Monday, May 20राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर आपका स्वागत है... अभी सम्पर्क करें ९८२७३६०३६०

तीन परियाँ

सरला मेहता
इंदौर (मध्य प्रदेश)
********************

बालसुलभ रुचियों का भी एक अनोखा संसार है। कोई खिलौनों व मित्रों के साथ गपशप में मस्त रहते हैं तो किसी को गुड़ियों को सजाने में मजा आता है। परंतु मेरे अनमोल खिलौने थे परियों सी खिलखिलाती नन्हीं मुन्नी बच्चियाँ। बस मुझे ये कहीं भी मिल जाती पड़ोस या रिश्तेदारों में, उन्हें बहलाना व उनका ध्यान रखना मेरी दिनचर्या बन जाती थी।
विवाहोपरांत मेरा सपना था कि मेरी प्रथम सन्तान बेटी ही हो। माँ बनने के अहसास से ही मैं आश्वस्त थी कि एक नाज़ुक सी कली ही मेरी बगिया में महकने वाली है। दिनरात सुंदर परियों के चित्रों से घिरी रहती और उन्हीं के सपने देखती थी।
उसी दौरान मेरी मौसेरी बहन को पुत्ररत्न की प्राप्ति हुई। और मुझे मिल गई मेरी परी। घर के बुजुर्गों की प्रतिक्रिया थी, “ये कैसा ईश्वर का न्याय? दोनों बहनें साथ साथ पली बढ़ी, एक को बेटा व दूसरी को बेटी क्यूँ?” किन्तु मेरी खुशी तो सातवें आसमान पर थी। मेरे मन की मुराद जो पूरी हो गई थी।
अपनी परी को अभी जी भर निहारा भी नहीं था क्योंकि उसे नर्सरी में रखा था। अन्य नवजातों की तरह वह रोई जो नहीं थी। शायद मुझे हँसाने वाली ने रोना मुनासिब नहीं समझा हो। लोग बेबी की तारीफ़ के पुल बाँध रहे थे। चाँदी सा रंग, सुनहरे घुंघराले बाल व सुघड़ नैन नक्श…सब कुछ वैसा ही जैसा मैंने सोचा था। और उसके पुलिसवाले पापा को हिदायतें मिल रही थी कि बेटी के आगे पीछे गार्ड्स रखने होंगे।
मेरी परिकथा अभी अधूरी है। इस कहानी की और भी कड़ियाँ शेष हैं। परी को एक प्यारा सा भाई मिला। दोनों के ब्याह सम्पन्न हुए। मेरी परी अब स्वयं भी माँ बननेवाली थी। दामाद का तर्क था कि बेटी ही दो कुलों की धुरी होती है।
बेटी ही रिश्तों के सफ़ल निर्वहन तथा परस्पर सामंजस्य बनाए रखने की मजबूत कड़ी है। और मेरी परी को भी बेटी का उपहार मिला। नानी बनने पर मेरी खुशी क्या बताऊँ, कोई सीमा नहीं। और पहुँच गई अपने कार्यस्थल पर मिठाई का टोकरा लिए। मिठाई बाँटने के बदले में सुनने को मिला, “अच्छा जी तो नाती आया है, बधाई हो।” ऐसा ही होना था क्योंकि मिठाई खिलाने का रिवाज़ पुत्रजन्म पर ही है समाज में।
अरे रे! रुकिए अभी एक कड़ी और शेष है जो मेरी बहु ने रची थी। मेरी सभी परिचित सखियाँ दादियाँ भी बन चुकी थी। तमाम नाती पोते वालियों को सौभाग्यशालिनी की उपाधि मिल चुकी थी। मुझे भी लोग तसल्ली जताने से कहाँ चूकने वाले थे, “चलो बेटी को ना सही, बहू को अवश्य बेटा होगा।”
परन्तु ढेरों खुशियाँ लिए तीसरी परी को ही आना था। फ़िर मैंने सबका मुँह मीठा कराया और वही जुमला सुनने को मिला, “क्या पोता हुआ है?”

परिचय : सरला मेहता
निवासी : इंदौर (मध्य प्रदेश)
घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना स्वरचित एवं मौलिक है।


आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं छायाचित्र के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि प्रकाशित करवाने हेतु अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, हिंदी में टाईप करके हमें hindirakshak17@gmail.com पर अणु डाक (मेल) कीजिये, अणु डाक करने के बाद हमे हमारे नंबर ९८२७३ ६०३६० पर सूचित अवश्य करें …🙏🏻

आपको यह रचना अच्छी लगे तो साझा अवश्य कीजिये और पढते रहे hindirakshak.com राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच से जुड़ने व कविताएं, कहानियां, लेख, आदि अपने चलभाष पर प्राप्त करने हेतु राष्ट्रीय  हिन्दी रक्षक मंच की इस लिंक को खोलें और लाइक करें 👉 👉 hindi rakshak manch  👈… राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच का सदस्य बनने हेतु अपने चलभाष पर पहले हमारा चलभाष क्रमांक ९८२७३ ६०३६० सुरक्षित कर लें फिर उस पर अपना नाम और कृपया मुझे जोड़ें लिखकर हमें भेजें…🙏🏻.

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *