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Tag: गिरेन्द्रसिंह भदौरिया “प्राण”

तुम अजेय हो
कविता

तुम अजेय हो

गिरेन्द्रसिंह भदौरिया "प्राण" इन्दौर (मध्य प्रदेश)  ******************** सुनो! स्वयं के विश्वासों पर, ही जगती में टिक पाओगे। गांँठ बाँध लो मूल मन्त्र है, यही अन्यथा मिट जाओगे।। साहस - शुचिता से भूषित तुम, धरती माँ के दिव्य पुत्र हो। घबराहट से परे शौर्य की, सन्तानों के तुम सुपुत्र हो।। तुम अतुल्य अनुपम अजेय हो, बुद्धि वीरता के स्वामी हो। स्वर्ण पिंजरों के बन्धन से, मोह मुक्ति के पथगामी हो।। चलते चलो रुको मत समझो, जीवटता का यह जुड़ाव है। संघर्षों में मिली विफलता, मूल‌ सफलता का पड़ाव है।। करते हैं संघर्ष वही बस, पा पाते हैं मंजिल पूरी। भीरु और आलसी जीव की, रहती हर कामना अधूरी।। भरो आत्मविश्वास स्वयं में, स्वयं शक्ति अवतरण करेगी। बैशाखी पर टिके रहे तो, कुण्ठित आशा वरण करेगी।। घोर निराशा भरी कलह का, जीवन भी क्या जीवन जीना । तज कर निर्मल नीर नदी का, ...
ज़ल
कविता

ज़ल

गिरेन्द्रसिंह भदौरिया "प्राण" इन्दौर (मध्य प्रदेश)  ******************** दोगले दाग़दार होते हैं। फिर भी वे होशियार होते हैं।। सावधानी यहाँ जरूरी है, चूकते ही शिकार होते हैं।। आप जितने सवाल करते हो, तीर से धारदार होते हैं।। जिन पलों में कमाल होता है, बस वही यादगार होते हैं।। दाँत होते नहीं परिन्दों के, क्यों कि वे चोंचदार होते हैं।। चोर शातिर मिजाज ही होंगे, या कहो आर - पार होते हैं।। शूल क्या आजकल बगीचे के, फूल भी धारदार होते हैं।। वार करते न सामना करते, इसलिए ही शिकार होते हैं।। नोंक तीरों की रगड़ पत्थर पर, तब कहीं धारदार होते हैं।। बालकों को अबोध मत समझो, वे बड़े होनहार होते हैं ।। "प्राण" कहते न बोलते उनके, हर जगह इन्तजार होते हैं।। परिचय :- गिरेन्द्रसिंह भदौरिया "प्राण" निवासी : इन्दौर (मध्य प्रदेश) घोषणा पत्र : मैं...
प्राण का अक्षरजाल
कविता

प्राण का अक्षरजाल

गिरेन्द्रसिंह भदौरिया "प्राण" इन्दौर (मध्य प्रदेश)  ******************** "उठ विषज्ञ फणधर थम अञ्चल, इस ऊपर भय ऋक्ष शङ्ख दह। औघड़ कई छत्र तज आए , बढ़ डग ऐन ओढ झट अं अ:।।" अर्थात - विष के स्वाद को जानने वाले हे नागराज! रुको और उठकर सुनो। इस क्षेत्र के ऊपर जंगली रीछ, गहरे पानी के भँवर और उनमें बसने वाले शंखों का भय है। इस कारण ही कई औगढ अघोरी सन्त, जिन्हें श्मशान में भी भय नहीं लगता है वे भी अपने - अपने छत्र त्याग कर डग बढ़ाते हुए अंग वसन स्वरूप 'अं अ:' अर्थात जो न तो स्वर हैं और न व्यंजन हैं, को ओढ़कर यहाँ आ गए हैं। इसलिए तुम भी उधर मत जाओ। विशेष - ===== उक्त पँक्तियों में हिन्दी की पूरी वर्णमाला है। केवल व पर इ की मात्रा है जो शक्ति की और ङ और ञ स्वर रहित औघढ़ सन्तों के प्रतीक हैं जो अपने छत्रों को छोड़कर चले आए हैं। शेष सभी स्वर सहित व्यंजन हैं या पूर्ण स्वर ...
कुछ दूरियाँ बना लो … सब लोग क्या कहेंगे …
ग़ज़ल

कुछ दूरियाँ बना लो … सब लोग क्या कहेंगे …

गिरेन्द्रसिंह भदौरिया "प्राण" इन्दौर (मध्य प्रदेश)  ******************** होती नहीं उजागर, तो और बात होती। होती जो बात घर पर, तो और बात होती।। पहरे लगे हुए थे, वातावरण था भय का, होता नहीं अगर डर, तो और बात होती।। कुछ दूरियाँ बना लो, सब लोग क्या कहेंगे, होते कहीं जो बाहर, तो और बात होती।। सरनाम थे कभी जो, बदनाम इश्क में हैं, करते न प्यार पथ पर, तो और बात होती।। मन में दबा रखी है, हर बात बावरी ने, होती जो बात खुलकर, तो और बात होती।। आकाश के सितारे, लटके हुए टंँगे हैं, बसते अगर धरा पर, तो और बात होती।। कैसा सवाल था यह, तुम भी न कर सके हल, देते सटीक उत्तर, तो और बात होती।। पानी यहाँ कहाँ है, मरुथल मलाल का है, मिलता अगर सरोवर, तो और बात होती।। यह जान भी न जाती, नुकसान भी न होता, लाते जो "प्राण" को घर, तो और बात होती।। परिचय :- गिरेन्द्...
दोगले दाग़दार होते हैं
ग़ज़ल

दोगले दाग़दार होते हैं

गिरेन्द्रसिंह भदौरिया "प्राण" इन्दौर (मध्य प्रदेश)  ******************** दोगले दाग़दार होते हैं। फिर भी वे होशियार होते हैं।।१।। सावधानी यहाँ जरूरी है, चूकते ही शिकार होते हैं।।२।। आप जितने सवाल करते हो, तीर से धारदार होते हैं।।३।। जिन पलों में कमाल होता है, बस वही यादगार होते हैं।।४।। दाँत होते नहीं परिन्दों के, क्यों कि वे चोंचदार होते हैं।।५।। चोर शातिर मिजाज ही होंगे, या कहो आर - पार होते हैं।।६।। शूल क्या आजकल बगीचे के, फूल भी धारदार होते हैं।।७।। वार करते न सामना करते, इसलिए ही शिकार होते हैं।।८।। नोंक तीरों की रगड़ पत्थर पर, तब कहीं धारदार होते हैं।।९।। बालकों को अबोध मत समझो, वे बड़े होनहार होते हैं ।।१०।। "प्राण" कहते न बोलते उनके, हर जगह इन्तजार होते हैं।।११।। परिचय :- गिरेन्द्रसिंह भदौरिया "प्राण" निवासी : इन्...
खुश्क तबियत
ग़ज़ल

खुश्क तबियत

गिरेन्द्रसिंह भदौरिया "प्राण" इन्दौर (मध्य प्रदेश)  ******************** खुश्क तबियत हरी नहीं मिलती। और फिर रसभरी नहीं मिलती।।१।। लोग कहते कि चाँदनी देखो, चाँदनी साँवरी नहीं मिलती।।२।। नाज़ नखरे हजार होते हैं, रूपसी बावरी नहीं मिलती।।३।‌। नाज़नीनों को भटकते देखा, आप सी सहचरी नहीं मिलती।।४।। हूर तक को उतार लेता पर, आप जैसी परी नहीं मिलती।।५।। इश्क नमकीन हुस्न मीठा है, प्रीति भी चरपरी नहीं मिलती।।६।। "प्राण" की प्यास आखिरी होगी, ज़िन्दगी दूसरी नहीं मिलती।।७।। परिचय :- गिरेन्द्रसिंह भदौरिया "प्राण" निवासी : इन्दौर (मध्य प्रदेश) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि मेरी यह रचना स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं छायाचित्र के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, राष्ट्...
द्वयक्षरीय रचना
कविता

द्वयक्षरीय रचना

गिरेन्द्रसिंह भदौरिया "प्राण" इन्दौर (मध्य प्रदेश)  ******************** हे हरिहरी ! राहु रारी है, रह-रह हरा रहा है राह। हीरे राही हार रहे हैं , हेरो हार हरो हुर्राह।। हाहा हीही हूहू हेहे, होहो हूँह हो रही रार। रो - रो रहा हरे हर राही, राहें हेर - हेर हर हार।। अर्थात - हे विष्णु भगवान ! राहु बड़ा ही झगड़ालू है, वह रह - रह कर हर रास्ते में सबको सता रहा है। इसलिए इस रार में होने वाली हार को देखो और उसको हरो अर्थात हार से बचाओ, क्योंकि जीवन पथ पर चलने वाले हीरे जैसे हर राहगीर को यह हार बहुत ही कष्ट कारी हो गई है। चारों ओर हा-हा ही-ही हू-हू हे-हे हो-हो हूँ-हूँ की त्राहि-त्राहि मची हुई है। हे हरि ! हर राह का हर राहगीर अपनी हार देख - देख कर बुरी तरह रो रहा है। परिचय :- गिरेन्द्रसिंह भदौरिया "प्राण" निवासी : इन्दौर (मध्य प्रदेश) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करत...
सत्य की कठोरता को
कविता

सत्य की कठोरता को

गिरेन्द्रसिंह भदौरिया "प्राण" इन्दौर (मध्य प्रदेश)  ******************** सत्य की कठोरता को कौन झेल पाता नित्य, काव्य में रसत्व का आनन्द नहीं होता तो।। रूखे सूखे ज्ञान को भी सरस बनाता कौन, कवि जो स्वतन्त्र स्वच्छन्द नहीं होता तो।‌। लय में लालित्य नाद, भाव माधुरी में राग, मिट जाते कविता में, छ्न्द नहीं होता तो।। कटता न काटे एक पल ऊब जाते "प्राण" लोगों को कवित्व जो पसन्द नहीं होता तो।‌। परिचय :- गिरेन्द्रसिंह भदौरिया "प्राण" निवासी : इन्दौर (मध्य प्रदेश) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि मेरी यह रचना स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं छायाचित्र के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि प्रकाशित करवाने हेतु अपनी कवित...
जंगल में चुनाव
कविता

जंगल में चुनाव

गिरेन्द्रसिंह भदौरिया "प्राण" इन्दौर (मध्य प्रदेश)  ******************** सुन चुनाव की बात समूचा जंगल ही हो उठा अधीर। माँस चीथनेवाले हिंसक खाने लगे महेरी खीर।। धर्म-कर्म का हुआ जागरण आलस उड़ कर हुआ कपूर। देने लगे दुहाई सत की असत हो उठा कोसों दूर।। बिकने लगे जनेऊ जमकर दिखने लगे तिलक तिरपुण्ड। जानवरों के मरियल नायक बन बैठे हैं सण्ड-मुसण्ड।। ऊपर से मतभेद भुलाकर भीतर भरे रखे मन भेद। तू-तू मैं-मैं करके सरके आसमान में करके छेद।। श्वान न्यौतने लगे बिल्लियाँ बिल्ली न्यौते मूषक राज। देखी दरियादिली चील की बुलबुल की कर उठी मसाज।। लूलों ने तलवार थाम ली लँगड़े चढ़ने लगे पहाड़। बूढ़े श्वान भूलकर भौं भौं बकने लगे दहाड़ दहाड़।। भालू भैंस भेड़िए गीदड़ गिद्ध तेंदुए चीते चील। बकरी बन्दर बाघिन बगुले साँवर गैंडे हिरन अबील।। एक दूसरे के सब दुश्मन हुए इकट्ठे वन में...
तुम्हारा अद्भुत है संसार … महाश्रृंगार छन्द में
छंद

तुम्हारा अद्भुत है संसार … महाश्रृंगार छन्द में

गिरेन्द्रसिंह भदौरिया "प्राण" इन्दौर (मध्य प्रदेश)  ******************** महाश्रृंगार छन्द कहीं पर कितने पहरेदार, कहीं पर एक न चौकीदार। कहीं पर वीरों की हुंकार, कहीं का कायर है सरदार।। कहीं पर बूँद नहीं सरकार, कहीं जलधार मूसलाधार। कहीं पर खुशियों की बौछार, कहीं पर दुख के जलद हजार।। कहीं पर अँधियारे की मार, कहीं पर उजियारा आगार। कहीं पर गरमी है गरियार, कहीं पर सर्दी का संहार।। बदलते मौसम बारम्बार, देख कर लीला अपरम्पार। कह उठा मन यह आखिरकार, तुम्हारा अद्भुत है संसार।।१।। किसी का वेतन साठ हजार, किसी को मिलती नहीं पगार। किसी के भरे हुए भण्डार, किसी का उदर बिना आहार।। किसी को सौंपी शक्ति अपार, किसी का अंग-अंग बीमार। किसी को मिले अकट अधिकार, किसी का जीवन ही धिक्कार किसी की नाव बिना पतवार, किसी के हाथ बने हथियार। किसी का सत्य बना आधार, किसी का झूठ पा रह...
प्राण के बाण
कविता

प्राण के बाण

गिरेन्द्रसिंह भदौरिया "प्राण" इन्दौर (मध्य प्रदेश)  ******************** मेरी लम्बी व लोकप्रिय कविताओं में आए छाँटे हुए उद्धरणीय कवितांश "प्राण के बाण" हैं। पाठकों में इन बाणों की विशेष चर्चा है। ये बाण दोहे नहीं हैं फिर भी‌ दोहे की तरह हर बाण अपना अलग व पूरा अर्थ देता है। सूक्तियों, कहावतों व लोकोक्तियों की तरह अपना कालजयी प्रभाव छोड़ने वाले प्राण के ये बाण प्रायः लावणी, ककुभ अथवा ताटंक छन्दों में होते हैं। एक कविता या एक प्रसंग के न होने से सभी बाण अलग अलग तारतम्य में हैं। पढ़िए। प्राण के बाण की एक किश्त ============= १. जब करती निराश असफलता आती विपदा घड़ी घड़ी। पड़ी पड़ी प्रतिभाएँ पागल हो जातीं हैं बड़ी बड़ी।। २. कापुरुषों के लगे निशाने महाशूरमा चूक गए। कोयल रही टापती मौका पाकर कौए कूक गए।। 3. जब कवियों ने बढ़ाचढ़ा कर, कौओं को खगराज कहा। व्याख्या...
डमरू घनाक्षरी
धनाक्षरी

डमरू घनाक्षरी

गिरेन्द्रसिंह भदौरिया "प्राण" इन्दौर (मध्य प्रदेश)  ******************** (डमरू घनाक्षरी) ********* डमरू घनाक्षरी के प्रत्येक चरण में ८+८+८+८= लघु मात्राओं वाले कुल ३२ वर्ण ही होते हैं। कुछ तथाकथित छन्द विशेषज्ञों ने लघु वर्ण को अमात्रिक वर्ण कहा है जो हर तरह से ग़लत व भ्रामक है। "कमल" शब्द को अमात्रिक वर्णों का समूह नहीं कहा जा सकता है। इन सब में "अ" की मात्रा है। इसी प्रकार मात्र हर अकारान्त को ही लघु नहीं माना जायेगा अपितु हर इकारान्त उकारान्त ऋकारान्त वर्ण को भी लघु वर्ण माना जायेगा। नीचे मेरे द्वारा रचित तीनों डमरू घनाक्षरियाँ हैं। इनमें पहली अकारान्त लघु व दूसरी अकारान्त‌, इकारान्त, उकारान्त लघु एवं तीसरी अकारान्त वर्णों में हैं। पहली में हिन्दी की व शेष दो में ब्रज, अवधी बुन्देली की क्रियाएँ प्रयोग की गई हैं। हाँ एक बात और कि हर रचना सार्थक होना चाहिए चाहिए। &...
अतीक का अन्त (वीर छ्न्द में आल्हा)
छंद

अतीक का अन्त (वीर छ्न्द में आल्हा)

गिरेन्द्रसिंह भदौरिया "प्राण" इन्दौर (मध्य प्रदेश)  ******************** (वीर छ्न्द में आल्हा) अतीक का अन्त जिस प्रयाग की कुम्भ भूमि को, करते थे दो नर बदनाम। रूह काँप उट्ठेगी सुनकर, उनके कर्मों का अंजाम।।१।। जिस फिरोज अहमद का इक्का, रुक जाता था देख ढलान। इसी शख्स की औलादों ने, पाप बाँध कर भरी उड़ान।।२।। जैसी करनी वैसी भरनी, फसलें वैसी जैसे बीज। जैसी कुर्सी वैसी बैठक, जैसी सूरत वैसी खीज।।३।। प्रलयंकारी अत्याचारी, दुखदाई वरदान प्रतीक। दोनों विकट सहोदर युग के, नेता अशरफ और अतीक।।४।। अपराधी बन गए सांसद, और विधायक दोनों डान। था दुर्भाग्य देश का कैसा, दोनों भाई काल समान।।५।। मगर समय ने पलटी मारी, धरती हिली हिला आकाश। दोनों ने ही खुद कर डाला, खुद के घर का सत्यानाश।।६।। लूटमार रँगदारी ओछी, राजनीति छल से भरपूर। काम न आई ज़ब्त हो गई, पाप ...
तू कापुरुषों का पूत नहीं
कविता

तू कापुरुषों का पूत नहीं

गिरेन्द्रसिंह भदौरिया "प्राण" इन्दौर (मध्य प्रदेश)  ******************** चलने से पहले तय कर ले, दुर्गम पथ है अँधियारों का। हे वीर व्रती ! तब बढ़ा चरण, होगा रण भीषण वारों का।। यह भी तय है तू जीतेगा, शासन होगा उजियारों का। तू कापुरुषों का पूत नहीं, वंशज है अग्निकुमारों का।। नदियाँ लावे की बहती थीं, जिनकी शुचि रक्त शिराओं में। जो हर युग में गणनीय रहे, धू-धू करती ज्वालाओं में।। तू उन अमरों का अमर पूत, आर्यों की अमर निशानी है। तेरी नस-नस में तप्त रक्त, पानीदारों का पानी है।। हे सूर्य अंश अब दिखा कला, कर सिद्ध शौर्य टंकारों का। दुनिया बोलेगी जयकारे, दिल दहल उठेगा रारों का।। तू कापुरुषों का पूत नहीं, वंशज है अग्निकुमारों का।। तेरी जननी की हरी कोख, करुणा की तरल पिटारी से। अवतरण हुआ है हे कृशानु! तेरा बुझती चिनगारी से।। हे हुताशनी पावक सपूत! ...
खुद को उड़ती चिड़िया कर ले
ग़ज़ल

खुद को उड़ती चिड़िया कर ले

गिरेन्द्रसिंह भदौरिया "प्राण" इन्दौर (मध्य प्रदेश)  ******************** टूट पड़ें बस ग्राहक इतनी मोहक पुड़िया धर ले। बेशक घटिया माल रहे पर पैकिंग बढ़िया कर ले।। हाथों हाथ बिकेंगीं तेरी चीज़ें बाजारों में, जीत भरोसा जनता का फिर काली हँड़िया भर ले।। पाँव और ये पंख सलामत दोनों रखने होंगे, उड़ना ही है तो फिर खुद को उड़ती चिड़िया कर ले।। भरी जवानी में बुढ़िया सी सूरत ठीक नहीं है, रंगत बदल और खुद को खुद कमसिन गुड़िया कर ले।। ये रनिवास महल की रौनक सब मिटने वाली है, अच्छा होगा भव्य भवन को छोटी मढ़िया कर ले।। प्राण किसी के नहीं बचे हैं लाखों ने की कोशिश, इसीलिए खुद को कागज सा उड़िया मुड़िया कर ले।। परिचय :- गिरेन्द्रसिंह भदौरिया "प्राण" निवासी : इन्दौर (मध्य प्रदेश) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि मेरी यह रचना स्वरचित एवं मौलिक है...
रोटी ही बहुत है
कविता

रोटी ही बहुत है

गिरेन्द्रसिंह भदौरिया "प्राण" इन्दौर (मध्य प्रदेश)  ******************** घर में न हों जो चार, दाने तो कहीं भी यार, मिल जाए रूखी सूखी, रोटी ही बहुत है। गंजी खोपड़ी पे केश, बचे हों विशेष शेष, तो भी चार बालोंवाली, चोटी ही बहुत है। जेब में न हो छदाम, रखा हो कुबेर नाम, ऐसे नामी को तो खरी, खोटी ही बहुत है।। लट्ठ देख भाग उठे, बिना लिए प्राण ऐसे, भागे हुए भूत की लँगोटी ही बहुत है।। परिचय :- गिरेन्द्रसिंह भदौरिया "प्राण" निवासी : इन्दौर (मध्य प्रदेश) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि मेरी यह रचना स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं छायाचित्र के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि प्रकाशित करवाने हेतु अपनी कविताएं, कहानियां,...
कहीं हमारी कहीं तुम्हारी
ग़ज़ल

कहीं हमारी कहीं तुम्हारी

गिरेन्द्रसिंह भदौरिया "प्राण" इन्दौर (मध्य प्रदेश)  ******************** कहीं हमारी कहीं तुम्हारी, विरोधियों ने कमी बता दी। हक़ीक़तों का बयान आना, शुरू हुआ तो ज़ुबाँ दबा दी।। दलील देने लगा खलीफा, कि पंख तेरे नये नये हैं, भरी ज़रा सी उड़ान भर तो, ज़मीन पर ही हवा खिला दी।। भला बता दो किसे मिला है, सुकून दौरे जहाँ में आके, सदा सताता रहा जमाना, कभी घुटन तो कभी सजा दी।। हजार मुँह हैं हजार बातें, हजार दुखड़े खड़े दिखे हैं, जहाँ जहाँ भी गया वहाँ जो, मिला उसी ने कथा सुना दी।। कहा हटो सब खलास राशन, अमीर का तब गरूर टूटा, फक़ीर भूखा चला गया पर, सलामती की दिली दुआ दी।। न देह होगी न रूह होगी, न प्राण प्यारे कहीं मिलेंगे, कई पढ़ेंगे हमारी ग़ज़लें, मेरी गजल ही मुझे पढ़ा दी।। परिचय :- गिरेन्द्रसिंह भदौरिया "प्राण" निवासी : इन्दौर (मध्य प्रदेश) घोष...
ज़िन्दगानी लिख गया
ग़ज़ल

ज़िन्दगानी लिख गया

गिरेन्द्रसिंह भदौरिया "प्राण" इन्दौर (मध्य प्रदेश)  ******************** एक खतरों से लबालब ज़िन्दगानी लिख गया। दूसरा भी कम न था कुछ सावधानी लिख गया।। बहुत कम शब्दों में समझाते मिलेंगे लोग अब, आज फिर कोई कहावत में कहानी लिख गया।। वह कभी कोई नशा करता न था फिर भी स्वयं, रोज रहती है नशे में यह जवानी लिख गया।। जो न बीवी को कभी अपना सका भर जिन्दगी, आज मरते वक़्त उसको रातरानी लिख गया।। झूठ को सच और सच को झूठ लिखता था न वह, किन्तु अपने मुहल्ले को राजधानी लिख गया।। जो कभी रुख़सार से बहकर गिरे तेरे लिए, अश्क़ के उन मोतियों को वक़्त पानी लिख गया।। प्राण हैं तो महफिलें भी जी उठेंगीं दोस्तो, फिर न कहना बात यह कितनी सुहानी लिख गया।। परिचय :- गिरेन्द्रसिंह भदौरिया "प्राण" निवासी : इन्दौर (मध्य प्रदेश) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि मेरी यह रचना...
पी गया वह पीर
ग़ज़ल

पी गया वह पीर

गिरेन्द्रसिंह भदौरिया "प्राण" इन्दौर (मध्य प्रदेश)  ******************** पी गया वह पीर ताड़ी की तरह । सकपकाया फिर अनाड़ी की तरह ।। लोग उसकी बात कैसे मानते, जीभ चलती थी कुल्हाड़ी की तरह ।। जिन्दगी पर अब मुसीबत नित नई, टूट पड़ती है पहाड़ी की तरह ।। सिन्धियों सी कर ख़रीदी माल की, बेच दे फिर मारवाड़ी की तरह ।। एक बदली एक पागल के लिये, सज रही थी एक लाड़ी की तरह ।। जा रहा था दूर कछुए सा चला, लौट आया रेलगाड़ी की तरह ।। "प्राण" पंछी तो उड़ेगा डाल से, लोग ढूँढेगे कवाड़ी की तरह ।। परिचय :- गिरेन्द्रसिंह भदौरिया "प्राण" निवासी : इन्दौर (मध्य प्रदेश) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि मेरी यह रचना स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं छायाचित्र के साथ प्रकाशित करवा सकते है...
प्राण प्रणीत “शिवलहरी”
श्लोक

प्राण प्रणीत “शिवलहरी”

गिरेन्द्रसिंह भदौरिया "प्राण" इन्दौर (मध्य प्रदेश)  ******************** श्लोक १ ===== जय नन्दीश नदीश निधीश्वर नीर निशीश नटीश प्रभो। चिर चण्डीश फणीश शशीधर शीश शिरीश शिखीश प्रभो।। प्रिय पिण्डीश पतीशपतीश्वर वीर यतीश व्रतीश प्रभो। मम संघात निपात हराहर घातक पातक प्राण प्रभो।।१।। श्लोक २ ====== नव नीतीश क्षितीश सतीश्वर धीर सतीश सतीश प्रभो। कलि कालीश कलीश कवीश्वर कीश करीश कटीश प्रभो।। पद पाणीश परीश कपीश्वर ईश घटीश गतीश प्रभो। हर संघात निपात हराहर घातक पातक प्राण प्रभो।।२।। श्लोक ३ ===== शशिमौलीश मनीष मतीश्वर मूल मुनीश महीश प्रभो। जय गौरीश गिरीश गतीश्वर हीश हरीश तरीश प्रभो।। जय देवीश दिवीश दिगीश्वर द्वीश दिगीश दृगीश प्रभो। हर संघात निपात हराहर घातक पातक प्राण प्रभो।।३।। श्लोक ४ ===== जय वारीश जिगीषु तमीश्वर वेदि विधीश विधीश प्रभो। जय भृङ्गीश सुधीश बली...
मृत्यु
कविता

मृत्यु

गिरेन्द्रसिंह भदौरिया "प्राण" इन्दौर (मध्य प्रदेश)  ******************** मृत्यु अवस्था है जीवन की। बस काया के परिवर्तन की।। मोक्ष मिला तो लय जीवन है, जन्म मिला तो जय जीवन है। लोग सोचते हैं बस इतना, मरने तक का भय जीवन है।। जब कि अमर की मृत्यु कहाँ है? इससे सच्चा‌ सत्य कहाँ है ? कथा नहीं यह व्यथा कथन की, मृत्यु अवस्था है जीवन की।। दिखती नहीं अग्नि काठों में, कहाँ दूध में घी दिखता है? कहाँ बादलों पर बर्तन हैं, कौन कहाँ कविता लिखता है।। यह माया है साथ चलेगी, हर पड़ाव के बाद मिलेगी।। रही बात उत्थान पतन की, मृत्यु अवस्था है जीवन की।। पल - पल मृत्यु पा रहे तुम हो, पल - पल जन्म ले रहे तुम हो। तुममें प्राण उपस्थित पल पल, जीवन के भी जीवन तुम हो।। नाहक चिन्ता पाल रहे हो, दुविधा में क्यों डाल रहे हो। बातें करते हो दर्शन की, मृत्यु अवस्था है जीवन ...
पानी ही पानी है
कविता

पानी ही पानी है

गिरेन्द्रसिंह भदौरिया "प्राण" इन्दौर (मध्य प्रदेश)  ******************** धरती से अम्बर तक, एक ही कहानी है। छाई पयोधर पै, कैसी जवानी है।। सूखे में पानी है, गीले में पानी है । आँख खोल देखो तो, पानी ही पानी है।। पानी ही पानी है, पानी ही पानी है।। नदियों में नहरों में, सागर की लहरों में। नालों पनालों में, झीलों में तालों में।। डोबर में डबरों में, अखबारी खबरों में। पोखर सरोबर में, खाली धरोहर में।। खेतों में खड्डों में, गली बीच गड्ढों में। अंँजुरी में चुल्लू में, केरल में कुल्लू में।। कहीं बाढ़ आई है, कहीं बाढ़ आनी है। मठी डूब जानी है, बड़ी परेशानी है।। सोचो तो पानी है, घन की निशानी है। जानी पहचानी है, यही जिन्दगानी है।। पानी ही पानी है, पानी ही पानी है।। हण्डों में भण्डों में, तीर्थ राज खण्डों में।। कुओंऔर कुण्डों में, हाथी की शुण्डों में। गग...
देख सजनी देख ऊपर
कविता

देख सजनी देख ऊपर

गिरेन्द्रसिंह भदौरिया "प्राण" इन्दौर (मध्य प्रदेश)  ******************** देख सजनी देख ऊपर।। इंजनों सी धड़धड़ाती, बम सरीखी दड़दड़ाती रेल जैसी जड़बड़ाती, फुलझड़ी सी तड़तड़ाती।। पंछियों सी फड़फड़ाती, पल्लवों को खड़खड़ाती। कड़कड़ाती गड़गड़ाती, पड़पड़ाती, हड़बड़ाती भड़भड़ाती।। बावरी सी बड़बड़ाती, शोर करती सरसराती, आ रही है मेघमाला। देख सजनी देख ऊपर।। वह पुरन्दर की परी सी घेर अम्बर और अन्दर । औरअन्दर कर चुकी है श्यामसुन्दर से स्वयंवर।। खा चुकन्दर रीक्ष बन्दर सी कलन्दर बन मछन्दर । हो धुरन्धर खून खंजर छोड़ अंजर और पंजर ।। कर समुन्दर को दिगम्बर फिर बवण्डर सा उठाती, आ रही है मेघमाला। देख सजनी देख ऊपर।। जाटनी सी कामिनी उद्दामिनी सद्दामिनी सी। जामुनी सी यामिनी सी चाँदनी पंचाननी सी।। ओढ़नी में मोरनी सम चोरनी इव चाशनी सी। जीवनी में घोलती संजीवनी चलती बनी सी।। तर...
ग्रीष्म
कविता

ग्रीष्म

गिरेन्द्रसिंह भदौरिया "प्राण" इन्दौर (मध्य प्रदेश)  ******************** टपक रहा है ताप सूर्य का, धरती आग उगलती है। लपट फैंकती हवा मचलती, पोखर तप्त उबलती है।। दिन मे आँच रात में अधबुझ, दोपहरी अंगारों सी। अर्द्ध रात अज्ञारी जैसी, सुबह शाम अखबारों सी।। सिगड़ी जैसा दहक रहा घर, देहरी धू-धू जलती है। गरमी फैंक रही है गरमी, तपती सड़क पिघलती है।। सीना सिकुड़ गया नदियों का, नहरें नंगीं खड़ीं दिखीं। कुए बावड़ी हुए बावरे, झीलें बेसुध पड़ीं दिखीं।। तपन घुटन में हौकन ज्वाला, बाग-बाग में लगी हुई। बदली बनकर बरस रही है, आग-आग में लगी हुई।। जीभ निकाले श्वान हाँफते, बेबस व्याकुल लगते हैं। जीव जन्तु प्यासे पशु पक्षी, जग के आकुल लगते हैं।। हरे खेत हो गए मरुस्थल, पर्वत रेगिस्तान हुए। सारे विटप बिना छाया के, जलते हुए मकान हुए।। एसी, कूलर, अंखे, पंखे, डुलें वीजने नरमी से।...
वन्दे मातरम्
कविता

वन्दे मातरम्

गिरेन्द्रसिंह भदौरिया "प्राण" इन्दौर (मध्य प्रदेश)  ******************** वन्दे मातरम् बोलो वन्दे मातरम्। वन्दे मातरम् बोलो वन्दे मातरम्। तालियाँ बजाओ बोलो वन्दे मातरम्, खोलो दिल खोलो बोलो वन्दे मातरम्।। भारतीयता का है परम प्रमाण सा । एकता का मूल मन्त्र है पुराण सा । दासता को बेधता अचूक बाण सा, हिन्द की हवा में जिन्दगी के प्राण सा ।। इसे गाने वाले कभी डरते नही । कोरा दम्भ थोथी बात करते नहीं। अदम कदम कभी धरते नहीं, बलिदान देते किन्तु मरते नहीं।। फहराता तिरंगा भरे फरफर दम। उसी निकलता है वन्दे मातरम् । इसीलिए कहता हूँ भर दम खम । एक साथ सभी बोलो वन्दे मातरम्। वन्दे मातरम् बोलो वन्दे मातरम्।। वन्दे मातरम् का अर्थ चाहो जानना। तो बताऊँ ये है शुद्ध राष्ट्र साधना । मादरे वतन सलाम की है भावना , मातृभूमि को प्रणाम की है कामना ।। यही युक्ति देश की दशा स...