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पहचान
लघुकथा

पहचान

*********** केशी गुप्ता (दिल्ली) सुहासनी  प्रातः चार बजे ही उठ गई  .  आज उन्हे मां का नाम लिखवाने पेहोवा जो जाना था . महीना भर हुआ मां का स्वर्गवास हुए .   यूं तो कई रातों से वह ठीक से सो नही पा रही थी .   उसका अपनी मां से रिश्ता ही बहुत गहरा था .  मगर संसार का अपना नियम है .  एक वक्त पर  अनचाहे वो व्यक्ति भी चला जाता है , जिसके बिना आपको लगता है जीना मुशिकल है .  पापा और मोहन जो उसके मामा का लड़का है ने पेहोवा जो कुूरूक्षेत्र के नजदीक है,  साथ जाना था .  सुहासनी नहा धोह कर तैयार हो पापा के साथ पेहोवा के लिए निकल पड़ी .  मोहन का घर रास्ते में पडता था , तो उसे ऱास्ते से ही ले लिया . "आदमी चला जाता है और रस्में रह जाती है " सुहासनी ने  भराई हुई आवाज में कहा . मैं तो जाना नही चाहता था , पापा बोले .  हमारे यहां ऐसा कोई रिवाज नही है .  हां मगर पंडित जी ने कहा जाना चाहिए .  पंडित जी जिन्हे मां ...