
अंजली सांकृत्या
जयपुर (राजस्थान)
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सुना हैं
मैं बेज़ुबान जानवर हूँ!!
बहुत विस्मय की बात हैं ना?
जहाँ मानुष जीवन हैं
वहाँ मेरा भी अस्तित्व हैं
सुनो ना!
मैं भी भूखा हूँ
मुझे भी खाना चाहिए
मुझे भी खिलाओ ना
खिलाओगे ना?
मैंने तो जंगल में
ख़ूब ढूँढा
पर सब सूखा हैं
मानुष ने अपने लिए
वृक्षों की कटाई जो की हैं।
देखो ना
वहाँ कुछ मानुष हैं
लगता हैं भले लोग हैं
अब मेरी भूख प्यास मिट जाएँगीं
हैं ना?
देखो वो आ रहे हैं
साथ अपने
कुछ ला रहे हैं
मालिक मुझे खिलाओ ना
बहुत भूखा हूँ
मालिक हाँ
खिलाता हूँ।
मैं सब खा गया
उनका ज़िन्दगी भर का
क़र्ज़दार बन गया…
कब तक ?
आह
मानुष ये क्या किया ?
मुझे इतनी पीड़ा क्यूँ
मुझसे सहन नहि हो रही…
ये मुझे मार देगी
हँस रहे हो?
मानुष ऐसा क्यों किया..
मेरी हत्या क्यों कि?
मानुष तुमने ये क्या किया!
हाहाहाहाहा…।।
ये मेरी ख़ुशी
मेरी भूख मिटाएँगीं
तेरी मौत
आख़िर
मेरा खाना बन जाएँगीं।।
हाहाहाहा….
हे मानुष
मानवता से भरोसा
उठ जाएगा…
तेरा भोजन मैं नहि
तेरा भोजन
हर भूखा बेबस लाचार
जानवर हैं
आख़िर क्यों?
क्यों हमें जीने
का अधिकार नहि
क्यों मानुष
तुम हमें ऐसे
कब तक धिक्कारते रहोगे
आख़िर कब
हमें भी स्वतंत्रता मिलेंगी
आख़िर कब?
मानुष-
कभी ना
मिलेगी स्वतंत्रता
तुम्हारी बिरादरी को
हम मानुष
तुम्हें नोच खाएँगे
हम मानुष
अपनी भूख मिटाएँगे….
मानवता शर्मशार
हो जाएँगीं
हम तो फिर भी
अपना भोजन
तुमसे पकाएँगे
तुम हमारी ज़रूरत
हमारा अधिकार
बस और कुछ नहि
यहीं हम सब मानुष
तुम्हें बतलाएँगे
हरपल बतलाएँगे
आहहहह…….।।
ईश्वर ये कैसा
न्याय तेरा
बेज़ुबान को मार रहा हैं
हे ईश्वर …
मानुष की भूल को
क्षमा करो
ये अनजान, नादान हैं
मानुष का
पथ प्रदर्श करों….
हे ईश्वर
कल्याण करो
हमारा भी पालन हार करो…
हे ईश्वर
ऐसी दर्दनाक मौत का
भागी हमें ना करों..
हम तो वफ़ादार
चंचल,
साफ़ दिल दिलदार हैं
हमारे प्राण यूँ ना
बरबाद करो…
हे मानुष
कृपा करों
कृपा करों
हमारा भी ख़्याल करों
हमारा भी लालन पालन करों
हे ईश्वर
हमारा भी नैया पार करों
पार करों
पार करों
आभार करो
आभार करों
अलविदा….(आह…. प्राण त्याग दिए)…..
परिचय :- अंजली सांकृत्या
निवासी : जयपुर (राजस्थान)
घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है।
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