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हमारी हिंदी

अर्चना लवानिया
इंदौर (मध्य प्रदेश)
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हिंदी है हमारी राष्ट्रभाषा
पर दुख भरी है इसकी गाथा।
हिंदी भाषी अक्सर समझ जाते अनपढ़,
विदेशी भाषा बोलने वाले दिखाते अकड़।
हिंदी दिवस महज एक पर्व।
हिंदी बोले और लिखा तो आ वे शर्म।
अपनी मातृभाषा का युवा करते तिरस्कार,
गैर भाषा के सीखे सारे अचार विचार।
आओ कुछ यूं करें कि हिंदी का बड़े मान,
यह वेद ऋचाओं की वाणी मुनियों का है ज्ञान।
रस छंद अलंकारों का इसमें है भंडार,
अंतर मन के सारे भावों का है यह अनुपम आधार।
सहज सरल सुंदर मीठी सी मां की ये है लोरी,
बचपन यौवन इसके आंचल में पलते हैं सारे हमजोली।
हिंदी हमारे अस्तित्व का मजबूत है धागा,
हिंदी हमारी सिरमौर और गौरव की है गाथा।
हिंदी बिन हम प्राण ही और भाव शून्य से,
येहमारी सो,च कल्पना, उत्साह और
जीवन की परिभाषा।
शपथ लेते हैं रहेंगे सदा इसके रक्षक,
बोलचाल और कामकाज सब हिंदी में
कर बनाएंगे इस बागेश्वरी का वरद हस्त।
पूरी दुनिया में इसका नहीं है कोई सानी,
हिंदी हमारी राजमाता, जगतगुरु, पटरानी ।।

परिचय :– अर्चना लवानिया
निवासी : इंदौर (मध्य प्रदेश)
घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है।


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