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वंदनीय विद्या विज्ञापक – शिक्षक चालीसा

कन्हैया साहू ‘अमित’
भाटापारा (छत्तीसगढ़)

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दोहा :-
जगहित जलता दीप सम, सहज, मृदुल व्यवहार।
शिक्षक बनता है सदा, ज्ञान सृजन आधार।।

चौपाई :-
जयति जगत के ज्ञान प्रभाकर।
शिक्षक तमहर श्री सुखसागर।।-१
वंदनीय विद्या विज्ञापक।
अभिनंदन अधिगुण अध्यापक।।-२

आप राष्ट्र के भाग्य विधाता।
सदा सर्वहित ज्ञान प्रदाता।।-३
जन-जन जीवनदायी तरुवर।
प्रथम पूज्य हैं सदैव गुरुवर।।-४

शिक्षित शिष्ट शुभंकर शिक्षक।
विज्ञ विवेचक विनयी वीक्षक।।-५
अतुलित आदर के अधिकारी।
उर उदार उपनत उपहारी।।-६

लघुता के हो लौकिक लक्षक।
सजग, सचेतक सत हित रक्षक।।-७
वेदित विद्यावान विशोभित।
प्रज्ञापति हो, कहाँ प्रलोभित?-८

अंतर्दर्शी हैं आप अभीक्षक।
प्रमुख प्रबोधी प्रबुध परीक्षक।।-९
विद्याधिप विभु विषय विशारद।
उच्चशिखर चमके यश पारद।।-१०

विश्व प्रतिष्ठित प्रबलक पारस।
ढुनमुनिया मति के दृढ़ ढारस।।-११
होने देते कभी न अनुचित।
सीख सिखाते सबको समुचित।।-१२

क्षमाशील हिय अतुलित क्षमता।
समदर्शी सत स्नेहिल समता।।-१३
नमस्य नामिक दोष निवारक।
तथ्यान्वेषी तदधिक तारक।।-१४

अतुलनीय निज जीवन अनुभव।
कहकर बाँटे तनया तनुभव।।-१५
भलमनसाहत भूर भलाई।
हृदय गाढ़ गुणकर गहराई।।-१६

समय निष्ठ सह अति अनुशासी।
सहज, सरल होते मृदुभाषी।।-१७
शांतचित्त यह दृढताधारी।
करते काज सर्वहितकारी।।-१८

शिक्षक सचमुच सीख सिखाते।
अनुभव धारित मार्ग दिखाते।।-१९
नित्य सीखने रहते आतुर।
चौकस चित, चिंतामणि चातुर।।-२०

शिष्यगणों के यही चहेते।
देते सबकुछ, मोल न लेते।।-२१
नैतिकता का पाठ पढ़ाते।
हाथ पकड़ निर्बाध बढ़ाते।।-२२

जन-जन से शिक्षा को जोड़े।
मिथक धारणा तत्पर तोड़े।।-२३
शिक्षित करते अगली पीढ़ी।
शीर्ष सफलता, बनते सीढ़ी।।-२४

सामाजिकता के गुण भरते।
कर्म सदा जनहित में करते।।-२५
दीपक सा ये करे उजाला।
शिक्षक लगते ज्यौं मणिमाला।।-२६

छलछंदों को शिक्षक छाँटे।
ज्ञान संपदा सबको बाँटे।।-२७
कभी न कोई रहे निरक्षर।
पहचानें सब स्वर्णिम अक्षर।।-२८

नवाचार के ये अनुयायी।
शिक्षार्थी के सदा सहायी।।-२९
मातु-पिता सम बनते पोषक।
तथ्य तथागुण शिक्षक तोषक।।-३०

कभी न अध्यापक अभिमंता।
गुणाकार गुरुजी गुणवंता।।-३१
शिक्षक सबको योग्य बनाये।
पढ़ा-लिखाकर खुशी मनाये।।-३२

बाल सखा सा बन सहगामी।
कुशल कार्य करते अनुकामी।।-३३
खेले-कूदे, नाचे-गाये।
हार्दिकता से हिय हर्षाये।।-३४

शिक्षक श्रेष्ठ राष्ट्र निर्माता।
विद्याभूषण विधि विख्याता।।-३५
प्रथम ईश से शिक्षक पूजित।
कीर्ति पताका नभ तक गुंजित।।-३६

अध्यापक बन काज सँवारे।
कोई शिक्षक, गुरू पुकारे।।-३७
नमन करूँ मैं अपने गुरुजन।
जिनसे सँवरा यह जग जीवन।।-३८

‘अमित’ कहाँ कुछ लिख पाता।
यदि जो शिक्षक नहीं सिखाता।।-३९
सदा रहूँ शिक्षक का चाकर।
नित्य नमन है श्री विद्याधर।।-४०

दोहा :-
आत्म निवेदन आपसे, करें कृपा की वृष्टि।
हाथ थाम मेरा रखें, जब तक है यह सृष्टि।।

परिचय : कन्हैया साहू ‘अमित’ (शिक्षक)
निवासी : भाटापारा (छत्तीसगढ़)
घोषणा : मैं यह शपथ पूर्वक घोषणा करता हूँ कि उपरोक्त रचना पूर्णतः मौलिक है।


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