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धरती का रुदन

राजकुमार अरोड़ा ‘गाइड’
बहादुरगढ़ (हरियाणा)
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प्रकृति का इतना अधिक दोहन हो गया कि उसकी चीत्कार आज पूरे विश्व में रह रह कर हर पल हर क्षण हमारे कानों में गूंज हमें हमारी भयंकर भूल का एहसास करा रही है। मौत की सिहरन जिन्दगी का अर्थ समझा रही है। गांव, शहर, जंगल सब के सब पेड़ विहीन होते जा रहे हैं। धरती कराह रही है,ऐसा क्या हो गया, क्यों हो गया, कैसे हो गया, हर कोई हतप्रभ हैरान है, उसे रास्ता ही नहीं सूझ रहा है- “घर गुलज़ार,
सूने शहर, बस्ती बस्ती में कैद हर हस्ती हो गई, आज फिर जिन्दगी महँगी और दौलत सस्ती हो गई।” बस कुछ ऐसा ही सोचता मैं घर के पीछे बने पार्क के लॉन में नरम नरम घास पर लेट गया, क्या करूँ, सोच भी इन दिनों ज़वाब नहीं देती जैसे ही करवट ली तभी धरती के अन्दर से रुदन की आवाज़ सुन चौंक उठा, मैनें कानों को धरती से लगाया, मुझे लगा कि जैसे वो कह रही है आज मैं बहुत दुःखी व व्यथित हूँ, चाहे इस दुनिया में कहीं भी कोई मेरे आगोश में क्यों न हो। कोई भी माँ अपने बच्चों को कराहता हुआ देखकर भला कैसे खुश रह सकती है? मैं तुम्हारा बेहतर और सुखी भविष्य चाहती हूँ। आज तुम जिस हालत में हो यह देख मेरा कलेजा मुँह को आ रहा है, लेकिन इस सब के जिम्मेदार तुम स्वयं ही हो।
करोडों वर्ष पहले मैं प्रभु की इच्छा से सूर्य से अलग हो गई थी। मैं छोटी बहना प्रकृति, उसके पति आकाश व उसके बच्चों वायु, जल के साथ तुम सबको अपने ही आँचल में समेटने की उत्कट अभिलाषा रखती थी। तुम्हारी सुविधा के लिये जल की मदद से समुन्द्र, नदी, तालाब फिर वन जंगल खेत खलिहान बनाये। एक बड़े हिस्से पर जंगली जानवर, पक्षियों, पशु, जीव जंतु और सरीसृपों को जन्म दिया, तुम्हें देख हमारी खुशी का कोई ठिकाना नहीं था, सब ठीक ही तो चल रहा था कि तुम्हारे कुछ बन्धुजनों ने वृक्ष काटने ही शुरू कर दिए, उनके रुदन पर एक व्यक्ति ने कहा कि हमें इसकी जरूरत है, हम एक की जगह चार लगा दूँगा, यह बात सुलझी तो कुछ दिन बाद जल से मछलियों को छीन लिया, तभी एक वृद्ध ने कहा किआगे मछलियां पकड़ने पर उनके वज़न की आटे की गोलियां व कुछ अन्य खाने की चीज़ डाल देंगे।
कछ ठीक चला फिर कुछ वन्य प्राणी रो रहे थे कि अब न सिर्फ मारा जा रहा है बल्कि हमारी खाल उतार अपने कपड़े सिल रहे हैं। हरेक पशु पक्षी को अपना भोज्यपदार्थ बनाने पर उतारू है। मज़े के लिये शिकार करने से भी बाज नही आता। प्रकति व पूरा परिवार मुझ से नाराज कि मैंने इन इन्सानों को बुलाया ही क्यों। प्रभु तक ये बात पहले ही पहुंच चुकी थी, उन्होंने कुछ को समय-समय पर अपना प्रतिनिधि बना कर भेजा- श्रीराम, श्रीकृष्ण, बुद्ध, महावीर, जीसस, मोहम्मद नानक,रैदास आदि पर कुछ समय ठीक चलते ही फिर उनके नाम पर लड़ने लगे और आज तक लड़ रहे हैं।
प्रकति, वायु, जल, मुझसे खफा थे, आकाश अलग से ही थे, जल का मेल ऋतु से हुआ तो उसका बेटा बादल रोता हुआ आया कि इन्सान जहाज़ नाम की मशीन से धुआं फैला हमारे नज़दीक आ दम घोंट रहा है। तुम्हारे द्वारा किये रसायन रिसाव, परमाणु परीक्षण से मेरा संतुलन डगमगा जाता है, बड़े-बड़े बांध बनाने, वन कटाव, पेड़ लगाने में कम रुचि ने स्वच्छ प्राणवायु का ही अभाव कर दिया है। कुछ की राजनीतिक, विस्तार वादी महत्वाकांक्षाओं ने पूरे विश्व में संकट ही पैदा कर दिया है, परमाणु हथियारों के विकरण से कैंसर, ट्यूमर,
बांझपन, गर्भपात व अन्य कई प्रकार की मानवीय व कई पर्यावरणीय समस्याओं का कारण बनती है।
कृषि की प्रधानता हो, उच्चप्रोद्योगिकी पर्यावरण को ध्यान में रखते हुए हो, सार्वजनिक व निजी क्षेत्र में भरपूर सामंजस्य हो, पर्यावरण संकट से निपटने के लिये पूरा विश्व एक हो, वर्तमान व भविष्यका अर्थतंत्र को स्वस्थ रणनीति के साथ गतिमान हो। इन्सान के चांद व मंगल पर पहुंच जाने के कारण वहां भी भय व्याप्त है। आवागमन के सभी साधनों के नासमझी भरे व्यापक उपयोग से आकाश व वायुमंडल पूरा ही धूलधूसरित व प्रदूषण से भरा रहता है। अपनी ही करतूतों से अपना ही सांस लेना दूभर कर लिया है, इन्सान ने।

प्रकति से मेरी बात हुई है, इंसान को काफी सबक काफी लंबे समय के लिये मिल गया है। देर सवेर बस यह वायरस तो खत्म हो ही जायेगा लेकिन ये समय मेरे बच्चों के लिये आत्मनिरीक्षण का है,भूल के एहसास करने का है, अपने आप को बदलने वअतीत व वर्तमान से सबक लेने का है। खुद जियो और दूसरों को भी जीने दो के मूलमंत्र को समझने का है। कुछ ऐसा करो कि तुम्हारी धरती माँ को तुम्हारे होने और बने रहने पर गर्व हो।
मैं बड़े गौर से धरती माँ की करुण कहानी सुन रहा था, अन्त में आशा से भरे विश्वास की बात भी। शायद धरती माँ का दुःखी मन अपनी बात बता हल्का हो गया था, अब मुझे उनके रुदन की आवाज़ भी नही आ रही थी। मुझे लगा कि जो धरती माँ की रुदन भरी करुण पुकार मैनें सुनी, अनुभव की, महसूस की, अपने लेखकीय दायित्व का निर्वहन करते हुएआपके साथ उसे सांझा करूँ और वही कर रहा हूँ।

परिचय :- राजकुमार अरोड़ा ‘गाइड’ कवि, लेखक व स्वतंत्र पत्रकार
निवासी : बहादुरगढ़ (हरियाणा)
घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि मेरी यह रचना स्वरचित एवं मौलिक है।


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