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कभी खिलाफ थे…

प्रीतम कुमार साहू
लिमतरा, धमतरी (छत्तीसगढ़)
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कभी खिलाफ थे, इश्क में जुदाई के हम !
आज दर्द जुदाई के, गुलाम हो गए हम..!!

ना जी सकते है, न मर सकते है हम !
दर्द जुदाई का, बया न कर सकते है हम..!!

देखे थे सपने बनाने को उन्हें हम-दम !
सपने तो आज भी है, पर टूट गए हम..!!

साथ मिलकर पेड़ो में लिखे थे जो नाम !
वो नाम आज भी है, पर छूट गए हम..!!

ना अपना, ना पराया कह सकते है उन्हें !
साथ जीने मरने की कसमें खाए थे हम..!!

कभी पास थे उनके, अब दूर हो गए हम
इश्क की गलियों में, मशहूर हो गए हम..!!

साथ मिलकर बिताये है हमने जो लम्हें
याद कर उन्हें अश्क में डूब जाते है हम..!!

इश्क से पहले रंगीन थी जिंदगी हमारी !
अब जिंदगी तो है, पर रंगहीन हो गए हम..!!!

कैसे कह दूँ उनसे हमारा वास्ता ना रहा
कुछ पल सही साथ तो चलें थे हम…!!!

परिचय :- प्रीतम कुमार साहू (शिक्षक)
निवासी : ग्राम-लिमतरा, जिला-धमतरी (छत्तीसगढ़)
घोषणा पत्र : मेरे द्वारा यह प्रमाणित किया जाता है कि मेरी यह रचना स्वरचित एवं मौलिक है।


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