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अधरों की अमर वाणी है हिन्दी

उषाकिरण निर्मलकर
करेली, धमतरी (छत्तीसगढ़)

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मेरे नन्हें अधरों की किलकारी है हिन्दी।
हर तोतली आवाज में, बड़ी प्यारी है हिन्दी।
जवां हुई जो मेरे संग-संग
हाँ, मेरा हमसफर, मेरा हमराही है हिन्दी।

मेरी आन, मेरा गुरुर, मेरा अभिमान है हिन्दी।
मेरा नाम, मेरा काम, मेरी पहचान है हिन्दी।
ये मेरा व्यक्तित्व है, अस्तित्व है मेरा, और
मेरे लिए तो मेरा हिंदुस्तान है हिन्दी।

सबको अपनें आँचल में समेटे हुए,
संस्कृत से जन्मी, मॉं का अवतार है हिन्दी।
अनुपम, अलंकृत, अनमोल, अनुशासित,
और पूर्ण परिभाषित संस्कार है हिन्दी।

मानों चिरकाल से चिरपरिचित, चिरस्मरणीय,
चिरयौवना और चिरस्थायी है हिन्दी।
हर रूप में है अति सुशोभित,
कभी दोहा, कभी छंद, कभी चौपाई है हिन्दी।

सुरभित सुमन की भाँति महकती,
साहित्य की शुभाषितानी है हिन्दी।
शब्दों का जो अथाह सागर है,
अधरों की अमर वाणी है हिन्दी।

परिचय :- उषाकिरण निर्मलकर
निवासी : करेली जिला- धमतरी (छत्तीसगढ़)
घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है।


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