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Tag: संजय वर्मा “दॄष्टि”

माँ  कृपा
कविता

माँ कृपा

संजय वर्मा "दॄष्टि" मनावर (धार) ******************** माँ कृपा बड़ी निराली है करो समर्पण फिर जिंदगी में खुशहाली है भले ही माँ भूखी रह जाती है मुझे आई तृप्ति की डकार से माँ संतुष्ट हो जाती है। संसार में माँ ही शक्तिशाली है बिन माँ के दुनिया की बदहाली है माँ रातो को लोरिया सुनाती है नींद में मीठे सपनो को बुलाती है। कभी नींद में हँसाती गालो में गड्डे बनाती है जब जब माँ की याद आती है सुबह मीठी आवाज में उठाती है। माथे को चुम कर बालो को सहलाती है स्वर्ग धरा पर बनाती है माँ का कृपा बड़ी निराली है करो समर्पण फिर जिंदगी में खुशहाली है। परिचय :- संजय वर्मा "दॄष्टि" पिता :- श्री शांतीलालजी वर्मा जन्म तिथि :- २ मई १९६२ (उज्जैन) शिक्षा :- आय टी आय व्यवसाय :- ड़ी एम (जल संसाधन विभाग) प्रकाशन :- देश-विदेश की विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में रचनाएँ व समाचार पत्रों में निर...
गांव और शहर
कविता

गांव और शहर

संजय वर्मा "दॄष्टि" मनावर (धार) ******************** शहर जागता देर रात गांव जल्द सो जाता सुबह जल्द गांव उठता शहर उठता देर से खरगोश कछुए की कहानी की तरह। गांव उठेगा तो ही शहर जागेगा क्योंकि दूध चाय का गांव से ही तो आता। आती है ताजी सब्जियां गांव से जल्द सो जल्द उठो स्वास्थ्य का होता मंत्र सूरज की पहली किरण के दर्शन देवस्थानों से बजती घंटी पंछियों का कलरव पशु सेवा के पुनीत कार्य ईश्वरीय आराधना नित्य बनते ये क्रम गांव शहर का आधार बनाता सर्वसुविधा होती ये शहर दर्शाता गांवों में होती कहां सर्वसुविधा इसलिए तो गांव-गांव कहलाता शहर इसलिए तो इतराता। परिचय :- संजय वर्मा "दॄष्टि" पिता :- श्री शांतीलालजी वर्मा जन्म तिथि :- २ मई १९६२ (उज्जैन) शिक्षा :- आय टी आय व्यवसाय :- ड़ी एम (जल संसाधन विभाग) प्रकाशन :- देश-विदेश की विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में रचनाएँ व समाचार ...
चाँद-चकोर
कविता

चाँद-चकोर

संजय वर्मा "दॄष्टि" मनावर (धार) ******************** आकाश की आँखों में रातों का सूरमा सितारों की गलियों में गुजरते रहे मेहमां मचलते हुए चाँद को कैसे दिखाए कोई शमा छुप छुपकर जब चाँद हो रहा हो जवां। चकोर को डर भोर न हो जाएँ चमकता मेरा चाँद कहीं खो न जाए मन बेचैन आँखे पथरा सी जाएगी विरह मन की राहें रातें निहारती जाएगी। चकोर का यूँ बुदबुदाना चाँद को यूँ सुनाना ईद और पूनम पे बादलो में मत छुप जाना याद रखना बस इतना न तरसाओ मेरे चाँद तुम खुद मेरे पास चले आओ। परिचय :- संजय वर्मा "दॄष्टि" पिता :- श्री शांतीलालजी वर्मा जन्म तिथि :- २ मई १९६२ (उज्जैन) शिक्षा :- आय टी आय व्यवसाय :- ड़ी एम (जल संसाधन विभाग) प्रकाशन :- देश-विदेश की विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में रचनाएँ व समाचार पत्रों में निरंतर पत्र और रचनाओं का प्रकाशन, प्रकाशित काव्य कृति "दरवाजे पर दस्तक", खट्...
मकान का रिश्ता
कविता

मकान का रिश्ता

संजय वर्मा "दॄष्टि" मनावर (धार) ******************** नाना-नानी का मकान जहाँ बिताई गर्मी की छुट्टियाँ नाना का लाड नानी का दुलार नाना के हाथों लाई इमरती नानी का झूला नानी की कहानी। मेरे मस्ती करने पर नानी मुझे नहीं माँ को डांटती दुलार के डाट से ढक देती नाना-नानी बन चुके जो तारे गर्मी की छुट्टियों में सूने घर में नहीं मिलती नाना-नानी की मुझे बुलाती आवाजे। नहीं झूलते हवाओं से झूले रातों को आकाश में सूने नयन उन्हें निहारते नाना-नानी का आशियाना टूट चूका उनकी उम्र की तरह यादें तस्वीरों में कैद आँखों में आँसू लिए रिश्ते निहार रहे ढहते मकान। नयापन लौट आएगा नई उमंगों के साथ ये वैसा ही लगेगा जैसे बुजुर्गों के गुजर जाने के बाद नन्हें बालक ने लिया हो जन्म नए रिश्तों के साथ नई उमंगों के साथ बुजुर्गों के आशीर्वाद के साथ नयापन समेटे। परिचय :- संजय वर्मा "...
बातें फूलो की
कविता

बातें फूलो की

संजय वर्मा "दॄष्टि" मनावर (धार) ******************** फूलों का ये कहना दिल की बातें दिल में ही रखना छीन ले जाता कोई खुशबू हमसे बस इसी बात का तो रोना । फूल बिन सेहरा गजरा के उदास हुए जाने क्या औंस ने कह दिया खुशबू उतनी ही बची फूलों की इतनी सी बात पर तितली-भोरे फूलों के अब खास हुए। उड़ा ना पवन खुशबुओं को इस तरह मोहब्बत रूठ जाएगी बेमौसम के पतझड़ की तरह कुछ याद रहेगी कुछ दिल से टकरायेगी बसेगी वो दिल में तुम्हारी यादों को महकायेगी| खुशबू भी रूठ जाती फूलों से जब कांटों की पहरेदारी बनती दगाबाज की तरह तोड़ लेता दिलबर खिले फूलों को मोहब्बत को मनाने की तरह। परिचय :- संजय वर्मा "दॄष्टि" पिता :- श्री शांतीलालजी वर्मा जन्म तिथि :- २ मई १९६२ (उज्जैन) शिक्षा :- आय टी आय व्यवसाय :- ड़ी एम (जल संसाधन विभाग) प्रकाशन :- देश-विदेश की विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में रचनाएँ व समाच...
चिड़ियों की चहचहाहट
कविता

चिड़ियों की चहचहाहट

संजय वर्मा "दॄष्टि" मनावर (धार) ******************** बादलों की ओट में खिला छुपा चाँद पहाड़ों पर जाती पगडण्डी मन आकाश में चाँद के इंतजार में घुप्प अंधेरा रात स्याही विरहन सी पत्तों की सरसराहट उल्लू की कराहती आवाज लगता मृत्यु जीवन को गले लगाए बैठी चाँद निकला बादलों से सूखे दरख्तों सूखी नदियों ने ओढ रखा हो धवल चाँदनी का कफ़न जंगल कम हुए नदियाँ प्रदूषित हो सूख रही मानों ऐसा लगता मौत हो चुकी पर्यावरण की धरा से आँखे चुराता चाँद छुप जाता बादलों की ओट निंदिया टूटी स्वप्न छूटा भोर हुई नई उम्मीदों से जंगल सजाने नदियों की कलकल चिड़ियों की चहचहाहट ने दिया पर्यावरण को पुनर्जन्म। परिचय :- संजय वर्मा "दॄष्टि" पिता :- श्री शांतीलालजी वर्मा जन्म तिथि :- २ मई १९६२ (उज्जैन) शिक्षा :- आय टी आय व्यवसाय :- ड़ी एम (जल संसाधन विभाग) प्रकाशन :- देश-विदेश की विभिन्न पत्र-पत्...
समर्थन
कविता

समर्थन

संजय वर्मा "दॄष्टि" मनावर (धार) ******************** विधवा शब्द कहना कठिन उससे भी कठिन अँधेरी रात में श्रृंगार का त्याग श्रृंगारित रूप का विधवा में विलीन होना जीवन की गाड़ी के पहिये में एक का न होना चेहरे पर कोरी झूठी मुस्कान होना घर आँगन में पेड़ झड़ता सूखे पत्ते ये भी साथ छोड़ते जीवन चक्र की भाति सुना था पहाड़ भी गिरते स्त्री पर पहाड़ गिरना समझ आया कुछ समय बाद पेड़ पर पुष्प हुए पल्ल्वित जिन्हे बालो में लगाती थी कभी वो बेचारे गिर कर कहरा रहे और मानो कह रहे उन लोगो से जो शुभ कामों में तुम्हे धकेलते पीछे स्त्री का अधिकार न छीनो बिन स्त्री के संसार अधूरा हवा फूलों की सुगंध के साथ मानों कर रही हो गिरे पूष्प का समर्थन। परिचय :- संजय वर्मा "दॄष्टि" पिता :- श्री शांतीलालजी वर्मा जन्म तिथि :- २ मई १९६२ (उज्जैन) शिक्षा :- आय टी आय व्यवसाय :- ड़ी एम (जल संसाधन विभाग) ...
बेटी
कविता

बेटी

संजय वर्मा "दॄष्टि" मनावर (धार) ******************** प्रेम पूजा रिश्तों का बीज होती है बेटी बड़े ही नाजों से घरों में पलती है बेटी बाबुल की हर बात को मानती है बेटी घर में माँ के संग हाथ बटाती है बेटी छोटें भाइयों को डांटती समझाती है बेटी माता-पिता का दायित्व निभाती है बेटी संजा, रंगोली, आरती को सजाती है बेटी घर में हर्ष, उत्साह, सुकून दे जाती है बेटी ससुराल जाती तो बहुत याद आती है बेटी पिया के घर रिश्तों में उर्जा भर जाती है बेटी इंसानी जिन्दगी का मूलमंत्र होती है बेटी दुनिया होती है अधूरी जब न होती है बेटी परिचय :- संजय वर्मा "दॄष्टि" पिता :- श्री शांतीलालजी वर्मा जन्म तिथि :- २ मई १९६२ (उज्जैन) शिक्षा :- आय टी आय व्यवसाय :- ड़ी एम (जल संसाधन विभाग) प्रकाशन :- देश-विदेश की विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में रचनाएँ व समाचार पत्रों में निरंतर पत्र और रचनाओं का प्रकाशन, प...
शक्ति
कविता

शक्ति

संजय वर्मा "दॄष्टि" मनावर (धार) ******************** दुःख सुख के संग वो तुम्हारा मर्म जानती मगर कह नहीं पाती। विचारों से करती संघर्ष जैसे स्त्री ससुराल की उत्पीड़न की बात नहीं बताती बाबुल को। झूठी हंसी लिए खुश रहती उत्पीड़न का दर्द किस्से छिपाए। उत्पीड़न में मिलते सिर्फ वेदना के स्वर जो बाटें जाते एक कहानी के तरह। उत्पीड़न की पीड़ा को नए जमाने में ना छिपाओ। बताओं दुनिया को क्योकिं स्त्री सशक्तिकरण की शक्ति तुम्हारे अब जो साथ है। परिचय :- संजय वर्मा "दॄष्टि" पिता :- श्री शांतीलालजी वर्मा जन्म तिथि :- २ मई १९६२ (उज्जैन) शिक्षा :- आय टी आय व्यवसाय :- ड़ी एम (जल संसाधन विभाग) प्रकाशन :- देश-विदेश की विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में रचनाएँ व समाचार पत्रों में निरंतर पत्र और रचनाओं का प्रकाशन, प्रकाशित काव्य कृति "दरवाजे पर दस्तक", खट्टे मीठे रिश्ते उपन्यास कनाडा-अ...
नाव
कविता

नाव

संजय वर्मा "दॄष्टि" मनावर (धार) ******************** घर आंगन जो बुहारे गए धूल भरी आंधी सूखे पत्तों संग कागज के टुकड़ों को बिखेर जाती पागल हवा। सूने आंगन में बुहार कर सोचता हूं कागज की नाव बना लू पानी से भरे गड्ढों को ढूंढता हूं। हम तो बच्चे थे तब कागज की नाव चलाते जल बचाएंगे तभी सब की नाव सही तरीके से चलेगी जल बचाएंगे तो ही आने वाली पीढ़ी के बच्चे नाव बनाना और चलाना भी सीख पाएंगे। परिचय :- संजय वर्मा "दॄष्टि" पिता :- श्री शांतीलालजी वर्मा जन्म तिथि :- २ मई १९६२ (उज्जैन) शिक्षा :- आय टी आय व्यवसाय :- ड़ी एम (जल संसाधन विभाग) प्रकाशन :- देश-विदेश की विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में रचनाएँ व समाचार पत्रों में निरंतर पत्र और रचनाओं का प्रकाशन, प्रकाशित काव्य कृति "दरवाजे पर दस्तक", खट्टे मीठे रिश्ते उपन्यास कनाडा-अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर विश्व के ६५ रचनाकारों में लेखन...
गर धरा ना होती तो
कविता

गर धरा ना होती तो

संजय वर्मा "दॄष्टि" मनावर (धार) ******************** गर धरा ना होती तो तो रिश्ते ना होते भू लोक का नाम ना होता प्राण वायु कहा से पाते जीवन का आधार ही खत्म हो जाते ना दिन ना राते होती न तारों को गिन पाते जन्म जन्म का साथ हम कहाँ से पाते गर धरा ना होती तो सभी जीवों को हम कहा देख पाते। परिचय :- संजय वर्मा "दॄष्टि" पिता :- श्री शांतीलालजी वर्मा जन्म तिथि :- २ मई १९६२ (उज्जैन) शिक्षा :- आय टी आय व्यवसाय :- ड़ी एम (जल संसाधन विभाग) प्रकाशन :- देश-विदेश की विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में रचनाएँ व समाचार पत्रों में निरंतर पत्र और रचनाओं का प्रकाशन, प्रकाशित काव्य कृति "दरवाजे पर दस्तक", खट्टे मीठे रिश्ते उपन्यास कनाडा-अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर विश्व के ६५ रचनाकारों में लेखनीयता में सहभागिता भारत की और से सम्मान - २०१५, अनेक साहित्यिक संस्थाओं से सम्मानित संस्थाओं से सम्बद्ध...
बांसुरी वादन
कविता

बांसुरी वादन

संजय वर्मा "दॄष्टि" मनावर (धार) ******************** बांसुरी वादन से खिल जाते थे कमल वृक्षों से आँसू बहने लगते स्वर में स्वर मिलाकर नाचने लगते थे मोर गायें खड़े कर लेती थी कान पक्षी हो जाते थे मुग्ध ऐसी होती थी बांसुरी तान। नदियाँ कलकल स्वरों को बांसुरी के स्वरों में मिलाने को थी उत्सुक साथ में बहाकर ले जाती थी उपहार कमल के पुष्पों के। ताकि उनके चरणों में रख सके कुछ पूजा के फूल ऐसा लगने लगता कि बांसुरी और नदी मिलकर करती थी कभी पूजा। जब बजती थी बांसुरी घन, श्याम पर बरसाने लगते जल अमृत की फुहारें अब समझ में आया जादुई आकर्षण का राज जो की आज भी जीवित है बांसुरी की मधुर तान में। माना हमने भी बांसुरी बजाना पर्यावरण की पूजा करने के समान है जो की हर जीवों में प्राण फूंकने की क्षमता रखती हमारी कर्ण प्रिय बांसुरी। परिचय :- संजय वर्मा "दॄष्टि" पिता ...
तुलसी के राम
कविता

तुलसी के राम

संजय वर्मा "दॄष्टि" मनावर (धार) ******************** तुलसी के राम ही शक्ति के दाता दर्शन मात्र से सारे सुख पाता। जब ध्यान लगाएं हरदम तुझमें पुनीत विचार सब समाए मुझमे। तुलसी के राम की छवि बड़ी निराली कण-कण में समाई खुशहाली। सारा जग होता तुझसे ही रोशन प्राणी पाते धन धान्य और पोषण। सांस सांस में है बसा नाम तुम्हारा तुलसी जे राम ही तो है बस मेरा सहारा। हे तुलसी के राम सारा जग तो है तुम्हारा जग में तुम बिन कोई नही है हमारा। पूजन करो और बोलो जय श्रीराम दुःख सारे दूर होंगे मिलेगा सुख आराम। परिचय :- संजय वर्मा "दॄष्टि" पिता :- श्री शांतीलालजी वर्मा जन्म तिथि :- २ मई १९६२ (उज्जैन) शिक्षा :- आय टी आय व्यवसाय :- ड़ी एम (जल संसाधन विभाग) प्रकाशन :- देश-विदेश की विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में रचनाएँ व समाचार पत्रों में निरंतर पत्र और रचनाओं का प्रकाशन, प्रकाशित काव्य कृति "दरव...
खत
कविता

खत

संजय वर्मा "दॄष्टि" मनावर (धार) ******************** खत रुला भी सकता यदि यादें जुड़ी हो खत कोई ऐसे ही नहीं होते बोल दिया यानि एक से सुना दूसरे से निकाल दिया विचारो के शब्दों का ऐसा सम्मोहन जिसे हजारो साल बाद भी पढ़ों तो लगे जैसे आज की बात हो। मृत्यु से परे शब्द इसलिए तो अमर होते वे शब्दों को जन्म देते कलम और कागज प्रेम का खत प्रेयसी लिफाफे के किनारों पर लगे गोंद से अपने होठों से चिपकाती। वो बात इलेक्ट्रॉनिक दुनिया में कहाँ खत संदूक में किताबों में ईश्वर की तरह पूजे जाते आखिर प्रेम ही के ढाई अक्षर ताउम्र साथ रहते और दिल के कोने में उनका प्रेम का भी मकान भी रहता। परिचय :- संजय वर्मा "दॄष्टि" पिता :- श्री शांतीलालजी वर्मा जन्म तिथि :- २ मई १९६२ (उज्जैन) शिक्षा :- आय टी आय व्यवसाय :- ड़ी एम (जल संसाधन विभाग) प्रकाशन :- देश-विदेश की विभिन्न पत्र-पत्र...
मीठी बातें
कविता

मीठी बातें

संजय वर्मा "दॄष्टि" मनावर (धार) ******************** गाँवों में नीदं मीठी होती बौराये आमों तले कोयल की कूक भी मीठी होती। पत्तों से झांकती सूरज की किरणें तपिश को ठंडा कर देती खेत से पुकारती आवाजें सुबह की बयार को मीठा कर देती। गोरी के पनघट पे जाने से पायल कानों में मिठास घोल देती बैलों की घंटियाँ मीठी बातें कहती लगता हो जैसे नदियां इन्ही मिठास से इठलाती बहती। परिचय :- संजय वर्मा "दॄष्टि" पिता :- श्री शांतीलालजी वर्मा जन्म तिथि :- २ मई १९६२ (उज्जैन) शिक्षा :- आय टी आय व्यवसाय :- ड़ी एम (जल संसाधन विभाग) प्रकाशन :- देश-विदेश की विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में रचनाएँ व समाचार पत्रों में निरंतर पत्र और रचनाओं का प्रकाशन, प्रकाशित काव्य कृति "दरवाजे पर दस्तक", खट्टे मीठे रिश्ते उपन्यास कनाडा-अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर विश्व के ६५ रचनाकारों में लेखनीयता में सहभागिता भ...
माँ हो गई विलीन
कविता

माँ हो गई विलीन

संजय वर्मा "दॄष्टि" मनावर (धार) ******************** जब तक जीवित थी मोबाइल पर अपनों के कैसे हो से हाल चाल पूछा करती उसे अकेलापन महसूस नही होता अपनों से बात करके नजदीकी का अहसास कर लेती वो पढ़ी लिखी थी इसलिए लॉकडाउन की परिभाषा समझती थी। सबकी सुखद कामना आशीर्वाद के संग हमेशा करती माँ आरती में रखे कपूर की तरह मायने रखती जिसके बिना आरती अधूरी आरती की पंक्तियां अधूरी माँ का हँसता चेहरा सदा मन मस्तिष्क पर रहते हुए हर पल याद आता माँ दरवाजे पर खड़ी होकर अपनों की राह निहारती अब चौखट सूनी सी जिस पर ताला लगा ये बताता माँ के पास ही चाभी थी जिससे वो मुझ जैसे ताले पर विश्वास रखती की घर में सुरक्षित है। संक्रमण काल मे जीवन को निगलने वाला वायरस माँ को निगल गया सारी शक्तियां, आस्था, विश्वास, रिश्तें अशक्त हो गए इन पर विश्वास था वो भी बेजान हो गए यादों का पिटारा ...
माँ मै दौडूंगा
कविता

माँ मै दौडूंगा

संजय वर्मा "दॄष्टि" मनावर (धार) ******************** माँ मै तुम्हारे लिए दौडूंगा जीवन भर आप मेरे लिए दौड़ती रही कभी माँ ने यह नहीं दिखाया कि मै थकी हूँ। माँ ने दौड़ कर जीवन की सच्चाइयों का आईना दिखाया सच्चाई की राह पर चलना सिखाया। अपने आँचल से मुझे पंखा झलाया खुद भूखी रह कर मेरी तृप्ति की डकार खुद को संतुष्ट पाया। माँ आप ने मुझे अँगुली पकड़कर चलना बोलना लिखना सिखाया और बना दिया बड़ा आदमी मै खुद हैरान हूँ। मै सोचता हूँ मेरे बड़ा बनने पर मेरी माँ का हाथ और संग सदा उनका आशीर्वाद है यही तो सच्चाई का राज है। लोग देख रहे खुली आँखों से माँ के सपनों का सच जो उन्होंने मेहनत भाग दौड़ से पूरा किया माँ हो चली बूढ़ी अब उससे दौड़ा नहीं जाता किंतु मेरे लिए अब भी दौड़ने की इच्छा है मन में। माँ अब मै आप के लिए दौडूंगा ता उम्र तक दौडूंगा दुनिया को ये दिखा संकू ...
सूरज
कविता

सूरज

संजय वर्मा "दॄष्टि" मनावर (धार) ******************** खिले कमल और सूरज की किरणों की लालिमा लगती चुनर पहनी हो फिजाओं ने। गुलाबी खिलते कमल लगते तालाब के नीर ने लगाई हो पैरों में जैसे महावार। भोर का तारा छुप गया उषा के आँचल पंछी कलरव, माँ की मीठी पुकार| सच अब तो सुबह हो गई श्रम के पांव चलने लगे अपने निर्धारित लक्ष्य और हर दिन की तरह सूरज देता गया धरा पर ऊर्जा। परिचय :- संजय वर्मा "दॄष्टि" पिता :- श्री शांतीलालजी वर्मा जन्म तिथि :- २ मई १९६२ (उज्जैन) शिक्षा :- आय टी आय व्यवसाय :- ड़ी एम (जल संसाधन विभाग) प्रकाशन :- देश-विदेश की विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में रचनाएँ व समाचार पत्रों में निरंतर पत्र और रचनाओं का प्रकाशन, प्रकाशित काव्य कृति "दरवाजे पर दस्तक", खट्टे मीठे रिश्ते उपन्यास कनाडा-अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर विश्व के ६५ रचनाकारों में लेखनीयता में सहभागिता भारत...
चांदनी
कविता

चांदनी

संजय वर्मा "दॄष्टि" मनावर (धार) ******************** चौखट की ओट से जब तुम्हारी निगाहे निहारती लगता सांझ को इंतजार हो रोशनी का राह पर गुजरते अहसास दे जाते तुम्हारी आँखों मे एक अजीब सी चमक पूनम का चाँद देता तुम्हारे चेहरे पर चांदी सी रोशनी तुम्हें देख लगता चांदनी शायद इसी को तो कहते दरवाजे बंद हो तो लग जाता चंद्रग्रहण लोग कहाँ समझते चांदनी का महत्व करवा चौथ शरद पूर्णिमा तीज, ईद चाँदनी बिना अधूरे वैसे तुम भी हो रातों में चाँद की चाँदनी का खिलने का इंतजार फूल भी करते जैसे उपासक करते तुम्हारे चौखट पर खड़े रहने का इंतजार ही कुछ ऐसा जो चांदनी की रोशनी में कर देगा मदहोश। परिचय :- संजय वर्मा "दॄष्टि" पिता :- श्री शांतीलालजी वर्मा जन्म तिथि :- २ मई १९६२ (उज्जैन) शिक्षा :- आय टी आय व्यवसाय :- ड़ी एम (जल संसाधन विभाग) प्रकाशन :- देश-विदेश की विभिन्न ...
कैसे-कैसे रिश्ते
कविता

कैसे-कैसे रिश्ते

संजय वर्मा "दॄष्टि" मनावर (धार) ******************** छिन लिया आसरा पेड़ को कटते देख दूसरे पौधे रो रहे थे कौन समझे इनकी पीड़ा नेक इंसान ही समझते उसे लगा होगा जैसे, माता-पिता के मरने पर रोते है कैसे रिश्ते यह जानते हुए भी खोने दे रहा है खुद के जीने की प्राण वायु पेड़ की खोल के रहवासी उड़े भागे थे ऐसे जैसे भूकंप आने पर लोग छोड़ देते है मकान थरथरा कर गिर पड़ा था पेड़ पेड़ के रिश्तेदार, मूक पशु-पक्षी खड़े सड़क पर, बैठे मुंडेरों पर आँखों में आँसू लिए विचलित अस्मित भाव से कर रहे संवेदना प्रकट और मन ही मन में सोच रहे क्यों छिन लिया आसरा हमसे क्रूर इंसान ने। परिचय :- संजय वर्मा "दॄष्टि" पिता :- श्री शांतीलालजी वर्मा जन्म तिथि :- २ मई १९६२ (उज्जैन) शिक्षा :- आय टी आय व्यवसाय :- ड़ी एम (जल संसाधन विभाग) प्रकाशन :- देश-विदेश की विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में रचनाएँ व समाचार ...
प्रेम का इजहार
कविता

प्रेम का इजहार

संजय वर्मा "दॄष्टि" मनावर (धार) ******************** पेड़ पर मौसम आने पर लगते फूल और फल पेड़ प्रेम का प्रतीक बन जाते जब बांधी जाती प्रेम के संकल्प की धागे की गठान पेड़ की टहनी पकड़े करती प्रेम का इजहार या पेड़ के तने से सटकर खड़ी रहती पेड़ एक दिन बीमारी से सूख गया प्यार भी कही खो गया चाहत भी गम में हुआ बीमार एक दिन चला गया मृत्यु की आगोश में संयोग वो जब जला दाहसंस्कार में लकड़ियाँ उसी पेड़ की थी अधूरा इश्क रहा जीवन मे रूह तृप्त हुई इश्क़ की चाहत ने कभी टहनियों को छुआ तो था कभी। परिचय :- संजय वर्मा "दॄष्टि" पिता :- श्री शांतीलालजी वर्मा जन्म तिथि :- २ मई १९६२ (उज्जैन) शिक्षा :- आय टी आय व्यवसाय :- ड़ी एम (जल संसाधन विभाग) प्रकाशन :- देश-विदेश की विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में रचनाएँ व समाचार पत्रों में निरंतर पत्र और रचनाओं का प्रकाशन, प्रकाशित काव्य कृति "द...
जरा मुस्कुरा दो माँ
कविता

जरा मुस्कुरा दो माँ

संजय वर्मा "दॄष्टि" मनावर (धार) ******************** जरा मुस्कुरा दो माँ तेरा आँचल मेरे चेहरे पर डाल जब आँचल खींच बोलती "ता" खिलखिलाहट से गूंज उठता घर। गोदी में झूला सा अहसास मीठी लोरी माथे पर थपकी अपलक निहारने नींद को बुलाने आ जाने पर नरम स्पर्श से माथे को चूमना। आँगन में तुलसी सी मां मेरी तोतली जुबान पर मुस्कुराती माँ क्योकि मैने तुतलाती जुबान से पहला शब्द बोला "माँ" जैसे बछड़ा बिना सीखाये रम्भाता "माँ" दुआओं का अनुराग लिए रिश्ते-नातों का पाठ सिखाती माँ खाना खाने की पुकार लगाना जैसे माँ का रोज का कार्य हो। वर्तमान भले बदला माँ की जिम्मेदारी नहीं बदली अब भी मेरे लिए सदा खुश रहने की मांगती रहती ऊपर वाले से दुआ। रात हो गई अभी तक नहीं आया की माँ करती रहती फिक्र ऐसी पावन होती है माँ। खुद चुपके से रो कर हमें हँसाने वाली माँ पिता के डाटने पर मे...
प्रदूषण का पिंजरा
कविता

प्रदूषण का पिंजरा

संजय वर्मा "दॄष्टि" मनावर (धार) ******************** झर-झर बहते झरने कल-कल बहती नदियों की आवाजें मानो गुम सी हो गई हो या हम बहरे हो गए ये समझ में नहीं आता। सोचता हूँ कैद कर लिए होंगे इन्हें प्रदूषणों के पिंजरों में किसी ने इनके मीठे शोरों को। पर्यावरण को बचाने हेतु शुष्क कंठ लिए मृगतृष्णा सा भटकता इंसान क्या इन्हे प्रदूषण मुक्त कर पाएगा। श्रमदान से नदियों को पुनर्जीवित करके इंसान माँग ले यदि वरदान भागीरथ सा तो फिर से झर-झर बहते झरने कल-कल बहती नदियों की आवाजें इस धरा पर पा सकता है। परिचय :- संजय वर्मा "दॄष्टि" पिता :- श्री शांतीलालजी वर्मा जन्म तिथि :- २ मई १९६२ (उज्जैन) शिक्षा :- आय टी आय व्यवसाय :- ड़ी एम (जल संसाधन विभाग) प्रकाशन :- देश-विदेश की विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में रचनाएँ व समाचार पत्रों में निरंतर पत्र और रचनाओं का प्रकाशन, प्रकाशि...
जिंदगी के ख्वाब
कविता

जिंदगी के ख्वाब

संजय वर्मा "दॄष्टि" मनावर (धार) ******************** शराब पीकर रातों को बने शहंशाह सुबह हो जाते भिखारी बच्चे स्कूल जाते समय पापा से मांगते पॉकेट मनी ताकि छुट्टी के वक्त दोस्तों को खिला सके चॉकलेट| फटी जेब और खिसियानी हंसी बच्चों को दे न पाती पॉकेट मनी और उनके लिए कभी कुछ कर न पाती बच्चों के चेहरे की हंसी को छीन लेती इसलिए होती शराब ख़राब| सुनहरे ख्वाब दिखाती किंतु वादे पूरे ना कर पाती डायन होती शराब पूरे परिवार को खा जाती और उजाड़ जाती जिंदगी में बने हुए ख्वाब। परिचय :- संजय वर्मा "दॄष्टि" पिता :- श्री शांतीलालजी वर्मा जन्म तिथि :- २ मई १९६२ (उज्जैन) शिक्षा :- आय टी आय व्यवसाय :- ड़ी एम (जल संसाधन विभाग) प्रकाशन :- देश-विदेश की विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में रचनाएँ व समाचार पत्रों में निरंतर पत्र और रचनाओं का प्रकाशन, प्रकाशित काव्य कृति "दरवाजे पर दस्तक...
गवाह
कविता

गवाह

संजय वर्मा "दॄष्टि" मनावर (धार) ******************** फूल ही तो होते प्रेम के गवाह ये भी सच है फूलों की खुश्बू भी देती मौसम में प्यार की यादों का संकेत। जब उसे तुम्हारी याद आती और तुम्हें उसकी। बहारें इन्तजार करवाती उसी तरह जिसका तुम इन्तजार हर मौसम में एक दीदार पा जाने के लिए करते थे। अब प्यार के फूल गवाह बनकर कर रहे इंतजार। परिचय :- संजय वर्मा "दॄष्टि" पिता :- श्री शांतीलालजी वर्मा जन्म तिथि :- २ मई १९६२ (उज्जैन) शिक्षा :- आय टी आय व्यवसाय :- ड़ी एम (जल संसाधन विभाग) प्रकाशन :- देश-विदेश की विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में रचनाएँ व समाचार पत्रों में निरंतर पत्र और रचनाओं का प्रकाशन, प्रकाशित काव्य कृति "दरवाजे पर दस्तक", खट्टे मीठे रिश्ते उपन्यास कनाडा-अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर विश्व के ६५ रचनाकारों में लेखनीयता में सहभागिता भारत की और से सम्मान - २०१५, अन...