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मां का दिल

डॉ. जयलक्ष्मी विनायक
भोपाल (मध्य प्रदेश)

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ऊंची कद काठी के, मृतप्राय से, अपने पति को मृत्यु शैय्या पर देख सुमित्रा का मन धक सा हो रहा था। तीनों बेटियों को बुला लिया था डॉक्टर ने जवाब जो दे दिया था। इसलिए हॉस्पिटल से पति को वापिस लाने के अलावा कोई चारा नहीं बचा था। वैसे तो छोटी बेटी ने किचन संभाल लिया था। रोटी सब्जी दाल चावल तो बन ही जाता था। पर सुमित्रा को यह रह-रह कर लग रहा था कि मेरी बेटियां इतने दूर से आई है, उन्हें कुछ अच्छा खिला सकती।
दूसरे दिन मां को बेटियों ने घर पर नहीं पाया। सोचा, कहां चली गयी होगीं? तभी दरवाजा खोल मां का आगमन हुआ। मां के कंधे पर बैग झूल रहा था। उसमे से उन्होंने एक डिब्बा निकाला और डायनिंग टेबल पर रख दिया। ‘क्या है इसमें?’ बेटियों ने उत्सुकता से पूछा।
‘तुम सबको श्रीखंड पसंद है ना? वो ही लेने गयी थी।’

परिचय :-   भोपाल (मध्य प्रदेश) निवासी डॉ. जयलक्ष्मी विनायक एक कवयित्री, गायिका और लेखिका हैं। स्कूलों व कालेजों में प्राध्यापिका रह चुकी हैं। २००३ में अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस पर संगीत और साहित्य में योगदान के लिए लोकमत द्वारा पुरस्कृत हैं। आप “मैं हूं भोपाल’ के खिताब से भी सुशोभित हैं। पूर्व राष्ट्रपति डॉ. एपीजे अब्दुल कलाम द्वारा आपको अपनी एक कविता के लिए प्रशंसा-पत्र भी प्राप्त है। वर्तमान में आप एकलव्य युनिवर्सिटी में अंग्रेजी साहित्य की पीएचडी गाइड नियुक्त है।
घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि मेरी यह रचना स्वरचित एवं मौलिक है।

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