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वैराग्य का मौन

श्रीमती क्षिप्रा चतुर्वेदी
लखनऊ (उत्तर प्रदेश)
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थक चुकी है वो मग़र,
ना रिश्तों के बोझ से
ना जिम्मेदारियों से
वो थकी है खुद के
भीतर के शोर से !

उसे कोई शिकायत
नहीं, कोई प्रश्न नहीं,
सूख चुकी है उसके
भीतर की नदी जो
निर्मल बहा करती थी
अब वो स्थिर शांत हो गई है !

कुछ पल चाहती है जिंदगी
से सिर्फ अपने जीवों लिए
उन पलों में वो जी भर के
उनको प्यार करना चाहती है,
उनके चेहरे की मुस्कान
बनना चाहती है !

कभी पत्नी, कभी माँ,
कभी बेटी बनकर जो
निभाये थे कर्तव्य उसने,
मित्र बनकर जोड़ा था
टूटे दिलों को उसने
धूमिल पड़ चुके है
उनके रंग और
रिश्तों की चमक,
नहीं है शेष कोई उल्लास
कोई अभिलाषा उसकी !!

ढूँढ रही है कुछ ऐसे पल
जिसमें” वो “केवल वो “रहे,
ना “किसी की” ना “कोई”
बन जीना चाहती है !

अब ना आँसू बचे थे,
ना मुस्कराने की कोई चाहत,
बस है एक वैराग्य भरा मौन
जो उसको सूकून देता है !!

परिचय :- श्रीमती क्षिप्रा चतुर्वेदी
पति : श्री राकेश कुमार चतुर्वेदी
जन्म : २७ जुलाई १९६५ वाराणसी
शिक्षा : एम. ए., एम.फिल – समाजशास्त्र, पी.जी.डिप्लोमा (मानवाधिकार)
निवासी : लखनऊ (उत्तर प्रदेश)
सम्मान : राष्ट्रीय हिंदी रक्षक मंच इंदौर द्वारा “जीवदया अंतर्राष्ट्रीय सम्मान २०२४” से सम्मानित
विशेष : साहित्यिक पुस्तकें पढ़ने के शौक ने लेखन की प्रेरणा दी और विगत ६-७ वर्षों से अपनी रचनाधर्मिता में संलग्न हैं।
घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है।


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