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परछाइयाँ

छत्र छाजेड़ “फक्कड़”
आनंद विहार (दिल्ली)
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कब पीछा छोड़ती है
परछाइयाँ
ये प्रतिबिंब होती है
उसके व्यक्तित्व की
झलक होती है
निजी अस्तित्व की
आभास होती है
प्रछन्न अनुभूति की
प्रबल विश्वास होती है
मानसिक संवेदनाओं की…

इसकी
सघन जकड़न में
अलग उन्माद है
अजब आक्रोश है
भीनी महक है
चुलबुल चहक है
सहमी सी कुंठा है
पाने की उत्कंठा है
सही की आशा है
गहन जिजीविषा है….

फिर भी
परछाई तो परछाई है
कभी कभी दिखती है
शेष बस अहसास है
प्रत्यक्ष है… परोक्ष है…
परंतु
प्रति पल संग है….

ये तो
मीठी मीठी सिहरन है
पगलायी सी विरहन है
नीलोत्पल की दमक दामिनी
आवेश की सरस चाशनी
पागलपन भी कैसा कैसा
प्रिय-प्रिये मिलन
जैसी परछाइयाँ..

पर क्या
टूटेगा ये अमर प्रेम
स्व से परछाई का वहम
ना… कभी नहीं…
क्योंकि
ये स्व का दर्पण है
स्व श्रद्धा का समर्पण है
संस्कारों का तर्पण है
झलक देने में पर कृपण है….
मगर
झलक जब मिलती है
तो आशा निराशा का
घर्षण होती है परछाइयाँ…

और
सांकेतिक झलक में
सत्य से संबंध है…
धृष्टता के लिए कटिबद्ध है
आस्था से अनुबंध है
भ्रष्टता के लिए प्रतिबद्ध है
मद की मधुशाला है
लिप्सा की मधुबाला है
मन ही मन मदन है
तन से कुंदन बदन है
सृजन की चेतना है
विनाश की वेदना है
सब कुछ अलग अलग
फिर भी कहाँ
विलग होती है परछाइयाँ….

ऐसे में
क्यों हम रखते हैं
अभिलाषा
कि… छोड़ देगी
पीछा परछाइयाँ
ये हमारी हमराज है
पल पल ये साथ है
कया कभी अलग होगी
हमसे..
हमारी परछाइयाँ…!

परिचय :- छत्र छाजेड़ “फक्कड़”
निवासी : आनंद विहार, दिल्ली
विशेष रूचि : व्यंग्य लेखन, हिन्दी व राजस्थानी में पद्य व गद्य दोनों विधा में लेखन, अब तक पंद्रह पुस्तकों का प्रकाशन, पांच अनुवाद हिंदी से राजस्थानी में प्रकाशित, राजस्थान साहित्य अकादमी (राजस्थान सरकार) द्वारा, पत्र पत्रिकाओं व समाचार पत्रों में नियमित प्रकाशन, राजस्थानी लोक गीतों के लिए प्रसिद्ध कंपनी “वीणा कैसेटस” के दो एलबमों में सात गीत संगीतबद्ध हुये हैं।
सम्मान : “राजस्थानी आगीवान” सम्मान से सम्मानित
श्री गंगानगर के सृजन साहित्य संस्थान का सृजन साहित्य सम्मान व
सरदारशहर गौरव (साहित्य) सम्मान व अनेक अन्य सम्मानरा
घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है।


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