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माँ ही क्यों लिखूँ?

सुधीर श्रीवास्तव
बड़गाँव, गोण्डा, (उत्तर प्रदेश)
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एक बड़ा सवाल
मैं माँ ही क्यों लिखूँ?
क्या सिर्फ इसलिए
कि उसने मुझे अपने
गर्भ में प्रश्रय दिया,
रक्त मज्जा से
मुझे आकार दिया,
दिन रात मेरा बोझ
नौ माह तक ढोया
या फिर इसलिए कि
मुझे जन्म देने के लिए
खुद को दाँव पर लगा दिया।
या फिर अपना दूध पिलाया,
खुद गीले में सोई,
मुझे सूखे में सुलाया,
हर पल मेरे लिए सचेत रही
या फिर इसलिए कि मेरी खातिर
अपने सारे दुःख दर्द भूली रही,
अपनी ख्वाहिशें होम करती रही।
पाल पोस्टर बड़ा किया।
या फिर इसलिए कि माँ है हमारी
जो मेरे हंँसनें पर हँसती रही
मेरे रोने पर रोती रही,
मेरी छोटी सी खुशी के लिए
अपनी बड़ी से बड़ी
खुशी भी पीछे ढकेल देती
अपना सब कुछ भूली रहती।
या फिर इसलिए कि
मैं उसका सिर्फ अंश नहीं
उसका ही निर्माण हूँ,
वो पहाड़, मैं उसका
मात्र रजकण हूँ।
या फिर इसलिए कि
मेरी भी कुछ जिम्मेदारी है,
बेटी/बेटा हूँ, तो मेरा
भी कुछ फ़र्ज़ बनता है,
माँ है वो हमारी तो,
उसका भी कुछ हक बनता है।
या फिर इसलिए कि
सृष्टिकर्ता के रुप में
उसने सृष्टि के नियम
को चलायमान रखा है,
मेरे रुप में सृष्टि चक्र
का सूत्र मुझे पकड़ा रखा है।
या फिर इसलिए कि वो माँ है
माँ के सिवा कुछ नहीं है
माँ की जगह
कोई ले नहीं सकता
राजा हो या रंक,
अमीर हो या गरीब
माँ के गर्भ में गुजारे नौ माह
कोई वापस जो
नहीं कर सकता,
फिर भला माँ का
कर्ज कैसे उतर सकता?
फिर इस बहस
का मतलब क्या है
कि मैं माँ ही क्यों लिखूँ।
तब लगता है मैं
कुछ लिखूँ या न लिखूँ
पर लिखना ही है तो क्यों न
सबसे पहले माँ ही लिखूँ,
अपने हर शब्द
माँ को ही अर्पित करुँ।

परिचय :- सुधीर श्रीवास्तव
जन्मतिथि : ०१/०७/१९६९
शिक्षा : स्नातक, आई.टी.आई., पत्रकारिता प्रशिक्षण (पत्राचार)
पिता : स्व.श्री ज्ञानप्रकाश श्रीवास्तव
माता : स्व.विमला देवी
धर्मपत्नी : अंजू श्रीवास्तव
पुत्री : संस्कृति, गरिमा
संप्रति : निजी कार्य
विशेष : अधीक्षक (दैनिक कार्यक्रम) साहित्य संगम संस्थान असम इकाई।
रा.उपाध्यक्ष : साहित्यिक आस्था मंच्, रा.मीडिया प्रभारी-हिंददेश परिवार
सलाहकार : हिंंददेश पत्रिका (पा.)
संयोजक : हिंददेश परिवार(एनजीओ) -हिंददेश लाइव -हिंददेश रक्तमंडली
संरक्षक : लफ्जों का कमाल (व्हाट्सएप पटल)
निवास : गोण्डा (उ.प्र.)
साहित्यिक गतिविधियाँ : १९८५ से विभिन्न विधाओं की रचनाएं कहानियां, लघुकथाएं, हाइकू, कविताएं, लेख, परिचर्चा, पुस्तक समीक्षा आदि १५० से अधिक स्थानीय से लेकर राष्ट्रीय स्तर की पत्र पत्रिकाओं में प्रकाशित। दो दर्जन से अधिक कहानी, कविता, लघुकथा संकलनों में रचनाओं का प्रकाशन, कुछेक प्रकाश्य। अनेक पत्र पत्रिकाओं, काव्य संकलनों, ई-बुक काव्य संकलनों व पत्र पत्रिकाओं, न्यूज पोर्टल्स, ब्लॉगस, बेवसाइटस में रचनाओं का प्रकाशन जारी।अब तक ७५० से अधिक रचनाओं का प्रकाशन, सतत जारी। अनेक पटलों पर काव्य पाठ अनवरत जारी।
सम्मान : विभिन्न साहित्यिक संस्थाओं द्वारा ४५० से अधिक सम्मान पत्र। विभिन्न पटलों की काव्य गोष्ठियों में अध्यक्षता करने का अवसर भी मिला। साहित्य संगम संस्थान द्वारा ‘संगम शिरोमणि’सम्मान, जैन (संभाव्य) विश्वविद्यालय बेंगलुरु द्वारा बेवनार हेतु सम्मान पत्र।
घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है।


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