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सजगता ही सुरक्षा

निधि गुप्ता (निधि भारतीय)
बुलन्दशहर (उत्तरप्रदेश)
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एक तरफ़ माता-पिता के मन में अपनी बेटियों को पढ़ाने की चाह, उन्हें आगे बढ़ाने की चाह, उन्हें ‌आत्मनिर्भर बनाने की चाह होती है, वहीं दूसरी ओर उनके समक्ष अपनी बेटियों की सुरक्षा का बहुत बड़ा प्रश्नचिन्ह होता है। मुझे लगता है कि वर्तमान परिवेश में बेटियों के कैरियर बनाने में, उन्हें आत्मनिर्भर बनाने में, सबसे बड़ी बाधा महिला सुरक्षा ही है, तो क्यों ना बेटियों की सुरक्षा की जिम्मेदारी उन्हें ही सौंप दी जाए, उन्हें समझा कर, उन्हें समझदार बनाकर, उन्हें विभिन्न परिस्थितियों से अवगत कराकर, जिससे कि प्रतिकूल परिस्थितियों को पहले ही भांप कर, वे अपनी सुरक्षा स्वयं कर पाने में सक्षम हों। इस विषय पर परामर्श सत्र के दौरान मेरा, मेरी छात्राओं के साथ वार्तालाप होता है, मैं
उन्हें, उन्हीं की‌ गलतियों से उत्पन्न कुछ परिस्थितियों के बारे में समझाती हूं, तो अक्सर ही कुछ प्रश्न उनकी ओर से उठाए जाते हैं, उन प्रश्नों का समाधान मैं किस तरह करती हूं यह मैंने अपनी अभिव्यक्ति के माध्यम से कहने का प्रयास किया है कृपया इसी भाव से पढ़िएगा ….

जब भी अपनी बेटियों को,
मैंने प्यार से समझाया है ,
मेरी प्यारी बेटियों ने,
अक्सर यही प्रश्न उठाया है,
यही इक प्रश्न उठाया है……

हमको ही क्यों समझाती हो,
बेटों को क्यों नहीं समझाती,
हम स्वयं में सुधार करें,
इससे बेटों को अक्ल तो नहीं आती,

बेटों को अक्ल तो नहीं आती……
उनको भी तो समझाओ,
वे हमारा सम्मान करें,
हम कभी भी कहीं भी जाएं,
हम पर कुदृष्टि ना रखें,
हम पर कुदृष्टि ना रखें…….

जैसे मां, बहन और बेटी के लिए,
भाव उनके मन में आते हैं,
उसी दृष्टिकोण से हम, उन्हें,
नज़र क्यों नहीं आते हैं ?
क्यों? नजर नहीं आते हैं?……..
वो तो आज़ाद पंछी की तरह,
यहां-वहां पर उड़ते हैं,
हमसे लोग, यहां क्यों गयी?,
वहां क्यों गयी? ऐसे प्रश्न करते हैं,

ऐसे ही प्रश्न क्यों करते हैं?…….
क्या वो आज़ाद‌ हैं, हम आज़ाद नहीं !
क्या वो वंश हैं, हम कुछ भी नहीं!
कहते तो हैं बेटा-बेटी एक समान,
पर कोई समानता नहीं,
कोई समानता नहीं……

ध्यान से सोचूं उनकी बात,
तो मेरे हृदय में द्वंद से मच जाते हैं,
सारे प्रश्न, सारे तर्क उनके,
मुझे सही नजर आते हैं,
मुझे सही नजर आते हैं……….
फिर सोचती हूं कि
इनको कैसे समझाऊं? ,
इस पुरुष प्रधान समाज की
विषमता, मैं इनको कैसे दिखलाऊं,

इनको कैसे दिखलाऊं…..
सोचते सोचते मेरे मन में,
एक विचार आया है,
पास बुलाकर उनका सर,
मैंने प्यार से सहलाया है,
प्यारी बेटी, तुम नाज़ुक हो,
कोमल हो, पर बेटों से
ज्यादा ताकतवर हो,
तुम ईश्वर द्वारा प्रदत्त मुझे,
एक खूबसूरत सा फल हो,
मैं तो चाहती हूं कि तुम,
पंख लगा कर उड़ जाओ,
माता-पिता का नाम रोशन करो,
स्वयं भी प्रसिद्धि पाओ,
स्वयं भी प्रसिद्धि पाओ…

पर डरती हूं सामाजिक,
खोखली मान्यताओं से,
जो महिला को दबाती हैं,
गलती चाहे पुरुषों की हो,
पर दोषी महिला को ठहराती हैं,
दोषी महिला को ठहराती हैं…

मानसिक हो या शारीरिक,
कष्ट उन्हीं को झेलना पड़ता है,
कौन समझता है उनके मन को,
जो अंदर तक आहत होता है,
जो अंदर तक आहत होता है…

यह दुनिया ऐसी ही है बिटिया,
हम किस-किस को बदलेंगे,
स्वयं को समझा लेंगे तो,
अच्छा जीवन जी लेंगे,
इज्जत से जीवन जी लेंगे…

मैं नहीं समझाऊंगी तुमको,
तो और कौन समझाएगा,
तुम्हारे विपत्ति काल में,
तुम्हें कोई बचाने ना आएगा,
कोई बचाने ना आ पाएगा…

तुम्हीं अपने साथ हमेशा,
तुम ही तो रहती हो,
तुम ही अपनी सच्ची सखी,
सच्ची संगनी होती हो,
तुम दबो नहीं, तुम डरो नहीं,
तुम स्वयं जिम्मेदार बनो,
प्रत्येक तरह की स्थितियों से,
पहले से ही अवगत हो,
जो विपत्ति के समय, तुम्हारा
मस्तिष्क तेजी से काम करे,
तुम्हारी सजगता और जागरूकता,
स्वयं तुम्हारा बचाव करे,
स्वयं तुम्हारा बचाव करें…

निर्मल सा जीवन हो मेरी बेटियों का,
इसमें कोई दाग कभी ना लगने पाए,
मैं तो चाहती हूं मेरी बेटियां,
औरों की प्रेरणास्रोत बन जाए…
मैं तो चाहती हूं, मेरी बेटियां,
औरों की, प्रेरणास्रोत बन जाए…

परिचय : निधि गुप्ता (निधि भारतीय)
निवासी : बुलन्दशहर, उत्तरप्रदेश
शिक्षा : बी.एससी. (गोल्ड मेडलिस्ट), एम.सी.ए., यूजीसी नेट, स्लेट
आपके बारे में : रचनाकार निधि गुप्ता आई.पी. कालेज, बुलन्दशहर में कम्प्यूटर साइंस विभाग में असिस्टेंट प्रोफेसर के पद पर कार्यरत हैं, हिंदी भाषा में विशेष रूचि रखने के कारण शौक से लेखन में सक्रिय हैं और निधि भारतीय के नाम से लिखती हैं। आपकी रचनाएं आपके द्वारा ‌बनाये गये यू-ट्यूब चैनल (संवेदनाएं निधि भारतीय) पर प्रकाशित होती हैं। आप हिंदी भाषा को अपनी आत्मा की भाषा मानती हैं जो संवेदनाओं को अभिव्यक्त करने हेतु सर्वोत्तम भाषा ‌है।
घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है।


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