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मेरे दादा (पिताजी)

सरला मेहता
इंदौर (मध्य प्रदेश)
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दादा मेरे थे, मेरी जान से प्यारे,
दुनिया से निराले, सपनों में कभी आते नहीं

दूर एक गाँव में उनका निवास था
खलिहान खेत रोज़ जाना उन्हें भाता
मजदूरों से भी प्यार जताना उन्हें आता
भूखा न किसी को कभी रखते मेरे दादा
ऐसे थे मेरे दादा…. सपनों में

सूरज से पहले उठना अच्छा उन्हें लगता
रंभाती हुई गायों को दुहते थे सुबह शाम
सहलाते हुए लाड़ जताते बहुत ही थे
छोनों को खूब दूध पिलाते मेरे दादा
ऐसे थे मेरे दादा…. सपनों में

थाली में गरम दाल व ज्वार की रोटी
हर चीज़ बड़े शौक से खाते सभी जगह
ऊपर से उन्हें नमक नहीं चाहिए कभी
नखरे नहीं खाने में दिखाते मेरे दादा
ऐसे थे मेरे दादा…. सपनों में

दुख दर्द दास्ताँ लिए सब लोग आते थे
काँधे पे हाथ रखकर समझाते सभी को
कचहरी भी रोज़ लगा करके बैठते
कुछ चाय नाश्ता भी कराते मेरे दादा
ऐसे थे मेरे दादा…. सपनों में

कोई काम कोरट का या अस्पताल का
ख़ुद के ही खर्च से ही ले जाते साथ में
सलाह मशविरा खूब देना उन्हें आता
मुश्किल में भी धीरज बंधाते मेरे दादा
ऐसे थे मेरे दादा…. सपनों में

कोई भी बच्चे हो वो भेद ना करते
हर काम में वे सबकी सहायता ही करते
हमको भी ये लगता कैसे हैं ये दादा
हमारा प्यार सबपे लुटाते थे मेरे दादा
ऐसे थे मेरे दादा…. सपनों में

खादी का कुर्ता, गाँधी बापू की टोपी
मोटी सी वो धोती जूतियाँ पाँव में
दो जोड़ी कपड़ो में ही रहना उन्हें पसन्द
रोज़ धोते, सुखाते, पहनते मेरे दादा
ऐसे थे मेरे दादा…. सपनों में

सादी सी ज़िन्दगी, कोई व्यसन भी न था
फ़िर भी अचानक महारोग ने जकड़ा
निर्वेर निर्विकार ही रहते सदा थे वे
माँ भगवती से आस लगाते मेरे दादा
ऐसे थे मेरे दादा…. सपनों में

परिचय : सरला मेहता
निवासी : इंदौर (मध्य प्रदेश)
घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना स्वरचित एवं मौलिक है।


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