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गाली भरे खजाने

भीमराव झरबड़े ‘जीवन’
बैतूल (मध्य प्रदेश)
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शुद्धिकरण का
मंत्र किये है
मंशा मैली अपनी
गंगाजल से
धोते फिर भी
रही अपावन कफनी

रहे पूजते
गोबर को नित
मार गाय को डंडे
नफरत के
रोबोट बनाते
वहशी हुए त्रिपुंडे
सिखा रहे हैं
भेदभाव की
माला कैसी जपनी।।

टांँग उठाकर
श्वान मूतते
फिर भी पूज्य ठिकाने
देख वंचितों
पर उड़ेलते
गाली भरे खजाने
सदियों सुख को
पिये अघाने
चखी न दुख की चटनी।।

भरे हुए हर
घट में इनके
साजिश के सौ खोखे
कपट दुर्ग में
धन लाने के
लाखों बने झरोखे
स्वर्ग-नर्क के
इनके दंगल
देते रहे पटकनी।।
•••

परिचय :- भीमराव झरबड़े ‘जीवन’
निवासी : बैतूल मध्य प्रदेश
घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि मेरी यह रचना स्वरचित एवं मौलिक है।

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1 Comment

  • Ashok Raktale

    वाह! बहुत सुन्दर सच्चाई लिए नवगीत। हार्दिक बधाई स्वीकारें आदरणीय भीमराव झरबडे जी।

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