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फिर वही बात

श्रीमती क्षिप्रा चतुर्वेदी
लखनऊ (उत्तर प्रदेश)
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बहुत भुलाना चाहा,
पर इनकी पीड़ा से
मुक्ति की कल्पना,
मुझे फिर उन्हीं अंधेरी
गलियों में ले जाती है,
जहाँ फिर से वही बातें
दोहराई जाती हैं,
फिर से वही क्रूरता का
ताना बाना बुना जाता है,
फिर वही निर्दयता पूर्ण
व्यवहार की बातों का
सिलसिला चलता है !
इनकी मासूमियत वहां
एक बार फिर फ़ना हो जाती है !
फिर इनके लिए वही बेबसी,
वही लाचारी, जिनमे ये मासूम
रात-दिन दम तोड़ते हैं !

उस अंधकार में कोई
रोशनी की किरन नहीं दिखती,
कोई ऐसी ध्वनि
कानो में नहीं पड़ती,
जिसमें इनकी
मासूमियत की बातें हों,
जिनमे इनके लिए
करुणा और ममता हो !
यहां बार बार वही
गलतियाँ दोहराई जाती हैं,
इन मासूमों के जीवन को संरक्षित
करने की आशा क्षीण होती जाती है,!

इंसानो की नगरी में मानो
इंसान विवेकहीन हो गया है,
स्वयं के लिए सर्वनाश का
कारण बन गया है !
प्रयत्न करते रहे जीवन भर,
ये कठोरता ये क्रूरतापूर्ण
व्यवहार जीवों के प्रति ना हो,
किन्तु बार बार वही नृशंसता
पूर्ण कृत्य दोहराया जाता है !
प्रकृति का सीना बार-बार
छलनी हो रहा,
इंसान मानवता भूल रहा!

काश फिर से लौट पाते अहिंसा
प्यार और करुणा के दौर में,
जहाँ जीवों के लिए प्रेम बरसता था,
हर जीव का बड़ा महत्व होता था,
उस युग मे प्यार और
स्नेह की बातें होती थीं,
फिर से उन्हीं बातों का
सिलसिला शुरू हो जाता,
इनसे वही प्यार, वही करुणा,
वही संरक्षण लौट आता,
इंसान और जानवरों में
प्रेम का रिश्ता होता!!

परिचय :- श्रीमती क्षिप्रा चतुर्वेदी
पति : श्री राकेश कुमार चतुर्वेदी
जन्म : २७ जुलाई १९६५ वाराणसी
शिक्षा : एम. ए., एम.फिल – समाजशास्त्र, पी.जी.डिप्लोमा (मानवाधिकार)
निवासी : लखनऊ (उत्तर प्रदेश)
सम्मान : राष्ट्रीय हिंदी रक्षक मंच इंदौर द्वारा “जीवदया अंतर्राष्ट्रीय सम्मान २०२४” से सम्मानित
विशेष : साहित्यिक पुस्तकें पढ़ने के शौक ने लेखन की प्रेरणा दी और विगत ६-७ वर्षों से अपनी रचनाधर्मिता में संलग्न हैं।
घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है।


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1 Comment

  • किरन अवस्थी

    आपकी कोमल भावनाएं कुछ मुट्ठी भर रह गई।आज जब इंसान इंसान पर नृशंस प्रहार कर रहा है तो मूक प्राणी तो तो उन्हें जीवधारी ही कहां दिखते हैं। निर्ममता चरम पर है।

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