
डॉ. मुकेश ‘असीमित’
गंगापुर सिटी, (राजस्थान)
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आजकल किसी का आदमी होना कितना जरूरी हो गया है! अगर आप किसी के आदमी नहीं हैं, तो आप आदमी कहलाने लायक ही नहीं हैं। यह पक्का मान लीजिए- आप दो पाये जानवर हो सकते हैं, पर आदमी नहीं। जहाँ देखो, वहाँ कोई न कोई किसी न किसी का आदमी ही नजर आ रहा है । नौकरी, प्रमोशन, जॉब, डिग्री, राशन, वजीफा, पुरस्कार- सब उसी को मिल रहे हैं जो किसी न किसी का आदमी है। मेरी ओपीडी में भी हर दूसरा मरीज किसी न किसी का आदमी होता है। मरीज आते भी यह देखने के लिए हैं कि डॉक्टर साहब भाव देते हैं या नहीं। सलाह तो डॉक्टर साहब देंगे ही, लेकिन भाव भी देंगे या नहीं, मसलन चाय भी तो पिलाएँगे, नहीं तो तो जिनके आदमी हैं, उनका फोन आ जाएगा- ‘अरे, हमने अपना आदमी भेजा था! बताओ, आपने ध्यान ही नहीं रखा। मरीज मरा जा रहा था, और आपने उसे बाहर दो घंटे लाइन में लगाए रखा? डॉक्टर साहब, इंसानियत भी कोई चीज़ होती है!”
मैंने कहा, “आपका आदमी तो ४५ दिन से कहीं और इलाज ले रहा था, वह तो सिर्फ सेकंड ओपिनियन के लिए आया था। इसमें इमरजेंसी क्या हो गई?” लेकिन नहीं, अब नेताजी हर किसी को तो अपना आदमी नहीं कहते ना!
मैंने उस आदमी का नाम-पता सब नोट कर लिया- अगली बार ध्यान रखूँगा, यह सोचकर। अगली बार जब वह आया, तो हमने उसे बड़ी इज्जत बख्शी। उसे बिठाया, उसकी चार डींगें सुनीं, बाहर मरीजों की लंबी लाइन की गालियाँ सुनीं, उसे चाय पिलाई। चाय पिलाते वक्त श्रीमती जी के कुपित मुख से नजरें भी नहीं मिलाईं ! बड़ी मुश्किल से उन्हें निपटाकर नेताजी को फोन किया- “नेताजी, आपका आदमी आया था, आज हमने उसका विशेष ध्यान रखा!” हम चाह रहे थे कि हम भी नेताजी के आदमी बन जाएँ। बरसों से पेंडिंग पड़ी हमारे हॉस्पिटल की विभिन्न
फाइलों पर लगी जंग हट जाए। लेकिन पासा उल्टा पड़ गया!
नेताजी भड़क गए- “अरे, कौन हमारा आदमी? गलत आदमी को एंटरटेन कर दिए तुम! अरे, वो हमारा आदमी नहीं रहा- वो दूसरी पार्टी से मिल गया। हरामी साला!” लो जी! “किसी के आदमी” भी ना… इन्हें कुछ बिल्ला तो लटकाना चाहिए ना- कौन का आदमी है भाई? ये कब पलडा बदल लें, पता ही नहीं लगता! जो इनका काम निकलवा ले, बस उसी का आदमी हो जाते हैं। देखिए, आम आदमी की भीड़ में रहोगे, तो कुचले जाओगे। वहाँ केवल नंबर होंगे- अंकगणित का एक नंबर, जिसकी वैल्यू सिर्फ एक वोट के सिवा कुछ नहीं। जो अखबारों के आँकड़ों में भी नंबर में आता है, लेकिन जिसका कहीं नाम नहीं आएगा। ऐड़ियाँ घिस लो, चक्कर लगा लो, लंबी लाइनों में लगे रहो। अगर नंबर जल्दी आएगा,
तो सिर्फ उन्हीं का, जो किसी न किसी का आदमी होगा।
आप सोचते हैं- पैसा कमा लें, आलीशान गाड़ी-बंगला ले लें, रुतबा बना लें, वीआईपी श्रेणी में आ जाएँ! फिर क्या? “खास आदमी” की भी औकात “आम आदमी” से ज्यादा कुछ नहीं! ऐड़ियाँ वो भी रगड़ते हैं- अपनी फैक्ट्री, हॉस्पिटल, प्रतिष्ठानों के ढेर सारे लाइसेंस के लिए दफ्तरों में बाबुओं के चक्कर लगाते हैं, निरीक्षण के नाम पर आई टीमों की परिक्रमा करते हैं। “लाइसेंस राज” में न आम आदमी को बख्शा जाएगा, न खास आदमी को। बख्शा जाएगा, तो बस किसी के आदमी को! अब किसका आदमी बनना है, यह देश-काल-परिस्थितियाँ तय करेंगी। मान लीजिए, सरकारी बाबू से कोई काम निकलवाना है और आप कहलवा रहे हैं “हारे हुए विधायक के आदमी”- तो भाई, पासा उल्टा पड़ेगा! आपकी रिश्वत की हथरेटी भी काम नहीं आएगी। ट्रांसफर करवाना है? सिटिंग विधायक का ही आदमी होना पड़ेगा जी! इसलिए हमेशा अपना चेहरा सफेद कागज जैसा रखो। ताकि वक्त जरूरत के हिसाब से किसी भी आदमी की कालिख चेहरे पर पोती जा सके ! अब “किसी का आदमी” कैसे बनना है, यह तो आप और मैं सभी जानते हैं। जितने पापड़ किसी काम को सीधी उंगली से निकालने में बेलते हो, उससे आधी उर्जा उस आदमी के पीछे लगा दो, जिसकी उंगली उस आदमी के नीचे दबी हो, जिससे आपको काम निकलवाना है!
अफसरों पर ट्रांसफर की तलवार कौन लटका सकता है?- विधायक न ! उस विधायक को पकड़ लो!
डॉक्टरों, व्यापारियों से काम निकलवाना है?- तो इनकम टैक्स वालों को पकड़ लो!
मुफ्त का माल या छूट का माल घर में भरवाना है?- तो सेल्स टैक्स वालों को पकड़ लो!
बस एक आदमी, दस ठिकानों का भी आदमी हो सकता है! अब “बहुपति प्रथा” का पालन करो- दस-दस खसम करो ! लेकिन ध्यान रहे- खसमों में आपस में कुत्ते-बिल्ली की लड़ाई हो सकती है! इसलिए एक खसम को पता न लगे, दुसरे खसम का! “इस हाथ को भी खबर न हो कि दूसरा हाथ किसकी खुजली कर रहा है!”
वैसे, भगवान ने हमें दो जोड़ी हाथ-पैर, जीभ, नाक सब दी हैं काहे के लिए बताओ- “किसी का आदमी” बनने के लिए भाई और क्या !
किसी के कदमों में लेटकर…
किसी के यहाँ जीभ रगड़कर…
नाक रगड़कर…
दंडवत प्रणाम करके…
बस बन गए किसी के आदमी!
और हाँ, सबूत के तौर पर कृपया ऐसे साक्ष्य प्रस्तुत न करें जो भविष्य में मुसीबत बन जाएँ। इसके लिए कोई जुगाड़ बनाइए- कैसे “किसी का आदमी” बनने के लिए उसके साथ एक फोटो खिंचवा लिया जाए! अब सभी फोटो एक साथ मत रखना! घर से वही फोटो निकालो, जो संबंधित काम के लिए जरूरी हो। फोटो खिंचवाने की कुछ ट्रिक्स भी बता दूँ- ऐसे नेताजी या अधिकारी की छाया बनकर साथ चिपके रहो, इंतजार करो…! कब वो कोई फीता काटें, कोई पेड़ लगाएं या केला बांटें- ऐसे आयोजनों में धक्का-मुक्की करके, रेंगकर, भीड़ के नीचे से किसी न किसी तरह से अपनी मुंडी निकालकर नेताजी के बगल में सट जाएं। और हां, हाथ ज़रूर नेताजी के हाथ से लगा होना चाहिए, ताकि यह सुनिश्चित हो जाए कि आप उन्हीं के आदमी हैं। एक कार्यकर्ता की तरकीब बताता हूँ- हो सकता है यह तरकीब आपके काम आ जाए। नेताजी मंच पर बैठे थे,
और एक बेचारा कार्यकर्ता कई दिनों से इस फिराक में था कि कैसे भी करके नेताजी के साथ एक फोटो हो जाए- सबूत के लिए। अचानक उसे एक आइडिया आया। उसका मूल काम नेताजी को चाय पिलाने, नाश्ता लाने और कार्यालय में झाड़ू लगाने का था। मंच पर उसका यह हुनर काम आया। उसने अपने एक खास आदमी को- हाँ, जो खुद किसी के आदमी होते हैं, वे अपनी लिनेज (विरासत) को आगे बढ़ाते हुए अपने भी कुछ आदमी पाल लेते हैं- समझा दिया कि “भाई, तू नीचे से फोटो खींच लेना, जब मैं इशारा करूं।” वह मोबाइल लेकर सही शॉट मारने के लिए तैयार खड़ा था।
नेताजी का भाषण अभी शुरू नहीं हुआ था कि उन्हें चाय की तलब लगी। उन्होंने इशारे से उसे चाय लाने को कहा। कार्यकर्ता तुरंत पास गया और कान में फुसफुसाया, “साहब, चाय में चीनी कितनी चम्मच?” बस, इसी पल फोटो खींचने का इशारा हो गया। अगले दिन सोशल मीडिया पर यह फोटो वायरल हो गई- नेताजी के खासमखास सलाहकार नेताजी साथ गहन विचार-विमर्श करते हुए। तरीके और भी हो सकते हैं। अगर आपको कुछ यूनिक तरीके मालूम हों, तो मुझे भी बताएं, ताकि मैं भी किसी का आदमी बन जाऊं!
निवासी : गंगापुर सिटी, (राजस्थान)
व्यवसाय : अस्थि एवं जोड़ रोग विशेषज्ञ
लेखन रुचि : कविताएं, संस्मरण, व्यंग्य और हास्य रचनाएं
प्रकाशन : शीघ्र ही प्रकाशित पुस्तक “नरेंद्र मोदी का निर्माण: चायवाला से चौकीदार तक” (किताबगंज प्रकाशन से), काव्य कुम्भ (साझा संकलन) नीलम पब्लिकेशन, काव्य ग्रन्थ भाग प्रथम (साझा संकलन ) लायंस पब्लिकेशन।
प्रकाशनाधीन : व्यंग्य चालीसा (साझा संकलन ) किताबगंज प्रकाशन, गिरने में क्या हर्ज है -(५१ व्यंग्य रचनाओं का संग्रह) भावना प्रकाशन। देश विदेश के जाने माने दैनिकी, साप्ताहिक पत्र और साहित्यिक पत्रिकाओं में नियमित रूप से लेख प्रकाशित
घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है।
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