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सोचो कितना अच्छा होता

सरला मेहता
इंदौर (मध्य प्रदेश)
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बादल ने बूंदें बरसाता हो
धरती अँगड़ाई ले देखकर
शरमाकर ओढ़ ले झट से
हरी चुनरिया फूलों वाली
चहुँ ओर लहराए चूनर ये
हर खेत तरु डाली डाली
सोचो कितना अच्छा होता

उखड़े कभी न साँसें धरा की
प्राणवायु वायु से पूरित हो
रक्षाकवच हरियाली का हो
दरकती दरारें दूर हो सभी
पौधारोपण चहुँ ओर हो
जगतजननी खुशियाँ पाती
सोचो कितना अच्छा होता

देख हरे भरे वन जंगल
रिमझिम बरखा आती हो
धन धान्य फल फूलों से
आँचल भू का भर देती हो
जुही चमेली चम्पा नाचे
मोर पपीहा कोयल गए
सोचो कितना अच्छा होता

एक ही छत बिन दीवारों के
मात पिता व भाई बहन हो
पड़ोसियों से गुफ़्तगू हो
सब अच्छे सब अच्छा हो
बैर ईर्ष्या स्वार्थ नहीं हो
व्यसन की बात नहीं हो
सोचो कितना अच्छा होता

विश्वबन्धुता व भाईचारा
वसुधैव कुटुम्बकम हो
यूक्रेन रूस से झगड़े न हो
हिरोशिमा नागासाकी न हो
शक्तियों का सदुपयोग हो
हर देश की अपनी सीमा हो
सोचो कितना अच्छा होता

परिचय : सरला मेहता
निवासी : इंदौर (मध्य प्रदेश)
घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना स्वरचित एवं मौलिक है।


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