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Tag: अभिषेक मिश्रा

बचपन की सुनहरी यादें
कविता

बचपन की सुनहरी यादें

अभिषेक मिश्रा चकिया, बलिया (उत्तरप्रदेश) ******************** बाल दिवस आया है, फिर से शोर मचाने को, इस उम्र ने झकझोरा है, कुछ पीछे लौट जाने को। वो दिन जब हम छोटे थे, ख़्वाब बड़े सजाते थे, हर पल में था हँसी भरा, जो अब बस यादें लाते है। वो मिट्टी की गुल्लक, जिसमें सपने झनकते थे, वो कागज़ की नावें, जो बारिश में तैरते थे। वो टूटा हुआ बल्ला, जिससे क्रिकेट खेलते थे, और अम्मा की डाँट में भी, हम हँसकर मिलते थे। न फोन था, न इंटरनेट, न कोई अजब कहानी थी, बस दोस्तों की टोली, और मासूम सी जवानी थी। वो स्कूल का बस्ता, जो कंधों को झुकाता था, पर टीचर के आते ही, हर शोर रुक जाता था। आज सोचा तो याद आया, वो आमों का बाग़ कहाँ, वो गेंद जो छत पर थी, अब तक लौटी या नहीं भला। वो दादी की कहानियाँ, वो गर्मी की रातें, जहाँ परियाँ मुस्कुरातीं, और चाँद सुनाता बातें। सच कहूँ, वो दिन रेशम से भी म...
दिल की धरती
कविता

दिल की धरती

अभिषेक मिश्रा चकिया, बलिया (उत्तरप्रदेश) ******************** माटी बोले, सूरज हँसे, पवन सुने हर राग। इस धरती के आँचल में, छिपा है अनुपम भाग। हर बूँद यहाँ पर अमृत है, हर आँसू में एक गीत। जो झुका तिरंगे के आगे, वो अमर हुआ हर प्रीत। मंदिर बोले, मस्जिद गाए, गुरुद्वारा दे ज्ञान। यहाँ प्रेम ही पूजा है, यही देश की पहचान। कृषक का पसीना सोना, मजदूरों की शान। शब्द नहीं, ये कर्म हैं, जो लिखते इतिहास महान। नारी यहाँ ममता बनती, शक्ति का अवतार। उसके आँचल से ही बंधा, भारत का संसार। बच्चों की हँसी में गूँजे, भविष्य की परछाई। हर मासूम के स्वप्न में, भारत की झलक समाई। सैनिक जब सीमाओं पर, लेता ठंडी साँस। हर धड़कन कह उठती है, “जय हिंद” का एहसास। यौवन में जोश यहाँ का, रग-रग में अंगार। हर दिल बोले एक सुर में, “मेरा भारत अपार!” यहाँ दुख भी संकल्प बनें, सपने हों...
विकसित भारत की दिवाली
कविता

विकसित भारत की दिवाली

अभिषेक मिश्रा चकिया, बलिया (उत्तरप्रदेश) ******************** न मैं दिवाली मनाता, न ये धूम धड़ाम मुझे भाता है, मेरा मन तो उस कर्ज़ को गिनता, जो गरीब चुकाता है। न ये मेरा उत्सव है, न आतिशबाजी का शृंगार, मैं तो देखता हूँ, धन की चिता पर, चढ़ता बाज़ार। जिस लक्ष्मी को घर बुलाने, लाखों का व्यापार हुआ, चंद मिनटों की आतिशबाजी में, उसका सर्वनाश हुआ। जिस पूँजी से संवर सकता, किसी का पूरा संसार, तुम उसी को धूल बनाते, ये कैसा अंध-अधिकार? पूंजी का यह प्रदर्शन, यह कैसा व्यंग्य रचता है? जब फुटपाथ पर बैठा मानव, आज भी अन्न को तरसता है। दीवारों के भीतर दीप जले, पर द्वार अँधेरा बोल रहा, पत्थर की मूरत के लिए, तू लक्ष्मी को ही तोल रहा। लाखों के रॉकेट से ऊँचा, वह गरीब का घर भी हो, जो इस आस में बैठा है, कि 'आज वह भी ख़ुश हो।' हज़ार जलाओ तुम दीप भवन में, पर एक दीया क्यों नहीं? जहाँ भूख से सूख गए ह...
दीप बनो, जो जग को जगाए
कविता

दीप बनो, जो जग को जगाए

अभिषेक मिश्रा चकिया, बलिया (उत्तरप्रदेश) ******************** दीप बनो जो राह दिखाए, जो अंधियारा दूर भगाए। जलो मगर सेवा के लिए, ना कि केवल मेवा लिए। दीप बनो जो सत्य जलाए, झूठ और भय सब मिट जाए। जग में जो अन्याय हुआ है, उस पर सच्चा नाद सुनाए। दीप बनो जो ज्ञान बढ़ाए, हर मन में उजियारा लाए। बिन शिक्षा सब सूना सूना, दीप बनो जो बुद्धि जगाए। दीप बनो जो मानवता दे, भूले को फिर सजगता दे। हाथ में दीप अगर जलाओ, तो मन में भी गरमाहट दे। दीप बनो जो धर्म बताए, राष्ट्र प्रेम का गीत सुनाए। अपने भीतर आग जगा लो, फिर भारत जग में चमकाए। दीप बनो जो द्वेष बुझाए, प्रेम का सागर लहराए। जात, पंथ की दीवारें तोड़ो, मानवता का दीप जलाए। दीप बनो जो कर्म बताए, स्वार्थ नहीं, सद्भाव सिखाए। भूखे के हिस्से की रोटी दो, यही असली दीवाली आए। दीप बनो जो दिल को छू ले, सत्य की राह में तन झ...
मेरे अनकहे अल्फ़ाज़
कविता

मेरे अनकहे अल्फ़ाज़

अभिषेक मिश्रा चकिया, बलिया (उत्तरप्रदेश) ******************** एक ख़त जो मैंने कभी नहीं लिखा, पर दिल ने उसे हर रोज़ पढ़ा। हर पन्ना मेरे दिल की धड़कनों का आईना था, हर लफ़्ज़ मेरी अधूरी चाहत की गूँज। कितनी बार मैंने उसे अपने दिल में संभाला, कितनी बार अपनी साँसों में छुपा लिया। हर मुस्कान तुम्हारे लिए थी, हर आँसू मेरे भीतर दबा रहा। कभी सपनों में तुम्हें पाया, कभी यादों में तुम्हें खोया। मेरे शब्द अधूरे, मेरे ख्वाब अधूरे, पर इन खामोशियों में मेरा प्यार पूरा था। गुज़रती हवाओं में तुम्हारी खुशबू थी, गुज़रते पलों में तुम्हारी मुस्कान थी। फिर भी मैं लिख न पाया, क्योंकि डर था- शायद तुम नहीं समझ पाओ। कितनी रातें जागकर तुम्हें सोचता रहा, कितनी सुबहें तुम्हारे बिना टूटी। मेरे हाथों में अधूरे खत, मेरे दिल में अधूरी बातें, मेरी आत्मा में अधूरा प्यार। कितन...
मातृभाषा का महोत्सव
कविता

मातृभाषा का महोत्सव

अभिषेक मिश्रा चकिया, बलिया (उत्तरप्रदेश) ******************** हिंदी है दिल की जुबां, हिंदी है जन-गान। भारत माँ की वाणी है, इसका ऊँचा मान।। माटी की खुशबू लिए, बोले हर इंसान। गंगा-जमुनी संस्कृति की, हिंदी पहचान।। तुलसी की चौपाइयों में, सूर की रसधार। कबिरा के दोहों में बसी, जीवन की पुकार।। मीरा के पद झंकारित हों, भक्तिरस का गीत। भारतेंदु का जागरण हो, हिंदी का संगीत।। प्रेमचंद की कहानियों ने, जग में दिया प्रकाश। साहित्य के हर पृष्ठ पे, हिंदी का इतिहास।। महादेवी के भावों में, कोमलता का गीत। दिनकर की गर्जना में है, ओजस्वी संगीत।। रसखान की राधा बानी, रही प्रेम की धुन। हिंदी का उत्सव यही, हिंदी का अभिमान। संविधान की गोद में, राजभाषा का मान। विश्वपटल पर गूंजती, भारत की पहचान।। आज तकनीकी युग में भी, हिंदी लहराए। मोबाइल की स्क्रीन पर भी, हिंदी ही छाए।। कीबोर्ड स...
गांव से ग्लोबल तक
कविता

गांव से ग्लोबल तक

अभिषेक मिश्रा चकिया, बलिया (उत्तरप्रदेश) ******************** धान की खुशबू, मिट्टी की सौंधी, पगडंडी का मीठा गान, बरगद, पीपल, नीम की छाया, झोंपड़ियों में सपनों का मान। बैलगाड़ी की धीमी चाल में, कच्चे आँगन का था सिंगार, हाट-बाज़ार की चहल-पहल में, गूँजते थे लोक-पुकार। पर आई जब गुलामी की आँधी, सूख गए खेतों के गुलाल, माँ के आँचल में लहराते सपने, टूट गए जैसे मिट्टी के लाल। लाठी, गोली, कोड़े, जंजीरें, रोटी आधी, भूख का गाँव, फिर भी भारत–माँ के बेटों ने, प्राण दिए, पर न झुकाया नाम। चंपारण में उठी जो आंधी, नमक सत्याग्रह ज्वाला बनी, भगत, सुखदेव, आज़ाद की कुर्बानी, जन-जन की मिसाल बनी। सुभाष के नाद गगन में गूँजे, "तुम मुझे ख़ून दो" का गीत, वीर जवानों के रक्त से फिर, लाल हुआ भारत का मीत। १५ अगस्त की भोर आई जब, सूरज ने सोने रंग बिखेरा, स्वतंत्र ध्वज नभ में लहराया,...
बहना चालीसा
चौपाई

बहना चालीसा

अभिषेक मिश्रा चकिया, बलिया (उत्तरप्रदेश) ******************** ॥दोहा॥ स्नेह-सुमन सरसाइ बहै, राखी रस की धार। मंगल मूर्ति बहन रूप, बंधे प्रेम उपहार॥ अभिषेक वंदन करे, बहना चरणों धार। तेरे पावन प्रेम से, जीवन हो उजियार॥ ॥चालीसा (चौपाई)॥ जय बहना स्नेह की रानी। ममता रूपी जीवन वाणी॥ तेरी महिमा कौन बखाने। हर रिश्ते में प्रेम जगावे॥ बाल्यकाल में साथ निभाया। हर मुस्कान में दुख छुपाया॥ बचपन की तू राजकुमारी। भाई की तू रही सहारी॥ राखी बाँधे रख भाव पवित्रा। मन में बसती शक्ति चित्रा॥ रूठे तो खुद पास बुलाए। माँ जैसी ममता बरसाए॥ तू लक्ष्मी बन घर में आए। भाई के हित द्वार सजाए॥ तेरी हँसी सुखद सुनाई। मन में शांति करे समाई॥ तेरी आँखें स्वप्न सँवारे। तेरे आँसू दुख सब मारे॥ तू ही शक्ति, तू ही पूजा। तू ही सेवा, तू ही दूजा॥ तेरे बिना घर सूना लागे। भाई का र...
पिता कि परछाई
कविता

पिता कि परछाई

अभिषेक मिश्रा चकिया, बलिया (उत्तरप्रदेश) ******************** पिता कोई नाम नहीं, एक एहसास है, जो परछाईं बन हर पल मेरे पास है। बचपन में जब पाँव लड़खड़ाए थे, वो थाम के उँगली चलाते थे। मैं हँसूं यही कामना लेकर, ज़ख़्म अपने मन में छुपाते थे।। कभी सिर पे छत, कभी गीतों में, हर रूप में साया बन जाते थे। मैं न गिरूं, यही सोच-सोचकर, अपने घावों को सह जाते थे।। पढ़ाई की रातों में नींद नहीं थी जब पन्नों संग मैं लड़ता था। चाय की हल्की भाप लिए, हर सवाल में संग मुस्काते थे।। मेरी किताबों में जो उजाला था, उसमें उनकी थकन समाई थी। मैं जो कुछ भी बन पाया आज, वो बस उनकी छांव से आई थी।। जब नौकरी की ओर मैं बढ़ा, वो बैग मेरा खुद उठाते थे। भीड़ में पीछे रहते हुए भी, मुझे सबसे आगे बतलाते थे।। मेरे नए शहर की रौशनी में, उनकी आंखों का पानी था। मैं जो खड़ा था मंचों पर, वो नीचे बैठ...
घायल बलिया कि हुंकार
कविता

घायल बलिया कि हुंकार

अभिषेक मिश्रा चकिया, बलिया (उत्तरप्रदेश) ******************** घायल बलिया चीख रहा है चीख सुनाने मैं आया हूं, घायल बलिया के फटे हाल का रूप दिखाने आया हूं। मैं बलिया का शिक्षित समाज शिक्षा कि हाल बताने आया हूं, न बना है इंजीनियरिंग कॉलेज, न मेडिकल कॉलेज दिखता हैं, तब क्यों इस बलिया में टेक्नोलॉजी और एमबीबीएस डॉ. ढूंढता है। मैं बागी बलिया में मेडिकल व्यवस्था का स्थिति जानने आया हूं, सुनलों ए बलिया के वासी एक मरीज़ का दर्द बताने मै आया हूं। जब किसी का तबियत खराब हो कैसे पहुंचे हॉस्पिटल को, अस्पताल में व्यवस्था नहीं हैं रेफर करदे मऊ, बनारस को। पता चलता कि जान चली जाती मरीजों कि बीच रास्ते में, कहां से पहुंचे मरीज बेचारा इलाज कराने अपना बीएचयू में। यहां से आगे बढ़ जब निकला मैं बलिया शहर के सड़कों पे, तब जाकर मैं पहुंच गया बलिया के टाऊन हाल कि गलियों में। मैं बलिया के...
मैं पंछी तेरे आंगन की
कविता

मैं पंछी तेरे आंगन की

अभिषेक मिश्रा चकिया, बलिया (उत्तरप्रदेश) ******************** मैं पंछी तेरे आंगन की, तूने उड़ना सिखाया था। तेरे प्यार की छांव तले, बचपन हँसना सिखाया था। फिर आया दिन वो सांझ भरा, जब विदाई का वक्त था अश्रु धरा। कांपते पाँव, मुस्काती आँखें, दिल के भीतर सिसकती साँसें। डोली में बैठी थी ख़ामोशी सी, हर हँसी के नीचे थी एक उदासी सी। पीछे छूटा वो कंचों का खेल, सामने था अब जीवन का रेल। ससुराल की देहरी पर रखे पाँव, पीछे छूटा हँसी का गाँव। चेहरे नए, रिश्ते भी अनजान, दिल बोले- “क्या यही है पहचान?” भाई की चिढ़, माँ की डाँट, सब अब मीठी लगती है। वो रोटियों की छोटी बातें, अब आँखों से बरसती हैं। तू कहता था- उड़ जा बेटी, सपनों का कोई घर होगा। क्या जानती थी ये उड़ान, इतनी भारी सफर होगा। माँ से लड़कर मैं चली आई, सास की बातें अब क्या कहूँ? कभी बेटी थी, अब बहू हूं, कभी अप...
पुरुषों का सशक्तिकरण
कविता

पुरुषों का सशक्तिकरण

अभिषेक मिश्रा चकिया, बलिया (उत्तरप्रदेश) ******************** "अब पुरुषों का दर्द भी सुना जाएगा!" भारत की धरा पर घिरा अंधकार, पुरुषों पर टूटा अन्याय का भार। कभी झूठे इल्ज़ाम, कभी मौत का डर, दबा दिया जाता है हर एक स्वर रोज। "अब चुप्पी नहीं, अधिकार चाहिए!" महिलाओं को सम्मान जरूरी सही, पर पुरुषों की व्यथा भी सुननी चाहिए। झूठ के जाल में न फँसाओ उन्हें, हर बेकसूर को अब बचाना चाहिए। "पुरुष भी इंसान हैं, पत्थर नहीं!" दिल उनका भी धड़कता है यारों, दर्द उनके भी गहरे हैं प्यालों। डर-डर कर जीना कैसा इंसाफ? इंसानियत पर उठने लगे हैं सवाल। "झूठी चीखों का अंत करो!" गलत आरोपों का खेल बंद करो, नारी का सम्मान हैं अनमोल सही। पर सत्य और न्याय की भी अलख जलाओ, हर दिल को बराबरी का हक दिलाओ! "समाज जागे, बराबरी लाए!" अब वक्त है न्याय का बिगुल बजाने का, हर आहत मन को अपनाने ...
निवेश के पहले सितारे
कविता

निवेश के पहले सितारे

अभिषेक मिश्रा चकिया, बलिया (उत्तरप्रदेश) ******************** हम हैं निवेश के पहले सितारे, सपनों के पंखों पर उड़ने वाले नारे। नई राहों के पहले मुसाफिर, ज्ञान की लौ से रौशन ये सफ़र। हम हैं 'निवेश १.०' की पहचान, सपनों से भरी एक नई उड़ान। सतीश चंद्र कॉलेज की शान बनें, ज्ञान के पथ पर हम अभिमान बनें। प्रिंसिपल डॉ. बैकुंठ नाथ पांडेय सर का साथ मिला, हर सोच को उड़ान देने का जज़्बा मिला। हेड डॉ. ओम प्रकाश सर की सादगी में शक्ति है, हर विद्यार्थी की आँखों में उनकी भक्ति है। डॉ. राहुल माथुर सर की शैली है निराली, हर कांसेप्ट में छिपी एक रोशनी मतवाली। डॉ. ओमप्रकाश पाठक सर का मार्गदर्शन मिला, हर विषय जैसे खुद-ब-खुद समझ आ चला। डॉ. अतीफा फलक मैम की बातों में ज्ञान की रौशनी है, उनकी क्लासों में बसी उम्मीदों का बग़ीचा है। पहला सेमेस्टर, 0% अटेंडेंस का सीन, प्रोजेक्ट का डेडलाइन? ...
बेरोजगार चालीसा
दोहा

बेरोजगार चालीसा

अभिषेक मिश्रा चकिया, बलिया (उत्तरप्रदेश) ******************** नमो-नमो बेरोजगार युवाओं। तुम्हारो दर्द न कोई जानों।। नमो नमो बेरोजगार युवाओं। ऐसे ही तुम बेगार रह जाओ।। हमने समझा तुम सब बेकार हो। पर तुम तो सबसे घातक प्रहार हो।। जब से तुम घर से बाहर निकले हो। उस दिन से घर की है रोशनी भागी।। पूरी दिन-रात तुम मेहनत करते हो। कर पढ़ाई-लिखाई परीक्षा देते हो।। फिर भी न होत है तुम्हरी भलाई। दूर न जात हैं ये बेरोजगारी बलाई।। बेरोजगार चालीसा जब कोई भी गावे। ऐसा लगे सबके कान में ठेपी घुस जावे।। तुम्हरे हाथ में है पूरी देश दुनिया। पर तुम्हरा दर्द न कोई सुनत है।। बेरोजगारी वंदना जो नीत गावे। जीवन में वो कभी हार न पावे।। हैं हथियार ये दोनों हाथ तुम्हारा। जब चाहों तुम किस्मत अजमाना।। जो नहीं माने रोब तुम्हारा। तो दिन देखी तिन तैसी।। जब कभी तुम आवाज उठाते। लाठी...
घायल बलिया कि हुंकार
कविता

घायल बलिया कि हुंकार

अभिषेक मिश्रा चकिया, बलिया (उत्तरप्रदेश) ******************** घायल बलिया चीख रहा है चीख सुनाने मैं आया हूं, घायल बलिया के फटे हाल का रूप दिखाने आया हूं। मैं बलिया का शिक्षित समाज शिक्षा कि हाल बताने आया हूं, न बना है इंजीनियरिंग कॉलेज, न मेडिकल कॉलेज दिखता हैं, तब क्यों इस बलिया में टेक्नोलॉजी और एमबीबीएस डॉ. ढूंढता है। मैं बागी बलिया में मेडिकल व्यवस्था का स्थिति जानने आया हूं, सुनलों ए बलिया के वासी एक मरीज़ का दर्द बताने मै आया हूं। जब किसी का तबियत खराब हो कैसे पहुंचे हॉस्पिटल को, अस्पताल में व्यवस्था नहीं हैं रेफर करदे मऊ, बनारस को। पता चलता कि जान चली जाती मरीजों कि बीच रास्ते में, कहां से पहुंचे मरीज बेचारा इलाज कराने अपना बीएचयू में। यहां से आगे बढ़ जब निकला मैं बलिया शहर के सड़कों पे, तब जाकर मैं पहुंच गया बलिया के टाऊन हाल कि गलियों में। मैं बलिया के...
बचपन की वो यादें
कविता

बचपन की वो यादें

अभिषेक मिश्रा चकिया, बलिया (उत्तरप्रदेश) ******************** एक समय था जब मैं छोटा था, उस चाँद को कहता मामा था। पता नहीं कब सुबह होता था, और रात को कहाँ ठिकाना था। स्कूल न जाने के लाख बहाने, पर मम्मी की डॉट से जाता था। स्कूल से आने में थक जाते थे, पर शाम को खेलने जाना था। होम वर्क करने का मन नहीं करता था, पर मैडम से पीटने के डर से करता था। बारिश में खेलता कागज की नाव से, तब लगता हर मौसम ही सुहाना था। चाहे पड़ती हों ठंडी या गर्मी क्रिकेट खेलने जाता था, नहीं होता चोट का डर इसलिए मस्ती में रहता था। एक दुसरे से पैसा लेकर गेंद खरीद कर आता था, गेंद गुम हो जाने पर मायूस होकर घर आता था। रात को हमे तब नींद नहीं आने पर, मम्मी की लोरी एक मात्र सहारा था। वो झूठी सब मनगढ़ंत कहानी, मम्मी हमको तब सुनाती थी। कहती थी जल्दी सो जा तू वरना, भुतू आकर तुमको उठा ले...
गुरु चालीसा
गीत

गुरु चालीसा

अभिषेक मिश्रा चकिया, बलिया (उत्तरप्रदेश) ******************** जय जय जय शिक्षा के दाता। कृपा करो आशीष प्रदाता।। तुम सागर हों गुरु ज्ञान के। सबको देते हों ज्ञान अपार।। बुद्धि विवेक जो भी चाहें। गुरु सेवा में ध्यान लगाए।। गुरु मंत्र जो कोई भी जपता। जीवन में सफल सदा रहता।। अनपढ़ को भी ज्ञान देकर। तुम बना देते हो यू विद्वान।। तुम पर हैं हम सबको गुमान। तुम ही करते हों ज्ञान प्रदान।। अनपढ़ को जो विद्वान बना दे। धर्म कर्म का पूरा पाठ पढ़ा दे।। भक्ति भाव का दीपक जलाते। नेक धर्म करने कि शिक्षा देते।। अंधकार को तुम दूर भगाते। ज्ञान कि ज्योति हों जलाते।। सही गलत का पहचान सिखाते। शिक्षा प्राप्ति का संकल्प दिलाते।। हैं धरती पे तुम्हारे कई अवतार। समय-समय पर करते हों प्रचार।। बन चाणक तुम राष्ट्र बनाते। चंद्रगुप्त को राज दिलाते।। महामूर्ख कालीदास जैसे को। ...
परीक्षार्थी का दर्द
कविता

परीक्षार्थी का दर्द

अभिषेक मिश्रा चकिया, बलिया (उत्तरप्रदेश) ******************** ए ईश्वर दे कुछ तरकीब ऐसा, जो परिक्षा मैं पास कर लूं। न वक्त बचा हैं अब इतना कि इसका सिलेबस पूरा कर लूं, न तरकीब पता हैं कोई ऐसा जो परीक्षा मैं पास कर लूं, न किताबे पढ़ने का जी करता नाहीं इसको छोड़ने का, न याद रहा अब वो सब भी, जो अब तक हमने पढ़ा था, ए ईश्वर दे कुछ कर ऐसा, जो परिक्षा मैं पास कर लूं। एक तो रहता दबाव मां बापू के देखें सपनों का, दूजा तनाव रहता हैं पड़ोसियों के ताने सुनने का, तिजा तो पहले से ही होता बेरोजगारी के धब्बे का, इन दबावों के कारण पूरा दिमाग हैंग हों जाता हैं, ए ईश्वर कल देना शक्ति इतना,जो परिक्षा मैं पास कर लूं। न जाने कल क्या होगा, जब परिक्षा हाल में बैठुंगा, पता नहीं परिक्षा कक्ष में भी, सब कुछ याद रख पाऊंगा, पेपर मिलने पर पता नहीं कि कितने प्रश्न हल कर पाऊंगा, जल्दी करने के चक्कर मे...