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चलो आज फिर मास्टरी कर लेता हूँ – भाग-1

गिरेन्द्रसिंह भदौरिया “प्राण”
इन्दौर (मध्य प्रदेश) 

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नोट- यह ज्ञान मेरे द्वारा हृदयंगम की गई अनुभूति और उसके मन्थन का निष्कर्ष है जो कई विद्वानों की मान्यताओं से भिन्न भी हो सकता है। इतर होने पर जिज्ञासु मुझसे सम्बन्धित विषय पर प्रश्न पूछ सकते हैं। कई जिज्ञासुओं ने जानना चाहा है कि –

प्रश्न- देवनागरी लिपि में ‘क’,’ख’ ‘ग’ ‘ज’, ‘प’ आदि को अमात्रिक बताया जा रहा है क्या यह उचित है?

उत्तर- “नहीं”। स्वर रहित वर्ण को ही अमात्रिक कहना सही है जैसे क्,ख्,ग्, आदि, किन्तु किसी वर्ण पर कोई भी स्वर होने पर वह मात्रिक हो जाता है। इसलिए क,ख,ग अमात्रिक नहीं हो सकते हैंं, क्योंकि इनमें अ स्वर मिला हुआ है।

प्रश्न – सर ! अन्य मात्राओं की भाँति इन वर्णों पर कोई मात्रा (किसी स्वर का चिह्न) तो दिखाई ही नहीं दे रही है ?

उत्तर- हमारी देवनागरी लिपि में सभी वर्णों की आकृति में ही छोटे ‘अ’ की मात्रा चढ़ा दी गई है। इसका आकार बड़े आ की मात्रा के समान T ही है किन्तु थोड़ा छोटा है। इसे हम दण्ड कहते हैं।
प्रश्न- फिर यह दण्ड कहाँ है ? कहीं दृश्य है ?

उत्तर- जी। सभी वर्णों में है। यह किसी वर्ण में उपरि दण्ड, मध्य दण्ड अथवा पश्च दण्ड के रूप में उपस्थित रहता है जैसे ‘ क फ ‘ में मध्य दण्ड है, ख ग घ च ज झ ञ ण त थ ध न प ब भ म य ल व श ष स में पश्च दण्ड है वहीं छ ङ ट ठ ड ढ द र ह में उपरि दण्ड उपस्थित हैं। ये दण्ड ही लघु अ की मात्रा हैं।
प्रश्न- लघु स्वर कितने हैं ?
उत्तर- अ इ उ ऋ लृ
प्रश्न- दीर्घ स्वर कितने हैं ?
आ ई ऊ ऋॄ ए ऐ ओ औ
प्रश्न- इसमें लघु लृ का दीर्घ नहीं बताया ?

उत्तर- प्रकाशक छाप देते हैं किन्तु लृ का दीर्घ कभी नहीं होता। इसकी मात्रा भी नहीं लगती। दीर्घ लृ को बोल भी नहीं सकते।

प्रश्न- रि और ऋ के उच्चारण में क्या अन्तर है?
उत्तर- ऋ के उच्चारण का लोप हो गया है।

प्रश्न- तो अमात्रिक वर्ण किसे कहते हैं सर? इन्हें कैसे लिखते हैं? इन पर से स्वर कैसे हटाएँगे?

उत्तर- स्वर रहित निखालिश वर्ण को लिखने के लिए हल का चिह्न (् ) लगाते हैं अथवा किसी वर्ण में मिलाते समय उस वर्ण के पहले की आकृति को आधा कर देते हैं। जैसे – अच्छा। इसमें च को आधा कर दिया गया है। हल का चिह्न ( ् ) यह प्रदर्शित करता है कि इस पर चढ़ी मात्रा अर्थात इसके दण्ड को काट दिया गया है। जैसे- क् । हाँ अन्य दूसरे स्वरों की मात्रारूढ़ होने पर सभी वर्णों के बिना दण्ड काटे ही मात्राएँ लगाई जाती हैं।

प्रश्न – तो फिर असली व्यंजनी वर्णमाला का क्या स्वरूप है?
उत्तर –
क् ख् ग् घ् ङ्
च् छ् ज् झ् ञ्
ट् ठ् ड् ढ् ण्
त् थ् द् ध् न्
प् फ् ब् भ् म्
य् र् ल् व्
श् ष् स् ह्

इनमें अमात्रिक केवल दो वर्ण ही हो सकते हैं। पहला ङ् और दूसरा ञ्। इनमें भी पाणिनि ने ङ् में ई का स्वर लगाकर ङीप् प्रत्यय शब्द दिया है यह प्रत्यय पुल्लिंग से स्त्रीलिंग शब्द बनाने के लिए प्रयोग किया जाता है, किन्तु यह शब्द अर्थ की दृष्टि से निरर्थक है।

प्रश्न – तो अमात्रिक वर्णों से अर्थात् बिना स्वरों की सहायता के शब्द बन सकते ?

उत्तर – नहीं। क्यों कि स्वर रहित होने पर बोलने में कठिनाइयाँ होती हैं। वहीं यह भी कहना चाहूँगा कि अमात्रिक चार पाँच से अधिक वर्णों से बना शब्द बोला ही नहीं जा सकता। दो स्वरो के मध्य में एक साथ अधिकतम पाँच संयुक्त वर्ण ही कठिनाई से बोले जा सकते हैं। इससे अधिक संयुक्त वर्ण बोले ही नहीं जा सकते। तीन चार पाँच वर्णों से अधिक बिना मात्रा के शब्द बनाते समय पूर्व में या बाद में स्वर (मात्रा) का सहारा लेना ही पड़ेगा। जैसे -कार्त्स्न्य। यह एक ऐसा शब्द है कि इससे बड़ा कोई अन्य शब्द संस्कृत और हिन्दी साहित्य में मिलता ही नहीं है। इसमें सबसे पहले ‘क’ पर ‘आ’ का स्वर है अर्थात आ की मात्रा चढ़ी हुई है वहीं ‘र्’ ‘त्’ ‘स्’ ‘न्’ पूर्ण किन्तु ‘र्त्स्न्’ संयुक्त वर्ण हैं। इसमें ‘का’ के बाद‌ चूँकि ‘र्’ वर्ण है भले ही वह सबसे बाद में ऊपर चढ़ा हुआ दिखाई दे रहा है लेकिन वह यहाँ संयुक्त वर्णों में सबसे पहले है इसलिए ‘र्’ ही पहले उच्चरित होगा उसके बाद ही ‘त्’ ‘स्’ ‘न्’ हैं। स्वर सहित अन्त में ‘य’ है। कार्त्स्न्य का आशय समग्रता से है।

प्रश्न- एक वर्ण पर कितनी मात्राएँ अथवा स्वर लगाए जा सकते हैं?
उत्तर- एक वर्ण पर एक ही मात्रा लगाई जा सकती है।

प्रश्न- हृास शब्द सही है।
उत्तर- नहीं, क्योंकि ह पर ऋ की मात्रा आरूढ़ होने से फिर आ की मात्रा नहीं चढ़ाई जा सकती। सही शब्द ह्रास है।

प्रश्न- बहुत से लोग आशीर्वाद लिखते हैं तो बहुत से लोग आर्शीवाद लिखते हैं। क्या सही है?
उत्तर- सही शब्द आशीर्वाद है अज्ञानता वश लिखा गया शब्द आर्शीवाद उपहास का कारण बनता है। लिखने वाले तो नार्मदीय ब्राह्मण को नामर्दीय ब्राह्मण लिख देते हैं। यह तो बहुत ही उपहासास्पद हो जाता है।

सभी मित्रों से निवेदन है कि यह डमरू घनाक्षरी समझने के लिए बनी प्रस्तावना सरीखी भूमिका है। आगामी बुधवार गुरुवार को स्वरों की संरचना पर अपनी बात कहूँगा। आपको यदि इस विषय से सम्बन्धित कोई भी जानकारी अधूरी लगती है या गलत लगती है तो आप प्रश्न कर सकते हैं । अपने अध्ययन के अनुसार आपके प्रश्न का उत्तर देने का प्रयास करूँगा, नहीं आएगा तो मैं आपसे या शास्त्रों से जानने की कोशिश भी करूँगा और मनन करके उत्तर दूँगा। इत्यलम्। क्रमशः …..

परिचय :- गिरेन्द्रसिंह भदौरिया “प्राण”
निवासी : इन्दौर (मध्य प्रदेश)
घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि मेरी यह रचना स्वरचित एवं मौलिक है।


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