
प्रो. डॉ. शरद नारायण खरे
मंडला, (मध्य प्रदेश)
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हुआ महाभारत तभी, वजह बहुत थी खास।
द्रुपदसुता ने था किया, दुर्योधन का हास।।
कभी न करना और का, तुम किंचित उपहास।
वजह बनेगी हो कलह, टूटेगा विश्वास।।
दुर्योधन का अति कपट, झगड़ा लाया ख़ूब।
वजह यही थी युद्ध की, सूखी नेहिल दूब।।
पाप वजह बनता सदा, रच देता संताप।
अन्यायी आवेग को, कौन सकेगा माप।।
रीति, नीति से गति मिले, बनते ये शुभ नेग।
झूठ बने नित ही वजह, चले युद्ध की तेग।।
किया शकुनि ने छल बहुत, हुआ इसलिए युद्ध।
यही वजह टकराव की, हुए कृष्ण भी क्रुद्ध।।
झूठ वजह अवसान की, अपनाओ नित साँच।
जो सत् के पथ नित चलें, उन पर कभी न आँच।।
नित अधर्म बनकर वजह, रच देता है शोक।
इसीलिए तो धर्म नित, देता हमको देता रोक।।
जन्म : २५-०९-१९६१
निवासी : मंडला, (मध्य प्रदेश)
शिक्षा : एम.ए (इतिहास) (मेरिट होल्डर), एल.एल.बी, पी-एच.डी. (इतिहास)
सम्प्रति : प्राध्यापक व विभागाध्यक्ष इतिहास/प्रभारी प्राचार्य शासकीय जेएमसी महिला महाविद्यालय
प्रकाशित रचनाएं व गतिविधियां : पांच हज़ार से अधिक फुचकर रचनाएं प्रकाशित
प्रसारण : रेडियो, भोपाल दूरदर्शन, ज़ी-स्माइल, ज़ी टी.वी., स्टार टी.वी., ई.टी.वी., सब-टी.वी., साधना चैनल से प्रसारण।
संपादन : ९ कृतियों व ८ पत्रिकाओं/विशेषांकों का सम्पादन। एम.ए.इतिहास की पुस्तकों का लेखन
सम्मान/अलंकरण/ प्रशस्ति पत्र : देश के लगभग सभी राज्यों में ७०० से अधिक सारस्वत सम्मान/ अवार्ड/ अभिनंदन। म.प्र.साहित्य अकादमी का अखिल भारतीय माखनलाल चतुर्वेदी अवार्ड (५१०००/ रु.)
घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि मेरी यह रचना स्वरचित एवं मौलिक है।
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