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पिता दामाद से क्या कहता है…

श्रीमती क्षिप्रा चतुर्वेदी
लखनऊ (उत्तर प्रदेश)
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पहला व्यक्ति जिसने
इस लाडली को गोद में लिया
वो मैं था, तुम नहीं ,
पहला अधिकार मेरा था
जब पहली बार मैंने
इसके माथे को चूमा
तुम्हारा नहीं !

पहली मुस्कान उसकी,
पहले आंसू, उसके मैंने देखे,
उसे अपनी नन्ही
राजकुमारी कहा,
वो मैं ही था, तुम नहीं !

दुनिया की सबसे सुन्दर
बेटी की निश्छलता, निर्मलता,
कोमलता मैंने देखी,
प्यार, नाज़, और दुलार से पाला,
सम्मान और कर्तव्य सिखाये
सबसे पहला पाठ पढ़ाया,
वो मैं ही था!

उसे साहस-ताकत का
अध्याय सिखाया,
पूरे दिल से प्यार देकर पाला !!
आज मैं तुम्हें वहीं सम्मान देता हूँ ,
जिस सम्मान के अधिकारी बने तुम
इसके कारण!

इसी प्यार-सम्मान, से उसे सवांरना,
जो आज तक उसे मैंने दिया है,
उसकी रक्षा करना !
दर्द क्या होता है वो नहीं जानती,
तुम अब वो पुरुष बनोगे,
जिस पर भरोसा किया है मैंने,
जैसे मैंने उसको पाला,
उसी की अधिकारी है वो ,
उसे धैर्य से रखना,
उसकी रक्षा करना,
उसे उसके अधिकार देना,

बाहर घूमते अंजान और
बनावटी लोगों को वो नहीं जानती !
जिस दिन तुम्हारा धीरज टूटे,
जिस दिन तुम्हें अपने वादे झूठे लगे,
तुम्हारा दिल कहीं भटकने लगे,
जिस दिन मेरी “बेटी” बोझ लगे,
तुम उस से कुछ ना कहना,
उस पर कोई अत्याचार ना करना,
तुम उसे मेरे पास लेकर आना
उस “पिता” के पास,
जिसने उसे सबसे
पहले प्यार किया,
जिसने सदैव उसकी
रक्षा-और सम्मान किया,
जिसने उसे एक पल
के लिए भी नहीं भुलाया,
प्यार करना कभी कम नहीं किया !

हमने हृदय के टुकड़े को
तुम्हें सौपा था,
तुम इस लायक नहीं
कि उसे संजो सको,
वो सदैव सम्मान और
प्यार के साथ मेरे साथ रहेंगी
“मेरी बेटी बनकर” !!

परिचय :- श्रीमती क्षिप्रा चतुर्वेदी
पति : श्री राकेश कुमार चतुर्वेदी
जन्म : २७ जुलाई १९६५ वाराणसी
शिक्षा : एम. ए., एम.फिल – समाजशास्त्र, पी.जी.डिप्लोमा (मानवाधिकार)
निवासी : लखनऊ (उत्तर प्रदेश)
सम्मान : राष्ट्रीय हिंदी रक्षक मंच इंदौर द्वारा “जीवदया अंतर्राष्ट्रीय सम्मान २०२४” से सम्मानित
विशेष : साहित्यिक पुस्तकें पढ़ने के शौक ने लेखन की प्रेरणा दी और विगत ६-७ वर्षों से अपनी रचनाधर्मिता में संलग्न हैं।
घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है।


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