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मान
लघुकथा

मान

आशा जाकड़ इंदौर म.प्र. ******************** अरी  सुलक्षणा कल "हरतालिका तीज" है, याद है ना। अरे माँ मैं तो भूल ही गई थी। अच्छा हुआ आपने याद दिला दिया, ठीक है कर लूँगी। "अरे माँ आपने अभी तक चाय नहीं बनाई सुबह-सुबह किसको फोन करने बैठ गयीं?" सीमा अपनी माँ के गले में हाथ डालते हुए बोली।" तेरी भाभी को ही फोन लगा रही थी, उसे याद दिला रही थी कल हरतालिका तीज है, व्रत कर लेना "और भाभी ने कहा होगा ठीक है मैं कर लूंगी। "हां तेरी भाभी बोल रही थी कि माँ मैं तो भूल ही गई थी अच्छा हुआ आपने याद दिला दिया।"  देख मैं उसे याद दिला देती हूं तो निधि बड़ी खुश हो जाती है। पर माँ आपको पता है न कि भाभी व्रत नहीं कर पाती हैं, उन्हें भूख सहन नहीं होती है। फिर क्यों याद दिलाती हो? अब उसकी इच्छा होगी तो कर लेगी नहीं तो कोई बात नहीं है। मैंनें अपना कर्तव्य पूरा कर दिया। पर देख बेटा मेरा मान तो रख लेती है। कभी म...
आखिर कब… ?
कविता

आखिर कब… ?

आशा जाकड़ इंदौर म.प्र. ******************** यह दुराचार कब खत्म होगा? कब तक बेटियाँ असुरक्षित रहेंगी? मासूम बेटियाँ कब तक इन दरिन्दों का शिकार होती रहेंगी। लगता है हर जगह हैवान घूम रहे हैं। जो बालाओं का अपहरण कर रहे हैं, दुष्कर्म कर रहे हैं, नोच नोच कर खा रहे हैं, बोटी-बोटी काट रहे हैं। क्या बेटियां घर से बाहर न जाए? स्कूल पढ़ने न जाए, खेलने न जाए? आखिर कब तक? कब तक वे पीड़ा सहती रहेंगी? कब तक वे अत्याचार का शिकार होंगी? उनके हिस्से की पीड़ा कोई मिटा तो नहीं सकता। जो भोगा है उन्होंने उसे मस्तिष्क से हटा तो नहीं सकता वे बेचारी कब तक शर्म से मुंह छुपाती रहेंगी कब तक दर्द से कराहती रहेंगी ? इन दरिंदों को फांसी क्यों नहीं देती ? सरकार उनके हाथ पैर क्यों नहीं काटती सरकार कहती है पर करती क्यों नहीं? सरकार की कथनी करनी कब एक होगी आखिर इन दरिंदों को फांसी कब होगी आखिर ...