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कुछू समझ नइय आवत हे …

धर्मेन्द्र कुमार श्रवण साहू
बालोद (छत्तीसगढ़)
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छत्तीसगढ़ी रचना

मोला तो बिल्कुल ऐ बात के
समझ नइय आवत हे..

११ दिन पूजा करीन
बिसर्जन मॅं डीजे बजावत हे..

कोनो ह पीये हे दारु
त‌ केते चखना मॅं झड़त हे लाड़ू ..

कोनो ह पीयत नशा मॅं गांजा
पीइय ह जादा होगे त
बजावत हे बाजा..

झूमत-झूमत झूपत-झूपत
अऊ नाचत कूदत जावत हे..
ग्यारह दिन पूजा करीन बिना
रंग ढंग के डीजे बजावत हे..

देवत हे एक दूसर ल गारी
नशा मॅं नांचत हे जम्मो संगवारी

आना जाना ल जाम कर दीस
सड़क चलैय्या मन‌ ल‌
हलाकान कर दीस

सियान मनखे ह समझा परीस
त अंगरी ल दिखावत हे ..
ग्यारह दिन पूजा करीन
बिसर्जन मॅं डीजे बजावत हे..

धीरे-धीरे पहुंच गे
नरुवा तरिया
पूजा करे बर सब्बो
सकलागे जहुंरिया

जय-गणेश, जय-गणेश..
पूजा करीन
जम्मो संगी चोरो-बोरो
लंबोदर ल धरीन

तैरे बर आईस तैंहा बचगे नइय
ते गणेश संग मॅं बोहावत हे..
ग्यारह दिन पूजा करीन
बिसर्जन मॅं डीजे बजावत हे..

गुरुजी के कहना तुमन मांनव
सुग्घर जिनगी मिले हे
खुद ल पहिचांनव

नशा-पान‌, खान-पान
ले दूर रहंव
खून पसीना कमाई चंदा
पइसा के उपयोग करंव

अवैइय्या बेरा मॅं सम्भल जाओ
कहिके श्रवण बतावत हे..
११ दिन पूजा करंव फेर
बिसर्जन मॅं रामधुनि ल गवावत हे..

ऐसो के बिसर्जन मॅं मोला
बिल्कुल समझ नइय आवत हे ..

परिचय :- धर्मेन्द्र कुमार श्रवण साहू
निवासी : भानपुरी, वि.खं. – गुरूर, पोस्ट- धनेली, जिला- बालोद छत्तीसगढ़
कार्यक्षेत्र : शिक्षक
घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि मेरी यह रचना स्वरचित एवं मौलिक है।


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