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मकान का रिश्ता
कविता

मकान का रिश्ता

संजय वर्मा "दॄष्टि" मनावर (धार) ******************** नाना-नानी का मकान जहाँ बिताई गर्मी की छुट्टियाँ नाना का लाड नानी का दुलार नाना के हाथों लाई इमरती नानी का झूला नानी की कहानी। मेरे मस्ती करने पर नानी मुझे नहीं माँ को डांटती दुलार के डाट से ढक देती नाना-नानी बन चुके जो तारे गर्मी की छुट्टियों में सूने घर में नहीं मिलती नाना-नानी की मुझे बुलाती आवाजे। नहीं झूलते हवाओं से झूले रातों को आकाश में सूने नयन उन्हें निहारते नाना-नानी का आशियाना टूट चूका उनकी उम्र की तरह यादें तस्वीरों में कैद आँखों में आँसू लिए रिश्ते निहार रहे ढहते मकान। नयापन लौट आएगा नई उमंगों के साथ ये वैसा ही लगेगा जैसे बुजुर्गों के गुजर जाने के बाद नन्हें बालक ने लिया हो जन्म नए रिश्तों के साथ नई उमंगों के साथ बुजुर्गों के आशीर्वाद के साथ नयापन समेटे। परिचय :- संजय वर्मा "...