
श्रीमती क्षिप्रा चतुर्वेदी
लखनऊ (उत्तर प्रदेश)
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एक घरेलु श्वान ने एक दिन,
सड़क पर पड़े
श्वान की दशा देखी!
दुबला पतला शरीर
खंडहर बन चुका था!
उसकी दुर्दशा देख घरेलु
श्वान को छटपटाहट हुई,
उसने सड़क के श्वान से पूछा-
कहाँ रहते हो??
ये कैसा हाल बना है तुम्हारा??
क्या यहाँ इंसान नहीं रहते??
सड़क का श्वान घिसटते पैरों से,
आधा गला शरीर,
उसके घाव से रक्त की
बूंदे रिस रही थीं,
आगे बड़ने की कोशिश करते हुए,
अपने दर्द से भरे
शरीर को समेटते हुए बोला-
प्रत्येक दिन हमारी और
हम जैसे हजारों कि जिंदगी
मौत से आँख- मिचौली खेलती है,
खाना- पीना हमारे
भाग्य में नहीं होता है ,
कभी किसी दरवाजे पर
आस लिए पहुंचते हैं ,
वहाँ डंडे की मार, दुत्कार
और प्रहार मिलता है ,
कभी कहीं हमको जिंदा
आग में जलाया जाता है ,
कभी आग से नहलाया जाता है !
इतना ही नहीं हमारे घावों पर
मरहम तो दूर,
तेजाब फेंक दिया जाता है !
किसी “इंसान” को दया नहीं आती !
हमारी पीड़ा की कराह सुनकर
किसी इंसान के रोंगटे खड़े नहीं होते !
क्या कोई इंसान खुद को
आग से जला सकता है???
क्या हमारे लिए कोई
न्याय की गुहार
लगा सकता है?????
कहाँ है वो जिसे
सब ईश्वर कहते हैं,??
जो सबकी रक्षा करता है ???
जो सबके कष्ट हरता है???
क्या इसीलिये उसने
“इंसान” नामक जीव बनाया?
जो अन्य दूसरे जीव की
हत्या करता है, उसे पीड़ा देता है??
पूछना चाहता हूँ खुदा से,
भगवान से, क्या कसूर है हमारा,
हम क्यों तिल-तिल,
जीते, कटते, और मरते हैं,
कैसे समझूँ कि कोई
मसीहा, कोई ईश्वर है धरती पर???
घरेलु श्वान के झर-झर
बहते आंसुओ के बीच,
उस सड़क के श्वान ने दम तोड़ दिया
एक बड़ा प्रश्नचिन्ह इन्सानियत
मानवता पर लगा कर!!
घरेलु श्वान बोझिल हृदय लिए
इस विशाल अन्तर को समझ नहीं पाया,
क्यूँ कि जीव मासूम होते हैं,
छल-कपट और राग द्वेष
से अनजान होते हैं
परिचय :- श्रीमती क्षिप्रा चतुर्वेदी
पति : श्री राकेश कुमार चतुर्वेदी
जन्म : २७ जुलाई १९६५ वाराणसी
शिक्षा : एम. ए., एम.फिल – समाजशास्त्र, पी.जी.डिप्लोमा (मानवाधिकार)
निवासी : लखनऊ (उत्तर प्रदेश)
सम्मान : राष्ट्रीय हिंदी रक्षक मंच इंदौर द्वारा “जीवदया अंतर्राष्ट्रीय सम्मान २०२४” से सम्मानित
विशेष : साहित्यिक पुस्तकें पढ़ने के शौक ने लेखन की प्रेरणा दी और विगत ६-७ वर्षों से अपनी रचनाधर्मिता में संलग्न हैं।
घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है।
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बहुत सुंदर।जीव पर जीव को दया करना शाश्वत नियम है,पर मनुष्य मनुष्य पर ही दया का भाव न रख पाए तो पशु कहां। मात्र दया ही श्रेष्ठ।