तुम कुछ कहो … हम कुछ कहें
मित्रा शर्मा
महू, इंदौर (मध्य प्रदेश)
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रिश्ते की डोर जो
एक दूसरे को
बांधे रखती है
निभाने के लिए भी तो
कुछ कहना पड़ता है।
चुप रहने से दूरियां बढ़ जाती हैं
पहल करो तो राह मिल जाती है
इसलिए आओ ...
तुम कुछ कहो ... हम कुछ कहें ...।
जीवन के इस आपाधापी में
वक्त के पहिए के
साथ चलने में
वास्तविक मुस्कान
छिन रही है होठों से
आओ, जीवन को
असली मुस्कान दें
तुम कुछ बोलो ... कुछ हम बोलें ...।
जिंदगी बहुत छोटी है,
यह हम जानते हैं
तो फिर क्यों ना,
टूटते रिश्ते जोड़ने की पहल करें
आपस की गलत फहमी मिटाएँ
तुम कुछ कहो ... हम कुछ कहें ...।
आओ, इस वसुधा के
आंचल को संवारे
नदियाँ बचाने
के लिए कार्य करें
नया इतिहास रचने,
आगे बढ़ें
महापुरुषों से प्रेरणा लें
नई पीढ़ी को जागरूक करें
आओ,
तुम कुछ बदलो ... हम कुछ बदलें ...
तुम कुछ कहो ... हम कुछ कहें ...।
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