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शिव स्त्रोत

गौरव श्रीवास्तव
अमावा (लखनऊ)
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ठंडी ये पवन कहें, ये बारिशों की छन कहें,
नमो नमः भी बोल दो ये दिल कहें या मन कहें।।

हरा भरा गगन हुआ, चली पवन सुखन हुआ।
अवलोक दृश्य का किया प्रसन्नचित्त मन हुआ।।

जिनके शीश गंग है, लिपटा गले भुजंग है।
भस्म से सजा हुआ ही जिनका अंग-अंग है।

नैना बने विशाल हैं, मस्तक पे चन्द्र भाल है।
मन्त्र मुग्ध कर रहा, शिव रूप ही कमाल है।।

त्रिनेत्र धारणी शिवा, हैं मोक्ष दायनी शिवा।
विष का पान करनें वालें शोध दायनी शिवा।।

एक हस्त डमरु साजे, दूसरे त्रिशूल हैं।
त्रिनेत्र धारणी शिवा हरते सबके शूल है।।

वो राक्षसों को मारते, वो संकटों को तारते।
अधर्मियों को धर्म के त्रिशूल से जो मारते।।

चरित्र भी विचित्र है, शिव रूप ही पवित्र हैं।
शिव रूप की ये सौम्यता, हृदय में एक चित्र है।।

शिव देखते जहां कहीं, ये जग चले वही वहीं।
वो आंख मूंद लें अगर, तो जग कहीं दिखें नहीं।।

शिव नाम ही अनंत है, शिव राक्षसों का अंत हैं।
शिव राम की अराधना, ही करने वाले संत हैं।।

हैं प्रखर, प्रवीण जो, शिव तत्व में है लीन जो।
शिव तत्व को सुना नहीं है शिव से है विहीन वो।।

ब्रह्माण्ड ये अखंड हैं, शिव रूप भी प्रचंड है।
प्रचण्ड रूप का उन्हें तनिक भी ना घमंड हैं।।

धरा,गगन पवन में शिव, बसें हैं सबके मन में शिव।
अनल, में प्रस्तरों में शिव, रहते हैं हर घरों में शिव।।

वैसे शिवा बहुत सरल, हैं जल की भांति ही तरल।
एक ओर रुद्र माल हैं, एक ओर कंठ में गरल।।

देश का भी मान शिव, गौरव का हैं अभिमान शिव।
शिव तत्व में विलीन जो उसका भी स्वाभिमान शिव।।

ठंडी कहती है पवन, शिवा को ही किया नमन।
हर ओर शिव का नाम है चहुं ओर हैं शिवा शिवम।।

चहुं ओर हैं शिवा शिवम, चहुं ओर हैं शिवा शिवम।
चहुं ओर हैं शिवा शिवम, चहुं ओर हैं शिवा शिवम।।

परिचय :- गौरव श्रीवास्तव
निवासी – अमावा (लखनऊ)
घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है।


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