Monday, May 13राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर आपका स्वागत है... अभी सम्पर्क करें ९८२७३६०३६०

आशियाने जले कैसे

सीताराम पवार
धवली, बड़वानी (मध्य प्रदेश)
********************

पता नहीं वो अब अपने ही जमीरो से हिले कैसे

नफरत कैद में उनके ये मोहब्बत सबको मिले कैसे
गम की रात में चांद डूबा है ये चांदनी भी खिले कैसे।

खामोश रहता हूं मगर मुँह में जुबान तो है यारो
कहे कैसे हमने अपनी मजबूरी में ये होंठ सिले कैसे।

हमने तो सच्चाई ही बयान की थी उनकी फितरत की
पता नहीं वो भी अब अपने ही जमीरो से हिले कैसे।

मंजिल पाने वाले को सफर का अंजाम नहीं मालूम
सफर से अनजान है फिर वो उस मंजिल तक चले कैसे।

बिन कायनात के भी क्या वजूद है उस इंसान का यारो
चिराग तो जलाया था फिर ये आशियाने जले कैसे।

कोई भी काम मुश्किल नहीं हौसले बुलंद होना चाहिए
गर इरादे मजबूत हो तो फिर तकदीर से गिले कैसे।

जिनको याद करके हमने सारी जिंदगी गुजार दी
फिर बेखुदी में अपनी जिंदगी में उनको भूले कैसे।

परिचय :सीताराम पवार
निवासी : धवली जिला बड़वानी (मध्य प्रदेश)
घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है।


आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं छायाचित्र के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि प्रकाशित करवाने हेतु अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, हिंदी में टाईप करके हमें hindirakshak17@gmail.com पर अणु डाक (मेल) कीजिये, अणु डाक करने के बाद हमे हमारे नंबर ९८२७३ ६०३६० पर सूचित अवश्य करें …🙏🏻

आपको यह रचना अच्छी लगे तो साझा अवश्य कीजिये और पढते रहे hindirakshak.com राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच से जुड़ने व कविताएं, कहानियां, लेख, आदि अपने चलभाष पर प्राप्त करने हेतु राष्ट्रीय  हिन्दी रक्षक मंच की इस लिंक को खोलें और लाइक करें 👉 👉 hindi rakshak manch  👈… राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच का सदस्य बनने हेतु अपने चलभाष पर पहले हमारा चलभाष क्रमांक ९८२७३ ६०३६० सुरक्षित कर लें फिर उस पर अपना नाम और कृपया मुझे जोड़ें लिखकर हमें भेजें…🙏🏻.

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *