहीं पाता हूँ। क्योंकि मैं "मैं" हूँ।। फिर भी सौभाग्यशाली हूँ, अहम को छोड़कर पाप-पुण्य को त्याग कर, जीवन-चक्र को भूलकर, मुक्ति के आगोश में चला जाता हूँ। क्योंकि मैं अब "मैं" नहीं हूँ, पानी का बुलबुला हूँ। कर...