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Tag: श्रीमती क्षिप्रा चतुर्वेदी

दहेज
कविता

दहेज

श्रीमती क्षिप्रा चतुर्वेदी लखनऊ (उत्तर प्रदेश) ******************** जब तुम मेरे घर आना, अपने साथ थोड़ा दहेज जरूर ले आना !! कुछ अटैची, कुछ बक्से जिनमे भरे हो तुम्हारे बचपन के खिलौने, तुम्हारे बचपन के कपड़े, छुटपन की अठखेलियाँ और सहजता साथ ले आना !! तुम्हारी पवित्र मुस्कराहट को शृंगार की डिब्बे में भर लाना, अपने चेहरे की आभा और स्वयं की दृढ़ता भी साथ ले आना !! कुछ बक्सों मे अपने संस्कार अपनी संस्कृति साथ भर लेना! थोड़ा प्रेम और करुणा का आभूषण भी जरूर ले आना !! कुछ अटैची में अम्माँ-बाबुजी का आशीर्वाद और परिवार की खूबसूरत बातेँ उनकी यादें साथ में सहेज लाना !! अपना दुःख और अपनी तकलीफें, साथ ले कर आना, तुम्हारा हम कदम बन तुम्हारी पीड़ा आत्मसात कर लूंगा ऐसा भरपूर विश्वास मन मे ले कर आना !! सखी-सहेलियों की यादें, कुछ स्मृतियों के पन्ने भी रखना मत...
स्त्री तुम बुद्ध नहीं बन पाई
कविता

स्त्री तुम बुद्ध नहीं बन पाई

श्रीमती क्षिप्रा चतुर्वेदी लखनऊ (उत्तर प्रदेश) ******************** बुद्ध बनना कितना सरल, कितना कठिन, किन्तु स्त्री तुम कभी बुद्ध नहीं बन पाई ! अनेक दायित्व निभाती, तिल तिल मरती, फिर भी सब क्यों त्याग नहीं पाई स्त्री बुद्ध नहीं बन पाई !! सारे रिश्तों को छोड़कर, सारे बंधन तोड़कर, कर्तव्य अपना भूलकर, क्यूँ नही जा पाई, स्त्री तुम बुद्ध नहीं बन पाई !! करोडों बार अपमानित हुई, बार बार प्रताडित हुई, उजली तुम्हरी चादर फिर भी भी दागदार हुई, स्त्री तुम क्यों बुद्ध नहीं बन पाई !! संसार को तुमने जन्म दिया, फिर भी मूढ़ कहलाई , ज्ञान-ध्यान-तप की खातिर, घर-आंगन क्यों छोड़ नहीं पाई, स्त्री तुम बुद्ध नहीं बन पाई !! यशोधरा बनी, सीता बनी द्रौपदी और अहिल्या भी सच-शांत की पूजनीय प्रतिमा होकर भी स्त्री तुम बुद्ध नहीं बन सकीं!! परिचय :- श्रीमती क...
फिर वही बात
कविता

फिर वही बात

श्रीमती क्षिप्रा चतुर्वेदी लखनऊ (उत्तर प्रदेश) ******************** बहुत भुलाना चाहा, पर इनकी पीड़ा से मुक्ति की कल्पना, मुझे फिर उन्हीं अंधेरी गलियों में ले जाती है, जहाँ फिर से वही बातें दोहराई जाती हैं, फिर से वही क्रूरता का ताना बाना बुना जाता है, फिर वही निर्दयता पूर्ण व्यवहार की बातों का सिलसिला चलता है ! इनकी मासूमियत वहां एक बार फिर फ़ना हो जाती है ! फिर इनके लिए वही बेबसी, वही लाचारी, जिनमे ये मासूम रात-दिन दम तोड़ते हैं ! उस अंधकार में कोई रोशनी की किरन नहीं दिखती, कोई ऐसी ध्वनि कानो में नहीं पड़ती, जिसमें इनकी मासूमियत की बातें हों, जिनमे इनके लिए करुणा और ममता हो ! यहां बार बार वही गलतियाँ दोहराई जाती हैं, इन मासूमों के जीवन को संरक्षित करने की आशा क्षीण होती जाती है,! इंसानो की नगरी में मानो इंसान विवेकहीन हो गया है, स्वयं के लिए...
पिता दामाद से क्या कहता है…
कविता

पिता दामाद से क्या कहता है…

श्रीमती क्षिप्रा चतुर्वेदी लखनऊ (उत्तर प्रदेश) ******************** पहला व्यक्ति जिसने इस लाडली को गोद में लिया वो मैं था, तुम नहीं , पहला अधिकार मेरा था जब पहली बार मैंने इसके माथे को चूमा तुम्हारा नहीं ! पहली मुस्कान उसकी, पहले आंसू, उसके मैंने देखे, उसे अपनी नन्ही राजकुमारी कहा, वो मैं ही था, तुम नहीं ! दुनिया की सबसे सुन्दर बेटी की निश्छलता, निर्मलता, कोमलता मैंने देखी, प्यार, नाज़, और दुलार से पाला, सम्मान और कर्तव्य सिखाये सबसे पहला पाठ पढ़ाया, वो मैं ही था! उसे साहस-ताकत का अध्याय सिखाया, पूरे दिल से प्यार देकर पाला !! आज मैं तुम्हें वहीं सम्मान देता हूँ , जिस सम्मान के अधिकारी बने तुम इसके कारण! इसी प्यार-सम्मान, से उसे सवांरना, जो आज तक उसे मैंने दिया है, उसकी रक्षा करना ! दर्द क्या होता है वो नहीं जानती, तुम अब वो पुरुष बनोगे, जि...
थोड़ा सा प्यार बांटे
कविता

थोड़ा सा प्यार बांटे

श्रीमती क्षिप्रा चतुर्वेदी लखनऊ (उत्तर प्रदेश) ******************** कहते हैं बांटने से खुशी बढ़ती है और दर्द कम हो जाता है, तो चलो आज कुछ मुस्कराहटें बांटे, रिश्तों में थोड़ी सरसराहट बांटे! पसरा है जिनके जीवन मे सन्नाटा उनमे थोड़ी पवित्रता बातें, जीवों....में मुस्कान बांटे! जीवन जीने का खुशनुमा अंदाज ना जाने कहाँ खो गया द्वेष और दिखावा छोड़ थोड़ा सा प्यार बांटे! सब कुछ पाने की चाह में चैन-शांति कहीं गुम हो गई क्यों ना थोड़ा सा सुख बांटे! नीरस सी हो रही जिंदगी जिनकी उनमे थोड़ी शरारतें थोडा सी शुभकामनाएं बांटे!! प्रकृति ने उपहार दिए हमे, नभ-जल-थल, इन्द्रधनुषी रंगों से सजे पशु-पक्षी, इनमे थोड़ी करुणा-थोड़ी ममता इनको थोड़ा सम्मान बाटें!! परिचय :- श्रीमती क्षिप्रा चतुर्वेदी पति : श्री राकेश कुमार चतुर्वेदी जन्म : २७ जुलाई १९६५ वाराणसी शिक्...
नारी और स्वतंत्रता
कविता

नारी और स्वतंत्रता

श्रीमती क्षिप्रा चतुर्वेदी लखनऊ (उत्तर प्रदेश) ******************** अखिल भारतीय कविता लिखो प्रतियोगिता विषय :- "नारी और स्वतन्त्रता की उड़ान" उत्कृष्ट सृजन पुरस्कार प्राप्त रचना शक्ति का नाम नारी, आज की आत्मनिर्भर नारी, कई रूप है उसके, मृत्यु भी उस से हारी ! आजाद देश की नारी है, किन्तु अबला कहलाती है, हर जिम्मेदारी अपनी बखूबी निभाती है !! सजग है सचेत है, सबल और समर्थ है, आधुनिक युग की नारी है सक्षम बलधारी है !! झुका सके ना उसको वो प्रचंड आसमान है, संघर्ष के शिलाओं का पूर्ण होता आकाश है!! स्नेह-प्रेम-ममता की ये तो भंडार है, हर युद्ध जीतने, अभियान उसका जारी है! चाहरदीवारी के हर बंधन तोड़, आज बनती युग निर्मात्री है, पथ है पथरीली, हर बाधा उससे हारी है !! टूटती है, बिखरती है, फिर से संवरती है, हर युग की नारी सम्मान की अधिकारी है !! स्वावलंबी बन जीवन ...
दो श्वानों की बातेँ
कविता

दो श्वानों की बातेँ

श्रीमती क्षिप्रा चतुर्वेदी लखनऊ (उत्तर प्रदेश) ******************** एक घरेलु श्वान ने एक दिन, सड़क पर पड़े श्वान की दशा देखी! दुबला पतला शरीर खंडहर बन चुका था! उसकी दुर्दशा देख घरेलु श्वान को छटपटाहट हुई, उसने सड़क के श्वान से पूछा- कहाँ रहते हो?? ये कैसा हाल बना है तुम्हारा?? क्या यहाँ इंसान नहीं रहते?? सड़क का श्वान घिसटते पैरों से, आधा गला शरीर, उसके घाव से रक्त की बूंदे रिस रही थीं, आगे बड़ने की कोशिश करते हुए, अपने दर्द से भरे शरीर को समेटते हुए बोला- प्रत्येक दिन हमारी और हम जैसे हजारों कि जिंदगी मौत से आँख- मिचौली खेलती है, खाना- पीना हमारे भाग्य में नहीं होता है , कभी किसी दरवाजे पर आस लिए पहुंचते हैं , वहाँ डंडे की मार, दुत्कार और प्रहार मिलता है , कभी कहीं हमको जिंदा आग में जलाया जाता है , कभी आग से नहलाया जाता है ! इतना ही नहीं हमारे ...
कौन हैं ये लोग
कविता

कौन हैं ये लोग

श्रीमती क्षिप्रा चतुर्वेदी लखनऊ (उत्तर प्रदेश) ******************** कौन हैं ये वृद्ध लोग एक बूढ़ा आदमी एक बूढ़ी औरत! कहने को इनके पास कोई अपना नहीं होता, ये दूसरों के बच्चों में खुद की औलाद का बचपन ढूंढते हैं! ये वृद्ध लोग अक्सर रेलवे-स्टेशन और एयरपोर्ट पर नजर आते हैं कभी कोई इन्हें लेने या छोड़ने नजर आता है! ये सदैव बूढ़े और कमजोर ही दिखते हैं व्हील चेयर और लाठी इनका सहारा होते हैं! जब ये समर्थ और इनके हाथ भरे होते हैं, इनके आसपास लोग होते हैं, हाथ खाली होते ही बोझ बन जाते हैं! इनकी रफ़्तार धीमी होती है, जिंदगी की दौड़ में पीछे छूट जाते हैं! जीवन भर सही राह पर चलते धर्म-कर्म निभाते, उम्र के इस पड़ाव पर अपना वज़ूद ढूंढते हैं, और एक दिन इस दुनिया से कूच कर जाते हैं!! परिचय :- श्रीमती क्षिप्रा चतुर्वेदी पति : श्री राकेश कुमार च...
अंतरिक्ष से बेटी वापस आई है
कविता

अंतरिक्ष से बेटी वापस आई है

श्रीमती क्षिप्रा चतुर्वेदी लखनऊ (उत्तर प्रदेश) ******************** अंतरिक्ष में एक भारतीय बेटी, सितारों के बीच उड़ान भरती, आज धरती पर वापस आई है ! चुनौतियाँ ही जीवन को रोचक बनाती हैं , उनपर विजय पाना ही जीवन को सार्थक बनाता है जहां को ये संदेश देती है! उसकी मनमोहक मुस्कान से विश्व भर मे खुशियाँ छाई हैं ! ९ महीने लंबे अंतराल के बाद धरती माँ की गोद में रौनक आई है ! धैर्य- सहनशीलता-आत्मविश्वास की परिभाषा बन चुकी है, सृष्टि के प्रति समर्पण और अदम्य साहस से गौरवशाली इतिहास लिख रही है ! जीवों को प्रेम करने वाली, आज दुनिया की मुस्कान बनी है ! आकाश से सूरज का तेज, सितारों की चमक, और चांद की शीतलता साथ लाई है , आज धरती माँ की बेटी माँ की गोद में वापस आई है!! परिचय :- श्रीमती क्षिप्रा चतुर्वेदी पति : श्री राकेश कुमार चतुर्वेदी जन्म : २७ जुलाई १...
टूटे दिल के टुकडे
कविता

टूटे दिल के टुकडे

श्रीमती क्षिप्रा चतुर्वेदी लखनऊ (उत्तर प्रदेश) ******************** रौनक भरे शहर में धुआं-धुंआ सा क्यूँ है इंसानों की भीड़ में हर शख्स अकेला सा क्यूँ हैं! एहसास यहां सोये हुए से क्यूँ हैं आदमी बुत और दिल पत्थर से क्यूँ है! इस भीड़ के कोलाहल में हर कोई वजूद सा ढूंढता है, मानो टूटे दिल का कोई टुकड़ा ढूंढता हो! अधूरी सी कहानी है टूटे दिल की गीली पलकों पर नमी आंसुओं की! रूह में घुलता खालीपन सा क्यूँ है हर दिल मे सूनापन सा क्यूँ है! प्यार मोहब्बत यहां दम तोड़ देते हैं इंसानी दिल टूट के बिखर जाते हैं! सोचा ना था जिंदगी में कभी ऐसे फंसाने होंगे टूटे दिल के टुकड़े भी समेटने होंगे !! भटकता है मन अजीब सुनसान राहों पर इधर-उधर, काश मिल जाए कोई दिल मुस्कराहट से तर-बतर!! परिचय :- श्रीमती क्षिप्रा चतुर्वेदी पति : श्री राकेश कुमार चतुर्वेदी...
होली
कविता

होली

श्रीमती क्षिप्रा चतुर्वेदी लखनऊ (उत्तर प्रदेश) ******************** संस्कृति की धरोहर है होली, संस्कारों की विरासत होली, प्रकृति का शृंगार है होली, जीवन का उपहार है होली, हम सबका गर्व है होली!! हर जीवन में रंग है भरती, चेहरों पर मुस्कान सजाती, स्नेह सौहार्द की धारा है होली रंगों की बौछार है होली !! शीत ऋतु की हो रही विदाई ग्रीष्म ऋतु की आहट आई, ज़न-जीवन मे उल्लास है भरती भूले बिसरों की याद है होली! प्रकृति की अनमोल धरोहर, हर रंग के जीव जानवर, इनपर भी हम प्यार लुटाए, प्रेम रंग से इन्हें सजाएं, मिलजुल कर त्यौहार मनाएं, आई होली आई होली!! परिचय :- श्रीमती क्षिप्रा चतुर्वेदी पति : श्री राकेश कुमार चतुर्वेदी जन्म : २७ जुलाई १९६५ वाराणसी शिक्षा : एम. ए., एम.फिल – समाजशास्त्र, पी.जी.डिप्लोमा (मानवाधिकार) निवासी : लखनऊ (उत्तर प्रदेश) सम्मान : राष्ट...
इंतजार
कविता

इंतजार

श्रीमती क्षिप्रा चतुर्वेदी लखनऊ (उत्तर प्रदेश) ******************** माँ के हाथ की लकीरों में क्यूँ सिर्फ होता है "इंतजार" माँ बनने का इंतजार, बच्चे के स्कूल जाने, उनके वापस आने का इंतजार बड़े होकर घर से बाहर निकलना उनके वापसी का इंतजार अपने हाथों से पका ममता के स्वाद से भरा भोजन खिलाने का इंतजार, बच्चों के प्यार, रूसने, मान जाने का इंतजार बूढे होते थक चुके माँ के शरीर को, प्यार से गले लगाने का इंतजार बंद कमरे के कोने मे दुबकी निढाल माँ को किसी कदमों की आहट का इंतजार, दर्द से कराहती काया को किसी के दुलार का इंतजार, कमजोर बूढे होते शरीर को मजबूत लाठी का इंतजार अखिर कब तक करे माँ इंतजार क्या उसका भाग्य है "इंतजार??? माँ की झिल्लीयां पुरानी हो जाती है पर उसका प्यार कभी पुराना और बूढ़ा नहीं होता माँ की उम्मीद की इमारत को धराशायी मत होने दो, म...
अंतिम ईच्छा
कविता

अंतिम ईच्छा

श्रीमती क्षिप्रा चतुर्वेदी लखनऊ (उत्तर प्रदेश) ******************** अंतिम ईच्छा एक जीव एक जीवन की सुनो अगर कभी जो सुनना चाहो मेरे दबे छुपे शब्दों की आवाज, गहराई में डूबी सी ध्वनि का आभास! मैंने कभी कुछ नहीं चाहा तुमसे, ना कभी माँगा तुम सलामत रहना इस सृष्टि के होने तक मेरे दिल मे मेरी आत्मा मे मेरी अठखेलियों में मेरी पवित्रता भरी मुस्कराहट में मेरी आँखों की नमी में मेरी उठती गिरती सांसो में जिनमे हर पल तुम्हारा नाम लिखा होगा मेरी पीड़ा मेरी सिसकियों में जो मैं नहीं समझ सका, किसने और क्यों दिए ?? ना जाने कितने घाव छुपे हैं इनमे! मेरी अन्तरात्मा में एक द्वंद चल रहा, नहीं जानता कब से, क्यूं प्रताडित होता रहा जीवन भर?? क्यों मेरा अस्तित्व प्रश्न चिन्ह सा बना रहा सदैव?? मेरे होने मेरे ना होने पर , सब कुछ परमात्मा में विलीन हो जायेगा स...
जीव से प्रेम
कविता

जीव से प्रेम

श्रीमती क्षिप्रा चतुर्वेदी लखनऊ (उत्तर प्रदेश) ******************** जीवों से मेरा प्रेम, मानो मन का वृंदावन हो जाना, उनके मौन से मुखरित होना मानो प्रभुमय हो जाना, उनसे भावों से जुड़ना मानो हृदय करुणामय हो जाना! उनके कष्ट से जुड़ना मानो आत्मा का जागृत हो जाना!! निमित्त बनना मानो प्रभु का आशीर्वाद मिलना!! उन से जुड़ना उतना ही सरल है जितना कृष्णा की मुरली में संगीत का होना उनसे प्रेम ना होना उतना ही कठिन है, जितना राम के लिए मन में शुद्धता का ना होना!! प्रेम असीमित है, अथाह है, जितना हो कम है निःस्वार्थ प्रेम, ईश्वर की आराधना है प्रेम, मनुष्य से प्रेम, पशुओं से प्रेम पक्षियों और पेड़ पौधों से अथाह प्रेम, प्रकृति से प्रेम, सृष्टि से प्रेम , यही हैं अनन्त, अविनाशी प्रेम परमात्मा से प्रेम अंतहीन, नाथों के नाथ......पशुपतिनाथ से प्रेम!! परिचय :...
जानवर हमसे बात करते हैं
कविता

जानवर हमसे बात करते हैं

श्रीमती क्षिप्रा चतुर्वेदी लखनऊ (उत्तर प्रदेश) ******************** हर एक जीव हमसे बात करते हैं उनके मासूमियत से भरे चेहरे हमसे बात करते हैं, उनकी अठखेलियाँ, उनका भोलापन हमसे रुबरू होते हैं नहीं समझ पाता जो कोई उनकी पीड़ा, उनकी वेदना उसकी सिसकी भरी आंहे वो सब तकलीफें हमसे बाटना चाहते हैं,! उनको नहीं समझ आता इंसानी भेष का मुखौटा इंसानी आक्रोश, इंसानी आतंक उनके भयभीत चेहरे हमसे बात करते हैं , जो सह पाऊँ उनकी पीड़ा की तपिश वही मेरे यज्ञ की आहुति होगी पूजा, हवन, अराधना तभी मेरी पूरी होगी!! नहीं पहनना चाहती आधुनिकता भरी, भारी भरकम पोशाक जिसमें इन्सानियत, मानवता दम तोड़ने लगे, उनका निश्चल प्रेम, उनका निःस्वार्थ अपनापन मुझे इंसानी पाठ पढ़ाते हैं, जीवों के हर रूप मे बसे ईश्वर ... हमसे बात करते हैं!! परिचय :- श्रीमती क्षिप्रा चतुर्वेदी पति :...
एक दिन एक “बूंद”
कविता

एक दिन एक “बूंद”

श्रीमती क्षिप्रा चतुर्वेदी लखनऊ (उत्तर प्रदेश) ******************** स्वयं के अस्तित्व को आजमाने महासागर को छोड़ चली उसे दुनिया मे भ्रमण करना था दुनिया देखना था बड़ी ही प्रसन्नता से इधर-उधर, स्वतंत्रता का आनंद उठाने लगी धीरे-धीरे अकेलापन उसे सताने लगा उसे महासागर की याद आने लगी वो सोचने लगी, कैसे वापस जा पाऊँगी कितना विरोध किया था महासागर ने मेरे अकेले निकलने का, उसका जीवन नारकीय गंदगी से गुजरता हुआ बड़े कष्ट से बीतने लगा! जब भी उसकी जीवन मे चुनौतियां आतीं उसे महासागर की बहुत याद आती महासागर से मिलने की उसकी तीव्र इच्छा होने लगी वो बहुत हताश और उदास रहने लगी एक दिन सूरज बहुत तेज गरम था सूरज की तेज रोशनी ने उसे ऊपर उठा दिया, बहुत ऊपर बादलों के पास से और भी बूंदो क़े साथ नीचे फेंक दिया, बूंद को बहुत दर्द अनुभव हुआ वो एक नदी में गिरी, कई दिनों...
सिर्फ मौन रह जाता है
कविता

सिर्फ मौन रह जाता है

श्रीमती क्षिप्रा चतुर्वेदी लखनऊ (उत्तर प्रदेश) ******************** हृदय की पीड़ा भीतर ही दबी रह जाती है चेहरे की रेखाएं सब सच कह जाती हैं सत्य वदन कारण, रिश्ते हो जाते हैं तितर-बितर, भाव सोख लेता है हृदय, संवाद नहीं करता सिर्फ मौन रह जाता है ... भ्रांतियां-झूठ, भ्रम-भटकन, हृदय करने लगता है आत्मचिंतन भावनायें विलुप्त हो जाती हैं, सुलगने लगती हैं सिसकियाँ, एक विरोध- प्रतिरोध उभरता है, स्मृतियों के पुलिंदे से, द्रवित मन सूकून ढूंढता है अकेला प्रतीक्षारत किन्तु बस केवल मौन रह जाता है ... परिचय :- श्रीमती क्षिप्रा चतुर्वेदी पति : श्री राकेश कुमार चतुर्वेदी जन्म : २७ जुलाई १९६५ वाराणसी शिक्षा : एम. ए., एम.फिल – समाजशास्त्र, पी.जी.डिप्लोमा (मानवाधिकार) निवासी : लखनऊ (उत्तर प्रदेश) सम्मान : राष्ट्रीय हिंदी रक्षक मंच इंदौर द्वारा "जीवदया अंत...
काल्पनिक स्त्री
कविता

काल्पनिक स्त्री

श्रीमती क्षिप्रा चतुर्वेदी लखनऊ (उत्तर प्रदेश) ******************** एक काल्पनिक सी स्त्री, जो सदैव नवीन होती, नए नए रूप धरती, कभी ना उम्मीद ना होती! काम काज में निपुण होती पाक कला में सिद्ध हस्त होती, सबके नाज़ो नखरे सहती हर कुछ परिपूर्ण करती! फ़ूलों की खुशबु की तरह हरदम तरोताजा रहती अपने प्राणों को मुट्ठी में दबा कर जीती बटोर कर हर टुकड़ों को, संजोकर रखती विवश हो, खामोशी से सबकी चाहतों को पूरा करती उसे नहीं पता स्वयं के सूकून-दर्द-और सपनो की परिभाषा नहीं मालूम गहरे कुएं के तल से बाहर आकाश देखना वो है एक काल्पनिक स्त्री जिसकी चाहत सभी को होती!! परिचय :- श्रीमती क्षिप्रा चतुर्वेदी पति : श्री राकेश कुमार चतुर्वेदी जन्म : २७ जुलाई १९६५ वाराणसी शिक्षा : एम. ए., एम.फिल – समाजशास्त्र, पी.जी.डिप्लोमा (मानवाधिकार) निवासी : लखनऊ (उत्तर प्रदेश) सम...
अनजाना रिश्ता
कविता

अनजाना रिश्ता

श्रीमती क्षिप्रा चतुर्वेदी लखनऊ (उत्तर प्रदेश) ******************** एकाएक जिंदगी में अनजान सा कोई आता है, जो दोस्त भी नहीं, हमसफ़र या हमराज़ भी नहीं फिर भी उस से एक अनोखा रिश्ता जुड़ जाता है !! उस के साथ सुख दुःख साझा करने का दिल करता है, वो सब कुछ सुनता और समझना चाहता है ! हमारी उलझने उसके पास आके कहीं भटक जाती हैं, कुछ पल जिंदगी के सूकून से कट जाता है वो अनजाना होकर भी दिल के करीब बस जाता है !! उस रिश्ते का कोई नाम नहीं उस रिश्ते को नाम के बंधनों से दूर ही रखा है, वो सबकी खुशी में खुश और बहते आंसुओं के दर्द को समझता है !! कोई अधिकार नहीं उसके जीवन पर हमारा, फिर भी उस पर हक जताने को दिल करता है ! वो खुदा की बनाईं प्रकृति का अनमोल हिस्सा है, उसका लाड दुलार हमसे उसके लिए कुछ करने का संकल्प दिलाता है ! वो और कोई नहीं खुदा का प्रतिनिधि है ...
करुणामयी पुकार
कविता

करुणामयी पुकार

श्रीमती क्षिप्रा चतुर्वेदी लखनऊ (उत्तर प्रदेश) ******************** थक चुका हूँ इंसानी रिश्ते निभाते-निभाते शिथिल हो गया हूँ करुणा मयी पुकार लगाते-लगाते, इंसान से दोस्ती, मेरी मजबूरी नहीं थी विश्वास, निःस्वार्थ प्रेम से सजाया था इस रिश्ते को परन्तु लगता है इंसानो के लिए बोझ बन रहा ये स्नेहिल रिश्ता मैं ही समझ ना पाया प्रेम, दया, करुणा मांग-मांग के थक गया बहुत गुहार लगाई, मेरी दर्द भरी चीख की आवाज उनके कानो तक नहीं पहुची धूमिल हो रहा है ये रिश्ता! जानवर और इंसान" के रिश्ते का अंत हो रहा है, पर हमारी ओर से ये अनंत हो रहा है!! इसी आस के सहारे चल रहा है कुछ तो इंसान, जो "इंसान होंगे" शायद वही जीवित रख पाएंगे अनंत से अंत की ओर जाते इस रिश्ते को!! परिचय :- श्रीमती क्षिप्रा चतुर्वेदी पति : श्री राकेश कुमार चतुर्वेदी जन्म : २७ जुलाई १९६५ व...
हम जानवर बेजुबान नहीं हैं
कविता

हम जानवर बेजुबान नहीं हैं

श्रीमती क्षिप्रा चतुर्वेदी लखनऊ (उत्तर प्रदेश) ******************** हम जानवर बेजुबान नहीं हैं, पर इंसानो की नीयत से अंजान है हमे मरता छोड़ देते ये तो हैवान है, ना जाने क्या है! हमे घर लाते, खूब लाड प्यार दिखाते जब हम बूढे और लाचार हो जाते हमको अंजाने रास्तो पर मरने को छोड़ जाते हम कुछ समझ ही नहीं पाते ठगे से रह जाते ! अपना अपना त्यौहार मनाते खुश होते खुशियां बांटते मग़र ना जाने क्यूँ हमारी बलि चढ़ाते जंगलों में हमारा शिकार करते हमारे बच्चों को अनाथ कर जाते खुद के स्वाद के लिए हमको हलाल करते ये कौन सा और कैसा त्यौहार मनाते हम कुछ समझ नहीं पाते ! हम में से किसी को माता मानते पूजा अर्चना करते उसी के सहारे अपना परिवार चलाते उसके दुधमुंहे बच्चों का दूध खुद पी जाते जब वो बूढी और लाचार हो जाती तब कसाई के हाथों में कटने को सौप देते इंसानी स्वार...
रहें ना रहें हम
कविता

रहें ना रहें हम

श्रीमती क्षिप्रा चतुर्वेदी लखनऊ (उत्तर प्रदेश) ******************** रहें ना रहें हम फिर भी हमारा निशान रह जाएगा! जो बीज रोपे थे बड़े अरमानों के साथ, उनमें खिलते पुष्पों की खुशबू में मेरा पता मिल जाएगा। उसमे सिंचे थे कुछ संवेदनाएं, कुछ भावनायें उन्हीं में मेरा निशान मिल जाएगा!! जिस वृक्ष को सींचा था जतन से उसका एक भी आखिरी पत्ता जो हरा रह जाएगा, उसकी निर्मलता में मेरा निशान मिल जाएगा!! कभी जो बैठना सूकून से पंछियों के कलरव और तान सुनना उनके सुर के संगीत में मेरा निशान मिल जाएगा! कल कल बहती रही जीवन भर एक नदी की तरह जो कभी बैठो उसके तट पर, चंद लम्हों के लिए, उसकी गहराईयों में मेरा निशान मिल जाएगा।। खुद के भीतर इन्सानियत को जिंदा रखना कभी जो सुनना किसी जीव की दर्द भरी कराहटें, उनकी करुणा भरी पुकार, उस दर्द में मेरा पता मिल जाएगा!! अपने ...
चीखें
कविता

चीखें

श्रीमती क्षिप्रा चतुर्वेदी लखनऊ (उत्तर प्रदेश) ******************** दीपोत्सव के बाद श्वानों की दुर्दशा देख दिल रो पड़ा, और कुछ शब्द निकल आए बचपन से अवसाद और कष्ट से पीड़ित रहा हूँ मैं समझ नहीं पाता था ये क्या और अखिर क्यों है मैं अपने रक्त रिसते घाव में चीख रहा हूँ क्या कोई मेरी पुकार सुनेगा??? मेरी खामोश चीखें भी समझ पाएगा जो मैं लाचार हो कर अंदर ही अंदर क्रंदन करता हूँ क्या कोई उसे समझ पाएगा???? हे मानव तुम्हारे मुस्कराते चेहरों के पीछे एक अंधेरी सड़क मिलों चलती है जिसपर नफरत, क्रोध, घृणा, नृशंसता रहती है मेरी सालो साल खामोश चीखें वहां तक नहीं पहुंचती हैं मुझे आग में जीते जी जलाते हो मुझे आग से नहलाते हो पाप पुण्य की भाषा नहीं समझता मगर ये इंसान का कौन सा रूप दिखाते हो???? मैं गलियों, रस्ते, काली धुंध भरी दुनिया मे रहता हूँ मैं क्या बिगाड़ प...
पाती एक जीव की
कविता

पाती एक जीव की

श्रीमती क्षिप्रा चतुर्वेदी लखनऊ (उत्तर प्रदेश) ******************** इंसानो ने पत्थर का कलेजा बनाया होगा तभी उसमें इतनी नफरत, क्रोध, हिंसा को समाया होगा, हम हैं एक जीव ये भूल गया होगा हमे भी उसके जैसे ईश्वर ने ही बनाया होगा! भूल गया इंसान हमारे वज़ूद को नहीं होता आभास हमारे दर्द भरी पुकारों का!, हम तरसते रहते थोड़े से प्यार और ममता के लिए, घायल तन, व्यथित मन बोझिल कदम लिए, कभी तो हमारे अस्तित्व का उनको संज्ञान होगा, उनके दिलों में हमारे लिए भी करुणा और प्यार होगा! चोट नहीं, दुत्कार नहीं, स्नेह का दीपक कभी तो जलाया होगा!! हे मानव तुम मे से ही कोई मसीहा कहीं जगा होगा, हमारे दर्द भरी कराहटों को सुना होगा, प्यार के मलहम से हमे संवारा होगा उस मसीहा ने ही धरती पर हम सबके संरक्षण का प्रण लिया होगा, तभी तो बच पाए हैं हम "जानवर" इस धरती पर हम में भी...
ज्ञान एवं अज्ञानता
कविता

ज्ञान एवं अज्ञानता

श्रीमती क्षिप्रा चतुर्वेदी लखनऊ (उत्तर प्रदेश) ******************** ज्ञानी-अज्ञानी में केवल एक मात्रा का अन्तर है जो मनुष्य के साथ निरंतर है ज्ञानी मृत्यु की वास्तविकता को सहज रूप मे लेता है अज्ञानी संसारी होता है मृत्यु पर क्रंदन करता है! ज्ञान रोने के कारण को मिटा देता है अज्ञान नित नए रोने के कारणों में उलझता जाता है , ज्ञानी हर परिस्थिति में प्रसन्नचित्त होता है वो जानता है समझता है, जो कुछ भी छूट रहा वो मेरा नहीं इस जनम में कुछ भी "मेरा-तेरा" नहीं एक अखंड सत्य है आत्मा का आना जाना परिवर्तन, शाश्वत सत्य है, समझता है! संसारी रूदन करता है, जो कुछ मिला वो उसे अपना अधिकार समझ, स्वयं के परिणामों के फलस्वरुप प्राप्त किया, यही समझता है, जो कुछ छूट रहा उस पर अपना ही प्रभुत्व मान रुदन करता है, यही ज्ञानी-अज्ञानी में भेद का कारण होता है यही अशांति क...