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हमरौ खान-पान

ज्ञानेन्द्र पाण्डेय “अवधी-मधुरस”
अमेठी (उत्तर प्रदेश)

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(अवधि भाषा)

तालमेल रखिहौ तनिक, खानपान व्यवहार।
मान प्रतिष्ठा बाढ़िहै, चहुँ हुयिहैं , सत्कार।
चहुँ हुयिहैं सत्कार, जीभु भलु स्वादु चखेगी।
खट्टा-मीठा संगु, मीठु पकवानु मिलेगी।।
“मधुरस” भलु समझायि, इसारा करतु भली के।
बनबावउ चौसारु, जेंवाबउ बैठि कुली के।।

चला चली रसोई बनाई हो भल पाहुनु हँ आबत।
भाँति-भाँति व्यंजनु सजाई हो भलु पाहुनु हँ आबत।।

आई चतुर्थी गनेसा मनाई
लडुवा ढ़ूढी से भोगु लगाई
रिद्धी औ सिद्धी बुलाई हो भलु पाहुनु हँ आबत।। भाँति—-

दीपावली मा मावा मँगाये
होरी आई त गुझिया छकाये
दसहरा रसगुल्ला भाये हो भलु पाहुनु हँ आबत।। भाँति—

कृष्ण जन्माष्टमी हलुवा ही हलुवा
गुरुपर्व दिना कड़ा प्रसदुवा
नरियर खीरु बिहू सजाये हो भल पाहुनु हँ आबत।। भाँति—

ठण्डी म दाल बाटी चोखा खियाइब
दाल बाफला फरा गोलगप्पा बनाइब
आलू पनीर मटर पराठा हो भलु पाहुनु हँ आबत।। भाँति—-

मालपुआ मठरी कटहल कै बरिया
शकरपारा नमकपारा चुरमा झरिया
मक्का कै रोटी सरसों सगवा हो भल पाहुनु हँ आबत।। भाँति—

कहवा चाय के बाद कछू ना
प्याज पकौड़ी कै शान धरू ना
लपसी शिकंजी घुटाई भलु पाहुनु हँ आबत।। भाँति—

काजू कतली कै रंगु निराला
गुजराती ढोकला हाँ काउ कहाला
रबड़ी मलाई धराई हो भलु पाहुनु हँ आबत।। भाँति—–

गर्मी सर्दी बरसात महीना
अलग-अलग ढ़ंगु-रंगु प्रवीना
मौसमी जेंउनरिया छकाइब हो भलु पाहुनु हँ आबत।। भाँति—-

चला चली रसोई बनाई हो भल पाहुनु हँ आबत।
भाँति-भाँति व्यंजनु सजाई हो भलु पाहुनु हँ आबत।।

परिचय :-  ज्ञानेन्द्र पाण्डेय “अवधी-मधुरस”
निवासी : अमेठी (उत्तर प्रदेश)
घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि मेरी यह रचना स्वरचित एवं मौलिक है।


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