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द्रोपदी

किरण पोरवाल
सांवेर रोड उज्जैन (मध्य प्रदेश)
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क्या दोष मेरा था पांडु पुत्र,
जो दांव पर मुझे लगाया है,
क्या अबला समझकर मुझको
तुमने दाँव पेच पर लगवाया है,
क्यों मौन बैठे तुम रहते हो,
कहा गया गांडीव धनुर्धर?
भीम की गदा की शक्ति कहा,
तलवार क्यों पडी धरा पर आज।
क्यो झुका हुआ हे मस्तक पितामह का?
अधर्म की ओर आज झुका हुआ?
बंधे राजधर्म की जंजीरो से है,
एक लाज द्रोपदी की लगी है आज।
पासो मै हारी है द्रोपदी,
द्रुत क्रीड़ा की पासे हे वो बनी,
दुर्योधन अधर्मी बुद्धि,
दुशाशन निर्वस्त्र करो तुम आज
दुशाशन साडी तुम खिंचो
निर्वस्त्र करो द्रोपदी को तुम,
पाँचो पाँडव हारे बैठे,
द्रोपदी ने जब सबको पुकारा है,
नही गांडीव चला अर्जुन का है,
नही गदा चली भीम की है।
अधर्म के आगे धर्मराज,
आज मौन हुये भीष्म पितामह है,
द्रोपदी की लाज पे आच आज
दुसाशन खींच रहा साडी,
अबला की लाज बचाओ तुम,
आ जाओ गिरिवर के धारी,
द्रोपदी की लाज बचाओ तुम,
आओ-आओ तुम गिरधारी।
चीर मे चीर बने कृष्णा के,
साडी हे या साडी मे है नारी।
ढेर लगा साडी़ का देखो,
ढेर हुआ दुशाशन आज।
“नारी को नारी ना कहे,
ये हे तप की खान।
छूने से ज्वाला उठे,
मथे माखन बन जाए”।

परिचय : किरण पोरवाल
पति : विजय पोरवाल
निवासी : सांवेर रोड उज्जैन (मध्य प्रदेश)
शिक्षा : बी.कॉम इन कॉमर्स
व्यवसाय : बिजनेस वूमेन
विशिष्ट उपलब्धियां :
१. अंतर्राष्ट्रीय साहित्य मित्र मंडल जबलपुर से सम्मानित
२. अंतर्राष्ट्रीय शिक्षक संचेतना उज्जैन से सम्मानित
३. १५००+ कविताओं की रचना व भजनो की रचना
रूचि : कविता लेखन, चित्रकला, पॉटरी, मंडला आर्ट एवं संगीत
घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना स्वरचित एवं मौलिक है।


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