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क्यों रातें जल्दी ढलती है

छत्र छाजेड़ “फक्कड़”
आनंद विहार (दिल्ली)
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सारे दिन अवसाद को ढोया
जीवन के अनगिन झमेले
रातें ही तो बस अपनी है
जहाँ पूरी शांति मिलती है
क्यों रातें जल्दी ढलती है

एक आस लिए इंतजार करूँ
शशि सम पिय का दीदार करूँ
मिलन के क्षण जब आते हैं
साँसें बिन बात मचलती है
क्यों रातें जल्दी ढलती है

मद छलकाये उजली चाँदनी
ज्वार उठे, चुप मन मंदाकिनी
भुजपाश बढाये तन ताप
देह पिया मेरी जलती है
क्यों रातें जल्दी ढलती है

पलकों की छुअन, रजनी रीती
कैसे कहूँ, मन पर क्या बीती
बातों में वक्त बीत गया
लाज लगे, क्या कहती मैं
क्यों रातें जल्दी ढलती है

जाने कितनी मन भरी पीर
बक जाता सब नयन नीर
पिया मिले तो धीर धरूँ मैं
यूँ ही जान ये निकलती है
क्यों रातें जल्दी ढलती है

परिचय :- छत्र छाजेड़ “फक्कड़”
निवासी : आनंद विहार, दिल्ली
विशेष रूचि : व्यंग्य लेखन, हिन्दी व राजस्थानी में पद्य व गद्य दोनों विधा में लेखन, अब तक पंद्रह पुस्तकों का प्रकाशन, पांच अनुवाद हिंदी से राजस्थानी में प्रकाशित, राजस्थान साहित्य अकादमी (राजस्थान सरकार) द्वारा, पत्र पत्रिकाओं व समाचार पत्रों में नियमित प्रकाशन, राजस्थानी लोक गीतों के लिए प्रसिद्ध कंपनी “वीणा कैसेटस” के दो एलबमों में सात गीत संगीतबद्ध हुये हैं।
सम्मान : “राजस्थानी आगीवान” सम्मान से सम्मानित
श्री गंगानगर के सृजन साहित्य संस्थान का सृजन साहित्य सम्मान व
सरदारशहर गौरव (साहित्य) सम्मान व अनेक अन्य सम्मानरा
घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है।


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