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यूँ ही मुझसे बात करती हो

सरला मेहता
इंदौर (मध्य प्रदेश)
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यूँ ही मुझसे बात करती हो

भोर की रोशनी निराली है
सुबह की ये हसीन लाली है

जब गए छोड़कर अकेली तो
ज़िन्दगी राम ने संभाली है

साज सजने लगे जमी महफिल
ये मेरा दिल तो आज खाली है

सायबा आपने जुदा होकर
क्यूँ बनाया मुझे रुदाली है

घोर फांके पड़े गरीबों में
ये महल में सजी दिवाली है

कह न पाई तुझे कहानी मैं
शर्म की आँख पे ये जाली है

मान मुझको नहीं पराया सा
देख दिल में जगह बना ली है

भूलकर भी कभी नहीं आया
याद कर मैं वही घरवाली है

खाइए जी ज़रा नफ़ासत से
रोटियाँ ये सभी रुमाली हैं

कम न समझो हमें जगतवालों
हम हैं दुर्गा हमीं तो काली हैं

राजरानी लगूँ सभी को मैं
लग रहा तू बड़ा मवाली है

फूल कलियों सजा ये कुनबा है
बाग का तो पिता ही माली है

क्यूँ ये दुल्हे दिखा रहे नखरे
दुलहिने तो देखी भाली है

दाल बाटी व चूरमा लड्डू
मालवा की लज़ीज़ थाली है

परिचय : सरला मेहता
निवासी : इंदौर (मध्य प्रदेश)
घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना स्वरचित एवं मौलिक है।


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