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जय-जय हे बजरंगबली

प्रो. डॉ. शरद नारायण खरे
मंडला, (मध्य प्रदेश)
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सदा सहायक देव प्रबलतम, परमवीर हनुमाना।
संकटमोचन, शत्रु विनाशक, जय-जय दयानिधाना।।

मातु अंजनालाल शौर्यमय, असुरों को संहारें।
रामकाज करने को आतुर, पाप जगत के मारें।।
सूर्य निगलकर बने अनूठे, वायुपुत्र देवंता।
महावीर सुग्रीव सहायक, करें दुःखों का अंता।।
भयसंहारक, मंगलकारी, पूजन बहुत सुहाना।
संकटमोचन, शत्रु विनाशक, जय-जय दयानिधाना।।

दहन करी लंका हे ! देवा, तुम हो प्रलयंकारी।
परम शक्तियाँ तुम में रहतीं, बनकर के साकारी।।
हे हनुमंता, हे भगवंता, तेरा रूप निराला।
हर दिन है उजला हो जाता, हो कितना भी काला।।
जीवन सुमन खिलाते हरदम, जग ने तुमको माना।
संकटमोचन, शत्रु विनाशक, जय-जय दयानिधाना।।

रामदूत, अतुलित बलधामा, जीवन देने वाले।
सब कुछ तुम गतिमय कर देते, काट व्यथा के जाले।।
सीता की कर खोज बन गए, तुम तो एक कहानी।
लक्ष्मण के प्राणों के रक्षक, परम शक्तिमय, ज्ञानी
शरण गया जो देव आपकी, दया मिली भगवाना।
संकटमोचन, शत्रु विनाशक, जय-जय दयानिधाना।।

परिचय :- प्रो. डॉ. शरद नारायण खरे
जन्म : २५-०९-१९६१
निवासी : मंडला, (मध्य प्रदेश)
शिक्षा : एम.ए (इतिहास) (मेरिट होल्डर), एल.एल.बी, पी-एच.डी. (इतिहास)
सम्प्रति : प्राध्यापक व विभागाध्यक्ष इतिहास/प्रभारी प्राचार्य शासकीय जेएमसी महिला महाविद्यालय
प्रकाशित रचनाएं व गतिविधियां : पांच हज़ार से अधिक फुचकर रचनाएं प्रकाशित
प्रसारण : रेडियो, भोपाल दूरदर्शन, ज़ी-स्माइल, ज़ी टी.वी., स्टार टी.वी., ई.टी.वी., सब-टी.वी., साधना चैनल से प्रसारण।
संपादन : ९ कृतियों व ८ पत्रिकाओं/विशेषांकों का सम्पादन। एम.ए.इतिहास की पुस्तकों का लेखन
सम्मान/अलंकरण/ प्रशस्ति पत्र : देश के लगभग सभी राज्यों में ७०० से अधिक सारस्वत सम्मान/ अवार्ड/ अभिनंदन। म.प्र.साहित्य अकादमी का अखिल भारतीय माखनलाल चतुर्वेदी अवार्ड (५१०००/ रु.)
घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि मेरी यह रचना स्वरचित एवं मौलिक है।

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